Rajasthan

Ajmer

CC/340/2013

GAYATRI TAK - Complainant(s)

Versus

MANGLAM BUILD DOVLEPRES - Opp.Party(s)

ADV S.P GANDHI

09 Feb 2017

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/340/2013
 
1. GAYATRI TAK
AJMER
...........Complainant(s)
Versus
1. MANGLAM BUILD DOVLEPRES
AJMER
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
  Vinay Kumar Goswami PRESIDENT
  Naveen Kumar MEMBER
  Jyoti Dosi MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 09 Feb 2017
Final Order / Judgement

जिला    मंच,     उपभोक्ता     संरक्षण,         अजमेर

श्रीमति गायत्री टांक पत्नी श्री सीताराम टांक, निवासी- सी-103, दी रेजीडेन्सी, प्रगति नगर, कोटडा, अजमेर ।  
                                                -         प्रार्थिया

                           बनाम

1. मंगलम ब्यूल्ड डेवलोपर्स लि.(दी रेजीडेंसी), 601-603,  पांचवा माला, एपेक्समाॅल, लाल कोठी, टोंक रोड़, जयपुर । 
2. मंगलम ब्यूल्ड डेवलोपर्स लि.(दी रेजीडेंसी), प्रगति नगर, पुष्कर रोड़़, कोटड़ा, अजमेर । 
3. पंचषील प्रोपर्टीज, दी रीयल स्टेट एजेण्ट, ग्राउण्ड फलोर, विमला मार्केट, राजस्थान फूड प्लाजा के सामने, वैषालीनगर, अजमेर । 

                                                -       अप्रार्थीगण
                 परिवाद संख्या 340 /2013  

                            समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी       अध्यक्ष
                 2. श्रीमती ज्योति डोसी       सदस्या
3. नवीन कुमार               सदस्य

                           उपस्थिति
                  1.श्री सूर्यप्रकाष गांधी, श्री नवनीत तिवारी,श्री अमित गांधी
                   अधिवक्तागण, प्रार्थिया
                  2.श्री सूरज पारीख,  अधिवक्ता अप्रार्थी सं. 1 व 2 
                  3. श्री मनीष सेठी, अधिवक्ता अप्रार्थी संख्या 3 

                              
मंच द्वारा           :ः- निर्णय:ः-      दिनांकः- 17.02.2017
 
1.      संक्षिप्त तथ्यानुसार प्रार्थिया  ने अप्रार्थी संख्या 1 की  ’’ दी रेजीडेन्सी’’ प्रगति नगर, कोटडा योजना में राषि रू. 1,26,250/- जमा करवाते हुए दिनांक 1.7.2009 को फ्लेट बुक कराया । तत्पष्चात्  फ्लैट पेटे अप्रार्थी संख्या 1 व 2 की मांग अनुसार समय समय पर   परिवाद की चरण संख्या 3 में वर्णित अनुसार राषि  दिनंाक 23.8.2010 तक जमा करवा दी ।  अप्रार्थीगण को प्रष्नगत फ्लैट की सम्पूर्ण राषि दिनंाक 23.8.2010 को जमा करवा दिए जाने के बाद उक्त दिनंाक को ही  कब्जा दिए जाने के बजाय  दिनंाक 3.4.2012 को प्रष्नगत फ्लैट का कब्जा  करीब 1 साल 7 माह 11 दिन बाद दिया गया । कब्जा दिए जाने के समय भी  पूरे परिसर में निर्माण कार्य ही चल रहा था । तत्पष्चात् उसने दिनंाक 23.5.2013 को  नोटिस देते हुए  आवेदन फार्म के नियम 12 के अनुसार जमा राषि पर 10 प्रतिषत राषि की मांग की । लेकिन अप्रार्थीगण ने नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया। अप्रार्थी ने फ्लैट में पीवीसी  एल्यूमिनियम की ग्रिल लगाने की जगह लोहे की ग्रिल लगा दी और ओपन पार्किग के रू. 25,000/- वसूल लिए जो उच्चतम न्यायालय के ओपन पार्किग की राषि  नही ंवसूलने के आदेष की अवेहलना है । प्रार्थिया ने इसे अप्रार्थीगण की सेवा में कमी बताते हुए परिवाद पेष कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है ।  
2.       अप्रार्थी संख्या 1 व 2 ने परिवाद में वर्णितानुसार फ्लैट बुक करवाए जाने के तथ्य को स्वीकार करते हुए आगे दर्षाया है कि  प्रार्थिया ने प्रष्नगत फ्लैट की सम्पूर्ण राषि  23.8.2010 को जमा नही ंकरवा कर  अंतिम भुगतान वर्ष 2012 में किया है  तथा किए गए करार के अनुसार  फ्लैट के निर्माण अनुसार  भुगतान किष्तों में किया जाना था ।  उत्तरदाता ने दिनंाक 3.4.2012 को फ्लेट की रजिस्ट्री करवाना  एवं  बकाया राषि जमा करवाए जाने  के तथ्य को भी  स्वीकार  किया है । किन्तु उक्त दिनांक  को रजिस्ट्री उत्तरदाता की वजह से करवाने में विलम्ब नहीं हुआ है बल्कि  प्रार्थिया  द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र के अनुसार फ्लैट में परिवर्तन करवाने की वजह से  व अनुबन्ध के अनुसार देय राषि जमा नहीं करवाने के कारण  हुआ है ।  पार्किग चार्जेज भी अनुबन्ध की ष्षर्तो के अनुसार  लिया गया है । आवासीय फ्लैट के निर्माण में समस्त सामग्री उच्च क्वालिटी व प्रार्थिया के  निरीक्षणानुसार ही लगाई है ।  अनुबन्ध पत्र की षर्त संख्या  31 व 33 के अनुसार किसी भी प्रकार के विवाद की स्थिति में आर्बिट्रेषन एक्ट के तहत कार्यवाही की जानी चाहिए  । उत्तरदाता के स्तर पर कोई सेवा में कमी कारित नहीं की गई । अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना की गई है ।  जवाब के समर्थन में श्री संजय गुप्ता, निदेषक का षपथपत्र पेष हुआ है ।  
3.        अप्रार्थी संख्या 3 ने जवाब प्रस्तुत करते हुए  दर्षाया है कि प्रार्थिया व उत्तरदाता के मध्य किसी भी प्रकार की कोई संविदा नहीं होने के कारण  और कोई वादकरण उत्पन्न नहीं होने की वजह से परिवाद उसके विरूद्व निरस्त होने योग्य है ।  जवाब के समर्थन में श्री अभिषेक जैन का ष्षपथपत्र पेष हुआ है । 
4        प्रार्थिया का तर्क रहा है कि उसके द्वारा अप्रार्थी की प्रष्नगत योजना के अन्तर्गत बुक करवाए गए फ्लैेट की समस्त राषि दिनांक 28.3.2010 को जमा करवाने के बाद उसे तत्काल कब्जा नहीं सौंपा गया,  अपितु  दिनांक 3.4.2012 को  1 वर्ष 7 माह  11 दिन बाद कब्जा दिया गया जबकि उसी दिन उसके द्वारा  रजिस्ट्री करवा दी गई व इस हेतु षुल्क इत्यादि भी जमा करवाया गया । तत्समय पूरे परिसर में  निर्माण कार्य बकाया था । समय पर कब्जा नहीं मिलने के कारण उसे काफी मानसिक व आर्थिक आघात लगा है  । उसने उक्त अपूर्ण कब्जा सौपने की षिकायत की  तथा जमा राषि पर ब्याज देने  की एवं सुविधाएं उपलब्ध करवाने की मांग की। किन्तु  इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया । रजिस्टर्ड नोटिस भी भेजा गया । अप्रार्थी द्वारा  आवंटित फ्लैट में  पीवीसी  एल्युनियम  की ग्रिल के स्थान पर लोहे की ग्रिल लगा गई । ओपन पार्किग के रू. 25,000/- वसूल की  है जो सर्वोच्च न्यायालय के  निर्देषो के विपरीत है । परिवाद स्वीकार किया जाना चाहिए । 
5.         अप्रार्थी संख्या 1 व 2 की ओर से खण्डन में तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रार्थी व उनके मध्य निष्पादित  विक्रय अनुबन्ध दिनांक 11.10.2010 अथवा फ्लैट बुक करवाते समय  आवेदन पत्र में इस प्रकार की कोई ष्षर्त नहीं थी ।अपितु किष्तों में भुगतान की षर्त तय थी । आवेदन पत्र में वर्णित अनुसार फ्लैट का कब्जा  निर्माण होने पर ही देय था । प्रार्थी की लिखित प्रार्थना के अनुसार फ्लैट में  परिवर्तन करवाने की वजह से तथा अनुबन्ध के अनुसार देय  राषि जमा नहीं कराने के कारण विक्रय पत्र की रजिस्ट्री में  विलम्ब हुआ है।  जिसके लिए  प्रार्थिया स्वयं जिम्मेदार है । विक्रय पत्र  के रजिस्ट्रेषन के साथ ही फ्लैट का कब्जा दे दिया गया था । फ्लैट का निर्माण अनुबन्ध के अनुसार ही करवाया गया तथा  पार्किग चार्जेज भी  अनुबन्ध के अनुसार  ही लिए गए हैं । विकल्प में अनुबन्ध  व विक्रय पत्र की ष्षर्त संख्या  31 व 33  के अनुसार किसी भी प्रकार के विवाद होने की स्थिति में आर्बीट्रेषन एक्ट  के तहत कार्यवाही की जानी चाहिए थी, जो नहीं की गई है । इस मंच को परिवाद सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं है । परिवाद निरस्त होने योग्य है ।  उत्तरदाता ने न्यायिक दृष्टान्त प्;2011द्धब्च्श्रण्3373ण्टंदकंदं ।हंतूंस टे  डंींहनद क्मअमसवचमते स्जक - ।दतण्एप्प्;2011द्धब्च्श्र 397  श्रंेूंदज  भ्ंदे टे ।ेीवा  ज्ञनउंत ळवमस प्प्;2007द्ध17;ैब्द्धठक्ट टे  ैलकपबंजम ठंदाएप्ट;2013द्धब्च्श्र 341;छब्द्ध डंसापंद ैपदही टे च्ंतंउरपज  ग्ंसपं         पर अवलम्ब लिया है ।  
6.    अप्रार्थी संख्या 3 की ओर से प्रमुख रूप से बहस की  गई है कि उनका व  प्रार्थिया के मध्य किसी प्रकार की कोई संविदा नहीं होने  के कारण परिवाद खारिज होने योग्य है । 
7.    हमने परस्पर तर्क सुने लिए हैं एवं रिकार्ड को अवलोकन किया, साथ ही प्रस्तुत नजीरों को देखा । 
8.    जहां तक अप्रार्थी संख्या 3 के विरूद्व अनुतोष  प्रदान किए जाने बाबत् बिन्दु का प्रष्न है, प्रार्थिया का प्रष्नगत फ्लैट के संदर्भ में अप्रार्थी संख्या 3 से किसी प्रकार का कोई अनुबन्ध नहीं हुआ है तथा मात्र विज्ञापन के आधार पर उसके विरूद्व न तो किसी प्रकार की कोई कार्यवाही अपेक्षित  है और न ही पोषणीय  है । हम इस संदर्भ में  अप्रार्थी संख्या 3 की ओर से प्रस्तुत तर्को में बल पाते हुए यह अभिनिर्धारित करते है कि प्रार्थिया  अप्रार्थी संख्या 3 के विरूद्व कोई अनुतोष प्राप्त करने की अधिकारिणी नहीं है । 
9.    प्रार्थिया  द्वारा प्रष्नगत फ्लैट का आवेदन पत्र भरना, वांछित राषि का जमा कराया जाना तथा दिनंाक 23.8.2013 तक सम्पूर्ण राषि के रूप में कुल देय राषि जमा कराना विवाद का विषय नहीं है । मात्र विवाद का बिन्दु यह है कि क्या उक्त राषि के दिनांक 23.8.2010 को जमा कराए  जाने के बाद वह तत्काल फ्लैट का कब्जा प्राप्त करने की अधिकारिणी थी ?
10.    पक्षकारों के मध्य कब्जा प्राप्त करना,  सुख सुविधा आदि के संदर्भ में प्रार्थिया द्वारा फ्लेट  हेतु आवेदन करना, आवेदन के समय ष्षर्ते व  उभय पक्षकारान के मध्य इस संदर्भ में करार सर्वाधिक महत्वूपर्ण साक्ष्य है । हम यहां उल्लेख करना उचित समझते हंै कि उक्त करार की ष्षर्त संख्या 3 में यह स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि खरीदार रू. 25,000/-  की राषि विक्रय कर्ता को  ओपन पार्किग के लिए फ्लैट  के पजेषन के समय अथवा इससे पूर्व अदा करेगा। पक्षकार इस संदर्भ में  परस्पर सहमत हुए हंै व तदनुसार यदि प्रार्थिया ने ओपन पार्किंग के लिए रू. 25,000/- की राषि अदा की है अथवा  विक्रय कर्ता ने प्राप्त की है तो इसमें किसी प्रकार की कोई अन्यथा बात  सामने नहीं आई है एवं इस बाबत उठाई गई आपत्ति सारहीन होने के कारण स्वीकार किए जाने येाग्य नहीं है । 
11.    इसी करार की  अन्य ष्षर्तो पर हम यदि विचार करें तो इसमें पक्षकारों के मध्य इस प्रकार का कोई करार तय नहीं हुआ है कि  विक्रयकर्ता तैयार किए जाने वाले फ्लैट में अमुक किस्म की सामग्री  का उपयोग करेगें। मौटे तौर पर  इस करार के अन्तर्गत उच्च श्रेणी की  ही सामग्री का उपयोग  किया जाएगा । यदि प्रार्थिया ने  एल्मुनियम  की ग्रिल के स्थान पर लोहे की ग्रिल  लगाए जाने बाबत् आपत्ति की  है तो उसे तत्समय  कब्जा लेने से पूर्व विक्रयकर्ता के समक्ष आपत्ति की जानी चाहिए थी , जो उसके द्वारा नहीं की गई है । इसी प्रकार इस करार के अन्तर्गत यह भी तय पाया गया है कि समस्त राषि जमा करवाए जाने के बाद ही फ्लैट का रजिस्ट्रेषन करवाया जाएगा व इस हेतु समस्त खर्चे की अदायगी खरीददारान की होगी । इसी के अनुरूप प्रार्थिया ने फ्लैट का रजिस्ट्रेषन करवाते समय समस्त खर्चे की अदायगी की है । उसे इस रजिस्ट्रेषन के तुरन्त बाद फ्लैट का कब्जा मिला है । कब्जे के संदर्भ में फ्लेट के आवंटन किए जाने हेतु भरे गए फार्म में जो षर्ते बताई गई है उसके अनुसार किस प्रकार  बुकिंग व निर्माण के समय भुगतान किया जाएगा इसकी स्थिति का खुलासा किया गया है वह इन सभी तथ्यों एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जब प्रार्थिया द्वारा  दिनंाक 23.8.2010 को समस्त राषि अदा कर दी गई थी  तथा यदि अंतिम किष्त के रूप में भुगतान किए जाने के बाद अंतिम  चरण के निर्माण के बाद उसे लगभग पौने दो वर्ष बाद फ्लैट का कब्जा मिला है तथा इसमें किसी प्रकार की कोई तात्विक  अनियमितता सामने नहीं आई है । चूंकि करार में पक्षकारों के मध्य किसी निष्चित तिथि को फ्लैट का  कब्जा दिए जाने का  कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं था । अतः उपरोक्त तथ्य एवं परिस्थितियों के प्रकाष में जो कब्जा मिलने में देरी बताई गई है वह तात्विक देरी नहीं है । अतः हमारी राय में अप्रार्थीगण द्वारा किसी प्रकार की कोई सेवा में कमी  व अनुचित व्यापार व्यवहार का परिचय नहीं दिया गया है ।  जो विनिष्चय अप्रार्थी की ओर से प्रस्तुत हुए है, के तथ्य हस्तगत प्रकरण से मेल नहीं  खाने के कारण उनके लिए सहायक नहीं है ।  इस प्रकार जो आर्बिट्रेषन के क्लाॅज बाबत्, आपत्ति का प्रष्न है, इस संबंध में  अब सुनिष्चित विधि है कि करार में इस बाबत् क्लाॅज होने के बावजूद भी पक्षकार  उपभोक्ता मंच के माध्यम से अनुतोष प्राप्त कर सकेेगें । 
12.            सार यह है कि उपरोक्त विवेचन के प्रकाष में परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है एवं आदेष है कि 
                          -ःः आदेष:ः-
13.            प्रार्थी का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार  किया जाकर  खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
            आदेष दिनांक 17.02.2017 को  लिखाया जाकर सुनाया गया ।


 (नवीन कुमार )        (श्रीमती ज्योति डोसी)      (विनय कुमार गोस्वामी )
      सदस्य                   सदस्या                      अध्यक्ष    
           
               

 

 

 
 
[ Vinay Kumar Goswami]
PRESIDENT
 
[ Naveen Kumar]
MEMBER
 
[ Jyoti Dosi]
MEMBER

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