सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या-1631/2010
बजाज एलायंस जनरल इन्श्योरेन्स कम्पनी लि0, ए-3, प्रथम तल, सेक्टर-4, नोयडा (यूपी), द्वारा ब्रांच आफिस बजाज एलायंस जनरल इन्श्योरेन्स कम्पनी लि0, 4 शाहनजफ रोड, हजरतगंज, लखनऊ (यू.पी.), द्वारा आफिसर इन चार्ज।
अपीलार्थी/विपक्षी सं0-2
बनाम्
1. श्री मंदर प्रसाद जैन (मृतक) पुत्र रघुनाथ प्रसाद जैन, निवासी नया बाजार बरौत, जिला बागपत (यू.पी.)। (मृतक)
1/1. श्री मनोज जैन पुत्र स्व0 श्री मंदार जैन, निवासी नया बाजार, जिला बागपत (यू.पी.)। (प्रतिस्थापित विधिक वारिसान)
2. सिंडीकेट बैंक केयर आफ ब्रांच मैनेजर, सिंडीकेट बैंक, दिगम्बर जैन कालेज, गांधी रोड, बरौत, जिला बागपत (यू.पी.)।
3. श्री अवकेश कुमार जैन पुत्र श्री अमोलक चन्द्र जैन, निवासी 15/104, नेहरू रोड, बरौत, जिला बागपत (यू.पी.)।
प्रत्यर्थीगण/परिवादी/प्रतिस्थापित विधिक वारिसान/विपक्षी सं0-1 व 3
एवं
अपील संख्या-1438/2010
सिंडीकेट बैंक, हेड आफिस मनिपाल इन उदुपी जिला कर्नाटक स्टेट, ब्रांच आफिस बरौत, डीजेसी कालेज ब्रांच बरौत, जिला बागपत, द्वारा मैनेजर लॉ श्री पी.के. सिंह पोस्टेड रिजनल आफिस लखनऊ।
अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1
बनाम्
1. श्री मंदर प्रसाद जैन (मृतक) पुत्र रघुनाथ प्रसाद जैन, निवासी नया बाजार बरौत, जिला बागपत। (मृतक)
1/1. श्री मनोज जैन पुत्र स्व0 श्री मंदार जैन, निवासी नया बाजार, जिला बागपत (यू.पी.)। (प्रतिस्थापित विधिक वारिसान)
2. बजाज एलायंस जनरल इन्श्योरेन्स कम्पनी लि0, हेड आफिस जी.ई. प्लाजा, ऐयरपोर्ट रोड, यरवदा, पूणे 411006, द्वारा ब्रांच मैनेजर आफिस ए-3, प्रथम तल, सेक्टर-4, नोयडा 201301 ।
3. श्री अवकेश कुमार जैन पुत्र श्री अमोलक चन्द्र जैन, निवासी 15/104, नेहरू रोड, बरौत, जिला बागपत।
प्रत्यर्थीगण/परिवादी/प्रतिस्थापित विधिक वारिसान/विपक्षी सं0-2 व 3
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
बजाज एलायंस की ओर से : श्री दिनेश कुमार, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-1/1 की ओर से : श्री विकास अग्रवाल एवं
श्री शिशिर कुमार सक्सेना के सहयोगी श्री
अविनाश शर्मा, विद्वान अधिवक्तागण।
सिंडीकेट बैंक की ओर से : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी सं0-3 की ओर से : श्री आर.डी. क्रांति, विद्वान
अधिवक्ता।
दिनांक: 25.05.2022
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-26/2009, श्री मंदर प्रसाद जैन बनाम सिंडीकेट बैंक तथा दो अन्य में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, बागपत द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 07.07.2009 के विरूद्ध अपील संख्या-1631/2010 बजाज एलायंस जं0इं0कं0लि0 की ओर से प्रस्तुत की गई है, जबकि अपील संख्या-1438/2010 सिंडीकेट बैंक की ओर से प्रस्तुत की गई है। चूंकि दोनों अपीलें एक ही निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत की गई हैं, इसलिए दोनों अपीलों का निस्तारण एक ही निर्णय एवं आदेश द्वारा किया जा रहा है। इस हेतु अपील संख्या-1631/2010 अग्रणी अपील होगी।
2. इस निर्णय/आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी संख्या-1 व 2 को आदेशित किया गया है कि वे परिवादी को अंकन 7,10,000/- रूपये सम भाग में अदा करें। इस राशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 12 प्रतिशत की दर से साधारण ब्याज भी अदा करने का आदेश दिया गया।
3. परिवाद पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी विपक्षी संख्या-1 से अंकन 04 लाख की कैश क्रेडिट लिमिट की सुविधा प्राप्त कर रहा है। इस ऋण को लेकर खरीदे गए माल स्टाक का अग्नि सहित सभी प्रकार के जोखिमों का बीमा कराने का उत्तरदायित्व विपक्षी संख्या-1 का था। वर्ष 2007-08 के लिए अंकन 06 लाख रूपये की पालिसी विपक्षी संख्या-2 के यहां से जारी कराई गई थी, जिसके नवीनीकरण के लिए विपक्षी संख्या-3 को अंकन 3,266/- रूपये का चेक दिनांक 24.12.2008 को दिया गया था। विपक्षी संख्या-2 एवं 3 ने इस चेक को दो-तीन दिन में पेश करने के बजाए दिनांक 11.02.2009 के बाद पेश किया और इसी तिथि को विपक्षी संख्या-2 द्वारा रसीद जारी की गई तथा पालिसी दिनांक 21.02.2009 को जारी की गई। दिनांक 3/4.04.2009 की रात्रि में परिवादी की दुकान में अचानक आग लग गई, जिसकी जानकारी पड़ोसियों के माध्यम से सुबह 4.00 बजे हुई। फायर ब्रिगेड को सूचित किया गया, परन्तु इस अग्निकांड में अंकन 07 लाख रूपये की हानि हुई। प्रथम सूचना रिपोर्ट थाना बरौत में दर्ज कराई गई तथा बीमा क्लेम प्रस्तुत किया गया। दिनांक 04.04.2009 की शाम को परिवादी को सूचित किया गया कि प्रीमियम का चेक अपर्याप्त धन न होने के कारण बांउस हो गया है। परिवादी ने जब अपना खाता चेक किया तो ज्ञात हुआ कि प्रीमियम का चेक बैंक द्वारा भुनाया नहीं गया था तथा विपक्षी संख्या-2 को भुगतान रहित लौटा दिया गया। दिनांक 04.04.2009 से पूर्व परिवादी को जानकारी नहीं दी गई थी। इस चेक का भुगतान करने के लिए परिवादी के खाते में बैलेन्स था। प्रश्नगत चेक के अलावा दिनांक 19.02.2009 के पहले या बाद के सभी चेकों का भुगतान हुआ था। बैंक द्वारा सूचित किया गया था कि दिनांक 28.01.2009 को लिमिट समाप्त हो चुकी थी। ऐसा खाते को रिनीवल न करने के कारण हुआ था, जिसके कारण कम्प्यूटर द्वारा सीसी ऋण की सुविधा को शून्य दर्शा दिया था। दिनांक 20.12.2008 को ही एक प्रार्थना पत्र दिया गया था कि श्रीमती सुधा जैन की मृत्यु हो चुकी है। कागजात बदलने में तीन माह का समय लगेगा। इस पत्र के आधार पर खाते की अवधि तीन माह के लिए बढ़ा दी गई थी, इसलिए बम्बई शाखा ने अपर्याप्त धन लिखकर चेक वापस कर दिया।
4. बैंक का कथन है कि शिकायकर्ता की अवधि दिनांक 28.01.2009 को समाप्त हो चुकी थी, इसकी सूचना परिवादी को दिनांक 28.01.2009 को दे दी गई थी, इसके बावजूद दिनांक 28.01.2009 तक बीमा नहीं कराया। बीमा कराने की अवधि दिनांक 26.12.2007 से दिनांक 25.12.2008 तक थी, इसलिए चेक अस्वीकृत होने में बैंक का कोई दोष नहीं है। विपक्षी संख्या-1, बैंक को अंकन 50 हजार रूपये की क्षतिपूर्ति प्रदान कराई जाए।
5. बीमा कम्पनी का कथन है कि चूंकि कोई बीमा कवर नहीं था, इसलिए बीमा कम्पनी द्वारा कोई बीमा क्लेम स्वीकार नहीं किया जा सकता।
6. सभी पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि प्रीमियम राशि का चेक दिनांक 24.12.2008 को अनादर करने हेतु विपक्षी संख्या-1 व 2 संयुक्त रूप से उत्तरदायी हैं, इसलिए दोनों को उपरोक्त वर्णित धनराशि अदा करने के लिए आदेशित किया गया।
7. इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध अपील संख्या-1631/2010 में बीमा कम्पनी का कथन है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने तथ्यों के विपरीत जाकर निर्णय/आदेश पारित किया है। बीमा कम्पनी द्वारा चूंकि बीमा पालिसी जारी नहीं की गई है, चेक राशि भुगतान नहीं हुई है और प्रीमियम राशि प्राप्त नहीं हुई है, इसलिए बीमा कम्पनी किसी प्रकार का बीमा क्लेम अदा करने के लिए उत्तरदायी नहीं है।
8. इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध अपील संख्या-1438/2010 में बैंक का कथन है कि कैश क्रेडिट लिमिट की अवधि समाप्त हो जाने के पश्चात चेक बरौत शाखा में प्रस्तुत करने के बजाय बाम्बे शाखा में दिनांक 19.02.2009 को प्रस्तुत किया गया, इसलिए चेक राशि का भुगतान नहीं हो सका। यह भी उल्लेख किया गया कि अंकन 04 लाख रूपये की कैश क्रेडिट लिमिट श्रीमती सुधा जैन के लिए स्वीकृत की गई थी, जो समाप्त हो चुकी थी। परिवादी ने दिनांक 20.10.2008 को अनुरोध किया था कि श्रीमती सुधा जैन की मृत्यु हो चुकी है, इसलिए 03 माह का समय प्रदान किया जाए ताकी खाता संचालित किया जा सके। इस तथ्य के आधार पर 03 माह का समय प्रदान किया गया था। इसके बाद सीसी लिमिट दिनांक 20.01.2009 तक के लिए स्वीकार की गई थी। इसके बाद श्री मंदर प्रसाद जैन (मृतक) ने दिनांक 25.03.2009 को पुन: अनुरोध किया कि उन्हें 03 माह का अतिरिक्त समय प्रदान किया जाए। दिनांक 25.03.2009 के पत्र की प्रति अनेग्जर संख्या-ए-4 है। खाते के रिनीवल की सूचना मुम्बई स्थित बैंक अधिकारियों को प्राप्त नहीं हुई थी, इसिलिए मुम्बई शाखा द्वारा चेक वापस लौटा दिया गया। परिवादी ने जिस तिथि दिनांक 24.12.2008 को अंकन 3,266/- रूपये के प्रीमियम के भुगतान के लिए बरौत स्थित शाखा में चेक जमा किया था, उस समय लिमिट समाप्त हो चुकी थी। दिनांक 20.10.2008 के पत्र के आधार पर दिनांक 20.01.2009 यानि 03 माह के लिए लिमिट बढ़ाई गई थी, जबकि मुम्बई शाखा में क्लीयरेन्स के लिए चेक दिनांक 19.02.2009 को प्राप्त हुआ। चूंकि प्रत्यर्थी संख्या-1 (मृतक) ने औपचारिकताएं पूर्ण नहीं की थी, इसलिए खाते का नवीनीकरण नहीं हो सका। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने चेक का भुगतान करने का कारण विचार में नहीं लिया, जबकि स्वंय परिवादी/प्रत्यर्थी संख्या-1 (मृतक) के स्तर से असावधानी बरती गई, इसलिए अंकन 07 लाख रूपये की क्षति की पूर्ति का आदेश अवैध है।
9. दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावलियों का अवलोकन किया गया।
10. पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य से यह तथ्य स्थापित है कि जो सी.सी. लिमिट प्राप्त की गई थी, वह दिनांक 28.01.2009 को समाप्त हो चुकी थी, जबकि चेक दिनांक 19.02.2009 को प्रस्तुत किया गया था और इस तिथि को खाते में कोई धनराशि मौजूद नहीं थी, इसलिए इस चेक का सम्मान नहीं किया जा सका, इसलिए बैंक का कोई उत्तरदायित्व निर्धारित नहीं किया जा सकता। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने बैंक के विरूद्ध अवैधानिक आधारों पर क्षति की पूर्ति का एक भाग अदा करने का आदेश पारित किया है। परिवादी के कथन के अनुसार पालिसी के नवीनीकरण के लिए विपक्षी संख्या-3 को दिनांक 24.12.2008 को चेक दिया गया था। परिवाद पत्र के अनुसार चेक विपक्षी संख्या-3 को दिया गया था। विपक्षी संख्या-3 की हैसियत परिवाद पत्र में दर्शित नहीं की गई है। बहस के दौरान यह कहा गया है कि विपक्षी संख्या-3 बीमा कम्पनी का एजेंट है। बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि प्रीमियम की राशि का एजेंट को भुगतान, बीमा कम्पनी को किया गया भुगतान नहीं माना जा सकता। बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क विधि से समर्थित है कि विपक्षी संख्या-3, एजेंट को दिया गया चेक बीमा कम्पनी को दिया गया चेक नहीं माना जा सकता, इसलिए यह तथ्य साबित नहीं है कि यथार्थ में बीमा कम्पनी को चेक किस दिन प्राप्त हुआ। चूंकि बीमा कम्पनी द्वारा दिनांक 11.02.2009 को रसीद जारी की गई और दिनांक 21.02.2009 को पालिसी जारी की गई, इसलिए माना जा सकता है कि यथार्थ में चेक बीमा कम्पनी को दिनांक 11.02.2009 को प्राप्त हुआ, क्योंकि इस तिथि को रसीद जारी की गई है, जबकि श्रीमती सुधा जैन की मृत्यु के कारण ऋण सुविधा दिनांक 28.01.2009 को समाप्त हो चुकी थी, इसलिए चेक प्रस्तुत करने की तिथि दिनांक 11.02.2009 को उनके खाते में कोई राशि मौजूद नहीं थी। इस कृत्य के लिए बीमा कम्पनी को भी दोषी नहीं माना जा सकता, क्योंकि परिवादी द्वारा प्रीमियम का भुगतान सीधे बीमा कम्पनी को नहीं किया गया और चूंकि क्रेडिट लिमिट अस्तित्व में नहीं थी, इसलिए बैंक द्वारा अपने स्तर से बीमा कराया जाना संभव नहीं था। अत: परिवादी को कारित क्षति की पूर्ति के लिए बैंक या बीमा कम्पनी कोई भी उत्तरदायी नहीं है। उपरोक्त दोनों अपीलें तदनुसार स्वीकार होने योग्य हैं।
आदेश
11. उपरोक्त दोनों अपीलें, अर्थात अपील संख्या-1631/2010 तथा अपील संख्या-1438/2010 स्वीकार की जाती हैं। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 07.07.2009 अपास्त किया जाता है तथा परिवाद खारिज किया जाता है।
इस निर्णय/आदेश की मूल प्रति अपील संख्या-1631/2010 में रखी जाए एवं इसकी एक सत्य प्रति संबंधित अपील में भी रखी जाए।
अपीलार्थियों द्वारा धारा-15 के अन्तर्गत जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित दोनों अपीलार्थियों को विधि अनुसार वापस की जाए।
उभय पक्ष को इस निर्णय/आदेश की सत्यप्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
निर्णय/आदेश आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2