प्रकरण क्र.सी.सी./14/03
प्रस्तुती दिनाँक 30.12.2013
श्रीमती पुष्पा देशमुख ध.प.स्व.सुनील कुमार देशमुख, आयु-42 वर्ष, निवासी-क्वाटर नंबर 313, वार्ड नंबर 3, नया कालोनी, गया नगर, दुर्ग, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादिनी
विरूद्ध
1. भारतीय जीवन बीमा निगम, द्वारा मण्डल प्रबंधक, मण्डल कार्यालय, पता-जीवन प्रकाश, जीवन बीमा मार्ग, पो.बा.सं.10, पंडरी, रायपुर, जिला-रायपुर (छ.ग.)
2. भारतीय जीवन बीमा निगम, द्वारा-शाखा प्रबंधक, शाखा कार्यालय, सिविक सेंटर, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 31 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादिनी द्वारा अनावेदकगण से चार बीमा पाॅलिसियों की बीमा राशि कुल 4,87,500रू. मय बोनस व ब्याज दिलाये जाने, मानसिक क्षति, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण में स्वीकृत तथ्य है कि अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा मृतक बीमाधारक के पक्ष अभिकथित चार बीमा पालिसियां जारी की गई थी।
परिवाद-
(3) परिवादिनी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी के पति स्व.सुनील कुमार देशमुख के द्वारा अपने जीवन काल में अनावेदक बीमा कंपनी से चार बीमा पालिसियां कराई गई थी, उपरोक्त बीमा पाॅलिसियां अनावेदक के द्वारा परिवादिनी के पति के स्वास्थ्य परीक्षण कराने के उपरांत जारी की गई थी, जिसके अनुसार पालिसीधारक की मृत्यु पर नामिनी/परिवादिनी को कुल 4,87,000रू. मय बोनस प्राप्त होना था। दिनांक 18.04.2012 को सेक्टर 9, बी.एस.पी.हास्पिटल मे परिवादिनी के पति की शाक एवं श्वसन तंत्र फेल हो जाने के कारण मृत्यु हो गई। परिवादिनी के द्वारा अनावेदक बीमा कपंनी को सूचना प्रदान की गई तथा समस्त दस्तावेज सहित क्लेम फार्म भरकर अनावेदक बीमा कंपनी के समक्ष प्रस्तुत किए गए। अनावेदक के द्वारा दिनांक 18.07.2013 को पत्र के माध्यम से आवेदिका के दावे को गलत आधारों पर निरस्त कर दिया गया। इस प्रकार अनावेदकगण के द्वारा बीमाधन का भुगतानन कर सेवा में कमी तथा व्यवसायिक कदाचरण करने की श्रेणी में आने वाला कृत्य किया गया है। अतः परिवादिनी को अनावेदकगण से चार बीमा पालिसियों की बीमा राशि कुल 4,87,500रू. मय बोनस व ब्याज दिलाये जाने, मानसिक क्षति, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(4) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि मृतक बीमाधारक के जीवन पर सभी चारों पालिसियों को उसके वेतन बचत योजना के अंतर्गत नान मेडिकल स्पेशल स्कीम के अंतर्गत जारी किया गया था। मृतक भिलाई स्पात संयंत्र में कार्यरत था एवं उसके चिकित्सा विभाग द्वारा जारी ओ.पी.डी. बुक के अनुसार मृतक बीमाधारक दि.01.11.2010 से दि.02.12.2010 तक डायबिटिज बीमारी के कारण अनफिट था, चिकित्सक द्वारा डायबिटिक चार्ट की भी जानकारी मृतक को दी गई थी, इसके पश्चात् दि.12.04.2012 को जे.एल.एन. हास्पिटल, भिलाई में भर्ती हुआ था। इस प्रकार मृतक बीमाधारक द्वारा पाॅलिसी लेने से पूर्व रोगों का चिकित्सकीय उपचार लिया गया था। मृतक बीमा धारक की मृत्यु दिनांक 18.04.2012 तक लगातार डी.एम.2/पी.एच.टी./ब्लड शुगर/का इलाज चलता रहा एवं उपचार की अवधि में ही बीमाधारक की मृत्यु हो गई। पाॅलिसी की शर्त क्र.5 विशेष परिस्थितियों में जब्ती के अनुसार, यदि इसमें समाविष्ट या पृष्ठांकित किसी भी शर्त का उल्लंघन किया जाता है या यदि यह पाया जाता है कि प्रस्ताव पत्र, व्यक्तिगत प्राकथन, घोषणा और संबंधित प्रलेखों में कोई गलत या असत्य कथन सम्मिति है अथवा कोई तात्विक जानकारी छिपाई गई है। अतः बीमा पाॅलिसी की शर्तों के उल्लंघन के कारण एवं बीमा पाॅलिसी की शर्त क्र.5 विशेष परिस्थितयों में जब्ती के अनुसार किसी प्रकार की राशि परिवादिनी को देय न होने से अनावेदक के द्वारा परिवादिनी के दावे को भुगतान योग्य न पाते हुए निरस्त कर दिया गया, जिसकी सूचना परिवादिनी को प्रदान कर दी गई थी। इस प्रकार अनावेदक बीमा कंपनी के द्वारा परिवादिनी के प्रति किसी प्रकार सेवा में कमी एवं व्यवसायिक कदाचरण नहीं किया गया है। अतः परिवादिनी के द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद निरस्त किया जावे।
(5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादिनी, अनावेदकगण से चार बीमा पाॅलिसियों की बीमा राशि कुल 4,87,500रू. मय बोनस व ब्याज प्राप्त करने की अधिकारी है? नहीं
2. क्या परिवादिनी, अनावेदकगण से मानसिक परेशानी के एवज में राशि प्राप्त करने की अधिकारी है? नहीं
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद खारिज
निष्कर्ष के आधार
(6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(7) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि बीमित व्यक्ति ने चार अभिकथित बीमा पाॅलिसियां सन् 2011 में लिया था, जिसके संबंध में बीमित व्यक्ति द्वारा प्रापोजल फार्म भी भरा गया था, जिसकी प्रति प्रकरण में संलग्न है। प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि बीमित व्यक्ति का डाॅक्टरी परीक्षण नहीं कराया गया था और अभिकथित बीमा केवल बीमित व्यक्ति के निर्धारित प्रपत्र में घोषणा के फलस्वरूप था।
(8) उक्त घोषणा के अनुसार बीमित को ऐसा भी इंद्राज करना था कि पिछले पांच वर्षों के भीतर किसी ऐसी बीमारी के लिए जिसमें एक सप्ताह से अधिक समय तक उपचार की आवश्यकता पड़ी हो या किसी चिकित्सक से परामर्श किया है तथा क्या वह स्वास्थ्य के आधार पर कार्य से अनुपस्थित रहा तथा क्या वह मधुमेह, उच्च रक्तचाप से पीड़ित था? इस घोषणा के संबंध में बीमित व्यक्ति ने नकारात्मक उत्तर लिखा है, साथ ही सामान्य स्थिति में ’’अच्छा’’ लिखा है, जबकि एनेक्चर डी.10 जो कि सेक्टर-9 अस्पताल का चिकित्सकीय दस्तावेज है के अवलोकन से स्पष्ट है कि बीमित व्यक्ति को प्रपोजल फार्म भरने की तिथि के पहले से ही डायबिटिज तथा हाईपरटेंशन था अर्थात् बीमित व्यक्ति ने भिलाई इस्पात संयंत्र के कर्मचारी रहते हुए कर्मचारियों को दी गई चिकित्ससा सुविधा हेतु दस्तावेजों में उक्त बीमारियों का उल्लेख होते हुए पश्चात्वर्ती तिथियों में बीमा कराते हुए उक्त बीमारियों को निश्चित रूप से छिपाया गया है।
(9) परिवादी यह सिद्ध करने में असफल रहा है कि जिस बीमारी के कारण बीमित व्यक्ति की मृत्यु हुई है वह बीमा पाॅलिसी लेने के पहले की तिथियों की बीमारी के फलस्वरूप नहीं थी। एनेक्चर डी.12 के सीरियल नं.4 के इंद्राज से यही सिद्ध होता है कि बीमित व्यक्ति को पूर्वत् बीमारियों के कारण ही मृत्यु के समय चिकित्सकीय समस्या आई, जिसके कारण मृतक की मृत्यु हुई, क्योंकि बीमित व्यक्ति का लम्बे समय से उक्त संबंध में इलाज होता रहा और उन्हीं बीमारियों से ग्रसित होने के कारण बीमित व्यक्ति को बाइलेट्रल निमोनिया हुआ।
(10) उपरोक्त स्थिति में बीमित व्यक्ति का यह कर्तव्य था कि वह प्रपोजल फार्म के सभी वांछित इंद्राज को सत्यता के साथ इंद्राज करता, जिससे अनावेदक बीमा कंपनी के पास विकल्प रहता कि वह बीमित व्यक्ति को पाॅलिसी प्रदान करे या न करे।
(11) फलस्वरूप हम यह निष्कर्षित करते हैं कि बीमित व्यक्ति ने बीमा प्रपोजल फार्म भरते समय महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया, जिसके कारण परिवादी अब बीमा दावा की राशि प्राप्त करने का हकदार नहीं माना जा सकता है।
(12) फलस्वरूप हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांत:-
1) भारतीय जीवन बीमा निगम विरूद्ध श्रीमती सुमन बाला 2012 (प्प्) सी.एल.सी.सी. 86
2) सोहानी देवी विरूद्ध भारतीय जीवन बीमा निगम 2008 (प्प्) सी.एल.सी.सी. 206
का लाभ परिवादी को नहीं देते है तथा अनावेदक बीमा कंपनी को उसके द्वारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांत:-
1) भारतीय जीवन बीमा निगम विरूद्ध शाहिदा खातून एवं अन्य प्ट (2013) सी.पी.जे. 370 (एन.सी.)
2) अवीवा लाईफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं अन्य विरूद्ध बनका राम प्प्प् (2013) सी.पी.जे. 28ठ (सी.एन.) (ए.एफ.)
का लाभ देते हुए परिवादी का परिवाद स्वीकार करने का समुचित आधार नहीं पाते है, फलस्वरूप परिवाद खारिज करते हैं।
(13) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।