प्रकरण क्र.सी.सी./14/290
प्रस्तुती दिनाँक 14.10.2014
श्रीमती सरोज पाण्डेय जौजे श्री प्रवीण कुमार पाण्डेय, आयु-46 वर्ष, निवासी-क्वाटर नं.2/ए, स्ट्रीट नं.1, सेक्टर-1, पुलिस स्टेशन-भिलाई भट्ठी, पो.-सेक्टर 1, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादिनी
विरूद्ध
1. क्षेत्रीय प्रबंधक, वाईकाॅन टोयोटा, रजिस्टर्ड कार्यालय-वाईकाॅन आटोमोबाईल्स (प्) प्रा. लि., चतुर्थ तल, रविभवन, जय स्तंभ चैक, रायपुर जिला-रायपुर (छ.ग.)
2. वैभव जैन/आॅनर अक्षय टोयोटा, वाईकाॅन आटोमोबाईल्स (प्) प्रा.लिमि. रिंग रोड क्र.1, ग्राम-सरोना, रायपुर, जिला-रायपुर (छ.ग.)
3. आलोक सिंहा,जनरल मैनेजर अक्षय टोयोटा, वाईकाॅन आटोमोबाईल्स (प्) प्रा. लि., रिंग रोड क्र.1, ग्राम-सरोना, रायपुर (छ.ग.)
4. कुणाल शिंदे,सेल्स मैनेजर अक्षय टोयोटा, वाईकाॅन आटोमोबाईल्स (प्) प्रायवेट लिमि., रिंग रोड नं.1, ग्राम-सरोना, रायपुर (छ.ग.)
5. सुश्री अमृता/सेल्स गर्ल अक्षय टोयोटा, वाईकाॅन आटोमोबाईल्स (प्) प्रा.लिमि., रिंग रेाड क्र.1, ग्राम-सरोना, रायपुर (छ.ग.)
6. प्रबंधक, वाईकाॅन टोयोटा, वाईकाॅन आटोमोबाईल्स(प्) प्रा.लिमि., द्वितीय तल सूर्या ट्रीज़र आईलैण्ड, दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 19 फरवरी 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से उत्पादन वर्ष 2013 के प्रदान किए गए वाहन के स्थान पर वर्ष 2014 के उत्पादन वर्ष माॅडल का वाहन दिलाए जाने अथवा क्रय किए गए वाहन की राशि 8,53,285रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट हेतु 50,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि अनावेदक क्र.1 द्वारा निर्मित वाहन अनावेदक क्र.2 डीलर से खरीदी थी, जिसकी एक शाखा दुर्ग में स्थित है, जब परिवादी ने अभिकथित वाहन खरीदने के लिए कोटेशन प्राप्त किया तो उसे बताया गया कि 2014 माॅडल का वाहन कुछ ही दिनों में प्रदान किया जायेगा तब परिवादी ने हिन्दुजा लैलेण्ड फायनेंस लिमिटेड से वाहन फायनेंस कराया और दि.26.06.2014 को अनावेदक क्र.4 ने वह वाहन परिवादी के दुर्ग स्थित निवास पर प्रदान की, परंतु बाद में पता चला कि उक्त वाहन 2013 माॅडल की है, जिसके संबंध में परिवादी ने अनावेदकगण से पहल की, परंतु समस्या का समाधान नहीं हुआ। इस प्रकार अनावेदकगण ने परिवादी को पुरानी माॅडल की वाहन बेच कर सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण किया है। अतः पुरानी माॅडल की वाहन के बदले नई माॅडल की वाहन 2014 की दिलाई जावे या मय ब्याज के जमा रकम, मानसिक क्षतिपूर्ति एवं अन्य व्यय के साथ दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(3) अनावेदकगण का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादिनी के द्वारा व्यवसायिक प्रयोजन से तीन वाहन क्रय किए गए हैं जिनका पंजीयन एवं बीमा भी व्यवसायिक उपयोग के वर्ग में किया गया है। परिवादिनी के द्वारा फोरम के समक्ष ऐसा कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया है जिससे यह प्रतीत हो कि परिवादिनी के द्वारा अपने जीवन यापन हेतु उक्त वाहन क्रय किए गए थे। परिवादिनी के द्वारा इनवाईस कोटेशन दि.04.06.14 में माॅडल के कालम में उत्पादन वर्ष 2014 स्वयं अंकित किया गया है। वाहन निर्माण का कार्य टोयोटा किर्लोस्कर कंपनी द्वारा किया जाता है परंतु परिवादिनी के द्वारा रीजनल मैनेजर को पक्षकार बनाया है। परिवादिनी के द्वारा प्रकरण में स्वयं स्वीकार किया गया है कि उनको सीमेंट कंपनी से टैक्सी वाहन किराये पर चलाने हेतु जुलाई 2014 से 3 वर्षों का ठेका मिला है इस प्रकार वाहन जीवन यापन हेतु क्रय न किया जाकर उसे व्यावसायिक प्रयोजन से क्रय किया गया था। परिवादिनी को वाहनो की डिलीवरी अनावेदकगण के शो रूम पर क्रय किए गए वाहन के समस्त आवश्यक दस्तावेजो सहित प्रदान की गई थी। परिवादिनी का यह कथन की उसे वाहन के 2013 के माडल के होनें की जानकारी दि.28.0.2014 को हुई पूर्णतः असत्य, बनावटी व निराधार है। अतः परिवादिनी के द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद 20,000रू. मय हर्जाना पर निरस्त किया जावे।
(4) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादिनी, अनावेदकगण से प्रदान किए गए वाहन उत्पादन वर्ष 2013 के स्थान पर उत्पाद वर्ष 2014 का वाहन अथवा वाहन की राशि मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
2. क्या परिवादिनी, अनावेदकगण से मानसिक परेशानी के एवज में 50,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद खारिज
निष्कर्ष के आधार
(5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(6) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि परिवादिनी का मुख्य मुद्दा यही है कि उसे 2013 की माॅडल की अभिकथित वाहन म्ज्प्व्ै 2014 दे दिया गया, जबकि कोटेशन में 2014 का माॅडल का उल्लेख था, परंतु बाद में ज्ञात हुआ कि उक्त वाहन 2013 माॅडल की है।
(7) अनावेदक का बचाव है कि परिवादी स्वच्छ हाथों से न्याय नहीं मांग रही है, एनेक्चर ए.1 और एनेक्चर डी.1 एक ही दस्तावेज है जो कि कोटेशन है, दोनों दस्तावेजों का यदि मिलान किया जाये तो परिवादी ने जो दस्तावेज एनेक्चर ए.1 प्रस्तुत किया है उसमें माॅडल 2014 लिखा है, जबकि अनावेदक के पास उसी दस्तावेज की प्रति है जो कि एनेक्चर डी.1 है उसमें माॅडल के साल का उल्लेख ही नहीं है। इस प्रकार परिवादी ने दस्तावेज की कूटरचना की है। अतः यह माना जायेगा कि परिवादी स्वच्छ हाथों से न्याय मांगने नहीं आई है अतः उसका दावा स्वीकार नहीं किया जायेगा।
(8) एनेक्चर ए.1 और एनेक्चर डी.1 में विभिन्नता का कारण परिवादी ने सिद्ध नहीं किया है और एनेक्चर ए.1 में माॅडल साल 2014 कैसे लिखा गया इस संबंध में परिवादी ने कोई संतोषप्रद स्पष्टीकरण नहीं दिया, फलस्वरूप हम यही अभिनिर्धारित करते हैं कि एनेक्चर ए.1 असत्य दस्तावेज प्रस्तुत किया गया है।
(9) अनावेदकगण का तर्क है कि उन्हांेने 2013 के ही माॅडल की वाहन दी थी और इसीलिए सेल सर्टिफिकेट एनेक्चर-5 में मैन्यूफेक्चरिंग का साल 2013 लिखा गया है। अनावेदकगण का यह भी तर्क है कि यदि उन्हें माॅडल का साल छुपाने का आशय रखना होता तो वे इस एनेक्चर-5 सेल सर्टिफिकेट में मैन्यूफेक्चरिंग का साल 2013 का उल्लेख नहीं करते।
(10) परिवादी का यह कर्तव्य था कि वह वाहन को खरीदते समय स्वयं संपूर्ण दस्तावेज प्राप्त करता और सूक्ष्मता से जांच करने के पश्चात् ही राशि देने की कार्यवाही करता, परंतु जैसा कि परिवाद पत्र में उल्लेख है कि दि.26.06.201 को अनावेदकगण के कर्मचारी द्वारा वाहन घर पहुंचा दिया गया, परंतु सेल लेटर नहीं पहुंचाया गया तो इस प्रकार वाहन का कब्जा प्राप्त करने में निश्चित रूप से परिवादी की गलती थी, पहले उसे सेल लेटर देखना था, राशि अदा करनी थी और वाहन का कब्जा प्राप्त करना था।
(11) उपरोक्त स्थिति में हम परिवादी का तर्क स्वीकार करने का कोई कारण नहीं पाते हैं कि अनावेदकगण ने अभिकथित वाहन को 2014 का माॅडल बतलाकर 2013 का माॅडल प्रदान कर दिया, जबकि सेल लेटर एनेक्चर-5 में तो रजिस्टेªशन डीटेल एनेक्चर डी.16 में मैन्यूफेक्चरिंग साल एवं तारीख का उल्लेख 2013 है।
(12) यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि अनावेदकगण की इस आपत्ति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि परिवादी ने अभिकथित वाहन स्वयं के उपयोग के लिए नहीं खरीदी थी, बल्कि व्यवसायिक प्रयोजन हेतु खरीदी थी, उक्त तथ्य एनेक्चर-7 से भी सिद्ध होता है, जिसमें परिवादी के पति ने थाना प्रभारी को इस आशय का पत्र लिखा है कि उक्त वाहन अल्ट्राटेक सीमेंट कंपनी में टैक्सी के रूप में चलाये जाने हेतु ठेका प्राप्त हुआ था, जिसके तहत उसे गाड़ियां खरीदनी है और अभिकथित वाहन 2013 का माॅडल धोखा देकर अनावेदकगण द्वारा उसे दिया गया है।
(13) उपरोक्त विवेचना से यह सिद्ध होता है कि अनावेदकगण ने अपने ही दस्तावेजों में माॅडल का साल 2013 इंद्राज किया है। अतः उनका किसी भी प्रकार से ऐसा आशय नहीं था कि 2013 की वाहन को 2014 की बता कर परिवादी को बेचेंगे। इस प्रकार अनावेदकगण ने किसी भी प्रकार की सेवा में निम्नता या व्यवसायिक कदाचरण नहीं किया है बल्कि परिवादी द्वारा ही अनावेदकगण के दस्तावेजों में फेरबदल कर फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया गया है और निर्माता कंपनी, डीलर के अलावा अन्य व्यक्ति को भी अनावश्यक रूप से पक्षकार बनाया गया है। फलस्वरूप हम परिवादी का दावा स्वीकार करने के समुचित आधार नहीं पाते हैं, फलस्वरूप दावा खारिज करते हैं।
(14) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।