प्रकरण क्र.सी.सी./14/34
प्रस्तुती दिनाँक 22.01.2014
श्रीमती ममता ठाकुर पति स्व.नरेश ठाकुर, आयु-33 वर्ष, स्थायी निवासी -ग्राम-जरवाय, पोस्ट सुरडुंग, जिला-दुर्ग (छ.ग.) वर्तमान पता -293/एच, रिसाली सेक्टर, भिलाई नगर, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - परिवादी
विरूद्ध
1. प्रबंधक, युनाईटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमि. कार्यालय-तारा काॅम्पलेक्स, पावर हाऊस, जी.ई.रोड, भिलाई, तहसील व जिला -दुर्ग(छ.ग.)
2. छत्तीसगढ़ सहकारी साख समिति मर्यादित, भिलाई नगर, सेक्टर-1, भिलाई, तह व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 27 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा पाॅलिसी के तहत बीमा राशि मय 12 प्रतिशत ब्याज सहित दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण अनावेदक क्र.2 के विरूद्ध एकपक्षीय हैं।
परिवाद-
(3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी के पति स्व.नरेश कुमार कृषक थे, जिनका बीमा अनावेदक क्र.2 के माध्यम से अनावेदक क्र.1 बीमा कंपनी से व्यक्ति दुर्घटना बीमा पाॅलिसी के अंतर्गत किया गया था। दिनंाक 11.08.2013 को परिवादिनी के पति नरेश कुमार का शव देशी शराब भट्टी, रूआबांधा के पास बगल में पाया गया, जिसकी रिपोर्ट थाने मे दर्ज कराई गई तथा मृतक का पोस्ट मार्टम कराया गया, चिकित्सक के द्वारा मृत्यु का कारण गला घोटने से बताया गया। अनावेदक क्र.1 के द्वारा परिवादिनी का दावा मृतक का घटना के समय नशे के प्रभाव में होने के कारण बीमा शर्तों के उल्लंघन के आधार पर निरस्त कर सेवा में कमी की गई, जिसके लिए परिवादिनी को अनावेदकगण से बीमा राशि मय 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(4) अनावेदक क्र.1 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी के द्वारा बीमा पाॅलिसी की प्रति अनावेदक को प्रस्तुत नहीं की गई है। अनावेदक पाॅलिसी की शर्तो के उल्लंघन की दशा में किसी भी तरह की क्षतिपूर्ति राशि प्रदान करनें हेतु उत्तरदायी नहीं है बीमा पाॅलिसी की शर्ताें मे प्रमुख शर्त यह है कि यदि घटना के समय बीमित शराब के नशे में हो तो बीमा कंपनी बीमित राशि देने हेतु उत्तरदायी नहीं है। मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्पष्ट है कि मृतक घटना के समय शराब का सेवन किए हुए था। आवेदिका के द्वारा प्रस्तुत दावे को कंपनी के द्वारा पाॅलिसी शर्तों का उल्लंघन पाए जाने के कारण निरस्त किया गया। पाॅलिसी की शर्तों के तहत दावे को निराकृत किए जाने से किसी तहत सेवा मे कमी की श्रेणी मे नहीं आता। आवेदिका, अनावेदक बीमा कंपनी से किसी प्रकार के अनुतोष को पाने की पात्रता नहीं रखती, अतः परिवादिनी के द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद सव्यय निरस्त किया जावे।
(5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक बीमा कंपनी से बीमा राशि मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
2. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद खारिज
निष्कर्ष के आधार
(6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(7) परिवादी का तर्क है कि अनावेदक बीमा कंपनी ने हत्या का मामला होते हुए भी शराब का सेवन किया था, इस आधार पर बीमा दावा खारिज कर सेवा में निम्नता की है।
(8) अनावेदक का तर्क है कि पाॅलिसी की शर्तो के उल्लंघन की दशा में किसी भी तरह की क्षतिपूर्ति राशि प्रदान करने हेतु अनावेदक उत्तरदायी नहीं है, मृतक घटना के समय शराब का सेवन किए हुए था। आवेदिका के द्वारा प्रस्तुत दावे को कंपनी के द्वारा पाॅलिसी शर्तों का उल्लंघन पाए जाने के आधार पर निरस्त किया गया। पालिसी की शर्तों के तहत दावे को निराकृत किए जाने से किसी तहत सेवा मे कमी की श्रेणी में नहीं आता।
(9) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि एनेक्चर-8 शव परीक्षण रिपोर्ट में मृतक के पेट में 250 मिली लीटर शराब पाई। अतः बीमा पालिसी शर्त अनुसार यदि शराब का सेवन किया गया है और दुर्घटना एल्कोहनिक इन्फलूऐंस के दौरान होती है तो बीमा राशि देय नहीं है।
(10) इस प्रकरण में मृतक की हत्या की गई है, मृत्यु का कारण गला घोटना पाया गया है, परंतु पोस्टमार्टम रिपोर्ट एनेक्चर-8 अनुसार मृतक के पेट में 250 मिली लीटर शराब पाई गई है, इस स्थिति में हम परिवादी को इस बिन्दु का लाभ नहीं दे सकते हैं कि चूंकि मृतक की मृत्यु गला घोटने से हुई इै, इसलिए 250 मिली लीटर जैसी मात्रा का सेवन करना नजर अंदाज किया जा सकता है।
(11) फलस्वरूप यदि अनावेदक बीमा कंपनी ने बीमा शर्तों के उल्लंघन के आधार पर परिवादी का बीमा दावा खारिज किया है तो उसे सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण नहीं माना जा सकता है, फलस्वरूप हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांत:-
1) मंडा सवरना विरूद्ध ए.आई.सी. आॅफ इंडिया एवं अन्य प्ट (2006) सी.पी.जे. 135 (एन.सी.)
2) हिमाचल प्रदेश रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन लिमिटेड विरूद्ध न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड प्प् (2007) सी.पी.जे. 287 एवं का लाभ देना उचित नहीं पाते हैं।
(12) फलस्वरूप परिवादी का दावा स्वीकार करने का समुचित आधार नहीं पाते हैं, अतः दावा खारिज करते हैं।
(13) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे