प्रकरण क्र.सी.सी./13/270
प्रस्तुती दिनाँक 26.09.2013
माघो सिंह चंद्राकर, आ. श्री के.आर.चंद्राकर, निवासी-ब्लाक नं.05-बी, (पी) सड़क नं.16, सेक्टर-2, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग, हाल मुकाम- एच.आई.जी.1/167, हाउसिंग बोर्ड कालोनी, बोरसी, दुर्ग, तह. व जिला - दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादी
विरूद्ध
यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमि., द्वारा प्रबंधक, यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमि., तारा काम्पलेक्स, पावर हाउस, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 16 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से वाहन की बीमा राशि 32,300रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट के लिए 5000रू. एवं वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण मंे स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी के वाहन का अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा बीमा किया गया था।
परिवाद-
(3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी के द्वारा अपने वाहन हीरो होण्डा पैशन प्रो का बीमा अनावेदक बीमा कंपनी से कराया था। परिवादी दि.21.10.12 को राशि 08-45 बजे लगभग होटल सागर इंटरनेशनल में भोजन करने अपने परिवार सहित गया था तथा अपने वाहन को सुरक्षा गार्ड के निर्देशानुसार पार्किंग में लाक कर खड़ा कर गया था, किंतु परिवादी के द्वारा भोजन कर लौटने के पश्चात उक्त स्थल पर अपने वाहन पार्किंग में नहीं थी, तब परिवादी ने होटल के प्रबंधक से वाहन चोरी होने की शिकायत किया तथा संबंधित थाने में एफ.आई.आर. दर्ज कराने हेतु गया, किंतु अधिकारियों के द्वारा पहले पतासाजी कर लो, कहा गया। परिवादी के द्वारा पतासाजी करने के उपरांत भी जब उसे अपना वाहन नहीं मिला, तब संबंधित थाने के द्वारा दि.29.10.12 को परिवादी की रिपोर्ट लिखी गई, परिवादी के द्वारा बीमा कंपनी को इसकी सूचना दी गई तथा क्लेम फार्म सहित आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत किए गये। अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा परिवादी का दावा यह आरोप लगाते हुए खारिज कर दिया गया कि परिवादी ने वाहन चोरी की रिपोर्ट तुरंत नहीं किया, जबकि पुलिस को तुरंत शिकायत किये जाने पर भी पुलिस ने दि.29.10.2012 को एफ.आई.आर. दर्ज किया था और जांच करने के पश्चात् परिवादी की वाहन चोरी होना पाया, किन्तु विवेचना के बाद भी पुलिस चेारी हुई वाहन का पता लगाने में असमर्थ रही है, जिसके लिए परिवादी को दोषी ठहराना उचित नहीं है। इस प्रकार अनावेदक द्वारा परिवादी को बीमित वाहन चोरी हो जाने के बावजूद भी बीमा धन प्रदान ना कर सेवा में कमी की गई, जिसके लिए परिवादी को अनावेदक से वाहन की बीमा राशि 32,300रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट के लिए 5000रू. एवं वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(4) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी का वाहन दि.20.10.12 को चोरी हुआ था, किंतु परिवादी के द्वारा दि.29.10.12 को अपने वाहन के चोरी हो जाने की सूचना दर्ज कराई गई। परिवादी के द्वारा बीमा कंपनी को 15 दिन विलंब से घटना की सूचना दी गई तथा एफ.आई.आर. भी विलंब से दर्ज कराई गई जो कि बीमा पाॅलिसी की शर्त का स्पष्ट उल्लंघन होने से अनावेदक के द्वारा परिवादी के दावे को दि.24.06.2013 को निरस्त करते हुए इसकी सूचना परिवादी को प्रेषित कर दी थी। अनावेदक के द्वारा परिवादी के प्रति किसी प्रकार सेवा मे कमी न किए जाने से यह परिवाद निरस्त किया जावे।
(5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से बीमा दावा राशि 32,300रू. मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
2. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में 5,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँं
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(7) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि परिवादी की वाहन दि.20.10.2012 को हाॅटल सागर इंटरनेशनल, स्टेशन रोड, दुर्ग के पार्किंग से चोरी हुई थी। अनावेदक का बचाव है कि परिवादी ने पुलिस में चोरी की सूचना दि.29.10.2012 को दी है। परिवादी का तर्क है कि उसने रात में ही थाने में सूचना दी थी, तब थाने में उसे बोला गया था कि पहले ठीक से ढूंढ लें, परिवादी ने घटना के दूसरे दिन बीमा कंपनी में भी सूचित किया था, तो उसे भी वही सलाह दी गई कि वाहन को ठीक से ढूंढ लें, तब वह वाहन की लगातार तलाश करता रहा और हाॅटल सागर के मैनेजर से भी पता करता रहा और पुलिस को भी जानकारी देता रहा कि वाहन नहीं मिल रहा है, तब लगातार अनुरोध करने पर पुलिस ने दि.19.10.2012 को रिपोर्ट दर्ज की है।
(8) उपरोक्त परिस्थिति में हम परिवादी के परिवाद पत्र, शपथ पत्र पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं पाते हैं और यह निष्कर्षित करते हैं कि अनावेदक बीमा कंपनी ने परिवादी का दावा मात्र देरी के आधार पर निरस्त कर निश्चित रूप से सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण किया है।
(9) एनेक्चर ए.1 बीमा संबंधी दस्तावेज हैं, एनेक्चर ए.2 प्रथम सूचना पत्र है, एनेक्चर ए.3 आर.टी.ओ. को सूचना है, उपरोक्त दस्तावेजों पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है।
(10) व्यक्ति वाहन का बीमा इसी उद्देश्य से कराता है कि इस प्रकार की परिस्थिति आने पर उसे बीमा कंपनी से बीमित राशि प्राप्त होगी और वाहन चोरी होने के बाद भी यदि अनावेदक द्वारा बीमा दावा खारिज किया जाता है तो निश्चित रूप से परिवादी को मानसिक वेदना होगी, जिसके एवज में यदि परिवादी ने 5,000रू. की मांग की है तो उसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता।
(11) उपरोक्त परिस्थिति में हम अनावेदक को उसके द्वारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांत:-
1) न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड विरूद्ध त्रिलोचन जाने प्रथम अपील नं.321 आॅफ 2005 (एन.सी.)
का लाभ देना उचित नहीं पाते हैं और परिवादी का दावा स्वीकार करने का समुचित आधार पाते हैं।
(12) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक, परिवादी को बीमा दावा राशि 32,300रू. (बत्तीस हजार तीन सौ रूपये) अदा करे।
(ब) अनावेदक द्वारा निर्धारित समयावधि के भीतर उपरोक्त राशि का भुगतान परिवादी को नहीं किये जाने पर अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से भुगतान दिनांक तक 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करने के लिए उत्तरदायी होगा।
(स) अनावेदक, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) अदा करेे।
(द) अनावेदक, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) भी अदा करे।