प्रकरण क्र.सी.सी./14/92
प्रस्तुती दिनाँक 13.03.2014
सुमिला पाल जैजे स्व.रमाशंकर पाल आयु-25 वर्ष, निवासी-पुरैना चांदनी चैक, भिलाई 3, दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादी
विरूद्ध
प्रबंधक, दि ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमि., ऐस बैंक के ऊपर, जी.ई.रोड, सुपेला, भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 27 फरवरी 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से बीमा राशि 1,00,000रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट हेतु 50,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी के पति स्व.रमाशंकर पाल के द्वारा एक वाहन मोटर सायकर हीरो हाण्डा ग्लेमर क्र.सी.जी.07.एल.के.3398 को क्रय किया था, जिसका बीमा अनावेदक बीमा कंपनी से कराया था तथा जिसमें ओनर कम ड्रायव्हर के मद में 50रू. जमा किए गए थे। परिवादिनी के पति स्व.रमाशंकर घटना दिनंाक 08.01.11 केा अपने वाहन से रेल्वे में कार्य करने दोपहर 2ः45 बजे जा रहे थे कि पुरैना गेट के पास वाहन ट्रक के चालक ने लापरवाहीपूर्वक ट्रक क्र.सी.जी.07.सी.5283 को चलाते हुए दुर्घटना कारित कर दी, जिससे रमाशंकर पाल को गंभीर चोटें आई, जिसकी रिपोर्ट थाना भिलाई 3 की गई। आवेदिका जो कि कम पढ़ी लिखी महिला है के द्वारा मृतक की बीमा पाॅलिसी की प्रति कूड़े में मिलने पर उसे बीमा संबंधी जानकारी हुई, जिसकी जानकारी होते ही परिवादिनी के द्वारा दिनांक 17.02.14 को अनावेदक बीमा कंपनी को बीमा राशि प्रदान की जाने की प्रार्थना की गई, ंिकंतु अनावेदक के द्वारा दि.18.02.14 को बीमा कंपनी ने बीमा दावा खारिज कर दिया गया। इस प्रकार अनावेदक के द्वारा की गई सेवा में कमी के लिए परिवादिनी को बीमाधन की राशि 1,00,000रू. मय ब्याज, मानसिक संताप हेतु 50,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(3) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी द्वारा अनावेदक को सूचना तीन साल एक माह की देरी से दी गई है, अतः पाॅलिसी शर्तों का घोर उल्लंघन के कारण अनावेदक द्वारा दावा निरस्त करने में कोई सेवा में निम्नता नहीं की गई है, परिवादी ने देरी का कारण कम पढ़ी लिखी या मानसिक रूप से विचलित होने का असत्य आधार लिया है।
(4) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादिनी, अनावेदक से बीमा दावा राशि 1,00,000रू. मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
2. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में 50,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद खारिज
निष्कर्ष के आधार
(5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(6) परिवादी का तर्क है कि मृतक दि.08.01.2011 को अभिकथित मोटर सायकल में जा रहा था तब अभिकथित ट्रक ने दुर्घटना कारित कर दी, जिससे मृतक की घटना स्थल पर ही मृत्यु हो गई। परिवादिनी कम पढ़ी लिखी है और पति की मृत्यु के कारण उसकी मानसिक स्थिति खराब होने से मृतक के बीमा संबंधी जानकारी घर के पुराने कुडा करकट में पालिसी की कापी मिलने पर जानकारी हुई, तब परिवादी ने बीमा कंपनी को दि.17.02.2014 को घटना की जानकारी मय कागजात के दी, परंतु दि.18.02.2014 बीमा दावा खारिज कर दिया गया, जिससे परिवादी को मानसिक क्षति हुई।
(7) अनावेदक का तर्क है कि दावा तीन साल एक माह की देरी से प्रस्तुत किया गया है, मृतक की मृत्यु सड़क दुर्घटना में नहीं हुई थी, उक्त संबंध में परिवादी ने कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है, इस प्रकार अनावेदक द्वारा बीमा दावा खारिज करने में कोई सेवा में निम्नता नहीं की गई है।
(8) परिवादी ने यह आधार लिया है कि वह कम पढ़ी लिखी महिला है, अतः उसे बीमा संबंधी जानकारी नहीं थी, परंतु यदि हम एनेक्चर-4 नक्शा पंचायतनामा का सूक्ष्मता से अवलोकन करें तो मृतक के रिश्तेदारों में उमा शंकर पाल का नाम भी उल्लेखित है, जिससे यह नहीं माना जा सकता कि मृतक का अन्य कोई रिश्तेदार नहीं था। मृतक के पास से मोबाइल, सोने की चैन और ड्रायविंग लायसेंस भी जप्त हुआ था और मृतक के नक्शा पंचायतनामा के संबंध में मृतक का रिश्तेदार उमा शंकर पाल, उम्र लगभग 43 साल हाजिर था, इस स्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि परिवार में केवल परिवादी ही अशिक्षित महिला थी और उसे बीमा के संबंध में कोई ज्ञान नहीं था।
(9) घटना सन् 2011 की है और परिवादी का तर्क है कि 2014 में उसे घर के कुडा करकट में पालिसी की कापी मिली, यह तथ्य स्वीकार योग्य नहीं माना जा सकता है जबकि स्वभाविक है कि मृतक रेल्वे में कार्यरत था, घटना की सूचना पुलिस में रेल्वे के सेक्शन इंजीनियर द्वारा दी गई है और परिवादी के रिश्तेदार को भी उपलब्ध होना सिद्ध होता है, अतः परिवादी का यह कर्तव्य था कि वह अविलम्ब ही अनावेदक बीमा कंपनी में सूचित करती। तीन साल एक माह बाद सूचना दिया जाना निश्चित रूप से घोर विलम्ब की श्रेणी में आता है, परिवादी द्वारा मानसिक संतुलन खराब होने के संबंध मंे भी कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है, कि चार साल तक परिवादी का मानसिक संतुलन ऐसा खराब रहा कि वह सामान्य स्थिति में नहीं थी, फलस्वरूप यदि बीमा कपंनी ने परिवादी का दावा खारिज किया है तो हम उसे सेवा में निम्नता मानना उचित नहीं पाते हैं ।
(10) फलस्वरूप हम अनावेदक को उसके द्वारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांत:-
1) सिन्धु कैलाश गावडे विरूद्ध गुरूदत्ता कन्स्ट्रक्शन 2013 (2) सी.पी.आर.420 (एन.सी.)
का लाभ दिया जाना उचित पाते हैं और परिवादी के दावे को स्वीकार किये जाने का समुचित आधार नहीं पाते हैं, परिवादी का परिवाद खारिज करते हैं।
(11) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।