(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या- 883/2019
(जिला उपभोक्ता आयोग, महोबा द्वारा परिवाद संख्या- 145/2018 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 18-06-2019 के विरूद्ध)
केशव सिंह पुत्र श्री राम सिंह, निवासी- ग्राम वरदा तहसील चरखारी जिला महोबा उ०प्र०।...
अपीलार्थी
बनाम
1- मैनेजर टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0 पता- रजिस्टर्ड आफिस नानावटी महाल्या तीसरी मंजिल, 18 होमी मोदी गली मुम्बई 400001
2- सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी, परिवहन कार्यालय महोबा जिला महोबा, उ०प्र०।
3- तहसील चरखारी जिला महोबा उ०प्र०
प्रत्यर्थी
समक्ष :-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- विद्वान अधिवक्ता श्री सुशील कुमार शर्मा
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित- विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा
दिनांक : 23-08-2022
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी श्री केशव सिंह द्वारा विद्वान जिला आयोग महोबा, द्वारा परिवाद संख्या- 145/2018 श्री केशव सिंह बनाम मैनेजर टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0 व दो अन्य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 18-06-2019 के विरूद्ध इस आयोग के समक्ष योजित की गयी है।
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संक्षेप में परिवाद के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी जिला महोबा का निवासी है तथा आटो संख्या-यू०पी० 95 बी 1674 का पूर्व वाहन स्वामी है। परिवादी ने अपने जीविकोपार्जन हेतु उपरोक्त आटो विपक्षी संख्या-1 के यहॉं से क्रय की थी। परिवादी द्वारा आटो क्रय किये जाने के बाद से वह निर्धारित समय पर ऋण की सम्पूर्ण किश्तों की अदायगी नहीं कर पाया जिस कारण विपक्षी संख्या-1 के फाइनेंसर द्वारा उक्त आटो दिनांक 11-08-2011 को अपने कब्जे ले लिया गया तथा वाहन के कागजात भी ले लिये गये तभी से उक्त वाहन विपक्षी संख्या-1 की अभिरक्षा में है। वाहन को अपनी कब्जे में लिये जाने की दिनांक से वाहन के कर इत्यादि के भुगतान की जिम्मेदारी विपक्षी संख्या-1 पर है परिवादी की नहीं है। उक्त आटो की पंजीकरण वैधता भी 2013 को समाप्त हो गयी। विपक्षी संख्या-2 द्वारा दिनांक 10-06-2016 को विपक्षी संख्या-3 के माध्यम से उपरोक्त आटो के वाहन कर की बकाया राशि 1,73,206/रू० की वसूली की कार्यवाही करायी गयी। तब परिवादी विपक्षी संख्या-2 से मिला तथा आटो माह अगस्त 2011 में विपक्षी संख्या-1 द्वारा अपने कब्जे में लेने के कारण वाहन कर का नोटिस विपक्षी संख्या-1 को प्रदान करने का अनुरोध किया। तब विपक्षी संख्या-1 द्वारा परिवादी के नाम जारी वसूली की कार्यवाही निरस्त कर दी गयी। विपक्षी संख्या-3 माह जुलाई 2018 में परिवादी के आवास पर गये और राशि जमा न करने पर उसे जेल भेजने की धमकी दी जिससे परिवादी को मानसिक कष्ट हुआ। अत: विवश होकर परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया।
विद्वान जिला आयोग के सम्मुख विपक्षीगण पर नोटिस का तामीला पर्याप्त माना गया है। विपक्षी संख्या-1 ने जिला आयोग के सम्मुख उपस्थित होकर अपना उत्तर प्रस्तुत किया परन्तु विपक्षीगण सं० 2 व 3 वहॉं उपस्थित नहीं हुए हैं अत: उनके विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही की गयी।
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विपक्षी द्वारा परिवाद के विरूद्ध प्रारम्भिक आपत्ति प्रस्तुत की गयी कि यह प्रकरण आर्बीट्रेशन एण्ड कंसिलेशन एक्ट के अन्तर्गत विद्वान आर्बीट्रेटर द्वारा दिनांक 31-12-2012 को विपक्षी उत्तरदाता के पक्ष में निर्णीत हो चुका है। जिला फोरम को वाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। परिवादी द्वारा प्रश्नगत वाहन व्यावसायिक प्रयोजन हेतु क्रय किया गया है इसलिए परिवादी ,विपक्षीगण का धारा- 2 (1) (घ) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत उपभोक्ता नहीं है।
विद्वान जिला आयोग ने अपने निर्णय में अंकित किया है कि परिवादी विपक्षीगण की सेवा में कोई त्रुटि अथवा व्यापारिक कदाचरण को साबित करने में पूरी तरह से असफल रहा है। इसके अतिरिक्त श्री केशव सिंह परिवादी ऋणी एवं गारण्टर राम सिंह तथा विपक्षी संख्या-1 टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0 के मध्य दिनांक – 31-12-2012 को आर्बीट्रेशन एवार्ड पारित हो चुका है। अनुबन्ध की शर्तों के अनुसार जिसको मानने के लिए उपरोक्त पक्षकार बाध्य हैं। जिला उपभोक्ता आयोग के स्तर से परिवादी को विपक्षीगण से कोई अनुतोष नहीं दिलाया जा सकता है। अत: परिवादी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध प्रस्तुत यह परिवाद विपक्षी संख्या-1 के विरूद्ध गुण-दोष के आधार पर एवं विपक्षी संख्या-2 व 3 के विरूद्ध एकपक्षीय रूप से खारिज किया जाता है।
विपक्षी संख्या-1 ने अपने अपने प्रतिवाद पत्र में यह विधिक आपत्ति की है कि परिवादी द्वारा व्यावसायिक प्रयोजन हेतु प्रश्नगत वाहन क्रय किया था इसलिए वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता नहीं है। जब कि परिवादी का कथन है कि उसने स्वरोजगार व जीविकोपार्जन हेतु विपक्षी संख्या-1 से वित्तीय सहायता प्राप्त कर वाहन क्रय किया था। विपक्षी संख्या-1 द्वारा ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है जिससे यह साबित हो सके कि परिवादी द्वारा
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व्यावसायिक उद्देश्य से वाहन क्रय किया गया था। अत: परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता की परिधि में आता है।
परिवाद पत्र में स्वयं परिवादी ने यह कथन किया है कि वह निर्धारित अवधि में ऋण की सम्पूर्ण किश्तों की अदायगी नहीं कर सका इसलिए विपक्षी संख्या-1 फाईनेंसर द्वारा उसके वाहन को दिनांक 11-08-2011 को अपने कब्जे में ले लिया गया। ऋण अनुबंध की शर्तों के अनुसार परिवादी को 2,60,000/-रू0 ऋण प्रदान किया गया था जिसका भुगतान 47 समान किश्तों में 8400/-रू0 मासिक की दर से करना था इस प्रकार परिवादी को कुल 3,94,800/-अदा करना था जिसकी समस्त जानकारी परिवादी को थी। परिवादी को अनुबंध के अनुसार धनराशि अदा न करने पर नोटिस भेजी गयी फिर भी परिवादी द्वारा धनराशि की अदायगी नहीं की गयी। अत: अनुबंध की शर्त के अनुसार कानूनी ढंग से विपक्षी ने परिवादी के प्रश्नगत वाहन को दिनांक 29-07-2011 को अपने कब्जे में ले लिया और दिनांक 30-11-2011 को प्रश्नगत वाहन को 45,000/-रू0 में मुहम्मद फरहान शेख को बेच दिया और उक्त विक्रीत धनराशि को परिवादी के ऋण खाते में समायोजित कर दिया। इसके बावजूद भी परिवादी पर विपक्षी का 3,29,621/-रू0 बकाया रहा जिसको अदा करने की जिम्मेदारी परिवादी पर है।
विपक्षी संख्या-1 के अनुसार उपरोक्त ऋण अनुबंध की शर्तों के अधीन परिवादी के विरूद्ध आर्बिट्रेशन प्रक्रिया अग्रसारित की गयी जिसमें विद्धान आर्बिट्रेटर द्वारा दिनांक 31-12-2012 को अधिनिर्णय पारित किया गया और परिवादी को आदेशित किया गया कि वह 2,37,794/-रू0 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से दिनांक 16-05-2012 से अदायगी होने
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तक अदा करें तथा 5000/-रू0 आर्बिट्रेशन का हर्जा तथा आरबीट्रेटर की फीस भी अदा करें। आर्बिट्रेटर द्वारा भी फाइनल अवार्ड में प्रश्नगत वाहन की विक्रीत धनराशि 45,000/-रू0 को समायोजित किया गया था। अत: अनुबंध की शर्तों को मानने के लिए उभयपक्ष बाध्य हैं।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री सुशील कुमार शर्मा उपस्थित हुए। प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा उपस्थित हुए।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्ध है। अत: अपील स्वीकार करते हुए विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्त किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश विधि अनुसार है और विद्धान जिला आयोग ने सभी बिन्दुओं पर विस्तृत विचार-विमर्श करते हुए निर्णय पारित किया है जिसमें हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है अत: अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
हमने उभय पक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का भली-भॉंति परिशीलन किया तथा जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का भी अवलोकन किया।
पत्रावली के परिशीलन से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी ने स्वरोजगार हेतु 2,60,000/-रू0 ऋण लेकर वाहन क्रय किया था और ऋण की धनराशि उसे 8400/-रू0 मासिक किश्त के रूप में 47 समान किश्तों में अदा करना था किन्तु परिवादी ने ऋण धनराशि की मासिक किश्तें अदा
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नहीं की जब कि परिवादी को ऋण की बकाया धनराशि अनुबंध के अनुसार अदा करना चाहिए था, जिस पर परिवादी को बैंक द्वारा नोटिस भेजी गयी फिर भी परिवादी द्वारा किश्तों की बकाया धनराशि अदा नहीं गयी जिस पर बैंक द्वारा नियमानुसार उसके वाहन को कब्जे में ले लिया गया जिसे 45000/-रू0 में तीसरे पक्ष को बेच दिया गया और ऋण की बकाया धनराशि में 45000/-रू0 को समायोजित भी कर दिया गया तथा शेष बकाया धनराशि हेतु नियमानुसार कार्यवाही की गयी है। बैंक द्वारा किसी भी स्तर पर कोई गलती नहीं की गयी है। बैंक द्वारा केवल अपनी ऋण की बकाया राशि वसूल करने हेतु नियमानुसार कार्यवाही की गयी है जिसमें बैंक के स्तर से सेवा में कोई त्रुटि होना नहीं पाया जाता है।
अत: सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए हम यह पाते हैं कि विद्धान जिला आयोग ने सभी बिन्दुओं पर गहनतापूर्वक विचार करने के पश्चात विधि अनुसार निर्णय पारित किया है जिसमें हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है। तद्नुसार अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
कृष्णा–आशु0 कोर्ट नं0 1