प्रकरण क्र.सी.सी./14/269
प्रस्तुती दिनाँक 08.09.2014
सुभाष चंद्र दुबे आ.स्व.तिलक राम दुबे, आयु-61 वर्ष, निवासी-बी-8, विजय काम्पलेक्स, फल मण्डी केंप-2, भिलाई तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादी
विरूद्ध
शाखा प्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक, शाखा केम्प एरिया, पावर हाऊस फल मण्डी, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 10 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर -अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से भुगतान प्राप्त करने हेतु प्रस्तुत स्टेट बैंक आफ हैदराबाद शाखा व्ही.एम.बंजारे का चेक क्र.648541 की राशि 3,00,000रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट हेतु 50,000रू. वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण मंे स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी के द्वारा अनावेदक बैंक में अभिकथित चेक दि.20.01.14 को राशि 3,00,000रू. का भुगतान प्राप्त करने हेतु प्रस्तुत किया गया था। यह भी स्वीकृत तथ्य है कि उक्त अभिकथित चेक अनावेदक बैंक द्वारा स्टेट बैंक आॅफ हैदराबाद शाखा में कलेक्शन हेतु भेजा गया, जो गुम हो गया था।
परिवाद-
(3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी का अनावेदक बैंक की भिलाई शाखा में खाता क्र. 10130261164 है। परिवादी के द्वारा अनावेदक बैंक से अपने खाते में दिनंाक 20.01.14 को 3,00,000रू. स्टेट बैंक आॅफ हैदराबाद शाखा में व्ही.एम.बंजारे का चेक क्र.648541 का भुगतान प्राप्त करने हेतु प्रस्तुत किया गया, लेकिन कई माह व्यतीत हो जाने के बाद भी परिवादी को प्रस्तुत चेक की राशि प्राप्त नहीं होने पर परिवादी के द्वारा अनावेदक बैंक को लिखित में आवेदन दिनंाक 04.08.14 को दिया गया तथा स्मरण पत्र दि.13.08.14 को दिया गया। अनावेदक की लापरवाही एवं उदासीनता के कारण परिवादी को दि.20.01.14 तक न तो उक्त चेक का भुगतान किया गया और न ही वह अनादरित होकर वापस ही प्राप्त हो सका, जो कि अनावेदक द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों का उल्लंघन है तथा परिवादी के पति सेवा मे कमी है जिसके लिए परिवादी के द्वारा अनावेदक को दि.21.08.14 को अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस प्रेषित किया गया, जिसका जवाब न तो अनावेदक के द्वारा दिया और न ही परिवादी की उक्त समस्या का निराकरण किया गया। अनावेदक का उपरोक्त कृत्य सेवा मे कमी की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी को अनावेदक से भुगतान प्राप्त करने बाबत् प्रस्तुत स्टेट बैंक आॅफ हैदराबाद शाखा वी.एम.बंजारे का चेक क्र.648541 की राशि 3,00,000रू., शारीरिक मानसिक तथा आर्थिक क्षतिपूर्ति हेतु 50,000रू., वाद व्यय 10,000रू. मय ब्याज व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(4) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी के द्वारा जो चेक अपने खाते में भुगतान प्राप्त करने हेतु दि.20.01.14 को जमा किया गया था जो गुम हो गया, जिसकी जानकारी परिवादी को बैंक द्वारा फोन पर दे दी गई थी, बाद में परिवादी ने बैंक को एक पत्र दि.04.08.14 को दिया था एवं उसी पत्र की प्रति पुनः दि.13.08.14 को दी गई थी। परिवादी ने अपने अधिवक्ता के मार्फत नोटिस भी बैंक केा दि.21.08.14 को प्रेषित कर चेक एवं चेक अनादरण मेमो की मांग की थी, परंतु जब चेक गुम होे गया तो चेक एवं उसके साथ अनादरण मेमो प्रदान करने का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। अनावेदक बैंक द्वारा मौखिक रूप से परिवादी से चेक जारीकर्ता से डुप्लीकेट चेक प्राप्त कर, पुनः प्रस्तुत करने का निवेदन किया था, परंतु परिवादी ने ऐसा नहीं किया। परिवादी पराक्रम्य लिखित अधिनियम की धारा 45-क के अंतर्गत ’’जहां कि विनिमय पत्र अतिशोध्य होने के पूर्व खो गया है वहां जो व्यक्ति उसका धारक था वह उसके लेखीवाल को इस बात के लिए कि जिस विनिमय पत्र का खो जाना अभिकथित है,उसके पुनः पाए जाने की दशा में सब व्यक्तियों के विरूद्ध, चाहे वे कोई भी हो, लेखीवाल की क्षतिपूर्ति की जायेगी यदि वह अपेक्षित की जाए देकर अपने को वैसा ही दूसरा विनिमय पत्र देने के लिए आवेदन कर सकेगा। यदि लेखीवाल पूर्वोक्त जैसी प्रार्थना पर विनिमय पत्र की ऐसी दूसरी प्रति देने से इंकार करे तो वह ऐसा करने के लिए विवश किया जा सकेगा।’’
(5) जवाबदावा इस आशय का भी प्रस्तुत है कि यदि प्रकरण में अवार्ड पारित कर दिया जाता है एवं इस बीच यदि परिवादी ने चेक जारीकर्ता से पुनः डुप्लीकेट चेक प्राप्त कर उसका भुगतान प्राप्त कर लिया हो तो उसे दुगुना लाभ हो जायेगा। अतः ऐसी परिस्थिति में परिवादी को चेक जारीकर्ता से डुप्लीकेट चेक प्राप्त कर, उसे भुगतान हेतु प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाना न्यायोचित होगा। परिवादी चेक की राशि को प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। अतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद निरस्त किया जावे।
(6) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से भुगतान प्राप्त करने हेतु प्रस्तुत चेक की राशि 3,00,000रू. मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँं
2. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में 50,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(7) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(8) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अनावेदक ने अपने अभिकथन और शपथ पत्र में यह स्वीकार किया है कि परिवादी ने अभिकथित चेक अनावेदक के पास जमा किया था, जिसे अनावेदक बैंक द्वारा अभिकथित हैदराबाद शाखा में कलेक्शन के लिए भेजा गया था, जो कि गुम गया था। अनावेदक ने तर्क किया है कि इस बात की जानकारी अनावेदक बैंक ने परिवादी को फोन पर दी थी, जबकि परिवादी का तर्क है कि जब परिवादी ने अभिकथित चेक अनावेदक बैंक के पास भुगतान हेतु जमा किया तो कई माह बीत जाने के बाद चेक की राशि प्राप्त नहीं हुई, तब परिवादी ने लिखित में आवेदन प्रस्तुत किया, जिसकी पावती ली, उसके पश्चात् की तिथि में पुनः परिवादी ने अनावेदक को आवेदन दिया। एनेक्चर-3 और एनेक्चर-4 के अवलोकन से अनावेदक बैंक का अपने ग्राहकों के प्रति घारे उदासीन का रवैया सिद्ध होता है कि पहले तो अनावेदक बैंक ने चेक गुमा दिया और उच्च शिष्टाचार की नीति अपनाते हुए अपने ग्राहक के प्रति सजगतपूर्वक उच्च सेवाएं नहीं दी, जिसके फलस्वरूप परिवादी को एनेक्चर-3 और एनेक्चर-4 का आवेदन देने की जरूरत पड़ी।
(9) एनेक्चर-3 से स्पष्ट है कि उक्त आवेदन परिवादी ने अनावेदक बैंक को दि.04.08.2014 को लिखा, फिर भी अनावेदक बैंक द्वारा त्वरित कार्यवाही नहीं की गई, तब परिवादी को अधिवक्ता के माध्यम से एनेक्चर-4 की नोटिस दि.21.08.2014 को देनी पड़ी, अर्थात् अनावेदक बैंक जहां एक ओर अपने ग्राहकों के प्रति संवेदनशील नहीं है, वहीं उसने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया कि उसके ग्राहक के 3,00,000रू. जैसी बड़ी राशि इतने दिनों तक नहीं मिलने के कारण परिवादी को कितनी मानसिक वेदनाएं होगी, जबकि परिवादी फल का व्यवसायी है और वह चेक फल के व्यवसाय के संबंध था, जो कि निश्चित रूप से अनोवदक के सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण को सिद्ध करता है।
(10) अनावेदक का तर्क है कि परिवादी को दूसरा चेक निष्पादित करवाना था, जो कि परिवादी ने नहीं कराया है। अतः अनावेदक बैंक ने सेवा में निम्नता नहीं की है, जब कि प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादी ने अनावेदक बैंक को लिखित में तीन-तीन बार सूचित किया और चेक संबंधी जानकारी मांगी, परंतु अनावेदक बैंक ने सेवा में घोर निम्नता करते हुए परिवादी को यह भी सूचित नहीं किया कि वह दूसरा चेक इशू करवाये। अनावेदक के जवाबदावा और शपथ पत्र से स्पष्ट है कि अनावेदक बैंक ने केवल मौखिक रूप से परिवादी को डुप्लीकेट चेक इशू करने के संबंध में समझाइश दी, यह स्थिति स्वयमेव ही अनावेदक की ग्राहक के प्रति उदासीनता को दर्शाती है।
(11) जब अनावेदक बैंक को इतनी बड़ी राशि का चेक गुमने के बारे में सूचित किया तो अनावेदक बैंक ने कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया है कि उसने चेक की पतासाजी करने के लिए क्या-क्या कार्यवाही की? क्या उसने चेक किस कर्मचारी द्वारा गुमाया गया है, इस संबंध में छानबीन की? यह भी सिद्ध नहीं किया है और न ही यदि चेक गुम गया, तो उक्त चेक के संबंध में संबंधित शाखा को स्टाॅप पेमेंट करने हेतु सूचित किया, जबकि अनावेदक बैंक का तर्क है कि हो सकता था कि परिवादी ने पुनः डुप्लीकेट चेक प्राप्त कर, उसका भुगतान प्राप्त कर लिया तो परिवादी को दुगुना लाभ हो जायेगा, परंतु इस संबंध में ऐसी स्थिति रोकने के लिए अनावेदक बैंक ने क्या कार्यवाही की इस संबंध में कोई भी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है, अतः यही सिद्ध होता है कि अनावेदक बैंक का बचाव आधारहीन है।
(12) अनावेदक ने यह भी सिद्ध नहीं किया है कि जिस खाते से पैसा निकलने थे, उस खाते में सुचित रकम नहीं थी, अतः ऐसी स्थिति नहीं बनती कि चेक अनादरित हो जाता, बल्कि यही स्थिति बनती है कि अनावेदक बैंक की त्रुटि से ही चेक गुमा और अनावेदक बैंक ने उस चेक को गुम जाने के संबंध में क्या जांच पड़ताल की, यह भी सिद्ध नहीं किया है, जबकि प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादी ने असत्य आधारों पर अपना मामला नहीं रखा है, क्योंकि प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादी फल का व्यापार करता है और उसी के संबंध में यह ट्रांजेक्शन हुआ था, इस स्थिति में अनावेदक को न्यायदृष्टांत प्प्प् (2009) सी.पी.जे. 3 (एस.सी.) फेड्रल बैंक लिमिटेड विरूद्ध एन.एस.सबेस्टेयेन का लाभ देना उचित नहीं है।
(13) यह समाजिक चेतना का विषय है कि आज की तेज रफ्तार ज़िन्दगी में व्यक्ति व्यापार हेतु अनेकानेक ट्रांजेक्शन बैंक के माध्यम से इस विश्वास पर करता है कि उसकी रकम सुरक्षित रूप से उसे प्राप्त हो जायेगी, कोर बैंकिंग का भी समय है और ऐसी परिस्थितियों में यदि अनावेदक बैंक ने परिवादी का चेक गुमा दिया तो निश्चित रूप से परिवादी को घोर मानसिक वेदना होना स्वभाविक है, जिसके एवज में यदि परिवादी ने 50,000रू. की मांग की है तो उसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता।
(14) उपरोक्त साक्ष्य विवेचना से हम यह निष्कर्षित करते हैं कि अनावेदक बैंक ने परिवादी के व्यापार ट्रांजेक्शन का 3,00,000रू. का चेक गुमा दिया और फिर उक्त संबंध में उच्च शिष्टाचार अपनाते हुए न ही परिवादी को उचित सलाह दी और न ही इतनी लम्बी अवधि तक उसकी इतनी बड़ी राशि का चेक खोजने की जांच पड़ताल की, जिससे परिवादी को 3,00,000रू. जैसे बड़ी राशि से लम्बे समय तक वंचित होना पड़ा और इस प्रकार अनावेदक बैंक ने घोर सेवा में निम्नता और व्यवसायिक दुराचरण किया है। अतः अनावेदक बैंक अभिकथित राशि 3,00,000रू. मय ब्याज, परिवादी को अदा करने की जिम्मेदार मानी जाती है। यहां यह उल्लेख करना भी आवश्यक है कि यदि भविष्य में परिवादी को उक्त गुमा हुआ अभिकथित चेक प्राप्त होने की स्थिति में, परिवादी उक्त चेक को भुगतान हेतु उपयोग नहीं करेगा।
(15) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक बैंक, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक, परिवादी को भुगतान प्राप्त करने हेतु प्रस्तुत स्टेट बैंक आॅफ हैदराबाद शाखा व्ही.एम.बंजारे का चेक क्र.648541 हेतु उसकी राशि 3,00,000रू. (तीन लाख रूपये) अदा करे।
(ब) अनावेदक, परिवादी को उक्त राशि पर परिवाद प्रस्तुती दिनांक 08.09.2014 से भुगतान दिनांक तक 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी प्रदान करें।
(स) अनावेदक, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 50,000रू. (पचास हजार रूपये) अदा करेे।
(द) अनावेदक, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) भी अदा करे।