प्रकरण क्र.सी.सी./14/361
प्रस्तुती दिनाँक 28.11.2014
कुबेर दास साहू आ. राजकुमार साहू, आयु-31 वर्ष, निवासी-पदुम नगर, भिलाई-3, जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - परिवादी
विरूद्ध
शाखा प्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक, शाखा-गंजपारा, स्टेशन रोड, दुर्ग (छ.ग.) - - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 25 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से उसके खाते से कटौती की गई राशि 20,000रू. मय ब्याज, मानसिक संताप हेतु 5,000रू. व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण अनावेदक के विरूद्ध एकपक्षीय है।
परिवाद-
(3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी भारतीय रेल्वे में कार्यरत कर्मचारी है, जिसका खाता अनावेदक बैंक में है तथा जिसके लिए परिवादी को अनावेदक द्वारा ए.टी.एम. कार्ड जारी किया गया है। परिवादी के द्वारा दि.10.10.14 को अनावेदक के पुराना बस स्टैण्ड, मज़ार के सामने स्थित ए.टी.एम. से 5,000रू. निकालने गया, मशीन से उक्त राशि आहरित नहीं की जा सकी तथा 5,000रू. खाते से कटने के पश्चात वापस जमा होना दर्शाया गया। परिवादी के द्वारा राशि ए.टी.एम. से न प्राप्त होने की दशा में अन्य ए.टी.एम. मशीन जनपद पंचायत कार्यालय, दुर्ग स्थित यूनियन बैंक ए.टी.एम. गया, तभी परिवादी को मोबाईल पर मैसेज के द्वारा यह सूचना मिली कि उसके खाते से 20,000रू. पुराने बस स्टैण्ड स्थित ए.टी.एम. से आहरित किए गए है। परिवादी के द्वारा घटना की सूचना लिखित में अनावेदक बैंक को दी गई तथा एफ.आई.आर. दर्ज कराई गई, किंतु अनावेदक के द्वारा परिवादी को उक्त आहरित राशि वापस नहीं लौटाकर सेवा में कमी एवं व्यवसायिक दुराचरण किया गया, जिसके लिए परिवादी को अनावेदक से खाते से कटौती की गई राशि 20,000रू. मय ब्याज, मानसिक संताप हेतु 5,000रू. व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
(4) परिवादी के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से खाते से कटौती की गई राशि 20,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
2. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक कष्ट हेतु 5,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(6) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अनावेदक बैंक एकपक्षीय है।
(7) परिवादी द्वारा तर्क किया गया है कि उसके पुराने बस स्टेण्ड, मज़ार के सामने स्थित अनावेदक के ए.टी.एम. से 5,000रू. निकाने के लिए अपने ए.टी.एम. कार्ड का उपयोग किया, परंतु उक्त राशि नहीं निकली, तब रिवर्स विड्राॅल में 5,000रू. वापस जमा दिखाये, तब परिवादी अन्य ए.टी.एम. जनपथ पंचायत कार्यालय परिसर जा रहा था, तब परिवादी के मोबाइल में 20,000रू. ए.टी.एम. से आहरित करने का मैसेज आया, तब परिवादी ने शिकायत की, परंतु कोई कार्यवाही नहीं हुई, जबकि परिवादी ने उक्त रकम निकाली ही नहीं थी। इस प्रकार परिवादी को 20,000रू. की आर्थिक क्षति हुई, जिसकी शिकायत करने पर भी अनावेदक द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई।
(8) प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादी ने एनेक्चर ए.1 से एनेक्चर ए.4 तक उसके खाते से 20,000रू. निकल जाने की शिकायतें की है, ऐसा कोई कारण प्रकरण में प्रस्तुत नहीं है कि परिवादी इतनी रकम के लिए अनावेदक बैंक पर झूठा आक्षेप लगायेगा और पत्राचार करेगा। यह भी सिद्ध नहीं है कि परिवादी आर्थिक रूप से इतना तंग हालत में था कि अनावेदक बैंक से गलत तरीके से रकम ऐठना चाहेगा, अतः स्पष्ट है कि अनावेदक बैंक द्वारा परिवादी का खाता जब खोला गया है तो अनावेदक बैंक ने भी परिवादी के ऐन्टीसीडेन्ट्स की जांच परख कर खाता खोला होगा, अर्थात् ऐसा कोई कारण प्रतीत नहीं होता है कि परिवादी अपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति है और असत्य आधारों पर अनावेदक बैंक के विरूद्ध मात्र 20,000रू. के संबंध में मुकदमा करेगा।
(9) अनावेदक बैंक ने ऐसा कोई कारण नहीं बताया है कि उन्होंने उक्त दिनांक को अभिकथित ए.टी.एम. मशीन से 20,000रू. निकल जाने की शिकायत पर तत्परता से कोई कार्यवाही की। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक होगा कि आज तीव्र गति से विकसित होती स्थिति में हर बैंक आगे बढ़ने की होड़ में तो है, परंतु वह ग्राहकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी के प्रति सजग नहीं हैं। प्रकरण के अवलोकन से कहीं भी यह सिद्ध नहीं होता है कि परिवादी द्वारा की गई शिकायत पर अनावेदक ने क्या संतोषप्रद उत्तर दिया और या उसकी समस्या के प्रति उच्च श्रेणी का शिष्टाचार अपनाते हुए ऐसा समाधान किया, जिससे ग्राहक संतुष्ट होता। अनावेदक बैंक ने यह भी सिद्ध नहीं किया है कि उनके ए.टी.एम. मशीन में जहां से 20,000रू. निकाला जाना एनेक्चर-5 की पास बुक में इंद्राज है, उक्त संबंध में अनावेदक बैंक ने क्या कार्यवाही की, क्या जांच की? जबकि एनेक्चर-5 में दि.10.10.14 को एस.बी.आई. के ए.टी.एम. अर्थात् अनावेदक बैंक के ए.टी.एम. से 20,000रू. निकाले जाने का उल्लेख है। अनावेदक बैंक ने यह भी सिद्ध नहीं किया है कि उक्त ए.टी.एम. मशीन में सी.सी.टी. कैमरा इतनी उच्च तकनीक का लगा था, जिससे रकम निकालने वाले व्यक्ति की फोटो और स्लीट जहां से रकम निकलती है, उस स्थान पर निकालने वाले व्यक्ति सहित फोटो सी.सी.टी.वी. फुटेज में आई, जबकि अनावेदक का यह कर्तव्य था कि अविलम्ब ही शिकायत मिलने पर सी.सी.टी.वी. फुटेज को देखकर जांच करते और परिवादी को भी दिखाते, अतः यही सिद्ध होता है कि अनावेदक बैंक ने निश्चित रूप से परिवादी की समस्या को बड़े ही हल्के तौर पर लिया है, जबकि उन्हें अति शिष्टाचार सेवाएं देते हुए उसके संबंध में सही जांच करनी थी, जिससे स्थिति स्पष्ट होती कि वास्तव में उस समय उक्त ए.टी.एम. से किस व्यक्ति ने राशि निकाली है।
(10) यहां यह उल्लेख करना आवश्यक होगा कि जब अनावेदक बैंक तकनीकी रूप से उच्च व्यवस्था करने हेतु तत्पर है तो उसे ए.टी.एम. से संबंधित अन्य तकनीक को भी डेव्हलप करना जरूरी है, जैसा कि सी.सी.टी.वी. कैमरा उस भाग को भी कव्हर करें जहां से रकम निकालने का स्लीट होता है, सी.सी.टी.वी. कैमरा ग्राहक के चेहरे को भी कवर करे और उसकी हार्ड काॅपी इतनी स्पष्ट हो कि ग्राहक को कुछ भी असत्य कथन करने की हिम्मत न हो, जिसके लिए जरूरी है कि जिन बैंक ने ए.टी.एम. स्थापित किए गए है वह अत्याधुनिक सी.सी.टी.वी. कैमरा लगाए, जिससे इस प्रकार की स्थिति का निराकरण हो सके। जब परिवादी अनावेदक बैंक का ग्राहक है तो अनावेदक का यह कर्तव्य होता है कि उसके ग्राहक को आई समस्या का त्वरित और उचित सेवाएं प्रदान करे और यदि अनावेदक बैंक ऐसा नहीं करता है तो वह निश्चित रूप से सेवा में निम्नता का दोषी है, यदि अनावेदक बैंक सी.सी.टी.वी. फुटेज की सही व्यवस्था करता तो निश्चित रूप से उस व्यक्ति की फोटो प्रस्तुत होती, जिसने उक्त 20,000रू. ए.टी.एम. से परिवादी के खाते से निकाले हैं, इस संबंध में अनावेदक बैंक को यह भी जांच करनी थी कि जब ए.टी.एम. परिवादी के कब्जे में है, तब किस प्रकार अन्य व्यक्ति ने परिवादी के खाते से 20,000रू. निकाल लिये, इस स्थिति में हम परिवादी के अभिकथनों पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं पाते हैं।
(11) यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि जब कोई व्यक्ति का पैसा बैंक में रहता है तो वह व्यक्ति इसी आशय से बैंक में पैसे रखता है कि वह सुरक्षित रहेगा और ए.टी.एम. भी इसी आशय से लिया जाता है कि वह अपने पैसे को सुविधापूर्वक ए.टी.एम. का उपयोग कर निकालेगा। परिवादी के संबंध में प्रकरण के अवलोकन से यह सिद्ध नहीं होता कि परिवादी की मंशा ए.टी.एम. से पैसा न निकलने के बाद भी अनावेदक पर झूठा दोषारोपण करने की थी। अनावेदक ने उस व्यक्ति को भी साक्ष्य में प्रस्तुत नहीं किया है, जिसकी ड्यूटी उक्त ए.टी.एम. मशीन में सिक्यूरिटी गार्ड के रूप में अभिकथित समय पर थी, जिससे भी यही सिद्ध होता है कि अनावेदक ने उक्त मामले की उचित जांच नहीं की और इस प्रकार सेवा में निम्नता की है, यदि ग्राहक के संबंध में इस प्रकार की घटना होती है तो स्वाभाविक है कि ग्राहकों को मानसिक वेदना होगी, जिसके संबंध में यदि परिवादी ने 5,000रू. की मांग की है तो उसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता है।
(12) उपरोक्त स्थिति में हम परिवादी का परिवाद, शपथ पत्र और दस्तावेजों पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं पाते हैं और यह निष्कर्षित करते हैं कि अनावेदक बैंक ने परिवादी की शिकायत का त्वरित समाधान नहीं किया और न ही इस संबंध में जांच की, कि उक्त 20,000रू. किस व्यक्ति ने निकाले, जबकि परिवादी ने अपने खाते से उक्त दरम्यान 20,000रू. ए.टी.एम. से निकाले ही नहीं थे, तब किस प्रकार उक्त ए.टी.एम. से अन्य व्यक्ति द्वारा 20,000रू. निकाले गये, यह भी गम्भीर मुद्दा था, जिसे निराकृत नहीं कर अनावेदक बैंक ने निश्चित रूप से सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक कदाचरण किया है।
(13) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक, परिवादी को 20,000रू. (बीस हजार रूपये) अदा करे।
(ब) अनावेदक, परिवादी को उक्त राशि पर परिवाद प्रस्तुती दिनांक 28.11.2014 से भुगतान दिनांक तक 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी प्रदान करें।
(स) अनावेदक, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) अदा करेे।
(द) अनावेदक, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) भी अदा करे।