Madhya Pradesh

Gwalior

CC/67/2015

MAHIPAL SINGH - Complainant(s)

Versus

MANAGER, SHRIRAM TRANSPORT FINANCE - Opp.Party(s)

P.K.GUPTA

16 Feb 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER FORUM GWALIOR
FINAL ORDER
 
Complaint Case No. CC/67/2015
 
1. MAHIPAL SINGH
WARD-16, NEW CHANDANPURA, BIRLA NAGAR
GWALIOR
MADHYA PRADESH
...........Complainant(s)
Versus
1. MANAGER, SHRIRAM TRANSPORT FINANCE
SECOND FLOOR, CHAR LADY, DESHIKA ROAD, MAILAPUR
CHENNAI
KARNATAKA
2. MANAGER, SHRIRAM TRANSPORT FINANCE
45A, ALAKNANDA TOWER, THIRD FLOOR, CITY CENTER
GWALIOR
MADHYA PRADESH
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
  Smt.Abha Mishra PRESIDING MEMBER
  Dr.Mridula Singh MEMBER
 
For the Complainant:P.K.GUPTA, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

  परिवादी की ओर से अधिवक्ता श्री पी0के0गुप्ता उपस्थित।
                परिवाद की ग्राह्यता के संबंध में अधिवक्ता श्री गुप्ता के तर्क सुने गये।
                 प्रकरण का अवलोकन कर विचार किया गया।
                 परिवादी के परिवाद पत्र एवं उसके समर्थन में प्रस्तुत स्वयं के शपथपत्र पर अभिवचनानुसार उसने अनावेदक क्रमांक 2 से एक पुराना टाटा ट्र्क क्रमांक एम0पी-06-एच0सी-0465 क्रय करने हेतु 7,20,000रू की वित सुविधा दिनांक 2.10.2008 को प्राप्त की थी। परिवादी द्वारा उक्त ऋण की अदायगी पेटे 42 किश्तें दिनांक 5.11.2008 से 5.4.2012 तक जमा करनी थी परिवादी को उक्त ऋण पेटे साढे तीन वर्ष में कुल ब्याज सहित 10.55.632रू जमा करने थे किन्तु अनावेदक ने नियमानुसार ब्याज कम नहीं किया तथा रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया के दिशा निर्देशों को अनदेखा करते हुए ब्याज एवं पेनल्टी लगाई। अनावेदक ने परिवादी द्वारा 4,28,416रू जमा किए जाने के बावजूद असामाजिक तथ्योें की सजायता से हथियार सहित परिवादी के ट्र्क को अपने आधिपत्य में ले लया जो कंपनी का कृत्य असंवैधानिक एवं विधि विधान के विपरीत होकर अनुचित व्यापार व्यवहार की परिधि में आता है। अनावेदक ने परिवादी के ट्रृक को बिना वैधानिक प्रक्रिया अपनाए खुर्दबुर्द भी कर दिया है जिसकी सूचना उसे नहीं दी। परिवादी ने अनावेदक को दिनंाक 13.2.2014 को विधि क सूचना पत्र भेजा जिसका अनावेदक ने कोई जवाब नहीं दिया ।   अतः यह परिवाद अनावेदकगण के विरूद्ध 19,50,000रू की वसूली हेतु पेश किया गया है। 
                    परिवादी स्वयं के अभिवचनो से ही स्पष्ट है कि उसके द्वारा अनावेदकगण से प्राप्त ऋण सुविधाा वर्ष 2008 में प्राप्त की गयी थी जिसका पूर्ण भुगतान उसे दिनांक 5.4.2012 तक करना था। परिवादी के अभिवचनानुसार ही अनावेदक ने उसके वित्त पोषित ट्रृक को दिनांक 2.4.2011 को अपने कब्जे में ले लिया था। परिवादी ने यह कहीं स्पष्ट नहीं किया है कि उक्त ट्र्क अनावेदकगण ने किस दिनांक को विक्रय किया तथा उसे उसकी सूचना कब प्राप्त हुई। जब कि परिवादी स्वयं के अनुसार ही उसे अनावेदक कंपनी द्वारा दिनांक 6.9.2012  को व 8.12.2012 को नोटिस भी भेजा गया था। तब परिवादी को को अनावेदकगण के विरूद्ध परिवाद प्रस्तुती हेतु यदि कोई वाद कारण उत्पन्न हुआ था तो वह अधिकतम दिसंबर 2012 में दिनांक 8.12.2012 को उत्पन्न हो चुका था। परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी की ओर से दिनांक 13.2.2014 को अनावेदक को विधिक सूचना पत्र भेजा गया है किन्तु यह विधि की स्थापित स्थिति है कि मात्र पत्र व्यवहार एवं विधिक सूचना पत्र भेजे जाने से अवधि का सिस्तार नहंी होता है। जैसा कि न्याय दृष्टांत कान्दीमल्ला राघवैया विरूद्ध नेशनल इंश्योरेंस कंपनी 2009-सी0टी0जे-951 माननीय सर्वोच्च न्यायालय (सी0पी0) में स्पष्ट सिद्धांत प्रति पादित किया गया है। इस प्रकार परिवादी द्वारा वाद कारण उत्पन्न होने की दिनंाक 8.12.2012 से लगभग दो वर्ष तीन माह उपरांत यह परिवाद पेश किया है एवं विलंब को क्षमा किए जाने संबंधी कोई प्रार्थना भी नहीं है। ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 24 के प्रावधानो के तहत स्पष्टतः अवधि बाह्य होकर श्रवण योग्य नहंी है। 
                    ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अंतिम सुनवाई हेतु ग्राह्य किए जाने योग्य नहीं पाते हुए इसे प्रारंभिक स्तर पर निरस्त किया जाता है। प्रकरण सांख्यिकीय प्रयोजन हेतु पंजीबद्ध हो। आदेश की प्रतिलिपि परिवादी को निःशुल्क दी जावे। परिणाम दर्ज कर प्रकरण अभिलेखागार में जमा हो। 
आदेश मैने लिखाया  
                       
डाॅ मृदुला ंिसंह   
                          श्रीमती आभा मिश्रा
   सदस्य                        सदस्य            

 

 
 
[ Smt.Abha Mishra]
PRESIDING MEMBER
 
[ Dr.Mridula Singh]
MEMBER

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