Chhattisgarh

Durg

CC/241/2014

Bise Lal Kurree - Complainant(s)

Versus

Manager, SBI - Opp.Party(s)

Mr. HariShankar Nirmalkar

04 Mar 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM, DURG (C.G.)
FINAL ORDER
 
Complaint Case No. CC/241/2014
 
1. Bise Lal Kurree
Bhilai
Durg
C.G.
...........Complainant(s)
Versus
1. Manager, SBI
Bhilai
Durg
C.G.
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर् PRESIDENT
 HON'BLE MRS. शुभा सिंह MEMBER
 
For the Complainant:Mr. HariShankar Nirmalkar, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

                                                  प्रकरण क्र.सी.सी./14/241

                                                                                                  प्रस्तुती दिनाँक 14.08.2014

1.  बिशेलाल कुर्रे आ. स्व.कल्लूदास, आयु-40 वर्ष लगभग,

2.  श्रीमती केशरी कुर्रे ध.प. बिशेलाल कुर्रे, आयु-35 वर्ष लगभग,

निवासी-क्वा.नं.9डी, बी-पाकेट, मरोदा सेक्टर, भिलाई, तह. व जिला- दुर्ग (छ.ग.)                                      - - - -  परिवादीगण

विरूद्ध

स्टेट बैंक आफ इंडिया, द्वारा-शाखा प्रबंधक, ब्रांच सेक्टर, 4, मार्केट एरिया, भिलाई नगर, जिला-दुर्ग (छ.ग.)

- - - -    अनावेदक

आदेश

(आज दिनाँक 04 फरवरी 2015 को पारित)

श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष

                                परिवादीगण द्वारा अनावेदक से खाते से विधि विरूद्ध तरीके से निकाली गई राशि 9,511रू., मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति राशि 5,000रू.,वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा -12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।

                                (2) प्रकरण में स्वीकृत तथ्य है कि परिवादीगण का अनावेदक बैंक में खाता क्र.30118401815 है तथा अनावेदक बैंक के द्वारा परिवादीगण को ए.टी.एम.कार्ड क्र.6220180605900061470 प्रदान किया गया था।

परिवाद-

                                (3) परिवादीगण का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादीगण का अनावेदक बैंक में खाता क्र.30118401815 है, जिसका लिए अनावेदक बैंक के द्वारा ए.टी.एम.कार्ड क्र.6220180605900061470 प्रदान किया गया था। दिनांक 12.02.14 को किसी राजीव शर्मा नामक व्यक्ति के द्वारा अपने आपको अनावेदक बैंक के ए.टी.एम. विभाग मुंबई स्थित कार्यालय का अधिकारी होने का कथन करते हुए उसके द्वारा परिवादी क्र.1 से उसके खाते का नंबर व ए.टी.एम. नंबर व पिन नंबर की मांग की गई थी, जिस पर परिवादी क्र.1 ने विश्वास करते हूए उसे अनावेदक का बैंक अधिकारी मानकर उक्त ए.टी.एम. कार्ड की समस्त जानकारी प्रदान कर दी थी। उसके पश्चात दि.14.02.14 को पी.ओ.एस.201405375571 पी.ए.वी.यू. 1000रू., एवं पी.ओ.एस.201405379513 पी.ए.व्ही.ओ. 1000रू., कुल परिवादीगण के खाते से रकम 2,000रू., विधि विरूद्ध तरीके से निकाल लिए गए थे, जब परिवादी क्र.1 को उक्त रकम 2,000रू., के निकाले जाने के संबंध में जानकारी एस.एम.एस. के माध्यम से हुई तो परिवादी क्र.1 ने उसी दिनंाक को अनावेदक के बैंक में जाकर अपने ए.टी.एम. कार्ड के पिन नंबर को बदले जाने हेतु निर्देशित किया गया। इसी प्रकार दि.17.04.14 को पुनः परिवादीगण के खाते से पी.ओ.एस.201413121320 के माध्यम से कुल 2,500रू. निकाल लिया गया।  इस संबंध मे जब परिवादी क्र.1 को जानकारी हुई तब दि.18.04.14 को अनावेदक बैक में अपने पुत्र के साथ उपस्थित होकर एक लिखित आवेदन अपने पुराने ए.टी.एम. कार्ड क्र.62201806059 00061470 को ब्लाक किए जाने के संबंध में दिया था तथा उक्त पुराने ए.टी.एम. कार्ड को ब्लाक करने के पश्चात एक नया ए.टी.एम. कार्ड बनाकर दिए जाने के संबंध मे आवेदन दिया गया था, जिसका दूसरा ए.टी.एम. परिवादी को डाक से दि.29.4.14 को प्रदान किया गया था, परंतु अनावेदक के द्वारा परिवादी के उक्त पूर्व कार्ड को ब्लाक नहीं किया गया, जिसके कारण दिनंाक 04.05.14 परिवादी के खाते से कुल 9,511रू., पुनः किसी अज्ञात व्यक्ति के द्वारा विधि विरूद्ध तरीके से निकाल लिया गया, जिसकी जानकारी परिवादी क्र.1 को होने पर परिवादी क्र.1 ने अपने मित्र गोवर्धन लाल टंडन, निवासी-सेक्टर-4, भिलाई के साथ व्यक्तिगत तौर पर अनावेदक के बैंक में पुनः लिखित एवं मौखिक शिकायत करने हेतु गए जिस पर अनावेदक बैंक के द्वारा परिवादी की लिखित शिकायत को लेने से इंकार कर दिया गया, तब परिवादी द्वारा लिखित शिकायत डाक से अनावेदक को प्रेषित की गई, किन्तु अनावेदक बैंक द्वारा परिवादी की शिकायत का निराकरण नहीं किया गया और इस तरह अनावेदक बैंक का कृत्य सेवा में कमी की श्रेणी में आता है।  अतः परिवादीगण को अनावेदक बैंक से खाते से विधि विरूद्ध तरीके से निकाली गई राशि 9,511रू., मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति राशि 5,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।         

जवाबदावाः-

                                (4) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादीगण का अनावेदक बैंक में खाता क्र.30118401815 है, जिसके लिए अनावेदक बैंक के द्वारा एक.टी.एम.कार्ड क्र. 6220180605900061470 प्रदान किया गया था तथा कालांतर मे परिवादीगण के अनुरोध पर अनावेदक बैंक ने परिवादी को एक नया ए.टी.एम. कार्ड जारी किया था। परिवादीगण के बचत खाते से उपरोक्त वर्णित ए.टी.एम. कार्ड से रकम आहरित किए जाने के विवरण का प्रश्न है तो वह इस अनावेदक की जानकारी मे नहीं है, किंतु अनावेदक बैंक को दिनंाक 08.05.14 को प्रस्तुत पत्र एवं उसके पश्चात दि.24.05.14 को लिखे गए पत्र एवं पुनः दि.28.07.14 को बैंक को प्रेषित अधिवक्ता नोटिस मे भिन्नता है दि.05.05.14 के पत्र में जहां कोई अनजान व्यक्ति के द्वारा धोखाधड़ी करके बिल पे के माध्यम से राशि निकाले जाने का जिक्र है, तो वही दि.24.05.14 के पत्र एवं दिनंाक 28.07.14 को बैंक को प्रेषित अधिवक्ता नोटिस में किसी राजीव शर्मा नामक व्यक्ति के नाम से नई कहानी वर्णित की गई है इसी से परिवादीगण के कथनों पर एकबारगी विश्वास नहीं होता। परिवादी के स्वयं का कथन है कि जब उसने अपने पुत्र के साथ बैंक में उपस्थित होकर उसके साथ हुई घटना का विवरण देते हुए नया ए.टी.एम. कार्ड जारी किए जाने का अनुराध किया जो बैक ने उसके अनुरोध पर तत्काल कार्यवाही करते हुए उसे नया ए.टी.एम. कार्ड जारी कर दिया, किंतु उसका आरोप है कि बैंक ने पुराने ए.टी.एम. कार्ड को ब्लाक नहीं किया, इस संबंध मे ए.टी.एम. कार्ड ब्लाक करने संबंधी स्टेट बैंक आॅफ इंडिया का नियम इस प्रत्युत्तर के साथ प्रस्तुत है, जिसके अनुसार ए.टी.एम. कार्ड ब्लाक करने का कार्य स्वयं उपभोक्ता को करना होता है। उक्त नियमावली में ए.टी.एम. कार्ड नंबर गुप्त रखने एवं उसकी जानकारी किसी अन्य को न होने देने के उद्देश्य से ही परिवादीगण ने अपनी शिकायत में उन्हें जारी नए ए.टी.एम. कार्ड का नंबर एवं पिन नंबर का उल्लेख नही किया है। केवल ए.टी.एम.कार्ड का नंबर की जानकारी हो जाने पर वह व्यक्ति ए.टी.एम. मशीन से नगद आहरण नहीं कर सकता, केवल रकम का अंतरण ही संभव होता है। अनावेदक ने अपने ए.टी.एम.कार्ड की जानकारी किसी अनजान व्यक्ति को देकर स्वयं ही चूक कारित की है। इसी प्रकार नया ए.टी.एम. कार्ड प्राप्त होने पर पुराना ए.टी.एम.कार्ड ब्लाक न कर परिवादी ने स्वयं ही चूक की है, जिसका दोषारोपण वह बैंक पर कर रहा है। अतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद सव्यय निरस्त किया जावे।

 

                                (5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-

1.             क्या परिवादी, अनावेदक से, खाते से विधि विरूद्ध तरीके से निकाली गई राशि 9,511रू. प्राप्त करने का अधिकारी है?    हाँ

2.             क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में 5,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है?     हाँ

3.             अन्य सहायता एवं वाद व्यय?           आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत

 निष्कर्ष के आधार

                                (6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है। 

फोरम का निष्कर्षः-

                                (7) परिवादी का तर्क है कि उसने अनावेदक द्वारा प्रदान किये गये ए.टी.एम. क्र.6220180605900061470 प्राप्त किया था, दिनांक 12.02.2014 को किसी राजीव शर्मा नामक व्यक्ति ने अपने को अनावेदक बैंक के ए.टी.एम. विभाग के मुम्बई स्थित कार्यालय का अधिकारी बताते हुए ए.टी.एम. कार्ड की जानकारी प्राप्त कर ली और तदोपरांत दि.14.02.2014 को परिवादी के खाते से कुल 2,000रू. विधि विरूद्ध तरीके से निकाल लिया गया, तब परिवादी ने अनावेदक बैंक में जाकर ए.टी.एम. का पिन नंबर बदले जाने का निवेदन किया, फिर दि.17.04.14 को पुनः किसी व्यक्ति द्वारा 2,500रू. निकाल लिया गया, तब दि.18.04.2014 को परिवादी ने उक्त ए.टी.एम. क्र.62201806059000 61470 को ब्लाॅक किये जाने के संबंध में लिखित आवेदन दिया और अनावेदक बैंक द्वारा परिवादी को एक नया ए.टी.एम. प्रदान किया गया, परंतु पुराने ए.टी.एम. कार्ड को ब्लाॅक नहीं किया गया, जिसके कारण पुराने ए.टी.एम. कार्ड से पुनः विभिन्न समय पर 9,511रू. किसी अज्ञात व्यक्ति ने निकाल लिया, जिसकी पुनः परिवादी द्वारा लिखित और मौखिक शिकायत की गई, परंतु लिखित शिकायत लेने से इंकार कर दिया, तब परिवादी ने डाक के माध्यम से लिखित शिकायत प्रेषित की, परंतु अनावेदक बैंक ने रकम समायोजित नहीं की, तब अधिवक्ता मार्फत नोटिस भेजाई गई, परंतु अनावेदक ने कोई कार्यवाही नहीं की, इस प्रकार पहले वाले ए.टी.एम. को ब्लाॅक न करने के कारण पुनः परिवादी को आर्थिक हानि हुई और मानसिक वेदना हुई।

                                (8) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अनावेदक ने यह बचाव लिया है कि ए.टी.एम. को ब्लाक करने की कार्यवाही इंटरनेट से की जाती है, हम अनावेदक के इन तर्को से सहमत नहीं है, जब अनावेदक बैंक को परिवादी ने मौखिक और लिखित जानकारी एनेक्चर-2 से एनेक्चर-6 के मार्फत दी थी, तब अनावेदक बैंक का यह कर्तव्य होता था कि वह अपने ग्राहक के प्रति उच्च शिष्टाचार अपना कर उसे उच्च कोटी की त्वरित सेवाएं देता, क्योंकि ए.टी.एम. संबंधी कार्यवाही ग्राहक के जमा राशि से संबंधित होती है।  अनावेदक द्वारा इस प्रकार घोर सेवा में निम्नता किया जाना सिद्ध होता है, क्योंकि अनावेदक ने कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया है कि जब उसे पता चला कि कोई अज्ञात व्यक्ति चाहे उसका नाम हो या न हो परिवादी सिद्ध करता है या नहीं, अनावेदक बैंक का अधिकारी होना बता कर ग्राहक से जानकारी ले रहा है और तत्पश्चात् ग्राहक के खाते से पैसा भी निकाला जा रहा है और इसकी शिकायत ग्राहक बैंक में कर रहा है तो अनावेदक बैंक को बहुत ही त्वरित कार्यवाही कर सूक्ष्मता से जांच करनी थी कि ऐसा कौन व्यक्ति है जो अनावेदक बैंक का अधिकारी बता कर उसके ग्राहकों को तो परेशान कर रहा है साथ ही अनावेदक बैंक कीे ख्याति पर भी प्रश्न लगा रहा है।  अनावेदक बैंक ने ऐसा कोई भी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है, जिससे यह सिद्ध होता है कि किस प्रकार अनावेदक बैंक अपने ग्राहकों के प्रति उदासीन रवैया अपनाई है जो कि निश्चित तौर पर सेवा में घोर निम्नता की श्रेणी में आता है।

(9) परिवादी ने अपने अखण्डित दस्तावेज एनेक्चर पी.2 से एनेक्चर पी.8 के अनुसार यह सिद्ध किया है कि उसने अनावेदक बैंक को उपरोक्त घटना की जानकारी दी थी और ए.टी.एम. को ब्लाॅक करने के लिए कहा था। अनावेदक ने ऐसा कोई भी संतोषप्रद स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया है कि किन कारणों से अनावेदक बैंक उपरोक्त ए.टी.एम. ब्लाॅक करने में असमर्थ रही, क्योंकि जब नया ए.टी.एम. जारी हो गया, उसके बाद भी पुराने ए.टी.एम. से पैसा निकलना घोर सेवा में निम्नता को भी सिद्ध करता है।

(10) प्रकरण का अवलोकन कर हम यह भी पाते हैं कि अनावेदक बैंक ने एनेक्चर-9 अनुसार लुभावने शब्दों का प्रयोग कर अपने दस्तावेज तो छपवाये हैं, जिसमें ग्राहक के सम्भावित प्रश्नों का हवाला दिया है, परंतु अनावेदक बैंक इस मुद्दे को सही रूप से आंकलन करने में असफल रहे हैं कि हर व्यक्ति के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं रहती है।  अतः इंटरनेट द्वारा ए.टी.एम. को ब्लाॅक करने का भार ग्राहक पर दिया जाना उचित नहीं है। जब ग्राहक ने अनावेदक बैंक से ए.टी.एम. प्राप्त किया है और ग्राहक बैंक में जाकर ए.टी.एम. के बारे में समस्या बता रहा है तो ग्राहक को हेल्पलाईन पर सम्पर्क करने का दबाव डालना भी उचित नहीं है।  जन साधारण की यही मानसिकता रहती है कि जिस बैंक का ए.टी.एम. है उस बैंक में अपनी समस्या बताने पर समस्या का निराकरण होगा और यही जिम्मेदारी अनावेदक बैंक की भी बनती है कि वे ग्राहकों की समस्या के संबंध में तुरंत कार्यवाही कर एनेक्चर ए.9 के अन्त में यह भी लिखा है कि जब ग्राहक द्वारा शिकायत की जायेगी तब कोई भी राशि का ट्रांजेकशन की जिम्मेदारी बैंक की होगी, हांलाकि यह तथ्य ए.टी.एम. कार्ड गुमने के संबंध में है, परंतु यही स्थिति तब भी होनी चाहिए जब ग्राहक ने ए.टी.एम. का दुरूपयोग होना सूचित किया है, इस आशय का कि कोई व्यक्ति बैंक का अधिकारी बनके विवरण प्राप्त कर, पैसा निकाल रहा है, यहां स्थिति यह है कि परिवादी ने ए.टी.एम. ब्लाॅक करने को कहा और उसी आधार पर परिवादी को नया ए.टी.एम. बैंक ने प्रदान कर दिया फिर भी इस बीच परिवादी के बैंक खाते से राशि निकल गई है, जिससे यह साफ सिद्ध होता है कि अनावेदक बैंक ने सूचना मिलने के बाद और नया ए.टी.एम. कार्ड जारी करने के बाद भी उच्चस्तरीय प्रशासनिक कार्यवाही नहीं की और पुराना ए.टी.एम. ब्लाॅक नहीं किया जो कि निश्चित रूप से सेवा में निम्नता को सिद्ध करता है।

(11) प्रकरण की स्थिति यह दृष्य स्थापित करती है कि एक ही समय में ग्राहक के एक ही खाते के दो-दो ए.टी.एम. विभिन्न नम्बरों के कार्यशील थे जो कि प्रथम दृष्टि ही अनावेदक के व्यवसायिक दुराचरण और सेवा में निम्नता को सिद्ध करती है और इस संबंध में अनावेदक ने अपने जवाबदावा में कोई भी संतोषप्रद स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया है और परिवादी पर ही दोषारोपण किया है कि परिवादी ने एक अंजान व्यक्ति को ए.टी.एम. की जानकारी देकर स्वयं ही चूक की है और पुराने ए.टी.एम. स्वयं ब्लाॅक नहीं किया है जबकि उपरोक्त विवेचना के अनुसार हम अनावेदक द्वारा लिये गये बचाव को स्वीकार किये जाने का कोई आधार नहीं पाते हैं।

(12) उपरोक्त साक्ष्य विवेचना से हम यह निष्कर्षित करते हैं कि जब परिवादी ने अनावेदक बैंक में खाता खोला और ए.टी.एम. कार्ड प्राप्त किया तब उक्त संबंध में ग्राहक को समस्या आने पर उस समस्या का निदान करने की समस्त जिम्मेदारी अनावेदक बैंक की थी और अनावेदक बैंक इस बचाव का लाभ नहीं ले सकता था कि ग्राहक को इंटरनेट से सूचित कर ए.टी.एम. स्वयं ब्लाॅक करना था या उसे किसी व्यक्ति को अपना ए.टी.एम. का विवरण नहीं देना था, बल्कि अनावेदक बैंक को सजगता से जांच करनी थी कि ऐसा कौन सा व्यक्ति है जो अनावेदक बैंक का कर्मचारी होना बता कर उसके ग्राहकों को आर्थिक हानि के साथ अनावेदक बैंक की भी ख्याति पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है।

(13) जब कोई व्यक्ति बैंक में अपना खाता खोलता है और सुविधा प्राप्त करता है तो वह निश्चिंत हो जाता है कि उसकी राशि बैंक में सुरक्षित है, परंतु यदि उसे ऐसी समस्या आती है और अनावेदक बैंक उसका निराकरण नहीं करती है तो उसे निश्चित रूप से मानसिक वेदना होना स्वाभाविक है, जिसके एवज में यदि परिवादी ने 5,000रू. की मांग की है तो उसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता।

(14) उपरोक्त स्थिति में हम परिवाद पत्र स्वीकार करने का समुचित आधार पाते हैं और यह निष्कर्षित करते हैं कि अनावेदक बैंक ने परिवादी के संबंध में निश्चित रूप से सेवा में निम्नता और व्यवसायिक कदाचरण किया है।

                                (15) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-

(अ)    अनावेदक, परिवादी को राशि 9,511रू. (नौ हजार पांच सौ ग्यारह रूपये) अदा करे।

(ब)    अनावेदक द्वारा निर्धारित समयावधि के भीतर उपरोक्त राशि का भुगतान परिवादी को नहीं किये जाने पर अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से भुगतान दिनांक तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करने के लिए उत्तरदायी होगा।

(स)    अनावेदक, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) अदा करेे।

(द)    अनावेदक, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) भी अदा करे।

 
 
[HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर्]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. शुभा सिंह]
MEMBER

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