प्रकरण क्र.सी.सी./14/199
प्रस्तुती दिनाँक 27.05.2014
श्रीमती लीला साहू जौजे श्री सदाराम साहू, आयु-51 वर्ष, निवासी- ग्राम करसा, पो. औरी, तह. पाटन, जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - परिवादी
विरूद्ध
प्रबंधक, एस.बी.आई.लाईफ इंश्योरेंस कंपनी लिमि., शाप क्र.10, दूसरी मंजिल, चैहान इस्टेट, जी.ई.रोड, सुपेला, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 04 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से प्रीमियम राशि 7,393रू. एवं बीमा राशि 2,00,000रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट हेतु 10,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी के अविवाहित पुत्र के द्वारा अपनी माता को नामिनी बनाकर अनावेदक से स्मार्ट मनीबैक इंश्योरेंस पालिसी ली थी। अनावेदक द्वारा दि.18.07.2013 को प्रस्ताव स्वीकृत का बीमा पालिसी जारी की गई थी। परिवादी के पुत्र उमेश कुमार साहू ने अभिकथित पालिसी के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के पश्चात् ही आवेदन फार्म भरने के लिए कहा, तब अनावेदक के अधिनस्थ कर्मचारियों के द्वारा कहा गया कि वह सिर्फ उसके बताये जगह पर हस्ताक्षर कर दें तथा जरूरी जानकारी उसे बता दे तथा आवश्यक दस्तावेज छोड़ दें वे पूरा फार्म भरकर जमा करा देंगे एवं उसके प्रस्ताव को स्वीकार करवा देंगे। परिवादी के पुत्र बीमित ने अनावेदक के अधिनस्थ कर्मचारी को पूरी जानकारी प्रदान किया और पुराने संबंधों को ध्यान पर रखकर एवं पूर्ण विश्वास कर प्रीमियम राशि का भुगतान कर चला गया, अनावेदक के द्वारा सही व ठीक मान कर प्रीमियम की राशि जमा करा कर स्वीकृत किया गया। परिवादिनी के पुत्र को अनावेदक के द्वारा यह समझाया गया था कि प्रथम 5 वर्ष में कुल बीमाधन का 10 प्रतिशत 10 वर्ष पश्चात कुल बीमा धन का 20 प्रतिशत 15 वर्ष पश्चात कुल बीमाधन का 30 प्रतिशत एवं अंतिम 20 वर्ष पूर्ण होनें पर 60 प्रतिशत कुल 120 प्रतिशत राशि का भुगतान किया जावेगा साथ ही सामान्य अथवा दुर्घटनात्मक मृत्यु पर जमा राशि सहित बीमाधन की राशि भुगतान नाॅमिनी को किया जावेगा। परिवादिनी के पुत्र उमेश कुमार का स्वास्थ्य खराब हो जाने से उसकी मृत्यु दि.03.08.13 को हो गई। परिवादिनी के द्वारा अनावेदक के समक्ष क्लेम दावा प्रस्तुत किया गया, परंतु अनावेदक बीमा कंपनी के द्वारा परिवादिनी पर उपहास करते हुए मात्र 7रू. का चेक दिनंाक 28.11.13 को प्रेषित किया गया, अनावेदक के द्वारा पत्र में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि किस मद में जमा राशि में कटौती करते हुए 7रू. का चेक दिया गया है। परिवादिनी के द्वारा अनावेदक को अपने अधिवक्ता मार्फत नोटिस दि.26.04.14 प्रेषित किया गया था, किंतु अनावेदक के द्वारा राशि सेटलमेंट से इंकार कर दिया गया। अनावेदक बीमा कपंनी का उपरोक्त कृत्य सेवा में कमी की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी को अनावेदक से प्रीमियम राशि 7,393रू. एवं बीमा राशि 2,00,000रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट हेतु 10,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(3) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि मृतक बीमाधारी उमेश कुमार साहू लीवर सिरोसिस पोर्टल हाईपरटेंशन और सिकल सेल एनेमिया से वर्ष 2012 से पीड़ित था। मृतक के द्वारा अपने पूर्व अस्तित्वाधीन बीमारी के तथ्य को छिपाकर पारस्परिक सदभाव के सिद्धांत का उल्लंघन किया है और परम सद्भावना के सिद्धांत का उल्लंघन जानबूझकर और आशयपूर्वक सही तथ्य को छिपाकर किया गया। यदि बीमाधारक के द्वारा इस तथ्य का खुलासा किया जाता तो जोखिम आच्छादन उसे प्रदान नहीं किया जाता। अनावेदक के द्वारा नाॅमिनी को अतिरिक्त प्रस्ताव जमा रकम 7रू. चेक के माध्यम से दि.28.11.13 को वापस कर दिया गया है। अनावेदक बीमा कपंनी पर लगाये गये सारे इल्जाम पूर्ण रूप से गलत हैं। अनावेदक बीमा कंपनी, परिवादिनी का बीमा दावा पालिसी के नियम व शर्त के अनुसार अस्वीकार किया गया है, अतः अनावेदक, परिवादिनी को किसी प्रकार का अनुतोष प्रदान करने हेतु उत्तरदायी नहीं है। अतः परिवादिनी के द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद सव्यय निरस्त किया जावे।
(4) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से बीमा दावा राशि 2,00,000रू. मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
2. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में 10,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(6) प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि अनावेदक द्वारा परिवादी का बीमा दावा इस आधार पर खारिज किया गया है कि उसके पुत्र बीमित उमेश कुमार साहू द्वारा बीमा कराते समय पुरानी बीमारियों और मूलभूत तथ्यों को छुपाया गया था। बीमित व्यक्ति को लीवर सिरोसिस पोर्टल हाइपरटेंशन और सिकल सेल एनेमिया की बीमारी थी, परंतु प्रपोजल फार्म में पूर्व बीमारियों के संबंध में ’’नहीं’’ में उत्तर दिया गया, इन बचाव के आधार पर अनावेदक द्वारा परिवादी का बीमा दावा खारिज किया गया है।
(7) परिवादी का तर्क है कि अनावेदक के अधिनस्थ कर्मचारी द्वारा बीमित व्यक्ति से कहा गया था कि वह उनके बताये जगह पर हस्ताक्षर कर दे और जरूरी जानकारी बता दे, वे पूरा फार्म भकर और प्रस्ताव को स्वीकार करा देंगे, तब बीमित व्यक्ति ने पूरी जानकारी दी गई, प्रीमियम की राशि का भुगतान किया गया था, अनावेदक के अधिनस्थ कर्मचारी द्वारा प्रस्ताव पत्र स्वीकार कर पालिसी जारी की गई। हम परिवादी के इन तर्कों से असहमत होने का कोई कारण नहीं पाते हैं, क्योंकि प्रपोजल फार्म एनेक्चर एन.ए.1 के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि बीमित व्यक्ति को बीमा अनावेदक द्वारा अधिकृत एजेंट तारणीय साहू द्वारा दिया गया है, एनेक्चर एन.ए.1 प्रपोजल फार्म का यदि अंतिम पृष्ठ का अवलोकन करें तो उसमंे दो जगह पर क्रौस का निशान है, जहां पर बीमित व्यक्ति के हस्ताक्षर होने थे और उसकी फोटो चिपकाई जानी थी, जिसपर उसके हस्ताक्षर होने थे। सामान्यतः जब किसी व्यक्ति के किसी फार्म पर हस्ताक्षर प्राप्त किये जाने रहते हैं, तब भी ऐसा क्रौस लगाये जाने की स्थिति आती है कि कहां-कहां पर व्यक्ति को हस्ताक्षर करने हैं, उस स्थिति में जब वह व्यक्ति स्वयं उपस्थित नहीं रहता है, अतः प्रपोजल फार्म एनेक्चर एन.ए.1 से यह स्थिति सामने आती है कि प्रपोजल फार्म भरते समय एजेंट के सामने बीमित व्यक्ति हाजिर नहीं था और एजेंट ने अपने आक्रामक व्यवसायिक नीति के चलते बीमित व्यक्ति से कोरे फार्म पर हस्ताक्षर करवा लिया और उसके सामने बैठकर फार्म नहीं भरा और न ही बीमित व्यक्ति को फार्म भरने के लिए कहा, जबकि प्रपोजल फार्म एनेक्चर एन.ए.1 के प्रथम पृष्ठ पर ही यह उल्लेखित है कि बीमित व्यक्ति द्वारा ब्लाॅक लेटर में काली स्याही से यह फार्म भरा जाना है और यदि बीमित व्यक्ति स्वयं नहीं भर सकता है तो उक्त संबंध में घोषणा आवश्यक है। अनावेदक ने कहीं भी सिद्ध नहीं किया है कि प्रपोजल फार्म बीमित व्यक्ति के हस्तलिपि में भरा गया है और यह भी सिद्ध नहीं किया गया है कि बीमित व्यक्ति ऐसा अशिक्षित था कि वह प्रपोजल फार्म को स्वयं भरने की स्थिति में नहीं था, यदि प्रपोजल फार्म के उस पन्ने को देखा जाये जिसमें सेल्स रिप्रजेंटेटिव की काॅन्फीडेंशियल रिपोर्ट है, जिसमें सेल्स रिप्रजेंटेटिव तारणी साहू के हस्ताक्षर भी है, जिसके सीरियल नं.1 में ही लिखा है कि क्या सेल्स रिप्रजेंटेटिव ने बीमित व्यक्ति को बीमा पालिसी संबंधी नियम व शर्ते समझा दिये हैं। सीरियल नं.2 में बीमित व्यक्ति द्वारा प्रपोजल फार्म के सभी प्रश्न के उत्तर प्राप्त किया गया था, के संबंध में उल्लेख है। सीरियल नं.3 में बीमित व्यक्ति कब से ग्राहक है, उस संबंध में उल्लेख है कि बीमित व्यक्ति दो साल से सेल्स रिप्रजेंटेटिव को जानता है। सीरियल नं.4 में बीमित व्यक्ति को व्यापार करने संबंध व्यवसाय के बारे में लिखा है और सीरियल नं.5 एक महत्वपूर्ण बिन्दु है, जिसमें सेल्स रिप्रजेंटेटिव को देखना है कि बीमित व्यक्ति का स्वास्थ्य कैसा प्रतीत होता है, जिसमें अनावेदक के सेल्स रिप्रजेंटेटिव के द्वारा ’’गुड’’ लिख गया है। उसी सीरियल नं.5 के ’’बी.’’ और ’’सी.’ में फिजिकल डीफाॅरमिटी एवं मेंटल रिटारडेशन के बारे में लिखा है तथा क्या बीमित व्यक्ति अस्पताल में भर्ती हुआ था, या कभी उसकी सर्जरी हुई थी। सीनियल नं.8 में किसी भी प्रकार का आईडेंटीफिकेशन मार्क में कोई एन्ट्री नहीं है। इस प्रकार हम यह निष्कर्षित करते हैं कि अनोवदक के उस सेल्स रिप्रजेंटेटिव द्वारा बीमित व्यक्ति से बिना संपूर्ण जानकारी प्राप्त किये, बिना बीमित व्यक्ति के व्यक्तिगत उपस्थिति के प्रपोजल फार्म भरे हैं और इसी कारण हस्ताक्षर की जगह क्राॅस के चिन्ह लगे हुए हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि अनावेदक ने अपने आक्रामक व्यवसायिक नीति के चलते ऐसे गैर जिम्मेदार एजेंटों का जाल बिछा कर रखा है जो कि स्वयं कमीशन पाने की आशा में ऐन केन प्रकारेण बीमा कंपनी का व्यवसाय बढ़ाने के आशय से इस प्रकार की गलत कार्य प्रणाली अपनाते है और ग्राहकों को अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई से बीमा पालिसी लेने को दिग्भ्रमित कर बाध्य करते हैं।
(8) कोई भी व्यक्ति बीमा इसी आशय से कराता है कि विपरीत परिस्थितियों में उसके परिवार पर कम से कम आर्थिक बोझ तो ना रहे, यह सोच का विषय है कि बीमा कंपनियां बीमा संबंधी कार्यवाही में अपने तरफ से कोई लागत नहीं लगाती है, अपने अनेकानेक ग्राहकों द्वारा दी गई प्रीमियम की राशि को इकट्ठा कर ही बीमा कंपनियां अपना व्यापार करती है और इस प्रकार अपने व्यापार बढ़ाने के लोभ में ऐसी आक्रामक व्यवसायिक नीति अपनाया जाना निश्चित रूप से मानवीय दृष्टि से भी गलत है।
(9) जो भी बीमारियां अनावेदक द्वारा बीमित व्यक्ति के संबंध में बताई गई है वह बीमारियां जब बीमा कंपनी बीमा दावा प्रस्तुत होने पर पता कर सकती है तो क्या उनकी यह जिम्मेदारी नहीं है कि बीमा पालिसी जारी करने के पहले वे इन बीमारियों का पता लगाती? एनेक्चर एन.ए.3 के अनुसार अनावेदक बीमा कंपनी ने इंवेस्टीगेटर एवं सर्वेयर द्वारा बीमित व्यक्ति के स्वास्थ्य संबंधी पृष्ठभूमि की जांच कराई है और चिकित्सा संबंधी दस्तावेज भी प्राप्त किये हें जो कि एनेक्चर एन.ए.4 एवं 5 है, यही कार्यवाही अनावेदक बीमा कंपनी को बीमित व्यक्ति को बीमा पालिसी जारी करने के पहले नहीं किया जाना निश्चित रूप से यही सिद्ध करता है कि बीमा कंपनी का आशय पहले ग्राहकों से प्रीमियम राशि प्राप्त कर अपने व्यवसाय बढ़ाने का था इस बात को नजर अंदाज करते हुए कि पहले बीमित व्यक्ति का सूक्ष्म चिकित्सकीय परीक्षण कराया जाये और फिर बीमा पालिसी दी जाये, जिससे ऐसी परिस्थिति ही उत्पन्न न हो, जो इस प्रकरण में हुई है।
(10) एनेक्चर एन.ए.3 से एनेक्चर-5 के दस्तावेजों से यही सिद्ध होता है कि अनावेदक बीमा कंपनी कितनी अधिक सामथ्र्य रखती थी कि उसने अपने इन्वेस्टीगेटर के मार्फत पूरी जानकारी हासिल कि तो वह बीमा पालिसी जारी करने के पहले बीमित व्यक्ति के स्वास्थ्य की पृष्ठ भूमि प्राप्त कर सकती थी, जैसा कि इन दस्तावेजों से सिद्ध होता है कि अनावेदक बीमा कंपनी ने बीमित व्यक्ति की मृत्यु पश्चात् बीमा दावा पेश होने पर इंवेस्टीगेटर द्वारा बीमित व्यक्ति के स्वास्थ्य संबंधी पृष्ठभूमि की छानबीन कराई, यहां तक कि संबंधित अस्पताल से एनेक्चर एन.ए.5 अनुसार चिकित्सकीय दस्तावेज भी प्राप्त कर लिये, तब अनावेदक बीमा कंपनी ऐसा बीमा पालिसी देने के पहले क्यों नहीं की? यह बिन्दु अनावेदक बीमा कंपनी की घोर व्यवसायिक दुराचरण को सिद्ध करता है।
(11) यहां हम यह उल्लेख करना आवश्यक पाते हैं कि बीमा कंपनी द्वारा जारी पालिसी बुकलेट के शर्त 9.6.1 में यह भी उल्लेखित है कि बीमा पालिसी प्रपोजल फार्म में उल्लेखित तथ्य व्यक्तिगत कथन अन्य दस्तावेजों और मेडिकल रिपोर्ट पर आधारित है, परंतु अनावेदक ने कहीं भी सिद्ध नहीं किया है बीमित व्यक्ति का पर्सनल स्टेटमेंट लिया गया है, प्रपोजल फार्म के अंतिम पृष्ठ पर क्रौस का चिन्ह होना इसी बात को सिद्ध करता है कि वस्तुतः बीमित व्यक्ति प्रपोजल फार्म भरे जाने के समय उपस्थित नहीं था और न ही उसने पर्सनल स्टेटमेंट दिया, बीमा एजेंट ने किन दस्तावेजों के आधार पर प्रपोजल फार्म में जानकारी भरी वे दस्तावेज बीमित व्यक्ति द्वारा सत्यापित होने थे, उन दस्तावेजों को भी अनावेदक बीमा कंपनी ने प्रस्तुत नहीं किये हैं और सबसे दुःखद स्थिति है कि शर्त 9.6.1 की सीरियल नंम्बर में पालिसी ब्लाॅक लेटर के अनुसार अनावेदक बीमा कंपनी की यह जिम्मेदारी थी कि वह बीमित व्यक्ति की मेडिकल जांच कराता और मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर बीमा पालिसी जारी करता, परंतु अनावेदक बीमा कंपनी ने घोर सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण का कृत्य किया है और बीमित व्यक्ति की बिना विस्तृत डाॅक्टरी परीक्षण कर रिपोर्ट प्राप्त किये बिना ही अपने आक्रामक व्यवसायिक नीति के चलते अपना व्यवसाय बढ़ाने के दुराशय से बीमित व्यक्ति का बीमा कर दिया है जो कि घोर सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आता है।
(12) अतः प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि अनावेदक ने जिन बीमारियों के आधार पर बीमा दावा खारिज किया है ऐसी बीमारी से बीमारग्रस्त व्यक्ति को देखकर ही उसके अस्वस्थ्य होने का अंदाजा लगाया जा सकता है, जिसे न ही बीमा एजेंट ने देखा और न ही अनावेदक बीमा कंपनी ने बीमित व्यक्ति का डाॅक्टरी परीक्षण करा कर स्थिति स्पष्ट की और फिर जब बीमा दावा देने की पारी आई तो परिवादी बीमित व्यक्ति पर ही दोषारोपण कर दिया।
(13) एनेक्चर एन.ए.2 अनावेदक बीमा कंपनी को लिखा गया पत्र है, जिसमें अनेक लुभावने शब्द से उसकी ड्राफटिंग की गई है, उक्त पत्र के माध्यम से अनावेदक बीमा कंपनी की यह भी जिम्मेदारी थी कि जब बीमित व्यक्ति को फ्री लुक प्रीरियेड का लाभ दे रहा था तो उसी में ब्लाॅक शब्दों में यह भी उल्लेखित करता कि यदि बीमित व्यक्ति को कोई बीमारी है तो बीमा दावा स्वीकार नहीं होगा और अब भी मौका है कि बीमारी होने की स्थिति में वह अपने बीमा पालिसी समाप्त करा सकता है, ऐसा उल्लेख नहीं करना निश्चित ही इस बात को सिद्ध करता है कि अनावेदक बीमा कंपनी का आशय अपने ग्राहकों को दिग्भ्रमित करने का था और ऐन केन प्रकारेण बीमित व्यक्ति का गलत आधारों पर बीमा कर प्रीमियम की राशि इकट्ठा करने का था और स्वाभाविक्ता से यह कल्पना की जा सकती है कि अनावेदक बीमा कंपनी यदि इस ग्राहक के साथ ऐसा कृत्य करती है तो निश्चित रूप से सैकड़ो-हजारों ग्राहक के साथ ऐसा कृत्य कर आलेबाले पालिसी जारी कर प्रीमियम की राशि इस दुराशय से इकट्ठा करते हैं कि उसे प्रीमियम की राशि तो प्राप्त हो जाये, परंतु जब बीमा दावा देने की पारी आयेगी तो वे विभिन्न बचाव लेकर बीमा दावा खारिज कर देंगे, जैसा कि इस प्रकरण में किया गया है।
(14) यहां यह उल्लेख करना आवश्यक होगा कि अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा अपना इतना विस्तृत जवाबदावा तो प्रस्तुत किया है और जवाबदावा में ही अनेकोनेक न्यायदृष्टांत प्रस्तुत किये है, जबकि जवाबदावा में पक्षकार को अपने केवल अभिकथन परिवादी के तारतम्य में किये जाने चाहिए न की अपने कमजोर बचाव को छुपाने के लिए अनेकोनेक न्यायदृष्टांत विस्तृत रूप से वर्णित किया जाना चाहिए ऐसा करना, निश्चित रूप से जवाबदावा की ड्राफटिंग उचित नहीं मानी जा सकती है और इस जवाबदावा में अनावेदक ने एक बड़ा ही महत्वपूर्ण तथ्य को छुपाने का प्रयास किया है कि उसने पालिसी शर्त 9.6.1 के अनुसार बीमित व्यक्ति का डाॅक्टरी परीक्षण बीमा पालिसी जारी करने के पहले क्यों नहीं कराया, बीमित व्यक्ति से सत्यापित दस्तावेज क्यों प्राप्त नहीं किये और बीमित व्यक्ति का पर्सनल स्टेटमेंट क्यों प्राप्त नहीं किया।
(15) उपरोक्त साक्ष्य विवेचना के आधार पर हम अनावेदक को इस बचाव की सहायता देना उचित नहीं पाते हैं कि बीमित व्यक्ति ने महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाते हुए प्रपोजल फार्म भरा, क्योंकि वास्तव में प्रपोजल फार्म बीमित व्यक्ति द्वारा भरना ही सिद्ध नहीं होता है, अन्यथा उसमें क्रौस में चिन्ह नहीं होता, यह सिद्ध नहीं होता है कि एजेंट ने बीमित व्यक्ति को बतलाकर उसके द्वारा प्राप्त जानकारी के आधार पर बीमा फार्म स्वयं भरा जा कर अन्य व्यक्ति से भरा गया है।
(16) बीमित व्यक्ति द्वारा बीमा कराया जाना और प्रीमियम की राशि अदा किया जाना निर्विवादित है, जब कोई व्यक्ति बीमा करता है तो वह इसी कल्पना से कराता है कि उसके नहीं रहने पर उसके परिवार को आर्थिक परेशानी नहीं होगी, परंतु यदि इस प्रकार के कदाचार से परिवादी का बीमा दावा अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा खारिज किया गया है तो निश्चित रूप से उसे मानसिक वेदना होना स्वाभाविक है, जिसके एवज में यदि परिवादी ने 10,000रू. की मांग की है तो उसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता।
(17) उपरोक्त साक्ष्य विवेचना के आधार पर हम यह पाते हैं कि अनावेदक ने परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार सेवा में निम्नता एवं घोर व्यवसायिक दुराचरण किया है, फलस्वरूप हम परिवादी का दावा स्वीकार करने का समुचित आधार पाते हैं।
(18) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक, परिवादी को बीमा दावा राशि 2,00,000रू. (दो लाख रूपये) अदा करे।
(ब) अनावेदक, परिवादी को उक्त राशि पर बीमा दावा खारिज करने की दिनांक 28.11.2013 से भुगतान दिनांक तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी प्रदान करें।
(स) अनावेदक, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) अदा करेे।
(द) अनावेदक, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) भी अदा करे।