Rajasthan

Kota

CC/33/2007

Kanika sharma - Complainant(s)

Versus

Manager, Om Cineplex - Opp.Party(s)

Chardra shekar kakad

10 Nov 2015

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच, झालावाड,केम्प कोटा (राज)।
पीठासीन अधिकारी:-श्री नन्दलाल षर्मा,अध्यक्ष व श्री महावीर तंवर सदस्य।

प्रकरण संख्या-33/2007
    
1    श्रीमति कनिका षर्मा पत्नि श्री अतुल षर्मा,निवासी-404  षास्त्री नगर,दादाबाडी,कोटा (राज0)।
2    अतुल षर्मा पुत्र श्री लक्ष्मीचन्द निवासी- निवासी-404  षास्त्री नगर,दादाबाडी,कोटा (राज0)।
                                                                       -परिवादीगण।
                         बनाम  

ओम सिनेप्लेक्स,(सिनेमा थियेटर) जर्ये प्रबन्धक,पता-प्लाट नं0 11 इन्द्रा विहार,कोटा (राज0)।

                                                                     -विपक्षी।

          परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986

उपस्थिति-

1    श्री चन्द्रषेखर कक्कड,अधिवक्ता ओर से परिवादीगण।
2    श्री सुरेष माथुर,अधिवक्ता ओर से विपक्षी।                                        
                 
                     निर्णय                     दिनांक 10.11.2015    

यह पत्रावली जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच, कोटा, में पेष की गई तथा निस्तारण हेतु जिला मंच, झालावाड केम्प, कोटा, को प्राप्त हुई है।

      प्रस्तुत परिवाद ब्वदेनउमत च्तवजमबजपवद ।बज 1986 की धारा 12 के तहत दिनांक 27-11-2006 को परिवादी ने इन अभिवचनों के साथ प्रस्तुत किया है कि परिवादीगण ने दिनांक 17-08-2006 को दिन के षो समय 3रू30 च्ड हेतु विपक्षी के सिनेमा हाॅल ’’सत्यम’’ में फिल्म ’’कभी अलविदा ना कहना’’ देखने के लिए दो टिकिट ’’रायल बाॅक्स’’ उच्चतर श्रेणी के 90/-रूपये प्रति टिकिट की दर से कुल 180/-रूपये में खरीदे और उन्हें सीट नंबर म्.17 व म्.18 आवंटित की गई। परिवादीगण को उच्च्तर श्रेणी की दी गई सीट अत्यधिक ऊँचाई पर स्थित होने से तथा सीट के डेढ़ फिट आगे दीवार जो करीबन दो फिट थी, होने से प्रदर्षित फिल्म का एक तिहाई भाग अप्रदर्षित कर रही थी और फिल्म को पूर्णरूपेण देख पाना असम्भव था। यदि परिवादीगण सीट पर पीठ का  सहारा  लेते हुए तथा सीट को अपनी फुल स्ट्रेन्थ तक खोलकर आरामदायक स्थिति में बैठते हैं तो फिल्म के पर्दे का करीबन आधा हिस्सा अप्रदर्षित हो रहा था। जब इस सम्बन्ध में उपस्थित इन्चार्ज से संपर्क किया तो उसने भी माना कि फिल्म के पर्दे का भाग अप्रदर्षित हो रहा है। जब परिवादीगण ने अन्य सीट देने को कहा तो उसने मैनेजर से संपर्क करने हेतु कहा लेकिन मैनेजर ने न तो परिवादीगण को अन्य सीट आबंटित की और न ही टिकिट की राषि वापिस की और परिवादीगण को कहा कि फिल्म देखना हो तो देखेें अन्यथा बाहर निकल जायें। परिवादीगण को मजबूरन अधूरी फिल्म 
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छोड़कर घर आना पड़ा। इस प्रकार विपक्षी का यह कृत्य सेवामें कमी की श्रेणी में आता है। परिवादी ने टिकिट की राषि मय क्षतिपूर्ति के दिलाये जाने का अनुतोष चाहा है।

     विपक्षी ने परिवाद का यह जवाब दिया है कि परिवादीगण ने असत्य आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया है। विगत 15 वर्शों से अधिक समय से चलचित्र प्रदर्षित किया जा रहा है लेकिन किसी भी दर्षक ने पर्दा न दिखने व चलचित्र का आधा प्रदर्षन दिखने जैसी कोई षिकायत नहीं की है। परिवादीगण ने मैनेजर, गेट कीपर या किसी अधिकारी से इस सम्बन्ध में कोई षिकायत नहीं की है। यदि परिवादीगण को कोई दिक्कत थी तो अन्य खाली सीट पर बैठकर चलचित्र देख सकते थे। चलचित्र प्रदर्षन से पूर्व जिला कलेक्टर द्वारा लाइसेंस लेना होता है और संस्थान का पूर्ण निरीक्षण करने के पष्चात् ही लाइसेंस जारी किया जाता है। विपक्षी ने कोई सेवामें कमी नहीं की है। परिवादीगण कोई अनुतोष प्राप्त करने के अधिकारी नहीं हैं। परिवाद सव्यय निरस्त किये जाने की प्रार्थना की है। 

     परिवाद के समर्थन में परिवादीगण ने स्वयं के षपथ पत्र तथा प्रलेखीय साक्ष्य में म्ग.1 लगायत म्ग.4 दस्तावेज तथा विपक्षी की ओर से जवाब के समर्थन में श्री अनिल कुमार, प्रबन्धक, का शपथपत्र प्रस्तुत किया है।  
    उपरोक्त अभिवचनों के आधार पर बिन्दुवार निर्णय निम्न प्रकार है:-
1    क्या परिवादीगण विपक्षी के उपभोक्ता हैं ?

    परिवादीगण का परिवाद,षपथपत्र तथा प्रस्तुत दस्तावेजात के आधार पर परिवादीगण विपक्षी के उपभोक्ता प्रमाणित पाये जाते हंै। 
2    क्या विपक्षी ने सेवामें कमी की है ?

  उभयपक्षों को सुना गया, पत्रावली का अवलोकन किया गया। जहाँ तक परिवादीगण का यह तर्क है कि उनकी सीट नंबर म्.17 व म्.18 के सामने दो फीट ऊँची दीवार थी जिससे फिल्म पूरी दिखाई नहीं देती थी, करीब 1/3 भाग अप्रदर्षित रह जाता था। इस सन्दर्भ में विपक्षी के तर्क पर भी मनन किया गया और यह स्पश्ट हुआ कि सिनेमा हाॅल को चलाने के लिए सम्बन्धित जिलाधीष द्वारा लाइसेंस जारी किया जाता है और लाइसेंस जारी करने से पूर्व पूरा निरीक्षण किया जाता है। निरीक्षण में इस प्रकार की समस्त कठिनाईयों पर विचार किया जाता है। इसके अलावा भी ’’सत्यम सिनेमा हाॅल’’ करीब 15 वर्शों से चल रहा है। परिवादी जैसी षिकायत किसी अन्य दर्षक ने नहीं की, हाँ एक षिकायत ष्वेता वर्मा व देवेन्द्र वर्मा द्वारा की गई थी जिसका निर्णय दिनंाक 23-08-2010 को किया जाकर परिवादी के इस तर्क को सही नहीं माना। इस प्रकार प्रस्तुत प्रकरण में भी परिवादीगण का यह तर्क मानने योग्य नहीं है। 

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    जहाँ तक परिवादीगण का यह कहना है कि उन्होंनेे इन्चार्ज से संपर्क किया, विपक्षी इस तर्क से इन्कार करते हैं लेकिन परिवादीगण ने लिखित दस्तावेज कोई पेष नहीं किया है।
    यदि परिवादीगण को किसी प्रकार की कोई परेषानी थी तो वे दूसरी सीट पर बैठकर भी सिनेमा देख सकते थे लेकिन दूसरी सीटें खाली होने के बाद भी वे नहीं बैठे। दूसरी सीटें खाली नहीं थीं, ऐसा कोई प्रमाण भी परिवादीगण ने पेष नहीं किया है।
    यदि परिवादीगण आधा सिनेमा देखकर ही आये तो उन्हें लिखित में मैनेजर को षिकायत करनी चाहिए थी, ऐसा दस्तावेज भी परिवादीगण ने पेष नहीं किया है। ऐसी स्थिति में सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करने के बाद हमारे विचार से परिवादीगण विपक्षी का सेवादोश प्रमाणित करने में सफल नहीं रहे हैं।
3    अनुतोश ?
      परिवाद खारिज किया जाता है। उभयपक्ष अपना अपना खर्चा वहन करेंगे।
                               आदेष  
       परिणामतः परिवाद परिवादीगण श्रीमति कनिका षर्मा व अतुल षर्मा खारिज किया जाता है। प्रकरण के तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृश्टिगत रखते हुए पक्षकारान अपना अपना खर्चा वहन करेंगे।

        (महावीर तंवर)                               (नन्द लाल षर्मा)  
           सदस्य                                        अध्यक्ष


       निर्णय आज दिनंाक 10.11.2015को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया। 

        (महावीर तंवर)                               (नन्द लाल षर्मा)  
           सदस्य                                        अध्यक्ष

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