प्रकरण क्र.सी.सी./13/132
प्रस्तुती दिनाँक 12.06.2013
1. श्रीमती उमेश्वरी पटेल ध.प. महेश कुमार पटेल, आयु-35 वर्ष,
2. नेमेश पटेल आ. महेश पटेल आयु-4 वर्ष नाबालिक, वली माता उमेश्वरी।
निवासी-ग्राम सिवनी, थाना-लोहारा, तहसील-डौण्डीलोहारा, जिला-बालोद (छ.ग.)
- - - - परिवादीगण
विरूद्ध
नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमि., द्वारा-शाखा प्रबंधक, पता-स्टेशन रोड, गुरूद्वारा के पास, गिल काॅम्पलेक्स, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 25 फरवरी 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादीगण द्वारा अनावेदक से वाहन दुर्घटना बीमा पाॅलिसी के अंतर्गत देय बीमा राशि 1,00,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी क्र.1 एक अल्पशिक्षित महिला है, मृतक महेश कुमार पटेल परिवादिनी के पति मोटर साईकल क्र.सी.जी.07/ए.सी./3631 के पंजीकृत स्वामी थे। अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा उक्त वाहन का संपूर्ण रिस्कवर जोखिम सहित वाहन चालक /मालिक के लिए 50रू. अतिरिक्त प्रीमियम राशि व्यक्तिगत दुर्घटना के लिए लिया गया था। आवेदिका के पति की मृत्यु दि.08.01.12 को वाहन उपयोग करते समय हो गई, मृतक लगभग 08 बजे अपनें वाहन पर सवार होकर आवेदिका एवं उसके पति महेश कुमार नागपुर से अपने गांव सिवनी आवश्यक कार्य से आ रहे थे, नेशनल हाईवे क्र.6 पर भण्डारा रोड के पास ग्राम-महोदल शिवार के पास पहुंचनें पर सामने से आती हुई अज्ञात वाहन के चालक द्वारा अपनें वाहन को तेज एवं लापरवाही पूर्वक चालकार मृतक के वाहन को जोरदार टक्कर मार कर दुर्घटना कारित कर दी गई, आवेदिका के पति मोटर साईकल सहित गिर गए तथा आवेदिका के पति के सिर के ऊपर से अज्ञात वाहन का चक्का चलकर निकाल गया। उक्त दुर्घटना से आवेदिका के पति के हाॅथ-पैर, सिर-सीने तथा शरीर के विभिन्न हिस्सों में गंभीर चोटें आयी और आवेदिका के पति महेश कुमार पटेल की दुर्घटना स्थल पर ही मौत हो गई तथा साथ ही साथ परिवादिनी को भी गंभीर चोटें आईं एवं मृतक का वाहन क्षतिग्रस्त हो गया। उक्त घटना की सूचना जिला-भण्डारा (महाराष्ट्र) में दी गई। आवेदिका के द्वारा अनावेदक कार्यालय को समय सीमा के भीतर सूचना प्रदान कर दी गई थी, पाॅलिसी के अनुसार बीमाधारी के नाॅमिनी को 1,00,000रू. प्रदान किए जाने थे, जिसे अनावेदक के द्वारा विधिक नोटिस दि.06.05.13 की प्राप्ति के उपरांत भी प्रदान न कर सेवा में निम्नता की गई है। अतः परिवादीगण को अनावेदक से वाहन दुर्घटना बीमा अंतर्गत देय राशि 1,00,000रू. मय आवेदन प्रस्तुति दिनंाक से राशि भुगतान दिनंाक तक 6 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज, वाद व्यय व अन्तुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(3) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि आवेदक के द्वारा वाहन क्र.सी.जी07/ए.सी.3631 अंतर्गत ली गई वाहन बीमा पाॅलिसी वाहन क्रय करते समय ऐश्वर्या आॅटोमोबाईल, नेहरू परिसर, नेहरू नगर, भिलाई द्वारा हीरो काॅर्पोरेट सर्विस लिमि. का काॅर्पोरेट ऐजेंट होने के कारण मृतक बीमाधारी महेश कुमार पटेल को प्रदान की गई थी, जिसे परिवादी द्वारा अपने परिवाद में संयोजित नहीं किया है एवं अपना दावा भी उक्त कार्यालय मार्फत प्रेषित नहीं किया है जो कि एक आवश्यक पक्षकार है। परिवादिनी के द्वारा जो दस्तावेज फोरम के समक्ष प्रस्तुत किए है उसके अनुरूप बीमाकर्ता हीरो काॅपोरेट सर्विस लिमि. को न ही क्लेम की कोई सूचना दी गई है और न ही क्लेम उनके मार्फत प्रेषित किया गया है, आवेदिका द्वारा अनावेदक की किस शाखा को क्लेम फार्म भरकर प्रेषित किया था या पाॅवती ली थी यह भी अभिलेखों से स्पष्ट नहीं है। परिवादिनी द्वारा अनावेदक से चाहा गया अनुतोष विधिक नहीं है तथा सैद्धांतिक रूप से भी जिसके द्वारा बीमा प्रमाण पत्र प्रदान किया गया हो उसे पक्षकार के रूप में संयोजित करना तथा उसके मार्फत अनुतोष हेतु दावा पेश करना आवश्यक है, अतः पेश परिवाद सव्यय निरस्त किया जावे।
(4) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैंः-
1. क्या परिवादीगण, अनावेदक से वाहन दुर्घटना बीमा अंतर्गत देय बीमा राशि 1,00,000रू. राशि मय 6 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज सहित प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
2. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(6) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि मृतक अनावेदक बीमा कंपनी से बीमित था जो कि एनेक्सर 7 बीमा पाॅलिसी शड्यूल दस्तावेज से सिद्ध होता है, अतः अनावेदक का बचाव कि मृतक ने ऐश्वर्या आॅटोमोबाईल से पाॅलिसी प्राप्त की थी अतः उक्त संस्था आवश्यक पक्षकार थी, जिसको पक्षकार नहीं बनाए जाने से दावा चलने योग्य नहीं है, स्वीकार योग्य नहीं पाया जाता है, बल्कि यही सिद्ध होता है कि अनावेदक बीमा कंपनी ने अपने आक्रामक व्यवसायिक नीति के तहत विभिन्न बीमाजारीकर्ता संस्थाओं में संलग्न होकर अपना व्यापार तो बढ़ा लिया है और फिर बीमा दावा पेश होने पर विभिन्न कारण बताते हुए बीमा दावा का निरकारण करने हेतु तत्पर नहीं है ऐसी बीमा कम्पनियां इस बिंदु पर संवेदनशील रूख नहीं अपनाती कि बीमित व्यक्ति के परिवार में ऐसी विपदा आयी है तो उच्च शिष्टाचार अपनाते हुए समस्या का निराकरण करें। यह सोच का विषय है कि बीमा कंपनीयां यह मनःस्थिती क्यों नहीं बनाती कि जब बीमा पाॅलिसी जारी की गयी है तो समय आने पर अपने ग्राहक को त्वरित एवं उच्च दर्जे की सेवाऐं प्रदान करें, जिससे ग्राहक को बीमदावा हेतु मुकदमा लाने की आवश्यकता ही नहीं पड़े, उन्हे मूलतः यह देखना चाहिए कि बीमादावा में कोई दुर्भावनावश तो क्लेम नहीं किया जा रहा है, या कोई तकनीकी कारण तो नहीं है बाकि मुद्दों का निराकरण उन्हे अपनें कार्यालय स्तर पर ही करना चाहिए क्योंकि दस्तावेज तो आज की स्थिती में ज्यादातर सिस्टम जनरेटेड होते हैं। उच्च सेवाऐं यही कहलाएगीं कि वे अपनें स्तर पर अन्य विभागों से दस्तावेज प्राप्त करने की कार्यवाही करें। जैसा कि इसमें एनेक्सर 11 से सिद्ध है कि परिवादी क्र.1 गांव की सीधी सादी कम पढ़ी लिखी महिला है तो उसे बहुत तकनीकी ज्ञान भी होना अपेक्षित नहीं है, दूसरा यह कि इस दुर्घटना को उसने अपनी आँखों से देखा कि उसके पति की घटना स्थल पर ही मृत्यु हो गयी और वह खुद भी घायल हो गयी तो यह स्थिती परिवादिनी को कितना विचलित कर दी होगी वहीं उसे अपने भविष्य की भी चिंता होगी कि वह अपने 4 साल के बच्चे परिवादी क्र.2 को कैसे पालेगी पोसेगी। बीमा भी विषम परिस्थितयों के लिए कराया जाता है इस कल्पना के साथ कि परिवादी को समय आने पर परेशानियों का सामना न करना पड़े, यह प्रकरण बीमा कंपनी द्वारा घोर सेवा में निम्नता कारित करने का ज्वलन्त उदाहरण है कि किस प्रकार घोर विपदाओं के बावजूद भी एनेक्सर 8 का क्लेम फार्म भरा गया, जिसमें दस्तावेज संलग्न होनं का उल्लेख भी नहीं है, परंतु अनावेदक बीमा कंपनी ने संवेदनशील रूख नहीं अपनाया और बीमा दावा निराकरण की कोई कार्यवाही नहीं की, यहां तक कि परिवादी द्वारा अधिवक्ता मार्फत नोटिस एनेक्सर 11 का जवाब देना भी उचित नहीं समझा न ही बीमा दावा निराकरण की कोई कार्यवाही की अनावेदक का यह कृत्य घोर व्यवसायिक कदाचरण एवं सेवा में निम्नता को सिद्ध करता है। यदि बीमा कंपनी मोटी-मोटी राशि प्रीमियम के रूप में प्राप्त करती है और अपना व्यापार बढ़ानें हेतु विभिन्न संस्थाओं से जुड़ती है तो उनका यह कर्तव्य होता है कि छोटे-छोटे आधारों की आड़ न लें और हर संभव कोशिश करें कि ग्राहक को त्वरित एंव उच्च सेवाऐं प्राप्त हो जो कि व्यक्ति का बीमा करानें का मुख्य आशय रहता है।
(7) परिवादी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों से प्रथम दृष्टया ही यह सिद्ध हो जाता है कि मृतक की मृत्यु दुर्घटना के फलस्वरूप हुई थी तो किस आधार पर अनावेदक ने अपने जवाबदावा की कंडिका एक में उल्लेख किया है कि दुर्घटना के फलस्वरूप मृतक की मृत्यु नहीं हुई उक्त कंडिका की लाइन निम्नानुसार है:-
’’यह विशेष रूप से अस्वीकार है कि उपरोक्त वाहन के उपयोग जनित दुर्घटना के परिणाम स्वरूप दि.08.01.2012 को महेश राम पटेल उर्फ महेश कुमार पटेल की मृत्यु हो गई।’’
यह बहुत ही दुःखद स्थिती एवं सोच का विषय है जवाबदावा में इस प्रकार से उल्लेख कर दिया गया, जबकि प्रथम सूचना प्रतिवेदन एनेक्चर-1, घटना स्थल पंचनामा एनेक्चर-2, मरणोत्तर प्रतिवृत्त एनेक्चर-3, शवपरीक्षण आवेदन एनेक्चर-4, मय शव परीक्षण रिपोर्ट, हिन्दी रूपांतर सहित प्रकरण में पेश है, जिनसे दुर्घटना के फलस्वरूप ही मृतक की मृत्यु होना सिद्ध हो जाता है। एनेक्चर-8, क्लेम फार्म से भी सिद्ध होता है कि बीमा दावा उतनी देर से भी पेश नहीं किया गया कि उसको अनावेदक बीमा दावा नहीं देने का आधार मान ले। एनेक्चर-11 से सिद्ध है कि परिवादी के पति की दुर्घटना में मृत्यु दुर्घटना स्थल पर ही हो गई। परिवादी को भी चोटें आयी अतः उसके मानसिक कुठाराघात का अंदाजा लगाया जाना आवश्यक है साथ ही वह ग्रामीण परिवेश की कम पढ़ी लिखी महिला है उसके पास अपने 4 साल के पुत्र के पालन पोषण का एक गंभीर मुद्दा है, इस सब परिस्थितयों का आंकलन सदभावनापूर्वक करना ही अनावेदक बीमा कंपनी की उच्च सेवा शिष्टाचार को परिभाषित करता है, परंतु इस सब मानवीय बिंदुओं को अनदेखा कर अनावेदक बीमा कंपनी ने यह बचाव ले लिया सूचना अविलंब निर्धारित अवधी में नहीं दी।
(8) यहाँ यह भी उल्लेख करना आवश्यक है होगा कि बीमा कंपनी ने अभी तक यदि दावे का निराकरण नहीं किया है तो उस स्थिती के लिए उसने अपने लिये क्या नियम रखे है? सारे नियम ग्राहक पर केंद्रित करना और फिर छोटे-छोटे आधारों पर बीमा दावा निराकृत नहीं करना निश्चित रूप से सेवा में घोर निम्नता व्यावसायिक कदाचरण है।
(9) फलस्वरूप हम परिवादी का परिवाद स्वीकार करने का समुचित आधार पाते हैं।
(10) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक, परिवादीगण को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक, परिवादीगण को बीमा दावा राशि 1,00,000रू. (एक लाख रूपये) अदा करे।
(ब) अनावेदक, परिवादीगण को उक्त राशि पर परिवाद प्रस्तुती दिनांक 12.06.2013 से भुगतान दिनांक तक 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी प्रदान करें।
(स) अनावेदक, परिवादीगण को वाद व्यय के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) भी अदा करे।