Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/74/2011

DR.ZEYA ALAM - Complainant(s)

Versus

MANAGER NATIONAL INSURANCE CO. - Opp.Party(s)

MAYANK TIWARI

08 Jul 2019

ORDER

1

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 74 सन् 2011

प्रस्तुति दिनांक 23.08.2011

                                                                                          निर्णय दिनांक 08.07.2019      

Dr. Zeya Alam aged about 51 years, son of Late Mohd. Gayasuddin resident of village and Post Office- Bindwal, Disttrict- Azamgarh.

     .................................................................................Complainant

Versus

The Branch Manager, National Insurance Company Limited, 434, Thandi sarak, City and Disttrict- Azamgarh.

      ........................................................................... Opposite party.

उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा राम चन्द्र यादव “सदस्य”

  •  

कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”

परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसने एक मारूती स्विफ्ट डिजायर खरीदा था और मारुती टाई-अप स्कीम के तहत उसका बीमा दिनांक 29.03.2009 से 18.03.2010 तक करवाया था। जिसका कवर नोट नम्बर 60296189 दिनांकित 19.03.2009 है। उक्त मारुती का पुनः दिनांक 19.03.2010 को इन्श्योरेन्स कराने के लिए कम्पनी के एजेन्ट मिस्टर मुमताज अहमद मंसूरी को 12,300/- रुपया दिया। दुर्भाग्य से दिनांक 06.06.2010 को गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। सूचना प्राप्त करने के पश्चात् विपक्षी ने मिस्टर राकेश बिहारी को सर्वेयर नियुक्त किया। जिसमें कि अपनी रिपोर्ट बनाया और उसमें यह कहा कि मारुती चलने लायक नहीं है और उसे 1,70,000/- रुपये में बिकवा दिया। चूंकि सर्वेयर ने अपने कर्तव्य का निर्वहन किया। इससे विपक्षी इन्कार नहीं कर सकता है। बीमा पॉलिसी जो पत्रावली में लगायी गयी है। उस परिवादी का हस्ताक्षर नहीं है। परिवादी ने बीमा कम्पनी के एजेन्ट को 12,300/- रुपया पुनः इन्श्योरेन्स कराने हेतु अदा किया था, लेकिन उसने केवल 9,791/- रुपया ही अदा किया, जिस पर परिवादी ने अप्रैल, 2010 में आपत्ति किया। विपक्षी ने वाहन का कुल मूल्य 1,19,000/- अंकित किया। जिसमें 1,70,000/- रुपये में उस गाड़ी को विक्रय कर दिया गया। दिनांक 23.02.2011 को परिवादी को क्लेम के निरस्तीकरण की सूचना प्राप्त हुई। अतः परिवादी को विपक्षी से 2,49,000/- रुपये पॉलिसी निरस्तीकरण के पश्चात् अदा करने हेतु आदेशित किया जाए। यदि न्यायालय के निगाह में                                                                                                                                                 P.T.O. 

 

2

कोई अन्य अनुतोष आता है तो उसे परिवादी को प्रदान करें।

प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी ने कागज संख्या 7/1 निरस्तीकरण की सूचना, कागज संख्या 7/2 इन्श्योरेन्स कम्पनी द्वारा लिखा गया पत्र, कागज संख्या 7/3 परिवादी द्वारा ब्रांच मैनेजर को लिखे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 27/1 ता 27/2 परिवादी द्वारा शाखा प्रबन्ध व शाखा प्रबन्ध वरिष्ठ को लिखे गए पत्र की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।

विपक्षी ने जवाबदावा प्रस्तुत कर यह कहा है कि परिवाद पत्र की धारा 1 जिस तौर पर तहरीर है स्वीकार नहीं है। धारा 2 में बीमा अवधि दिनांक 19.03.2009 से 18.03.2010 के बीच याची द्वारा दर्ज क्लेम को छिपाकर फ्रॉड के आधार पर एग्रीमेन्ट 19.03.2010 से 18.03.2011 तक पॉलिसी के नियमों का उल्लंघन करके कराया जाना तथा एन.सी.बी. का लाभ 20 प्रतिशत अबैध ढंग से याची द्वारा प्राप्त करना स्वीकार है। शेष कथन से इन्कार है। धारा 3 तथाकथित एक्सीडेन्ट 6 जून 2010 फ्राडुलेन्ट एग्रीमेन्ट होने के कारण कोई जिम्मेदारी बीमा कम्पनी को नहीं है। शेष धाराओं को इन्कार किया गया है। अतिरिक्त कथन में विपक्षी ने यह कहा है कि परिवादी को यह परिवाद प्रस्तुत करने का कोई अधिकार हासिल नहीं था। चूंकि विपक्षी ने 25 प्रतिशत जी.आर. 27 के विपरीत एन.सी.बी. प्राप्त कर लिया था। अतः उसे कोई अनुतोष प्राप्त नहीं हो सकता है। एग्रीमेन्ट बाबत अवधि 19.03.2010 से 18.03.2011 फ्रॉड पर आधारित है तथा याची को कोई लाभ मिल नहीं सकता है। ऐसा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कहा गया है कि विपक्षी के पूर्वाधिकारी 01.12.2010 के पूर्व की अवधि में याची द्वारा दर्ज क्लेम व सब्सुक्वेन्ट बीमा में अवैधरूप से 20 प्रतिशत एन.सी.बी. का लाभ झूठी सूचना के आधार पर दाखिल किया गया है। याची की सूचना पर राकेश बिहारी सर्वेयर को नेचुरल कोर्स में सर्वेयर नियुक्त किया गया था जो कि कम्पनी का इम्प्लाई नहीं है। विपक्षी द्वारा कम्पनी के एजेन्ट मुमताज अहमद मंसूरी द्वारा कोई गलती नहीं की गयी है। वास्तविकता यह है कि याची द्वारा स्वयं सत्य कथन को एवाइड करके विधि के विपरीत फ्राडुलेन्ट ढंग से पूर्व में ही याची द्वारा दर्ज क्लेम को छिपाकर एग्रीमेन्ट करने के कारण किसी प्रकार का अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं है। अतः परिवाद खारिज किया जाए। विपक्षी द्वारा कोई शपथ पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में विपक्षी ने कागज संख्या 16/1 वरिष्ठ शाखा प्रबन्धक द्वारा परिवादी को लिखे गए पत्र, कागज संख्या 16/2 प्रपोजल फॉर्म , कागज संख्या 16/4 अशोक सिंह/एल.आर.ओ./एन.आई.सी. के सन्दर्भ में लिखे गए पत्र की छायाप्रति की पॉलिसी नम्बर 60296180 डॉक्टर ज्या आलम को                                                               P.T.O.

 

3

एन.सी.बी. कन्फरमेशन हुआ है। इसके पश्चात् शशि थॉपर द्वारा लिखा गया पत्र, कागज संख्या 16/6 लिखा गया पत्र, कागज संख्या 16/7 ता 16/10 इन्श्योरेन्स पॉलिसी प्रस्तुत की गयी है।

सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादी ने मुख्य रूप सं अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसने विपक्षी के एजेन्ट को वाहन का बीमा करने के लिए 12,300/- रुपया दिनांक 19.03.2010 को दिया था, लेकिन उसने बीमा कम्पनी में केवल 9,791/- रुपया ही जमा किया। इस बात को विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा में कहीं इन्कार नहीं किया गया है कि उसके एजेन्ट को 12,300/- रुपया प्राप्त नहीं हुआ था। इस सन्दर्भ में यदि हम न्याय निर्णय “नेशनल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड बनाम ऋषि दर्शन नांबियर एवं अन्य 2018 (II) सी.पी.आर. 266 (एन.सी.)” द्वारा पारित न्याय निर्णय का यदि अवलोकन करें तो इस न्याय निर्णय में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह अभिधारित किया है कि बीमा कम्पनी अपने एजेन्ट के हर कार्य के लिए उत्तरदायी है। चूंकि विपक्षी ने अपने जवाबदावा में यह कहीं भी नहीं लिखा है कि उसने एजेन्ट को 12,300/- रुपया नहीं दिया गया था। तो ऐसी स्थिति में उपरोक्त न्याय निर्णय इस परिवाद के तथ्य एवं परिस्थितियों में पूरी तरह ग्राह्य है। जब परिवादी को इस बात की सूचना हुई कि उसने जिस एजेन्ट को 12,300/- रुपया दिया था और वह बीमा कम्पनी में केवल 9,791/- रुपया ही जमा किया था तो इस सम्बन्ध में दिनांक 12.04.2010 को ही परिवादी ने शाखा प्रबन्धक नेशनल इन्श्योरेन्स कम्पनी ठण्डी सड़क आजमगढ़ को जरिये रजिस्टर्ड पोस्ट सूचित कर दिया था। परिवादी द्वारा एक पत्र वरिष्ठ प्रबन्धक नेशनल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड ठण्डी सड़क आजमगढ़ को इस आशय का दिया गया है कि वाहन संख्या यू.पी. 50 एस. 1699 के प्रपोजल फॉर्म पर उसका फर्जी हस्ताक्षर बनाया गया है। प्रपोजल फॉर्म कागज संख्या 16/2 पत्रावली में संलग्न है। जिस पर कहीं भी परिवादी का हस्ताक्षर नहीं है। इससे यह सिद्ध होता है कि परिवादी ने बीमा कम्पनी को जो उपरोक्त पत्र लिखा था वह सही था। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने बहस के दौरान बीमाधारक द्वारा की गयी घोषणा का उल्लेख किया। चूंकि इस प्रपोजल फॉर्म पर परिवादी का हस्ताक्षर ही नहीं है तो ऐसी स्थिति में यह नहीं माना जाएगा कि इस डिक्लियरेशन में जो बातें अंकित की गयी हैं वह परिवादी के ऊपर लागू होगी।

उपरोक्त विवेचन से यह सिद्ध होता है कि परिवादी ने बीमा कम्पनी के एजेन्ट को अपने वाहन का बीमा करवाने हेतु 12,300/- रुपया अदा किया गया था, लेकिन उस एजेन्ट ने बीमा कम्पनी में 12,300/- रुपया जमा न कर कम                                                       P.T.O.

 

4

धनराशि जमा किया। जिसमें परिवादी की कोई गलती नहीं है। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने बहस के दौरान प्रपोजल फॉर्म के डिक्लियरेशन के बिन्दु पर इस बात का उल्लेख किया। चूंकि परिवादी ने फ्रॉड किया है। अतः उसे बीमा कम्पनी द्वारा कोई भी लाभ प्रदान नहीं किया जा सकता है। चूंकि इस प्रपोजल फॉर्म पर परिवादी का हस्ताक्षर ही नहीं है, जिसकी सूचना माह अप्रैल, 2010 में ही परिवादी ने बीमा कम्पनी को दे दिया था। अतः यह उद्घोषणा उसके ऊपर लागू नहीं होगा।

विपक्षी द्वारा जी.आर. 27 नो क्लेम बोनस का एक कागजात प्रस्तुत किया, जिसमें भिन्न-भिन्न समय पर .. डिस्काउन्ट के सन्दर्भ में प्रतिशत दिया गया है। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने एक संशोधन प्रार्थना पत्र जो परिवादी द्वारा बीमा एजेन्ट को पक्षकार बनाए जाने हेतु प्रस्तुत किया गया था और जो मंच द्वारा खारिज कर दिया गया, का भी उल्लेख किया। चूंकि उक्त संशोधन प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया गया था। अतः उसके बारे में कोई भी वर्तमान समय में चर्चा करना उचित नहीं है। जवाबदावा के पैरा 04 में यह कहा गया है कि बीमा कम्पनी ने दिनांक 01.12.2010 को ही यह सूचना याची को दे दिया था कि उसने अवैध रूप से 20 प्रतिशत एन.सी.बी. का लाभ ले लिया है। अतः यह वह केवल बीमा कम्पनी को हैरान व परेशान करने के उद्देश्य से यह दावा दाखिल किया है। जबकि परिवादी ने अपने साथ किए गए छल के बारे में माह अप्रैल 2010 में ही बीमा कम्पनी को सूचित कर दिया गया था। इस प्रकार जहां तक फ्रॉड का सम्बन्ध है तो यह नहीं माना जाएगा कि परिवादी ने बीमा कम्पनी के साथ फ्रॉड किया है, बल्कि यह माना जाएगा कि बीमा कम्पनी तथा उसके एजेन्ट ने मिलकर परिवादी के विरूद्ध फ्रॉड किया है।

विपक्षी ने जवाबदावा के पैरा 05 में यह स्वीकार किया है कि उसके द्वारा राकेश बिहारी को सर्वेयर नियुक्त किया था, लेकिन बीमा कम्पनी ने राकेश बिहारी द्वारा प्रस्तुत सर्वे रिपोर्ट पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं किया है। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र के पैरा 08 में इसका उल्लेख किया है कि सर्वेयर ने अपने सर्वे में दुर्घटना हुई गाड़ी का कुल वास्तविक मूल्य 4,19,000/- नियत किया था और उसने क्षतिग्रस्त वाहन का 1,70,000/- रुपये में विक्रय करवा दिया। इसलिए इस अभिकथन को विपक्षी ने कहीं भी अपने जवाबदावा में उल्लेख नहीं किया है। इस प्रकार परिवाद पत्र का पैरा 08 में किया गया अभिकथन अखण्डित माना जाएगा और चूंकि वाहन का कुल कीमत 4,19,000/- रुपया नियत की गयी थी और वाहन को 1,70,000/- में बेच दिया गया था। अतः बची हुई धनराशि 2,49,000/- रुपये का भुगतान

  P.T.O.

 

5

करने के लिए विपक्षी बीमा कम्पनी उत्तरदायी है।

उपरोक्त विश्लेषण से हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य है।

आदेश

परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को 2,49,000/- (दो लाख उन्चास हजार) रुपया अन्दर तीस दिन अदा करें। जिस पर परिवादी वाद दाखिला के दिन से 09% वार्षिक ब्याज पाने के लिए अधिकृत है।  

 

 

 

 

 

 

 राम चन्द्र यादव                  कृष्ण  कुमार सिंह

                                                                     (सदस्य)                          (अध्यक्ष)

 

दिनांक 08.07.2019

यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

 

राम चन्द्र यादव                  कृष्ण  कुमार सिंह

                                                                      (सदस्य)                          (अध्यक्ष)

 

 

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