प्रकरण क्र.सी.सी./14/248
प्रस्तुती दिनाँक 02.09.2014
विनीत बंसल, प्रोप्राईटर, बंसल इंटरप्राईजेस, निवासी-एल-5, 16/ 517, जेल रोड, पदमनाभपुर, दुर्ग, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - परिवादी
विरूद्ध
शाखा प्रबंधक, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमि. मंडल कार्यालय, आकाश गंगा, काॅम्पलेक्स, भिलाई, तह. व जिला -दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 30 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति राशि 1,00,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी के द्वारा अपने वाहन कार क्र.सी.जी.07/एम.बी.4100 तथा अपनी मोटर साईकल क्र.सी.जी.07/एल.आर 170 का बीमा अनावेदक से कराया गया था, उक्त दोनों ही वाहनों की वैधता क्रमशः 2601.2014 एवं 24.01.2014 तक ही थी। उक्त दोनों वाहन की बीमा पाॅलिसी नवीनीकरण के लिए परिवादी के द्वारा अनावेदक बीमा कंपनी के एजेंट अनुपम एवं शौकत से संपर्क किया गया तथा पाॅलिसी नवीनीकरण हेतु चेक के माध्यम से 10,346रू. अदा किए गए। एजेंट के द्वारा कुछ ही दिन में बीमा पाॅलिसी भेज देने का कथन किया गया। परिवादी के द्वारा कुछ दिनों बाद जब उक्त एजेंटो को फोन लगाकर जानकारी चाही गई तो उनके द्वारा कभी-कभी फोन रिसीव किया जाता तथा कहा जाता कि एक अथवा दो दिन में पाॅलिसी मिल जावेगी। इस प्रकार 6 माह तक ऐजेंटो के द्वारा परिवादी को बीमा पाॅलिसी नवीनीकरण उपरांत नहीं भेजी गई, जिससे परिवादी को 6 माह तक बिना बीमा पाॅलिसी के अपना वाहन डर-डरकर चलाना पड़ा। परिवादी के द्वारा दि.07.08.14 को अपने अधिवक्ता के माध्यम से अनावेदक को नोटिस प्रेषित कराया गया, जिसके उपरांत परिवादी को उक्त बीमा पाॅलिसियां 6 माह पश्चात दि.13.08.14 को प्राप्त हुई, जबकि परिवादी ने प्रीमियम भुगतान पहले ही कर दिया था। इस प्रकार अनावेदक के द्वारा विलंब से बीमा पाॅलिसी प्रेषित किए जाने के कारण परिवादी को हुई मानसिक क्षति के लिए 1,00,000रू. मय ब्याज, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(3) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि अभिकथित वाहन परिवादी ने अनावेदक बीमा कंपनी से बीमित की थी, जिसके संबंध में परिवादी ने अभिकथित चेक भी जारी किया था। अनावेदक बीमा कंपनी का एजेंट शिव अग्रवाल है, जिसका एजेंसी कोड 717 है, अतः अभिकथित अनुपम एवं शौकत बीमा कंपनी के एजेंट नहीं है और बीमा कंपनी या तो सीधे बीमा कंपनी कार्यालय से बीमा पालिसी जारी करती है या उसके एजेंट प्रीमियम प्राप्त करने के पश्चात् बीमा कंपनी में राशि जमा करते हैं और तब बीमा पालिसी जारी होती है, जोकि ग्राहक को दी जाती है। परिवादी को अधिवक्ता मार्फत नोटिस के पश्चात् बीमा पालिसी प्रदान कर दी गई, परिवादी द्वारा मौखिक रूप से या टेलीफोन के माध्यम से शिकायत कभी भी नहीं की गई।
(4) जवाबदावा इस आशय का भी प्रस्तुत है कि एजेंट ने यह जानकारी दी थी कि शौकत उनका प्रतिनिधि है, जिससे चेक प्राप्त कर अभिकथित पाॅलिसी परिवादी के घर के पते पर प्रदान कर दी थी। इस प्रकार परिवादी को कोई भी मानसिक वेदना होना संभावित नहीं था। अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा किसी भी प्रकार से सेवा में निम्नता नहीं की गई है, फलस्वरूप दावा खारिज किया जाये।
(5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में 1,00,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
2. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(7) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अनावेदक बीमा कंपनी ने यह बचाव लिया है कि अभिकथित अनुपम और शौकत उनके एजेंट नहीं है, बल्कि उनका एजेंट शिव अग्रवाल है, जिसका एजेंसी कोड नं.717 है, परंतु अपने ही जवाबदावा के कंडिका- 2 में यह स्वीकार किया है कि एजेंट शिव अग्रवाल ने जानकारी दी थी कि शौकत उसका प्रतिनिधि है, जिसने परिवादी से चैक प्राप्त किया था और उन्हीं एजेंट अनुपम और शौकत द्वारा बीमा पाॅलिसी, बीमा कंपनी से प्राप्त की थी, इन परिस्थितियों में यह दृश्य स्थापित होता है कि आज की परिस्थिति में अनावेदक बीमा कंपनी अपने आक्रामक व्यवसायिक नीति के चलते अपने विभिन्न एजेंट नियुक्त तो करती है, साथ ही इस बात की अनुमति देती है कि एजेंट अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर ग्राहकों से प्रीमियम के पेटे रकम वसूल करंे और बीमा पालिसी भी प्राप्त कर लें। अनावेदक बीमा कंपनी ने यह स्वीकार किया है कि एजेंट अनुपम दास ने बीमा पालिसी अनावेदक बीमा कंपनी से प्राप्त की थी, जब बीमा कंपनी को यह मालूम था कि शौकत और अनुपम बीमा एजेंट नहीं है न ही उनके पास एजेंसी कोड है, तब अनावेदक बीमा कंपनी का ऐसे व्यक्तियों को बीमा पालिसी दे देना और ग्राहकों का चेक प्राप्त करने की अनुमति देना निश्चित रूप से घोर व्यवसायिक दुराचरण की पराकाष्ठा है। अनावेदक बीमा कंपनी ने यह भी सिद्ध नहीं किया है कि उसके द्वारा ऐसे अनाधिकृत व्यक्तियों के खिलाफ ग्राहक से प्रीमियम की राशि लेने के संबंध में क्या कार्यवाही की?
(8) अनावेदक बीमा कंपनी ने यह भी सिद्ध नहीं किया है कि जब परिवादी ने बीमा हेतु चेक काटा और परिवादी ने बीमा पाॅलिसी प्राप्त नहीं होने की शिकायत की, तब अनावेदक बीमा कंपनी ने इस संबंध में समुचित जांच क्यों नहीं की कि किसी ग्राहक के दो-दो वाहन का बीमा कंपनी यदि 6 माह तक प्रीमियम जमा होने पर ग्राहकों के हाथ में यदि बीमा पाॅलिसी के दस्तावेज प्रदान नहीं करती है तो निश्चित रूप से ग्राहकों को मानसिक वेदना तो होगी, साथ ही यह भी डर बना रहेगा कि उसकी वाहन का बीमा नहीं हुआ है और दुर्घटना होने की स्थिति में उसे विभिन्न परेशानियों से गुजरना पड़ेगा।
(9) प्रकरण की स्थिति यह भी स्पष्ट करती है कि एनेक्चर-3 अनुसार दि.25.01.2014 को परिवादी ने अनावेदक बीमा कंपनी के नाम से चेक जारी किये थे, तब तुरंत बाद अनावेदक बीमा कंपनी ने परिवादी को दो-दो वाहन का बीमा नवीनीकरण करके क्यों नहीं दिया? इसका कोई कारण अनावेदक बीमा कंपनी ने प्रस्तुत नहीं किया है, जबकि अनावेदक बीमा कंपनी का यह कर्तव्य था कि बीमा का प्रीमियम प्राप्त होते ही, वह तुरंत कार्यवाही करती और दो-दो वाहन का प्रीमियम पटाने के बाद भी बीमा पाॅलिसी प्रदत्त न होना निश्चित रूप से परिवादी के लिए मानसिक वेदना का कारण होना स्वाभाविक है।
(10) अनावेदक बीमा कंपनी ने अपने जवाबदावा में बहुत ही सरलता से यह उल्लेख कर दिया है कि उसका एजेंट शिव अग्रवाल था, शिव अग्रवाल ने बताया कि उसके प्रतिनिधि अनुपम दास एवं शौकत ने बीमा पालिसी प्राप्त कर परिवादी के घर प्रदान की है, परंतु किस तारीख को प्रदान की, किसके हाथ में बीमा पालिसी प्रदान की यह उल्लेख नहीं किया है। अनावेदक बीमा कंपनी ने इस संबंध में शिकायत मिलने पर क्या जांच की यह भी स्पष्ट नहीं किया है, जबकि बीमा कपंनी का यह कर्तव्य था कि परिवादी की शिकायत मिलने पर अपने एजेंट और उसके दोनों प्रतिनिधि का स्पष्टीकरण लिया जाना था और तत्पश्चात् परिवादी को लिखित में संतोषप्रद कारण प्रस्तुत करने थे, परंतु प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि अनावेदक बीमा कंपनी ने उच्च शिष्टाचार अपनाते हुए परिवादी को उचित सेवाएं नहीं दी बल्कि उसकी मौखिक शिकायत पर गौर नहीं किया, उदासीनता का रवैया रखा और इसी कारण से परिवादी को एनेक्चर-4 की अधिवक्ता मार्फत नोटिस देने की आवश्यकता पड़ी। उक्त नोटिस में यह उल्लेख है कि 6 माह बीत गये, परंतु उसे दो-दो वाहन बीमा नवीनीकृत पाॅलिसी प्राप्त नहीं हुई है और परिवादी द्वारा मांगने पर हिलाहवाला किया जा रहा है।
(11) अब यदि एनेक्चर-1 और एनेक्चर-2 का अवलोकन करें तो उसमें पाॅलिसी इशू होने की तिथि 26.01.2014 लिखी है और कलेक्शन की तिथि 23.01.2014 लिखी है, जिससे यह स्पष्ट है कि परिवादी द्वारा अनावेदक बीमा कंपनी को समय पर निर्धारित प्रीमियम की राशि अदा कर दी थी, उसके पश्चात् दि.07.08.2014 को परिवादी द्वारा एनेक्चर-4 की नोटिस अनावेदक बीमा कंपनी को दी गई है, अर्थात् लगभग 6 माह तक प्रीमियम प्राप्त होने के बाद भी अनावेदक बीमा कंपनी ने परिवादी को बीमा पाॅलिसी प्रदान नहीं की है और जब अधिवक्ता मार्फत नोटिस प्राप्त हुई है, तब एनेक्चर-5 अनुसार दिनांक 12.08.2014 को अनावेदक बीमा कंपनी ने उक्त नोटिस का उत्तर दिया है कि बीमा पालिसियां परिवादी को पंजीकृत डाक से भेजी गई है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि लगभग 6 माह तक अनावेदक बीमा कंपनी ने प्रीमियम राशि प्राप्त होने के बाद भी परिवादी को बीमा पाॅलिसी प्रदान नहीं की और परिवादी इसी भय से दो-दो वाहन चलाने पर मजबूर हुआ इस डर के साथ कि वह इतनी व्यस्तम ट्रेफिक क्राउड में वह वाहन बिना बीमा के चला रहा है, जिसके फलस्वरूप परिवादी को मानसिक वेदना होना स्वाभाविक है।
(12) यदि एनेक्चर-5 बीमा कंपनी के पत्र का अवलोकन किया जाये तो उससे यही सिद्ध होता है कि किस प्रकार अनावेदक बीमा कंपनी अपनी आक्रामक व्यवसायिक नीति के चलते अपना व्यवसायिक जाल बिछा तो लेती हैं, किन्तु अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियों के प्रति जहां एक ओर अत्यधिक उदासीन रहते हैं, वहीं अपने ग्राहकों से उच्च शिष्टाचार की नीति नहीं अपनाते हैं। एनेक्चर- 5 की इबारत से ही यह परिलक्षित होता है कि अनावेदक बीमा कंपनी ने कितने रूखे रूप से परिवादी के अधिवक्ता को पत्राचार किया है कि ना ही उसमें अपने ग्राहक को 6 माह की देरी से दो-दो वाहनों का बीमा पाॅलिसी देरी से प्रदाय किये जाने के संबंध में खेद व्यक्त किया गया है और न ही यह सूचित किया गया है कि बीमा कंपनी के एजेंट या प्रतिनिधि ने जब जनवरी 2014 में प्रीमियम की राशि प्राप्त की तब अगस्त 2014 अर्थात् करीब 6 माह की देरी से पाॅलिसियां क्यों प्रदान की जा रही है। इन परिस्थितियों में यही सिद्ध होता है कि अनावेदक बीमा कंपनी का आशय एजेंट और प्रतिनिधि को नियुक्त कर अपना व्यापारिक जाल बिछाया तो था, परंतु जब उनके एजेंट प्रतिनिधि इस प्रकार गैर जिम्मेदाराना कृत्य करते हैं तो अनावेदक बीमा कंपनी उनके विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं करती और न ही अपने ग्राहकों को इस प्रकार की अत्यधिक देरी का कोई संतोषप्रद कारण प्रस्तुत करती है।
(13) यह प्रकरण अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक कदाचरण की पराकाष्ठा का एक उदाहरणात्मक मामला है कि जिसमें अनावेदक बीमा कंपनी ने दो-दो वाहन के बीमा पालिसियों की प्रीमियम राशि प्राप्त होने के बाद भी करीब 6 माह तक अपने ग्राहक को बीमा पाॅलिसी प्रदान नहीं की है और न ही उक्त संबंध में कोई संतोषप्रद स्पष्टीकरण दिया है कि जब परिवादी ने प्रीमियम की राशि समय पर पटा दी थी तो बीमा कंपनी ने अपने ग्राहक के प्रति उदासीनता का रवैया क्यों रखा? जिसके कारण परिवादी को करीब 6 माह तक वर्तमान स्थिति की अत्यधिक असुरक्षित ट्रेफिक के बीच अपने दो-दो वाहन को चलाने का कार्य भय और असुरक्षा के साथ करना पड़ा, इन परिस्थितियों में निश्चित रूप से हम यह निष्कर्षित करते हैं कि परिवादी ने अनावेदक बीमा कंपनी से उसके द्वारा मांगी गई 1,00,000रू. (एक लाख रूपये) की मानसिक क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है।
(14) उपरोक्त परिस्थितियों में हम परिवाद, शपथ पत्र एवं दस्तावेजों पर विश्वास करते हुए परिवादी का परिवाद स्वीकार करने का समुचित आधार पाते हैं।
(15) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 1,00,000रू. (एक लाख रूपये) अदा करेे।
(ब) अनावेदक, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) भी अदा करे।