राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या:-727/2016
(जिला फोरम, बॉदा द्धारा परिवाद सं0-103/2014 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 17.3.2016 के विरूद्ध)
Dharmendra Singh, S/o Kamal Singh, R/o Mohalla Kyotara Chowraha, Post and Village Banda.
........... Appellant/ Complainant
Versus
1) Director/Manager, Jai Honda, (Jai Environmental Infrastructure Pvt. Ltd.), Tindwari Road, Near Mandi Samiti, Banda.
2) Manager, Honda Motor Cycle and Scooter India Pvt. Ltd., Plot No.1, Sector 3 IMT Manesar, District Gurgaon, Haryana-122050
…….. Respondents/ Opp. Parties
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री प्रशांत सिंह गौड़
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : कोई नहीं।
दिनांक 13-02-2020
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-103/2014 धर्मेन्द्र सिंह बनाम प्रबन्धक/स्वामी जय होण्डा जय इन्वायरनमेन्टल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा0लि0 व एक अन्य में जिला फोरम, बॉदा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 17.3.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
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आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर दिया है, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी धर्मेन्द्र सिंह ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री प्रशांत सिंह गौड़ उपस्थित आये है। प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री सुधांशु चौहान ने उपस्थित होकर वकालतनामा प्रस्तुत किया है परन्तु फिर अनुपस्थित हो गये है। अत: अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुनकर अपील का निस्तारण किया जा रहा है।
मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 से होण्डा मोटर साइकिल दिनांक 12.02.2014 को क्रय की तब उसे कम्पनी द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं एवं गारण्टी की सुविधा के बारे में बताया गया। परन्तु मोटर साइकिल क्रय करने के बाद से ही उसके गियर बदलने पर अधिक आवाज होने की शिकायत थी। इसके साथ ही लोड न उठाने तथा साइड पैनल कवर अपने आप गिर जाने की भी शिकायत थी। प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 ने इन कमियों को सर्विस के समय दूर करने का आश्वासन दिया परन्तु कमियॉ दूर नहीं हुई और
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अपीलार्थी/परिवादी को तीन बार मोटर साइकिल की बैट्री बदलवानी पड़ी। प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 ने बैट्री बदलने में आनाकानी की तथा सेल्फ खराब होने का बहाना किया और उसे ठीक करने का आश्वासन दिया। परन्तु मोटर साइकिल का दोष दूर नहीं किया और कहा कि निर्माता कम्पनी को गुड़गॉव जाकर बताये। इसके साथ ही उसने अपीलार्थी/परिवादी से दुर्व्यवहार किया। तब अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी विपक्षी सं0-2 से मोबाइल के माध्यम से वार्ता की परन्तु उसने कोई रूचि नहीं दिखायी। अत: क्षुब्ध होकर परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 ने जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत कर कहा है कि वह प्रत्यर्थी विपक्षी सं0-2 निर्माता कम्पनी का डीलर है। अपीलार्थी/परिवादी ने उससे प्रश्नगत मोटर साइकिल दिनांक 12.02.2014 को पूर्ण संतुष्टि में क्रय की थी। निर्माता कम्पनी द्वारा निर्धारित अवधि के अन्दर चार फ्री सर्विस दी जाती है जिसके अनुसार अपीलार्थी/परिवादी ने मोटर साइकिल की दिनांक 06.3.2014, 24.4.2014 और 05.6.2014 को सर्विस करायी और मोटर साइकिल में जो कमियॉ बतायीं उनका कुशल मिस्त्री द्वारा निराकरण कराया गया। सर्विस उपरांत पूर्ण संतुष्टि पर उसने मोटर साइकिल प्राप्त की। चौथी सर्विस हेतु वह समय से नहीं आया। काफी दिन बाद आया और सर्विस बुक भी साथ नहीं लाया इसके बावजूद भी मोटर साइकिल की सर्विस की गई और जो खराबी बताया उसे
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ठीक किया गया। उसके बाद भी जब वह प्रत्यर्थी विपक्षी सं0-1 के सर्विस सेन्टर पर आया और जो शिकायत बताया उसे कुशल मिस्त्री द्वारा ठीक कराया गया। लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1 ने कहा है कि उसकी सेवा में कोई कमी नहीं है और उसने अपीलार्थी/परिवादी से कभी दुर्व्यवहार नहीं किया है। परिवाद गलत कथन के साथ प्रस्तुत किया गया है।
जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-2 ने भी अपना लिखित कथन प्रस्तुत किया है और कथन किया है कि वह निर्माता कम्पनी है। परिवाद गलत कथन के आधार पर प्रस्तुत किया गया है। उसकी सेवा में कोई कमी नहीं है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन और उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह माना है कि वाहन में निर्माण का कोई दोष सिद्ध नहीं है। कोई विशेषज्ञ की आख्या नहीं है। वाहन के संचालन में मामूली टूट फूट आती रहती है और अपीलार्थी/परिवादी ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका है कि वारण्टी अवधि में विपक्षी द्वारा उन कलपुर्जों का पैसा लिया गया है जो वारण्टी से आच्छादित थे। अत: जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर दिया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम का निर्णय तथ्य और विधि के विरूद्ध है। परिवादी द्वारा मोटर साइकिल क्रय किये जाने के समय से ही उसमें निर्माण सम्बन्धी दोष रहा है। धारा-13 (4) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत
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वाहन के निर्माण सम्बन्धी दोष के सम्बन्ध में विशेषज्ञ से जॉच कर आख्या प्राप्त कराया जाना आवश्यक है।
मैंने अपीलार्थी के तर्क पर विचार किया है।
अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद मोटर साइकिल में निर्माण सम्बन्धी दोष के आधार पर प्रत्यर्थी विपक्षीगण के विरूद्ध जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है। अत: मोटर साइकिल का तकनीकी परीक्षण इस क्षेत्र के विशेषज्ञ से धारा-13 (4) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत कराकर आख्या प्राप्त किया जाना परिवाद के वास्तविक और सही निर्णय हेतु आवश्यक है। परन्तु जिला फोरम ने धारा-13 (4) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 के अन्तर्गत प्राप्त अधिकार का प्रयोग करते हुए मोटर साइकिल का सक्षम व्यक्ति से तकनीकी परीक्षण कराकर आख्या प्राप्त नहीं की है।
अत: सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश आपस्त कर पत्रावली जिला फोरम को इस निर्देश से प्रत्यावर्तित की जाती है कि जिला फोरम प्रत्यर्थी विपक्षीगण को नोटिस जारी कर अपीलार्थी/परिवादी की मोटर साइकिल का इस क्षेत्र के सक्षम इंजीनियर या विशेषज्ञ व्यक्ति से तकनीकी परीक्षण कराकर निर्माण सम्बन्धी दोष के सम्बन्ध में आख्या प्राप्त करें और उसके
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बाद उभय पक्ष को साक्ष्य और सुनवाई का अवसर देकर पुन: विधि के अनुसार निर्णय और आदेश पारित करें।
उभय पक्ष जिला फोरम के समक्ष दिनांक 31.3.2020 को उपस्थित हों।
अपील में उभय पक्ष अपना अपना वाद व्यय स्वयं बहन करेगें।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-1