प्रकरण क्र.सी.सी./14/246
प्रस्तुती दिनाँक 06.08.2014
1. श्रीमती सतरानी साहू पत्नी स्व.देवेंद्र साहू, आयु-32 वर्ष,
2. कु.देविका साहू आ. स्व. देवेंन्द्र साहू आयु-12 वर्ष,
3. चैतन्य साहू आ. स्व.देवेंन्द्र साहू, आयु-8 वर्ष, दोनों नाबालिग वली
माँ श्रीमती सतरानी साहू पत्नी स्व. देवेन्द्र साहू, उम्र 32 साल,
निवासी-ग्राम-सेमरकोना, तह. व जिला-बालोद (छ.ग.)
- - - - परिवादीगण
विरूद्ध
1. शाखा प्रबंधक, इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कं.लिमि., कार्यालय-रायपुर, तह. व जिला-रायपुर (छ.ग.) पता-द्वितीय तल, शाॅप क्र.205, एम.एम.सिल्वर प्लाजा, उद्योग भवन, माइनिंग आफिस के पास, रिंग रोड नं.1, तह. व जिला-रायपुर (छ.ग.)
2. प्रबंधक, केन्द्रीय सहकारी बैंक, जिला चिकित्सालय के सामने, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
3. शाखा प्रबंधक, आदिम जाति सेवा सहकारी समिति मर्यादित, बरही (साॅकरा), तह. व जिला-बालोद (छ.ग.)
- - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 30 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादीगण द्वारा अनावेदकगण से बीमा दावा राशि 5,00,000रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट हेतु 1,00,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण मंे स्वीकृत तथ्य है कि अनावेदक क्र.2 व 3 के माध्यम से अनावेदक क्र.1 बीमा कंपनी द्वारा अभिकथित बीमा पाॅलिसी जारी की गई थी।
परिवाद-
(3) परिवादीगण का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि अनावेदक क्र.2 के अधीन संचालित अनावेदक क्र.3 की शाखा के द्वारा अनावेदक क्र.1 के माध्यम से परिवादिनी के पति कृषक स्व. श्री देवंेद्र साहू का बीमा किया गया था, जिसके लिए अनावेदकगण के द्वारा परिवादी के खाते से 98रू. प्रीमियम राशि के पेटे काटी गई थी, जिसके अनुसार दुर्घटनात्मक स्वरूप की मृत्यु पर अनावेदकगण के द्वारा 5,00,000रू. प्रदान किए जाने थे। परिवादिनी के पति दि.26.10.13 को अपने कार्य स्थल शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला, छेड़िया गये थे कि दोपहर 12 बजे अपने मोटर सायकल डिस्कव्हर क्र.सी.जी. 07/ए.डी. 7255 से घर आ रहे थे कि रास्ते में मोटर साईकल स्लिप हो जाने से दुर्घटनाग्रस्त हो गए, जिससे आवेदिका के पति देवेंन्द्र साहू की मृत्यु हो गई। परिवादिनी के द्वारा अनावेदक क्र.3 के माध्यम से दावा प्रपत्र अनावेदक क्र.2 को दिया गया, तदोपरांत अनावेदक क्र.1 के कार्यालय में जमा किया गया, जिसे दि.27.11.13 को प्राप्त हो जाने के उपरांत भी अनावेदक क्र.1 के द्वारा देय दुर्घटना दावा राशि परिवादिनी को प्रदान नहीं की गई तथा दि.26.06.2014 को अनावेदक क्र.2 के माध्यम से सूचना प्रेषित कर दुर्घटना दावा विलंब से प्रस्तुत करने एवं दुर्घटना के समय मृतक के पास वाहन चालन का लाईसेंस नहीं होने का उल्लेख करते हुए दुर्घटना दावा निरस्त करने की सूचना परिवादिनी को दि.05.07.2014 को दी गई। अनावेदकगण का उपरोक्त कृत्य सेवा में कमी की श्रेणी में आता है। अतः परिवादीगण को अनावेदकगण बीमा राशि 5,00,000रू., मानसिक क्षतिपूर्ति 1,00,000रू. इस प्रकार कुल 6,00,000रू. मय ब्याज, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(4) अनावेदक क्र.1 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि अनावेदक क्र.1 के द्वारा अनावेदक क्र.2 एवं 3 के पक्ष में बीमा पाॅलिसी जारी की थी तथा इस पाॅलिसी के तहत दुर्घटना के परिणामस्वरूप बीमाधारक की दुर्घटना होने पर 5,00,000रू. बीमाधन राशि देय थी, यदि बीमा पाॅलिसी की शर्त का किसी प्रकार से उल्लंघन नहीं होता है तभी इस बीमा पाॅलिसी के तहत बीमा राशि देय होती है। अनावेदक क्र.1 को घटना की सूचना अनावेदक क्र.2 के माध्यम से दि.21.12.13 को प्राप्त हुई थी, जबकि घटना दि.26.10.13 को घटित हुई थी। इस प्रकार परिवादीगण एवं अनावेदक क्र.1 द्वारा बीमा कंपनी को उक्त घटना की सूचना घटना के लगभग 55 दिन के पश्चात प्रदान दी गई, जबकि बीमा पाॅलिसी की शर्त क्र.1 के अनुसार किसी घटना तुरंत लिखित सूचना/नोटिस दिया जाना चाहिए था। इस तरह घटना के समय मृतक के पास बीमित वाहन को चालन हेतु वैघ एवं प्रभावी चालन अनुज्ञप्ति नहीं थी, जो बीमा पाॅलिसी की शर्त का उल्लंघन है। प्रकरण में तत्काल सूचना न देने के कारण बीमा कंपनी घटना तथा घटना के कारणों के संबंध में अंवेषण कार्य करवाने में असमर्थ रही। इस प्रकार विलंब से सूचना प्राप्त होने के कारण दावा भुगतान योग्य न होने से दावा निरस्त किया गया है तथा जिसकी सूचना दि.26.04.14 को अनावेदक क्र.2 को प्रेषित कर दी गई। अनावेदक क्र.1 के द्वारा परिवादीगण का दावा निरस्त कर किसी प्रकार से सेवा मे कमी व्यवसायिक कदाचरण नहीं किया गया है। अतः परिवाद निरस्त किया जावे।
(5) अनावेदक क्र.2 व 3 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि बीमा पाॅलिसी की वैद्यता होनं पर दुर्घटना में मृत्यु हो जाने पर उसके वारिसानों द्वारा बीमादावा बीमा कंपनी को प्रस्तुत किए जाने पर बीमा दावा राशि 5,00,000रू. का भुगतान बीमा कंपनी के द्वारा किया जाता है। आवेदिका के पति स्व.श्री देवेन्द्र साहू की दुर्घटना में दि.26.10.2013 को मृृत्यु हो जाने पर आवेदिका के द्वारा दावा प्रत्रक अनावेदक क्र.3 को प्रस्तुत किया गया था और अनावेदक क्र.3 द्वारा आवेदिका का दावा पत्रक अनावेदक क्र.2 को प्रेषित किया गया था तथा अनावेदक क्र.2 के द्वारा उसे अनावेदक क्र.1 को प्रेषित किया गया था। जिसे अनावेदक बीमा कंपनी के द्वारा दि.05.07.2014 को निरस्त करने की सूचना अनावेदक क्र.2 के माध्यम से परिवादी को भेजी गई थी, परिवादिनी के द्वारा अपने परिवाद पत्र में अनावेदक क्र.1 से बीमा राशि प्रदान करने की मांग की गई है तथा अनावेदक क्र.2 व 3 से किसी प्रकार के अनुतोष की मांग न किए जाने से अनावेदकगण के विरूद्ध संस्थित यह परिवाद निरस्त किया जावे।
(6) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादीगण, अनावेदकगण से बीमा राशि 5,00,000रू. प्राप्त करने के अधिकारी है? हाँ,
केवल अनावेदक क्र.1 से,
2. क्या परिवादीगण, अनावेदकगण से मानसिक परेशानी के एवज मे 1,00,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ,
केवल अनावेदक क्र.1 से,
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(7) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(8) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा मूलतः बीमा दावा इस आधार पर खारिज किया गया है कि घटना की सूचना 55 दिन बाद दी गई तथा मृतक के पास बीमित वाहन को चलाने का वैध एवं प्रभावी वाहन चालन अनुज्ञप्ति नहीं थी।
(9) प्रकरण का अवलोकन कर हम यह भी पाते हैं कि बीमित व्यक्ति आदिम जाति सेवा सहकारी समिति मर्यादित का सदस्य एवं खाताधारक था और उसका खाता क्र.721 था, जिसमें से 98रू. प्रीमियम जमा कर 5,00,000रू. का बीमा हुआ था, इस आशय का कि खातेदार की मृत्यु हो जाने की स्थिति में बीमा कंपनी 5,00,000रू. अदा करेगी।
(10) परिवादीगण का तर्क है कि दि.26.10.2013 को मृतक मोटर सायकल से दुर्घटनागस्त हो गया, जिसके फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई। परिवादी द्वारा अनावेदक क्र.3 के माध्यम से अनावेदक क्र.2 को बीमा दावा प्रपत्र मय दस्तावेज दिया गया था, परंतु बीमा राशि अदा नहीं की गई।
(11) प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादीगण ग्रामीण परिवेश के हैं और मृतक अनावेदक क्र.3 का सदस्य होने के नाते और अनावेदक क्र.2 का खातेदार होने के नाते बीमा था, इसलिए स्वाभाविक है कि विभागीय कार्यवाही में इतना समय लगा था। परिवादीगण का आशय जानबूझकर बीमा दावा प्रस्तुत करने में देरी का नहीं था, परंतु प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादीगण द्वारा महत्वपूर्ण दस्तावेज अनावेदक क्र.3 के माध्यम से दिये गये, जिसमें समय लगना स्वाभाविक है।
(12) एनेक्चर-25 से यह भी स्पष्ट होता है कि मृतक का वैध ड्रायविंग लायसेंस भी था।
(13) उपरोक्त स्थिति में हम यह पाते हैं कि विभागीय कार्यवाही में लगने वाले समय को क्षम्य किया जाना उचित है, जबकि इन परिस्थितियों में जब परिवादी क्र.1 एक ग्रामीण परिवेश की महिला है, उसका अत्यधिक शिक्षित होना भी सिद्ध नहीं है तो शेष परिवादीगण अवयस्क हैं, इन परिस्थितियों में यदि अनावेदक बीमा कंपनी ने देरी के आधार पर दावा खारिज किया है तो वह सेवा में निम्नता की श्रेणी में नहीं आता है।
(14) कोई भी व्यक्ति अपना बीमा इस आशय से कराता है कि अनहोनी होने पर उसके परिवार को आर्थिक परेशानी का सामना न करना पड़े। प्रकरण की परिस्थितियां यही सिद्ध करती है कि बीमित व्यक्ति ने बीमा कराया था और उपरोक्त विवेचना के अनुसार यदि परिवादीगण को बीमा राशि नहीं मिली तो निश्चित रूप से परिवादीगण को मानसिक वेदना होना स्वाभाविक है, जिसके एवज में यदि परिवादीगण ने 1,00,000रू. की मांग की है तो उसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि अनावेदक बीमा कंपनी अपने आक्रामक व्यवसायिक नीति के चलते विभिन्न विभाग और बैंक से अपना व्यवसायिक नेटवर्क तो बिछाते हैं, परंतु जब बीमा दावा अदा करने की पारी आती है तो वे महत्वपूर्ण तथ्यांे को नज़र अंदाज कर देते हैं और अपने ग्राहक के प्रति उदासीनता का रवैया रखते हैं, जबकि बीमादावा विभाग और बैंक के मार्फत प्रस्तुत होना था तो उसमें निश्चित रूप से समय लगना स्वाभाविक है, जबकि परिवादीगण ग्रामीण परिवेश के हैं, इन परिस्थितियों में जबकि परिवादी क्र.1 के पति की मृत्यु हुई और शेष परिवादीगण के पिता की मृत्यु हुई है, इन सब परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए बीमा कंपनी ने मात्र देरी के आधार पर यदि बीमा दावा खारिज किया है तो वह निश्चित रूप से परिवादीगण के मानसिक वेदना का कारण बना होगा। इन परिस्थितियों में परिवादीगण को मानसिक वेदना के रूप में अनावेदक बीमा कंपनी से 1,00,000रू. दिलाया जाना उचित पाते हैं।
(15) प्रस्तुत परिस्थितियों में प्रकरण के अवलोकन से हम यह निष्कर्षित करते हैं कि अनावेदक क्र.1 बीमा कंपनी ने परिवादीगण का बीमा दावा स्वीकार न कर सेवा में निम्नता की है, फलस्वरूप परिवादीगण का परिवाद स्वीकार करते हैं।
(16) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक क्र.1 बीमा कंपनी, परिवादीगण को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक क्र.1 बीमा कंपनी, परिवादीगण को बीमा राशि 5,00,000रू. (पांच लाख रूपये) अदा करे।
(ब) अनावेदक क्र.1 बीमा कंपनी, परिवादीगण को उक्त राशि पर परिवाद प्रस्तुती दिनांक 06.08.2014 से भुगतान दिनांक तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी प्रदान करें।
(स) अनावेदक क्र.1 बीमा कंपनी, परिवादीगण को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 1,00,000रू. (एक लाख रूपये) अदा करे।
(द) अनावेदक क्र.1 बीमा कंपनी, परिवादीगण को वाद व्यय के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) भी अदा करे।
(इ) उपरोक्त आदेशित राशि अनावेदक क्र.1 बीमा कंपनी द्वारा अदा किये जाने पर परिवादी क्र.1, मृतक की पत्नी श्रीमती सतरानी बाई को 1,00,000रू. (एक लाख रूपये) नगद एवं परिवादी क्र.2 अवयस्क देविका साहू तथा परिवादी क्र.3 चैतन्य साहू के नाम पर एक-एक लाख रूपये उनके वयस्क होने तक किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में सावधि जमा किया जावे तथा शेष आदेशित राशि परिवादी क्र.1 की पसंद अनुसार किसी राष्ट्रीकृत बैंक में 3 वर्ष के लिए सावधि खाते में जमा की जावे, जिसमें इस बात का निर्देश हो कि बिना फोरम की अनुमति के समय पूर्व भुगतान न किया जाये।