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Ghanshyam prasad verma filed a consumer case on 27 Nov 2015 against Manager, ICICI Lombard Insurance Company Ltd. in the Kota Consumer Court. The case no is CC/73/2010 and the judgment uploaded on 02 Dec 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
प्रकरण संख्या-73/10
घनश्याम प्रसाद वमा्र पुत्र छीतरलाल वर्मा आयु 30 वर्ष निवासी 108/10, माताजी रोड़, गुरूद्वारा के पास, बालापुरा, कुन्हाड़ी, कोटा, राजस्थान। -परिवादी।
बनाम
आई.सी.आई.सी.आई. बैंक लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेन्स कंपनी जरिये शाखाा प्रबंधंक, बैंक आॅफ बड़ौदा के उपर, झालावाड़ रोड़ कोटड़ी चैराहा के पास, गुमानपुरा, कोटा, राजस्थान। -विपक्षी
समक्ष :
अध्यक्ष : भगवान दास
सदस्य : हेमलता भार्गव
परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
1 श्री आलोक जौहरी, अधिवक्ता, परिवादी की ओर से।
2 श्री के0एस0 जादोन, अधिवक्ता, विपक्षी की ओर से।
निर्णय दिनांक 27.11.15
परिवादी ने विपक्षी के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर उसका संक्षेप में यह सेवा-दोष बताया है कि उसका बीमित वाहन आर0जे0 20-टी ए-0388 ( इंजन नम्बर 3-फ-जी 60220 व चेचिस नं. एम.ए.6ए बी 6 जी 767 एच एफ 59973) बीमा अवधि में चोरी हो गया, जिसकी पुलिस में रिपोर्ट कराने के साथ-साथ बीमा कंपनी को को भी सूचना दी गई। पुलिस ने एफ.आर. प्रस्तुत की जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया। विपक्षी बीमा कंपनी को क्लेम सभी दस्तावेजात के साथ प्रस्तुत किया, लेकिन भुगतान नहीं किया गया। अभिभाषक के जरिये कानूनी नोटिस भेजा गया जो मिल गया उसके बावजूद भुगतान नहीं किया गया, झूंठे कारणों से मना कर दिया, समय पर क्लेम का भुगतान नहीं करने से बीमित वाहन पर जो लोन लिया, उसकी पेनल्टी, ब्याज आदि अदा करना पडा, इस प्रकार परिवादी को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप हुआ।
विपक्षी के जवाब का सार है कि परिवादी ने बीमित वाहन के संचालन में मोटर वाहन अधिनियम एवं उसके अन्र्तगत बने नियमों का उल्लधंन करते हुये बिना पंजीकरण एवं बिना परमिट लिये वाहन का संचालन किया व पालिसी की शर्तो का भी उल्लधंन किया, उसने वाहन के चोरी होने की सूचना भी तत्काल नहीं दी, अपितु काफी विलम्ब से दी, इसमें भी उसने पालिसी की शर्तो का उल्लधंन किया। परिवादी का क्लेम 07.02.08 को खारिज कर दिया गया, उससे नियत दो वर्ष की अवधि में परिवाद प्रस्तुत नहीं किया, अपितु मियाद बाहर प्रस्तुत किया गया है। नोटिस की तिथि से मियाद शुरू नहीं होती है। इस प्रकार क्लेम खारिज करके सेवा में कोई कमी नहीं की है।
परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा वाहन की आर.सी.,खरीद बिल, टेक्स जमा की रसीद, प्रथम सूचना रिपोर्ट, एफ.आर., एफ.आर. स्वीकृति आदेश, विपक्षी को प्रेषित लीगल नोटिस, ए/डी, बीमा पालिसी, आदि दस्तावेजात की प्रतिया प्रस्तुत की हैं ।
विपक्षी बीमा कंपनी ने साक्ष्य में आराधना शर्मा एवं इन्वेस्टीगेटर पियूष शर्मा के शपथ-पत्र के अलावा क्लेम खारिज पत्र दिनांक 05.03.08, प्रथम सूचना रिपोर्ट, बीमा पालिसी, इन्वेस्टीगेटर पियुष शर्मा की सर्वे रिपोर्ट, आर0सी0, बीमा पालिसी, टेक्स की रसीद, द्वारिका होटल एवं तरूण रेजीडेन्सी के रजिस्टर आदि दस्तावेजात की प्रति पेश की है।
हमने दोनों पक्षों की बहस सुनी। पत्रावली का अवलोकन किया गया विपक्षी बीमा कंपनी द्वारा प्रस्तुत लिखित बहस का भी अवलोकन किया।
जहाॅ तक परिवाद मियाद बाहर होने की आपत्ति है, विपक्षी को नोटिस भेजने के बावजूद भुगतान नहीं करने के आधार पर मियाद प्रारंभ होना परिवादी ने बताया है जबकि वास्तव में मियाद क्लेम खारिजी पत्र से प्रारंभ होती है। परिवाद में अंकित किया गया है कि झूंठे कारणों से क्लेम देने से मना किया अर्थात् क्लेम मना करने की जानकारी परिवादी को पूर्व में हो चुकी थी। क्लेम खारजी पत्र दिनांक 05.03.08 विपक्षी बीमा कंपनी ने प्रस्तुत किया है। दिनांक 04.03.10 तक परिवाद प्रस्तुत हो सकता था, परिवादी ने 05.03.10 को प्रस्तुत किया है। हम पाते है कि यह देरी नगन्य होने से, क्षमा होने योग्य है। मात्र इस आधार पर परिवाद खारिज होने योग्य नहीं है अपितु गुणदोष पर विचार करना आवश्यक है।
परिवादी ने वाहन खरीद बिल व रजिस्ट्रेशन प्रमाण-पत्र की प्रति प्रस्तुत की है। जिससे स्पष्ट है कि वाहन 24.07.07 को खरीद किया तथा उसका रजिस्ट्रेशन 27.07.07 को करवाया गया । बीमित वाहन के चोरी होने के संबंध में पुलिस में जो प्रथम सूचना रिपोर्ट दी गई है उससे यह प्रकट होता हैकि वाहन की चोरी दिनांक 27.07.07 को शिवपुरी (एम0पी0) में हुई थी। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि वाहन चोरी होने से पूर्व वाहन का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ था बाद में कराया गया था। इसी प्रकार यह भी स्पष्ट है कि बीमित वाहन परिवहन वाहन है अर्थात् यात्री के परिवहन के लिये काम आने वाला वाहन है इसी उद्धेश्य के लिये उसकी बीमा पालिसी जारी हुई, ऐसे वाहन के संचालन के लिये मोटर वाहन कानून के प्रावधानों के अनुसार सार्वजनिक स्थानों पर उसका संचालन करने से पूर्व वैध एवं प्रभावी परिमट होना आवश्यक है, लेकिन परिवादी ने वाहन के संचालन का कोई परमिट प्रस्तुत नहीं किया है जबकि परिवाद की कहानी से ही स्पष्ट है कि उसे व्यवसायिक उपयोग हेतु कोटा से झालावाड़, बारां व राजस्थान से बाहर शिवपुरी ले जाया गया जिसके लिए परमिट आवश्यक था, लेकिन परिवादी ने उसका परमिट नही लिया, अर्थात् बिना परमिट के संचालन कराया गया। परिवादी की ओर से यह बहस की गई है कि परमिट हेतु शुल्क अदा कर दिया था इसलिये यह नहीं माना जा सकता है कि वाहन का परमिट नहीं था। हम यह पाते है कि मात्र शुल्क अदा हो जाने से परमिट प्राप्त होना नहीं माना जा सकता। शुल्क अदायगी रसीद से स्पष्ट है कि शुल्क 28.07.07 को जमा हुआ है जबकि वाहन 27.07.07 को चोरी हो गया था अर्थात् वाहन चोरी होने के समय व उसके संचालन के समय वाहन के परमिट हेतु शुल्क भी जमा नहीं हुआ था, इसलिये वाहन वैध एवं प्रभावी परमिट के बिना ही संचालन हो रहा था, जो न केवल मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानों का उल्लधंन है अपितु पालिसी की शर्तो का भी उल्लधंन है। परिवादी की ओर से इस संबंध में न्यायिक विनिश्चय उतराखंड राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग,देहरादून द्वारा निर्णित प्रथम अपील संख्या 92/2012 दी न्यू इंडिया एश्योरेन्स कंपनी लिमिटेड बनाम मनमोहन सिंह जायसवाल निर्णय दिनांक 14.10.2013 प्रस्तुत किया है। हम पाते है कि वर्तमान प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों पर लागू नहीं होता है क्योंकि उक्त विनिश्चय के तथ्यों में पाया गया कि बीमाधारी ने वाहन का परमिट लिया हुआ था अर्थात् बिना परमिट के संचलान नहीं हो रहा था। इसके विपरीत विपक्षी बीमा कंपनी ने न्यायिक विनिश्चय यूनाईटेड इंडिया इन्श्योरेन्स कं0लि0 बनाम धर्मराज भाग 4 (2005) सी.पी.जे. 115 (एन.सी.) प्रस्तुत किया है, जिसमें माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने यह व्यवस्था दी है कि यदि बीमाधारी ने बीमित वाहन का सार्वजनिक स्थान पर संचालन बिना परमिट किया है तो उसने मोटर यान अधिनियम एवं पालिसी की शर्तो का उल्लधंन किया है, ऐसी अवस्था में बीमा कंपनी क्लेम का भुगतान करने के लिये उतरदायी नहीं है। प्रस्तुत मामलें में परिवादी ने वाहन के चोरी होने से पूर्व उसका संचालन बिना वैध एवं प्रभावी परमिट करके मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानांे एवं बीमा पालिसी की शर्तो का उल्लधंन किया है। परिवादी की ओर से न्यायिक विनिश्चय नेशनल इंश्योरेन्स कंपनी लिमिटेड बनाम नीतिन खंडेलवाल सिविल अपील सं. 3409/08 निर्णय दिनांक 08.05.08 (माननीय सर्वोच्च न्यायालय) को भी उदृत किया है जिसमें यह व्यवस्था दी गई है कि वाहन चोरी के मामले में वाहन के उपयोग की प्रकृति सुसंगत नहीं है व इस आधार पर क्लेम खारिज नहीं किया जा सकता है। उक्त मामलें में बीमित वाहन का बीमा निजी उपयोग के लिये हुआ था जबकि चोरी के समय उसका उपयोग टेक्सी के रूप में किया जा रहा था। इसी आधार पर बीमा कंपनी ने पालिसी का उल्लधंन मानते हुये क्लेम खारिज किया था उस अवस्था में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था दी कि वाहन के उपयोग की प्रकृति, क्लेम भुगतान के लिये विचारणीय बिन्दु नहीं है। प्रस्तुत मामलंे में उपयोग की प्रकृति का विवाद नहीं है अपितु परिवादी ने मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानों एवं खास तौर से पालिसी की शर्तो का उल्लधंन करते हुये वाहन का सचालन वैध एवं प्रभावी परमिट के बिना किया है, इसीलिये उक्त विनश्चय प्रस्तुत मामलें पर लागू नहीं होता है।
यह भी उल्लेखनीय है कि परिवादी ने वाहन चोरी की घटना दिनांक 27.07.07 की पुलिस में रिपोर्ट 06.08.07 को की है जबकि पालिसी की शर्तो के अनुसार तत्काल पुलिस को एवं विपक्षी बीमा कंपनी को सूचना किया जाना आवश्यक था। प्रस्तुत मामलें में पुलिस को करीब 10-11 दिन पश्चात रिपोर्ट दी गई है बीमा कंपनी को तत्काल सूचना देने का कोई प्रमाण पेश नहीं किया गया है। विपक्षी बीमा कंपनी ने इस संदर्भ में न्यायिक विनिश्चय न्यू इंडिया एश्योरेन्स कंपनी लिमिटेड बनाम त्रिलोचनजने भाग 4 (2012) सी.पी.जे. 441 (एन.सी.) को प्रस्तुत किया है जिसमें माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने यह व्यवस्था दी है कि तत्काल सूचना नहीं देना पालिसी की शर्तो का उल्लधंन है क्योकि उससे बीमा कंपनी वाहन की तलाशी व चोरी के अपराध का अन्वेषण कराने के महत्वपूर्ण अधिकार से वंचित हो गयी। उक्त मामलें में पुलिस को 2 दिन की देरी से सूचना दी गई व बीमा कंपनी को 9 दिन की देरी से दी गई जिसे घातक मानते हुये विपक्षी बीमा कंपनी द्वारा क्लेम खारिज करने को सही माना गया। वर्तमान मामलें में पुलिस को लगभग 10-11 दिन की देरी से सूचना दी व बीमा कंपनी को तत्काल सूचना नहीं दी गई, इसीलिये हम पाते है कि परिवादी ने बीमित वाहन की चोरी की तत्काल पुलिस को व बीमा कंपनी को सूचना नहीं देकर भी बीमा पालिसी की शर्तो का उल्लधंन किया है इसलिये बीमा कंपनी ने परिवादी का बीमा क्लेम खारिज करके सेवामें कोई कमी नहीं की है।।
उपरोक्त विवेचन के फलस्वरूप हम पाते है कि परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद विपक्षी के खिलाफ खारिज किया जाता है। परिवाद खर्च पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगे।
(हेमलता भार्गव) ( भगवान दास)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोष मंच, कोटा। प्रतितोष मंच, कोटा।
निर्णय आज दिनंाक 27.11.15 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोष मंच, कोटा। प्रतितोष मंच, कोटा।
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