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Vijay Singhal filed a consumer case on 23 Oct 2015 against Manager, ICICI Bank LTD. in the Kota Consumer Court. The case no is CC/222/2010 and the judgment uploaded on 02 Nov 2015.
न्यायालय, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राज0)।
01. परिवाद संख्या-222/10
विजय सिंघल पुत्र सतीष चंद्र गुप्ता आयु 32 साल जाति महाजन निवासी 7, रेल्वे हाउसिंग सोसायटी, बजरंग नगर, पुलिस लाईन, कोटा, राजस्थान। -परिवादी।
बनाम
01. आई.सी.आई.सी.आई. बैंक लि0, प्रधान कार्यालय, लेण्ड मार्क, रेसकोर्स सर्किल, बडोदरा-07
02. आई.सी.आई.सी.आई. बैंक लि0,जरिये षाखा प्रबंधक, शाखा बाल विद्यालय, केनाल रोड, पुलिस लाईन, कोटा। -विपक्षीगण।
02. परिवाद संख्या-194/11
विजय सिंघल पुत्र सतीष चंद्र गुप्ता आयु 32 साल जाति महाजन निवासी 7, रेल्वे हाउसिंग सोसायटी, बजरंग नगर, पुलिस लाईन, कोटा, राजस्थान। -परिवादी।
बनाम
01. आई.सी.आई.सी.आई. बैंक लि0, (पूर्ववर्ती- दी बैंक आॅफ राज0 लि0)पंजीकृत कार्यालय- लैण्डमार्क, रेसकोर्स सर्किल, बडोदरा (गुजरात) 390007
02. आई.सी.आई.सी.आई. बैंक लि0, (पूर्ववर्ती- दी बैंक आॅफ राज0 लि0) जरिये षाखा प्रबंधक, शाखा बाल विद्यालय, केनाल रोड, पुलिस लाईन, कोटा। -विपक्षीगण।
समक्ष:-
भगवान दास ः अध्यक्ष
हेमलता भार्गव ः सदस्य
परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थिति-
1 श्री विजय सिंघल, परिवादी स्वयं।
2 श्री मनीष कुमार गुप्ता, अधिवक्ता, विपक्षीगण की ओर से।
निर्णय दिनांक 23.10.2015
उक्त दोनो प्रकरणों में पक्षकारान समान है एवं विवाद विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी को जारी क्रेडिट कार्ड की सेवा में दोष से संबंधित है, इसलिये इन दोनों प्रकरणों का निस्तारण एक साथ किया जा रहा है।
प्रकरण संख्या 222/10 में परिवादी ने विपक्षीगण बैक का संक्षेप में यह सेवा-दोष बताया है कि उसके क्रेडिट कार्ड नं. 4232260013004009 से संबंधित नवम्बर 09 से दिसम्बर 09 का बिल नहीं भिजवाया गया, जिसकी शिकायत नं. 1241 टोल फ्री नम्बर पर दिनांक 30.12.09 को की गई, इसके बावजूद बिल नहीं भेजा गया। पुनः शिकायत नं. 500 दिनांक 15.01.10 टोल फ्री नम्बर पर की गई, इसके बावजूद नवम्बर 09 से जनवरी 10 तक के बिल नहीं भेजे गये, जिससे वह भुगतान की राषि की वैधता एवं सत्यता की जांच नहीं कर सका तथा उसे प्राप्त होने वाले रिवार्ड पोईन्ट्स की जानकारी नहीं हुई। उसने विपक्षी बैंक को दिनांक 10.02.10 को नोटिस भेजा। इसके पष्चात दिनांक 18.02.10 को विपक्षी सं. 2 ने स्टेटमेन्ट की प्रति उपलब्ध कराई, जिसमें रिवार्ड पोईन्ट्स का कोई विवरण नहीं दिया गया। विपक्षीगण को मोबाईल पर ईमेल आई.डी. से सूचित किया गया, इसके बावजूद ईमेल आई.डी. पर भी बिल प्रेषित नहीं किये, इस प्रकार नवम्बर 09 से अप्रेल 10 तक बिल नहीं भेजने से परिवादी को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप हुआ।
उक्त प्रकरण में विपक्षी की ओर से प्रस्तुत जवाब का सार है कि माह का बिल आगामी 3 तारीख को जारी किया जाता है। परिवादी ने बिल ड्यू होने से पूर्व ही षिकायत दर्ज करा दी। विपक्षी सं. 1 को ईमेल के जरिये स्टेटमेन्ट प्राप्त होते ही परिवादी को उपलब्ध करा दिया गया। बिल सभी ग्राहकों को सामान्य डाक से भेजा जाता है। परिवादी को नियमित रूप से समय पर बिल भेजा गया। परिवादी के क्रेडिट कार्ड में अगस्त 10 तक कुल 370 रिवार्ड पोईन्ट्स ही प्राप्त हुये जिन्हे वह रिडम्पषन कराने का अधिकारी नहीं था, क्योंकि 500 से कम रिवार्ड पोईन्ट्स का रिडम्पशन नहीं होता, इसलिये उसे कोई नुकसान नहीं हुआ। परिवादी ने अपनी ईमेल आई.डी. उपलब्ध नहीं कराई, इसलिये ईमेल के जरिये उसे स्टेटमेन्ट नहीं भेजा जा सका। उसने केवल मोबाईल नम्बर उपलब्ध करा रखे है, जिस पर नियमित रूप से उसे बिल की सूचना उपलब्ध कराई जा रही है व उसी आधार पर परिवादी बिल जमा करा रहा है। विपक्षी बैंक का कोई सेवा-दोष नहीं है।
प्रकरण संख्या 194/11 में परिवादी ने विपक्षी बैंक का संक्षेप में यह सेवा-दोष बताया है कि उसे क्रेडिट कार्ड के मई 10 से अक्टूबर 10 तक के बिल प्राप्त नहीं हुये । टोल फ्री नम्बर पर 26.07.10 व 08.10.10 को शिकायत कराई गई, टेलीफोन नम्बर पर भी शिकायत की गई, इसके बावजूद बिल नहीं भेजा गया। टोल फ्री नम्बर पर ही 21.07.10 के ट्रांजेक्शन सीरियल नम्बर 218 से 222 ट्रांजेक्शन आई.डी. नम्बर 51794312 के जरिये 18.16,3.44,2.14,2.29,2.86 रूपये डेबिट किये जाने की शिकायत भी कराई गई तब बताया गया कि उक्त धन राशियां परिवादी के क्रेडिट कार्ड से डेबिट नहीं की गई है, जबकि वास्तव में डेबिट की गई है, इसी प्रकार ट्रांजेक्शन दिनांक 24.09.10 मे क्रमशः 213.78 व 165.93 की राशि दो बार डेबिट की गई जबकि आई.आर.सी.टी.सी. के जरिये कुल दो टिकिट बुक कराये थे। राशि 4 बार डेबिट की गई। परिवादी ने विपक्षीगण को नोटिस भेजे तब जुलाई 09 से अक्टूबर 10 तक के स्टेटमेन्ट उपलब्ध कराये गये , लेकिन मई 10 से सितम्बर 10 तक के बिल जारी नहीं किये गये तथा गलत डेबिट की गई राशियों की शिकायत का निस्तारण भी नहीं किया गया। विपक्षी बैंक की सेवा में की कमी से परिवादी को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप हुआ।
उक्त प्रकरण के संबंध में विपक्षी बैंक की ओर से प्रस्तुत जवाब का सार है कि परिवादी ने सभी देय राशियों का भुगतान किया है, इससे सिद्ध होता है कि उसे समस्त बिलों की जानकारी होती रही है उसने अपनी कोई ईमेल आई.डी. उपलब्ध नहीं करा रखी है। केवल मोबाईल नम्बर दिये हुये है, जिस पर एस.एम.एस. के जरिये बिल की सूचना समय पर भेजी गई तथा बिल भी साधारण डाक से समय पर भिजवाये गये । परिवादी के क्रेडिट कार्ड से 21.07.10 को कोई राशि डेबिट नहीं की गई। दिनांक 16.07.10 को विभिन्न राशिया आई.आर.सी.टी.सी. द्वारा डेबिट की गई है जिनके बारे मंे वही बता सकता है, इसी प्रकार 24.09.10 को भी आई.आर.सी.टी.सी. ने ही राशि डेबिट की है जिनके बारे में वही बता सकता है, जिसे पक्षकार ही नहीं बनाया गया है जो आवश्यक पक्षकार है। परिवादी को कस्टमर एक्जीक्यूटिव द्वारा सही जानकारी दी गई थी। सेवा में कोई कमी नहीं की गई।
परिवादी ने दोनों प्रकरणों में अपने शपथ-पत्र के अलावा विपक्षी को प्रेषित नोटिस, प्राप्त स्टेटमेन्ट आदि की प्रति प्रस्तुत की है।
विपक्षी सं. 2 ने दोनो प्रकरणों में सहायक प्रबंधंक राजेन्द्र कुमार अग्रवाल के शपथ-पत्र के अलावा परिवादी की ओर से क्रेडिट कार्ड हेतु प्रस्तुत आवेदन-पत्र, उसकी टम्र्स एण्ड कंडीशन, जुलाई 09 से अक्टूबर 10 तक के बिलिंग विवरण आदि की प्रति प्रस्तुत की है।
हमने दोनों प्रकरणों में दोनों पक्षों की बहस सुनी। दोनों प्रकरण की पत्रावलियों का अवलोकन किया।
जहाॅ तक परिवादी को क्रेडिट कार्ड के बिल नहीं भेजे जाने के संबंध में सेवा में कमी का प्रश्न हैं। प्रकरण संख्या 194/11 से संबंधित बिलिंग विवरण साधारण डाक से भेजे जाने का प्रमाण विपक्षी बैंक ने प्रस्तुत किया है अर्थात् इस प्रकरण से संबंधित बिल परिवादी को साधारण डाक से भेजे गये, क्रेडिट कार्ड में टम्र्स एण्ड कंडीशन में साधारण डाक से ही बिल भेजने की शर्त है। परिवादी के आवेदन-पत्र की प्रति प्रस्तुत की है, जिसमें स्पष्ट है कि उसने अपनी कोई ईमेल आई.डी. से विपक्षी बैंक को सूचित नहीं कर रखा है, इसलिये उसे ईमेल के जरिये स्टेटमेन्ट नहीं भेजा जा सकता था। लेकिन विपक्षी बैंक ने प्रकरण संख्या 222/10 की विवादित अवधि के संबंध में परिवादी को क्रेडिट कार्ड के बिलिंग स्टेटमेन्ट साधारण डाक से भेजे जाने का कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है। परिवादी से दो बार टोल फ्री नम्बर पर शिकायत मिलने पर भी उसे बिल नहीं भेजा गया उसकी ओर से रजिस्टर्ड डाक से विपक्षी को नोटिस भेजने पर उसे बिल जारी किया गया, इस प्रकार इस प्रकरण में समय अवधि के लिये परिवादी को क्रेडिट कार्ड के बिल/ एकाउन्ट समय पर नहीं भेजने की सेवा में की कमी सिद्ध है। रिवार्ड पोईन्ट्स का परिवादी को नुकसान नहीं हुआ क्योंकि न्यूनतम रिवार्ड पोईन्ट्स उसके अर्जित नहीं हुये थे।
जहाॅ तक प्रकरण संख्या 194/11 में दिनांक 21.07.10 के ट्रांजेक्शन के जरिये विभिन्न राशिया डेबिट होने का प्रश्न है बैंक ने स्पष्ट किया है कि 21.07.10 को कोई राशि डेबिट नहीं की गई है 16.07.10 को विभिन्न राशियां आई.आर.सी.टी.सी. द्वारा ही डेबिट की गई थी, इसी प्रकार 24.09.10 को भी ट्रांजेक्शन में राशिया आई.आर.सी.टी.सी.ने ही डेबिट की है जिनके संबंध में जानकारी भी आई.आर.सी.टी.सी.ही दे सकता था, जिसे पक्षकार नहीं बनाया है तथा इन राशियों से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराने का विपक्षी बैंक का कोई दायित्व नहीं है। परिवादी की ओरसे तर्क दिया गया है कि विपक्षी बैंक को आई.आर.सी.टी.सी. से जानकारी लेनी चाहिये थी। हम परिवादी के इस तर्क से सहमत नहीं है। उसने ट्रांजेक्शन आई.आर.सी.टी.सी. के माध्यम से किया है, उसके द्वारा ही राशियां डेबिट की गई है जिसके संबंध में जानकारी देने का दायित्व भी आई.आर.सी.टी.सी. का ही है जो कि आवश्यक पक्षकार है उसे पक्षकार ही नहीं बनाया गया, इसलिये उक्त विवरण में हुई डेबिट राषियों के संबंध में विपक्षी बैंक का कोई सेवा-दोष सिद्ध नहीं है।
उपरोक्त विवेचन के फलस्वरूप हम पाते है परिवादी,ने परिवाद सं. 222/10 के संबंध में विपक्षी बैंक का यह सेवा-दोष सिद्ध किया है कि परिवादी को उसके क्रेडिट कार्ड का स्टेटमेन्ट समय पर उपलब्ध नहीं कराया गया, लेकिन परिवादी, परिवाद संख्या 194/11 के संबंध में विपक्षी बैंक का कोई सेवा-दोष सिद्ध नहीं कर सका है, इसलिये यह प्रकरण विपक्षीगण के विरूद्ध खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
अतः परिवादी का परिवाद सं. 222/10 विपक्षीगण के विरूद्ध स्वीकार किया जाकर आदेष दिया जाता है कि परिवादी को समय पर क्रेडिट कार्ड के बिल नहीं भेजने से हुई मानसिक संताप की भरपाई के लिये 2,500/- रूपये एवं परिवाद व्यय की भरपाई के लिये 1,500/- रूपये कुल 4,000/- रूपये एक माह में अदा किये जावें। परिवादी का प्रकरण संख्या 194/11 विपक्षीगण के खिलाफ खारिज किया जाता है।
(श्रीमति हेमलता भार्गव) (भगवान दास)
सदस्य अध्यक्ष
निर्णय व आदेष आज दिनंाक 23.10.15 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
सदस्य अध्यक्ष
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