View 5556 Cases Against HDFC Bank
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Babulal meena filed a consumer case on 26 Aug 2015 against Manager, HDFC Bank ltd. in the Kota Consumer Court. The case no is CC/60/2007 and the judgment uploaded on 26 Aug 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष, मंच, झालावाड केम्प कोटा ( राजस्थान )
पीठासीनः-
01. नंदलाल शर्मा ः अध्यक्ष
02. महावीर तंवर ः सदस्य
परिवाद संख्या:-60/07
बाबू लाल मीणा पुत्र रामदेव जाति मीणा आयु 29 वर्ष निवासी- ग्राम पपराला तह0 हिण्डोली जिला बूंदी। परिवादी
बनाम
01. प्रबंधंक,एच0डी0एफ0सी0 बैंक लिमिटेड, दीपश्री परिसर 13 और 14 मेन, झालावाड रोड, कोटा, राजस्थान।
02. प्रबंधंक, राजस्थान मोटर्स डीलर, टी0वी0एस0 मोटर कंपनी, कोटा रोड, देवली, टोंक, राजस्थान।
03. मोती शंकर (अभिकर्ता)एच0डी0एफ0सी0 बैंक लि0 कोटा रोड, देवली, टोंक, राजस्थान। अप्रार्थीगण
प्रार्थना पत्र अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थिति:-
01. श्री जितेन्द्र पाठक, अधिवक्ता,परिवादी की ओर से ं।
02. श्री आर0एन0 गौतम, अधिकवक्ता, अप्रार्थी सं.1 की ओर से।
03. अप्रार्थी सं. 2 के विरूद्ध एक पक्षीय कार्यवाही।
04. अप्रार्थी सं. 3 का जवाब साक्ष्य बंद की जा चुकी है।
निर्णय दिनांक 26.08.2015
परिवादी का यह परिवाद जिला मंच कोटा से स्थानान्तरण होकर वास्ते निस्तारण जिला मंच, झालावाड, केम्प कोटा को प्राप्त हुआ, जिसमें अंकित किया उसने अप्रार्थीसं. 2 से मोटर साइकिल ट.वी. सेन्टराा 38,800/- रूपये में खरीद की जिसका फाइनेन्स 30,000/- रूपये अप्रार्थी सं. 1 ने स्वीकृत कर दिया तथा अप्रार्थी सं.3 के माध्यम से 18 चैक खाली तथा 2 चैक खाली और मांगे। उक्त लोन की किस्त 1717/- रूपये की 18 माह की किस्त बनाई। पहली किस्त जनवरी 05 में जमा होनी थी। अप्रार्थी सं. 3 द्वारा दुर्भावना से राशि प्राप्त कर ली और उसको अप्रार्थी सं.1 के यहा जमा नहीं करवाई और परिवादी डिफाल्टर हो गया। उसके पश्चात परिवादी समय-समय पर किस्ते जमा कराता आ रहा है।अप्रार्थी सं. 1 ने मनमाने तरीके से प्रत्येक किस्त में 1917/- रूपये की गलत राशि अंकित कर बैंक मे चैक प्रस्तुत किया गया जिस कारण कई मर्तबा चैक अनादरित हुये जिसके लिये परिवादी ने अप्रार्थीसं. 1 से विरोध प्रकट किया। परिवादी ने अप्रार्थीसं. 1 को जर्ये ड्राफ्ट दिनांक 24.03.05 को 1892/- रूपये, दिनांक 26.08.05 को जरिये ड्राफ्ट से 3834/- रूपये एवं दिनांक 14.09.05 को 3850/- रूपये नकद अदा किये। इसके पश्चात् अप्रार्थीसं. 1 द्वारा 1917/- रूपये आलेखित कर बैंक से राशि प्राप्त की। अप्रार्थीसं. 1 कर्मचारियों ने परिवादी का वाहन जप्त कर लिया। परिवादी अप्रार्थी सं. 1 से मिला तो संतुष्टि पूर्वक जवाब नहीं दिया। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में दोष की श्रेणी में आता है। परिवादी को अप्रार्थीगण से उसका जप्त किया वाहन वापस सुपुर्द करवाया जावे तथा परिवादी से अप्रार्थीगण ने जो अधिक राशि ली है उसे वापस दिलवाई जावे, मानसिक संताप, परिवाद खर्च दिलवाया जावे।
अप्रार्थी सं.1 ने परिवादी के परिवाद का विरोध करते हुये जवाब पेश किया उसमें अंकित किया कि परिवादी ने उन्हे कोई खाली चेक नहीं दिये। परिवादी के लोन पेटे किस्ते 18 थी जिसमें एक किस्त 1717/- रूपये की थी तथा शेष 17 किस्ते 1917/- रूपये की थी। परिवादी ने लोन, लिखित संविदा के आधार पर स्वीकृत लिया था उस पर परिवादी के हस्ताक्षर है। परिवादी ने जो रि शेड्यूल पेश किया व मिथ्या व बनावटी है। परिवादी ने अप्रार्थी सं. 1 को अपने अधिवक्ता के जरिये जो नोटिस भेजा वह उसका सही पता नहीं है। ताकि उसे नोटिस नहीं मिल सके। परिवादी के नोटिस के पैरा नं. 2 में परिवादी की ओर बकाया राशि होने की बात स्वीकार की गई है जो कि परिवादी के रिपेमेन्ट के प्रति लापरवाही एवं उदासीनता को दर्शाता है। परिवादी ने कभी अप्रार्थी सं. 1 से सम्पर्क नहीं किया। परिवादी ने अप्रार्थी सं. 1 विरूद्ध गलत रूप से अनुचित व्यापार व्ययवहार प्रक्रिया अपनाने का आरोप लगाया है। परिवादी का परिवाद मिथ्या कथनों पर आधारित है, जिसे सव्यय खारिज किया जावे।
अप्रार्थी सं. 2 के विरूद्ध दिनांक 17.06.11 को एक पक्षीय कार्यवाही अमल में लाई
गई।
अप्रार्थी सं 3 का दिनांक 29.11.11 को जवाब व साक्ष्य बंद किया जा चुका है।
उपरोक्त अभिकथनों के आधार पर बिन्दुवार हमारा निर्णय निम्न प्रकार हैः-
01. आया परिवादी अप्रार्थीगण की उपभोक्ता है ?
परिवादी के परिवाद, शपथ-पत्र, से परिवादी, अप्रार्थीगण की उपभोक्ता है।
02. आया अप्रार्थीगण ने सेवा दोष किया है ?
उभय पक्षों को सुना गया। पत्रावली में उपलब्ध दस्तावेजी रेकार्ड का अवलोकन किया गया तो स्पष्ट हुआ कि परिवादी का अपने परिवाद की मद सं. 3 में यह अंकित किया है कि दिनांक 18.02.06 को अप्रार्थी सं. 1 के कर्मचारी उसका वाहन जप्त करके दादागिरी करके ले गये है। परिवादी के उक्त कथन की पुष्टि अप्रार्थी सं. 1 के द्वारा फरवरी 06 में परिवादी को लिखे गये पत्र से होती है जिसमें अंकित किया गया है कि आपका वाहन सं. आर जे 08 2एम 7492 एच डी एफ सी बैंक से फाइनेन्स है। उक्त वाहन की किस्ते बकाया होने से हमारे एग्रीमेन्ट की शर्तो के अनुसार दिनांक 18.02.06 को हमारे कब्जें मे ले लिया है आपसे निवेदन है कि आप आॅफिस मे आकर रकम जमा करके उक्त वाहन प्राप्त कर लेवे, इस प्रकार परिवादी का यह कथन कि उसने अप्रार्थी से सम्पर्क किया तो उसको संतुष्टि पूर्वक जवाब नहीं दिया, अप्रार्थी के उपरोक्त पत्र फरवरी 06 की रोशनी में मिथ्या प्रतीत होता है। जहाॅ तक परिवादी का यह तर्क कि उससे अधिक राशि प्राप्त कर ली यह भी तर्क मानने योग्य नहीं है क्योंकि परिवादी ने अप्रार्थी को दिनांक 28.02.06 को नोटिस दिया है उसमें अंकित है कि परिवादी 18.761/- रूपये जमा करा चुका है और शेष राशि जमा कराने को तैयार है इसका अर्थ है कि परिवादी की ओर अप्रार्थी के लोन की राशि बकाया है।
अब मुख्य बिन्दु इस बात का है कि परिवादी कहता है कि पूरी किस्त जमा कर दी इसका स्टेटमेन्ट दिनांक 27.12.04 का निकला हुआ है जिसमें 30,000/- रूपये लोन अंकित है और 18 किस्ते 1717/- रूपये की 18 किस्ते जमा है। दूसरी तरफ अप्रार्थी कहता है कि हमारी लोन की राशि शेष है और ऋण की कोई राशि ज्यादा नहीं ली है तथा उन्होने 22.03.14 का स्टेटमेन्ट पेश किया है। इन स्टेटमेन्ट्स में कौनसा स्टेटमेन्ट सत्य प्रतीत होता है इसलिये हमारे विचार से अप्रार्थी द्वारा प्रस्तुत स्टेटमेन्ट सत्य प्रतीत होता है। क्यो:-
01. परिवादी ने दिनांक 27.12.04 का स्टेटमेन्ट पेश किया है और लोन 2004 में लिया है तो 2004 में लिये गये लोन की पूरी किस्तों का स्टेटमेन्ट परिवादी कहाॅ से लाया यह स्पष्ट नहीं किया है। यह स्थिति भी उस समय जब 28.02.06 को अप्रार्थी को नोटिस दिया उसमें अंकित किया कि परिवादी उसके यहाॅ 18,761/- रूपये जमा करा चुका है और शेष राशि जमा करने को तैयार है तब परिवादी पर शेष राशि थी। परिवादी स्वयं स्वीकार करता है। तथा दिनांक 27.12.04 को फुल एण्ड फाइनल पेमेन्ट का स्टेटमेन्ट कहाॅ से ले आया जबकि अप्रार्थी का स्टेटमेन्ट दिनांक 22.03.14 का है तब इन बकाया किस्तों को नियमित रूप से या अनियमित रूप से जमा कराई गई क्रिस्तों का खुलासा स्पष्ट हो चुका था।
02. जहां परिवादी लोन राशि अपने स्टेटमेन्ट के अनुसार 30,000/- रूपये स्वीकार करता है तो फुल एण्ड फाइनल भुगतान के रूप में 30,000/- रूपये ही क्यों जमा करायेगा इस राशि पर ब्याज भी तो चुकाना पडेगा। ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा प्रस्तुत स्टेटमेन्ट सत्य प्रतीत नही होता।
03. जहाॅ तक एग्रीमेन्ट का प्रश्न है उसमें 1717/- रूपये का अंकन है और पहली किस्त दिनांक 02.01.05 को शुरू होगी। परिवादी इसी किस्त के आधार पर सारी क्रिस्ते 1717/- रूपये की मानता है जबकि अप्रार्थी प्रथम किस्त 1717/- रूपये की तथा शेष 17 किस्ते 1917/- रूपये की कहता है। इस राशि 30,000/- रूपये में ब्याज शामिल की जाय तो परिवादी के बजाय अप्रार्थी का स्टेटमेन्ट सत्य प्रतीत होता है।
04. जब परिवादी द्वारा प्रस्तुत लोन एग्रीमेन्ट में पहली किस्त दिनांक 02.01.05 से शुरू होगी तो परिवादी दिनांक 27.12.04 को 1717/- रूपये की किस्त का स्टेटमेन्ट कहाॅ से ले आया, इसकी सत्यता परिवादी साबित नही कर पाया।
इस प्रकार उपरोक्त विवेचन, विश्लेषण से परिवादी द्वारा प्रस्तुत स्टेटमेन्ट मिथ्या प्रतीत होता है और अप्रार्थी द्वारा प्रस्तुत स्टेटमेन्ट सत्य प्रतीत होता है। परिणामस्वरूप अप्रार्थी की किस्त शेष रहने पर ही उसने परिवादी की गाडी जप्त कर ली, इसमें अप्रार्थी का कोई सेवादोष प्रतीत नहीं होता है।
03. अनुतोष ?
परिवादी का परिवाद, अप्रार्थीगण के खिलाफ खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी बाबू लाल मीणा का परिवाद अप्रार्थीगण के खिलाफ खारिज किया जाता है। खर्चा परिवाद पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगे।
(महावीर तंवर) (नंदलाल शर्मा)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष
मंच,झालावाड केम्प कोटा मंच, झालावाड, केम्प कोटा।
निर्णय आज दिनांक 26.08.2015 को खुले मंच में लिखाया जाकर सुनाया गया।
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष
मंच,झालावाड केम्प कोटा मंच, झालावाड, केम्प कोटा।
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