प्रकरण क्र.सी.सी./13/266
प्रस्तुती दिनाँक 18.10.2013
श्रीमती गीतारानी. जौजे स्व.ए.श्रीनिवास राव, उम-40 वर्ष, निवासी- हनुमान भवन, शिक्षित नगर, चरोदा, भिलाई-3, तह. पाटन, जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादी
विरूद्ध
1. प्रबंधक, हर्षद थर्मिक इंडस्ट्रीज प्रा.लि.मि., प्लाट क्र.12-15, सेक्टर-’ए’, स्ट्रीट 26, उरला इंडस्ट्रियल एरिया, उरला, रायपुर, जिला-रायपुर (छ.ग.)
2. संभागीय प्रबंधक व कार्यालय, दि ओरिएण्टल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, राजेन्द्र पार्क चैक, परमानंद भवन, जी.ई.रोड, दुर्ग, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 20 फरवरी 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदकगण से जी.पी.ए. बीमा दावा राशि 2,00,000रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट हेतु 20,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण मंे स्वीकृत तथ्य है कि परिवादिनी के पति के नाम पर अनावेदक क्र.1 के माध्यम से जी.पी.ए. पाॅलिसी अनावेदक क्र.2 से दि.30.07.12 से दि.29.07.13 तक की अवधि के लिए जारी की गई थी।
परिवाद-
(3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि अनावेदक क्र.1 के माध्यम से अनावेदक क्र.2 के द्वारा परिवादिनी के पति के जीवन पर जी.पी.ए. बीमा पाॅलिसी जारी किया गया था। परिवादिनी के पति अनावेदक क्र.1 के कार्य से दिनांक 21.03.13 को शोलापुर, महाराष्ट्र गए थे जहां रेल्वे स्टेशन के सामने गणेश होटल के सामने फुटपाथ पर जाते समय मृतक का पैर अचानक फिसल जाने से रोड के ऊपर गिर गए, जिससे मृतक के सिर के अंदरूनी भाग में गभीर चोटें आयी, इलाज हेतु उन्हें डाॅ.व्ही.एम.गवर्नमेंट अस्पलात में भर्ती किया गया, ईलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। घटना की सूचना थाना-सोलापुर महाराष्ट्र मे दर्ज की गई तथा बीमा कंपनी को सूचना अनावेदक क्र.1 के माध्यम से दी गई। आवेदिका के द्वारा समस्त दस्तावेज क्लेम फार्म सहित जमा कर दिया गया था तथा मृतक की बीमा दावा राशि प्रदान किए जाने का आग्रह किया गया था। अनावेदक के द्वारा दि.30.09.13 को पत्र के माध्यम से परिवादी के दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि मृतक की मृत्यु का कारण दुर्घटनात्मक होना नहीं पाया गया है जो पाॅलिसी में आवरित नहीं है, अतः दावा भुगतान योग्य नहीं है। इस प्रकार बीमा कंपनी के द्वारा आवेदिका का दावा गलत आधार पर निरस्त कर सेवा मे कमी एवं व्यवसायिक दुराचरण किया गया। अतः परिवादिनी को अनावेदकगण से बीमा दावा राशि 2,00,000रू., मय 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज व मानसिक क्षतिपूर्ति स्वरूप 20,000रू. व वाद व्यय सह अन्य उचित अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(4) अनावेदक क्र.1 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादिनी के द्वारा अनावेदक क्र.1 के माध्यम से क्लेम फार्म मय दस्तावेज भरकर अनावेदक क्र.2 से जी.पी.ए. राशि प्राप्त करने का आग्रह किया गया था, जिसे अनावेदक क्र.2 के द्वारा दि.30.09.13 को प्रेषित पत्र के माध्यम से निरस्त कर दिया गया। जिसे अनावेदक क्र.1 से प्राप्त करने की पात्रता परिवादिनी नहीं रखती थी। अतः अनावेदक क्र.2 द्वारा इस प्रकार बीमा राशि परिवादिनी को प्रदान न कर सेवा में कमी की गई, जिसके लिए अनावेदक क्र.1 किसी प्रकार से जिम्मेवार नहीं है अतः अनावेदक क्र.1 के विरूद्ध परिवाद निरस्त किया जावे।
(5) अनावेदक क्र.2 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि मृतक के पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के अनुसार मृतक के सिर के अंदरूनी भाग में चोट नहीं लगी थी, मृत्यु मृतक के मस्तिष्क की नस फटने के कारण हुई है मृतक के शरीर के ऊपरी भाग में चोट के कोई निशान नहीं पाए गए है। दिमाग में खून का थक्का जमा होना पाया गया जो कि दिमाग के आंतरिक नसों के रक्त स्त्राव के कारण हुआ है। दिमाग की आंतरिक नस फटने का कारण अत्यधिक ब्लड प्रेशर अर्थात उच्च रक्तचाप होता है। इस प्रकार मृतक की मृत्यु दुर्घटना के परिणाम स्वरूप नहीं हुई थी। अनावेदक क्र.2 बीमा कंपनी ने दिनंाक 30.09.13 को पत्र के माध्यम से परिवादिनी के दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि मृतक की मृत्यु का कारण दुर्घटनात्मक नहीं पाया गया है। बीमा पाॅलिसी के अनुसार यदि बीमित व्यक्ति को बीमा अवधि के भीतर प्रत्यक्ष हिंसात्मक एवं बाह्य कारणों से दुर्घटना के परिणाम स्वरूप चोट लगती है तथा जिसके फलस्वरूप उसकी मृत्यु होती है तथा बीमा पाॅलिसी की शर्तों का किसी भी प्रकार से उल्लंघन नहीं होता है तो ऐसी दशा मे बीमा पाॅलिसी मे वर्णित बीमा राशि भुगतान योग्य होती है। प्रस्तुत प्रकरण मंे मृतक को ऐसी कोई चोट कारित नहीं हुई थी, ऐसी दशा में बीमा दावा भुगतान योग्य न होने से अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा आवेदिका के बीमा दावे को निरस्त कर किसी प्रकार से सेवा मे कमी नहंी की गई है अतः परिवादिनी के द्वारा प्रस्तुत परिवाद निरस्त किया जावे।
(6) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादिनी, अनावेदकगण से जी.पी.ए. बीमा दावा राशि 2,00,000रू. मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
2. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में 20,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद खारिज
निष्कर्ष के आधार
(7) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(8) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अनावेदक ने यह बचाव लिया है कि चूंकि मृतक की मृत्यु दुर्घटना के फलस्वरूप नहीं हुई, बल्कि उच्च रक्तचाप के कारण दिमाग में खून का थक्का जम गया था, फलस्वरूप ऐसी मृत्यु को दुर्घटना की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, बल्कि बीमारी के श्रेणी में रखा जायेगा और इस कारण बीमा शर्तों के नियमों के अनुसार ही बीमा दावा खारिज किया गया था।
(9) यदि एनेक्चर-9 डेथ सर्टिफिकेट का अवलोकन किया जाये तो उसमें मृत्यु का कारण ’’प्दजतं अमतजपबनसंत इसममकपदह ूपजी पदजतंबमतमइतंस इसममकपदह’’ का उल्लेख है तथा शव परीक्षण रिपोर्ट एनेक्चर 12 में भी इसी तथ्य का उल्लेख है। परिवादी ने ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है कि मृतक की मृत्यु दुर्घटना के फलस्वरूप हुई थी। परिवादी ने मृतक के फुटपाथ में चिकने टाईल्स में फिसलकर गिरने के बिन्दु को स्वतंत्र साक्षी द्वारा सिद्ध भी नहीं किया है न ही परिवादी द्वारा मृतक की मृत्यु के संबंध में मेडिकल बोर्ड की एक्सपर्ट रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है।
(10) मरणोत्तर पंचनामा दि.22.03.2013 के हिन्दी रूपांतरण में भी मृतक की मृत्यु किसी बीमारी से होना प्रतीत होना उल्लेखित है। अतः यह सिद्ध नहीं होता है कि मृतक की मृत्यु दुर्घटना के फलस्वरूप हुई थी।
(11) फलस्वरूप हम अनावेदक के तर्क से सहमत है कि यदि बीमित व्यक्ति की मृत्यु बीमा अवधि के अंदर प्रत्यक्ष हिंसात्मक एवं बाह्य कारणों से दुर्घटना के परिणाम स्वरूप चोट लगती है तथा जिसके फलस्वरूप उसकी मृत्यु होती है, तब बीमा पाॅलिसी की शर्तों का किसी भी प्रकार से उल्लंघन नहीं होने पर बीमा दावा भुगतान योग्य रहता है, जिसके संबंध में अनावेदक द्वारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांत:-
(1) राजेश सिन्हा विरूद्ध न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड प्प्प् (2013) सी.पी.जे. 223 (एन.सी.)
(2) लाईफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इंडिया एवं अन्य विरूद्ध एन.शंकर रेड्डी प्ट (2013) सी.पी.जे. 297 (एन.सी.)
का लाभ दिया जाना उचित पाते हैं।
(12) फलस्वरूप यदि अनावेदकगण ने परिवादी का बीमा दावा खारिज किया है तो उसे सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
(13) फलस्वरूप हम परिवादी का दावा स्वीकार करने का समुचित आधार नहीं पाते हैं अतः खारिज करते हैं।
(14) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।