प्रकरण क्र.सी.सी./14/30
प्रस्तुती दिनाँक 28.01.2014
तरूण कुमार खण्डोरे, आ श्री ज्ञानेश्वर राव खण्डोरे, आयु-28 वर्ष, निवासी-बुद्ध विहार चैक, शंकर नगर, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादी
विरूद्ध
1. संचालक/प्रबंधक, जी.के. मोटर्स, मधुबन मोटर्स, गुप्ता फर्नीचर्स के पास, राजेन्द्र चैक, तह व जिला-दुर्ग(छ.ग.)
2. संचालक/प्रबंधक, जी.के.मोटर्स तेलीबांधा जी.ई रोड, रायपुर, मनचुवा पेट्रोल पंप के पास, रायपुर (छ.ग.)
3. संचालक/प्रबंधक, पिजीयो गिभ्रियंस व्हीकल्स लिमि., एफ 3 काथफाल एम.आई.डी.सी.आई. एटिवा रोड, बारामती, पुणे (महाराष्ट्र)
- - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 03 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदकगण से वाहन में आयी मैकेनिकल फाल्ट को सुधारी जाये या नया वाहन या उसकी कीमत 3,80,000रू., वाहन खड़ी होने से 500रू. प्रतिदिन की आर्थिक क्षतिपूर्ति एवं 5,000रू. प्रतिमाह दो माह का किश्त बैंक का, मानसिक कष्ट हेतु 20,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण अनावेदक क्र.1 के विरूद्ध एकपक्षीय हैं।
परिवाद-
(3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी के द्वारा अनावेदकगण से क्रय किये गये वाहन के इंजन में फाल्ट होने के कारण मैकेनिक को दिखाया गया, मैकेनिक के द्वारा वाहन के इंजन में खराबी होना बताया गया। परिवादी के वाहन अपे टीपर ट्रक के पार्ट्स बाजार में कमी, उपलब्ध न होने से परिवादी का वाहन दो माह से बंद पड़ा है। इस प्रकार परिवादी को प्रतिदिन 500रू. की नुकसानी उठा रहा है, चंूकि परिवादी के द्वारा फायनेंस के माध्यम से उक्त वाहन को क्रय किया गया था वह अपनी नियमित किश्तें भी अदा नहीं कर पा रहा है, जिसके लिए अनावेदकगण जिम्मेदार है। परिवादी के द्वारा अनावेदकगण से इस संबंध में कई बार मौखिक अनुरोध करते हुए वाहन बदलकर देने अथवा सुधार कर देने हेतु निवेदन किया गया एवं अंत में अधिवक्ता मार्फत नोटिस प्रेषित कराया गया, किंतु अनावेदकगण के द्वारा परिवादी की समस्या का निराकरण नहीं किया गया। अतः परिवादी को अनावेदकगण से वाहन में आयी मैकेनिकल फाल्ट को सुधारी जाये या नया वाहन या उसकी कीमत 3,80,000रू., वाहन खड़ी होने से 500रू. प्रतिदिन की आर्थिक क्षतिपूर्ति एवं 5,000रू. प्रतिमाह दो माह का किश्त बैंक का, मानसिक कष्ट हेतु 20,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(4) अनावेदक क्र.2 एवं 3 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी के द्वारा व्यवसायिक उद्देश्य हेतु उक्त वाहन को क्रय किया गया था, अतः परिवादी उपभोक्ता होनें की श्रेणी में नहीं आता। परिवादी के द्वारा उसके वाहन को बाहर से बनवाने का उल्लेख किया गया है, जिससे स्पष्ट है कि परिवादी के द्वारा वाहन का उपयोग सही तरीके से नहीं किया जा रहा था तथा उसके द्वारा सर्विसिंग भी सही समय पर नहीं कराई गई। परिवादी के वाहन में कोई उत्पादकीय दोष है इस बाबत् परिवादी के द्वारा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। परिवादी के द्वारा बैंक की किश्तें अदा न करना पड़े, इस कारण यह झूठा परिवाद प्रस्तुत किया गया है। डीलर के पास समस्त पार्ट्स उपलब्ध रहते हैं परिवादी के द्वारा झूठा अभिकथन किया जा रहा है। अतः परिवादी के दावा प्रस्तुत आवेदन असत्य आधारों पर प्रस्तुत किए जानें से निरस्त किया जावे।
(5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से वाहन में आयी मैकेनिकल फाल्ट को सुधारी जाये या नया वाहन या उसकी कीमत 3,80,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
2. क्या परिवादी, अनावेदक से वाहन खड़ी होने से 500रू. प्रतिदिन की आर्थिक क्षतिपूर्ति एवं 5,000रू. प्रतिमाह दो माह का किश्त बैंक का प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
3. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में 20,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
4. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद खारिज
निष्कर्ष के आधार
(6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(7) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि स्वयं परिवादी ने अपने दावा के चरण क्र.4 मंे अभिकथन किया है कि उसे अभिकथित वाहन को मैकेनिक को 2-4 दिनों में दिखाना पड़ता है और मैकेनिक का कहना है कि उक्त वाहन के इंजन में प्राॅबलम है, जिससे यह सिद्ध होता है कि परिवादी ने अभिकथित वाहन को बाहर के मैकेनिक को दिखाया है, फलस्वरूप हम अनावेदक के तर्कों से असहमत होने का कोई कारण नहीं पाते हें कि परिवादी ने वाहन का सही रख रखाव नहीं किया है, जबकि वास्तव में परिवादी को वाहन निर्माता कंपनी द्वारा अधिकृत सर्विस सेंटर में वाहन सुधरवानी थी, वैसे भी परिवादी द्वारा वाहन सुधरवाने के संबंध में और वाहन परीक्षण संबंधी कोई एक्सपर्ट रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है, मात्र देवेन्द्र कुमार गुप्ता का शपथ पत्र प्रस्तुत किया है, जिससे परिवादी को कोई लाभ नहीं पहुंचता है।
(8) परिवादी का तर्क है कि डीलर के पास वाहन के पार्ट्स उपलब्ध नहीं थे और पाटर््स बाजार में उपलब्ध नहीं है, जिसके कारण उसे आर्थिक हानि हो रही है, क्योंकि वाहन चल नहीं पा रहा है इस संबंध में परिवादी द्वारा कोई भी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई है, जबकि अनावेदक का तर्क है कि परिवादी के द्वारा वाहन को दि.09.07.2013, 14.08.2013, 18.02.2014, 08.03.2014 एवं 14.04.2014 को लाया गया था, तब वाहन में कोई खराबी नहीं पाई गई थी और जो रूटीन चेकअप होता था, वही किया गया था, वाहन में हेड गैसकिट बदला गया था, जिसके पहले वाहन में कोई शिकायत नहीं की गई थी। अनावेदक ने यह भी तर्क किया है कि परिवादी ने वाहन का संचालन सही तरीके से नहीं किया, क्योंकि बाहर के मैकेनिक से खुलवा कर सुधरवाने का प्रयत्न किया है, जबकि डीलर के पास समस्त पार्टस रहते हैं।
(9) हम अनावेदक के तर्क से असहमत होने का कोई कारण नहीं पाते है कि परिवादी द्वारा ऐसी कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई है, जिससे यह सिद्ध हो कि वाहन में उत्पादकीय त्रुटि थी, बल्कि परिवादी स्वयं सिद्ध कर दिया है कि उसने वाहन खुलवाया और वाहन सुधरवाने का प्रयास किया, जबकि उसे डीलर से सम्पर्क करना था, वेसे भी अनावेदक का यह तर्क नजर अंदाज नहीं किया जा सकता कि अभिकथित वाहन परिवादी ने स्वयं के उपयोग के लिए नहीं खरीदी थी, बल्कि व्यवसायिक प्रयोजना से खरीदी थी, अतः परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है।
(10) उपरोक्त परिस्थितियों में हम अनावेदकगण के विरूद्ध सेवा में निम्नता या व्यवसायिक कदाचरण किया जाना सिद्ध नहीं पाते हैं, अतः परिवादी का दावा स्वीकार करने का समुचित आधार नहीं पाते हैं, फलस्वरूप दावा खारिज करते हैं।
(11) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।