प्रकरण क्र.सी.सी./14/250
प्रस्तुती दिनाँक 07.08.2014
1. श्रीमती ललिता चंद्राकर, आयु-56 वर्ष, ध.प. स्व.श्री डोमन सिंह चंद्राकर,
2. केवल चंद्राकर, आयु-32 वर्ष आ स्व.डोमन सिंह चंद्राकर,
दोनों निवासी-ग्राम-हनोदा, थाना उतई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - परिवादी
विरूद्ध
1. फ्यूचर जनरली इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमि. एवं शाखा प्रबंधक, शाखा कार्यालय (विवेकानंद आश्रम के पास व घुप्पड़ पेट्रोल पंप के पास) जी.ई.रोड, रायपुर (छ.ग.)
2. प्रबंधक, जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित, दुर्ग, शासकीय अस्पताल के सामने, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 27 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदकगण से बीमा राशि 5,00,000रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट व वाद व्यय हेतु 10,000रू., दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादीगण का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी क्र.1 के पति एवं परिवादी क्र.2 के पिता स्व. श्री डोमन सिंह चंद्राकर कृषक थे, जिनका बीमा अनावेदक क्र.2 के माध्यम से अनावेदक क्र.1 बीमा कंपनी से वर्ष 2011-12 में जी.पी.ए. बीमा पाॅलिसी अंतर्गत कराया गया था। मृतक दि.10.10.11 को मोटर साईकल स्लिप हो जाने के कारण दुर्घटना में सिर पर गंभीर चोटें आने से उपचार के दौरान दि.21.12.11 को अस्पताल में मृत्यु हो गई। परिवादीगण के द्वारा अनावेदक क्र.2 के माध्यम से अनावेदक क्र.1 को क्लेम फार्म मय आवश्यक दस्तावेज प्रेषित किया जाकर बीमा राशि की मांग की गई थी, ंिकंतु अनावेदक क्र.1 के द्वारा प्रेषित पत्र दि.01.03.13 के माध्यम से परिवादीगण के दावे को बीमाधारक का बीमा न होने के कारण दावा निरस्त कर सेवा में कमी की गई। अतः परिवादीगण को अनावेदकगण से बीमा राशि 5,00,000रू. मय ब्याज, मानसिक पीड़ा के लिए 10,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावा:-
(3) अनावेदक क्र.1 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी को कोई वाद कारण नहीं है, क्योंकि बीमा पालिसी की अवधि 02.11.2011 से 01.11.2012 है, जबकि दुर्घटना की तारीख 10.10.2011 है, इस प्रकार दुर्घटना की तिथि को मृतक बीमित नहीं था, इन परिस्थितियों में यदि परिवादीगण का बीमा दावा खारिज किया गया है तो ऐसा कर अनावेदक बीमा कंपनी ने सेवा में निम्नता नहीं की है। अतः परिवाद खारिज किया जावे।
(4) अनावेदक क्र.2 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि अनावेदक क्र.2 के द्वारा अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया गया है तथा परिवादीगण को अनावेदक क्र.2 से कोई शिकायत नहीं है। प्रकरण में प्रीमियम की राशि संग्रहण करने वाली संस्था को पक्षकार नहीं बनाया गया है। परिवादीगण के द्वारा बीमा दावा राशि की मांग अनावेदक क्र.1 से की गई है, ऐसी स्थिती में अनावेदक क्र.2 के विरूद्ध संस्थित यह परिवाद निरस्त किया जावे।
(5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादीगण, अनावेदकगण से बीमा राशि 5,00,000रू. मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ,
केवल अनावेदक क्र.1 से
2. क्या परिवादीगण, अनावेदकगण से मानसिक परेशानी के एवज मे 10,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँं,
केवल अनावेदक क्र.1 से
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(7) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अनावेदक बीमा कंपनी ने यह आपत्ति ली है कि बीमित व्यक्ति की दुर्घटना दि.10.10.2011 को हुई थी, जबकि बीमित व्यक्ति का बीमा दि.02.11.2011 से 01.11.2012 का था और मृत्यु दि.21.12.2011 को हुई, परंतु दुर्घटना दि.10.10.2011 को मृतक बीमित नहीं था, इसलिए परिवादिनी बीमा दावा राशि पाने की हकदार नहीं है।
(8) इस प्रकरण के माध्यम से परिवादीगण ने व्यक्तिगत समूह जनता दुर्घटना बीमा के द्वारा मृतक बीमित होने के फलस्वरूप बीमा दावा की मांग की गई है, अर्थात् बीमित व्यक्ति की मृत्यु कौन सी तिथि को हुई यह महत्वपूर्ण है, निर्विवादित रूप से बीमित व्यक्ति की मृत्यु दि.21.12.2011 को हुई है और उक्त दिनांक को बीमित व्यक्ति का बीमा प्रभावशील था, फलस्वरूप यदि अनावेदक बीमा कंपनी ने दुर्घटना दिनांक को आधार मानते हुए बीमा दावा खारिज किया है, तो निश्चित रूप से सेवा में निम्नता की है, जबकि बीमा दावा निराकरण हेतु बीमित व्यक्ति की मृत्यु दिनांक को बीमा दावा निराकरण हेतु आधार बनाना था।
(9) अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा बिना किसी उचित कारण के परिवादीगण का बीमा दावा खारिज कर दिया, जिसके कारण परिवादीगण को मानसिक वेदना होना स्वभाविक है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपना बीमा इसी आशय से कराता है कि समय पड़ने पर उसके परिवार को आर्थिक परेशानी ना उठानी पड़े। यह एक सामाजिक चेतना का विषय है कि किस प्रकार बीमा कंपनी ग्राहकों को बीमा पालिसी देकर अपना व्यापार तो बढ़ा लेती हैं, परंतु जब क्लेम देने का अवसर आता है तो गलत आधारों पर बीमा दावा खारिज कर देती हंै, जैसा कि इस प्रकरण में हुआ है। इन परिस्थितियों में परिवादीगण को मानसिक वेदना होना स्वाभाविक है, जिसके एवज में परिवादीगण ने यदि 10,000रू. की राशि की मांग की है तो उसे अत्याधिक नहीं कहा जा सकता है।
(10) फलस्वरूप हम परिवादीगण का परिवाद अनावेदक क्र.1 बीमा कंपनी के विरूद्ध स्वीकार करने का समुचित आधार पाते हैं।
(11) अनावेदक क्र.2 संस्थान से केवल प्रीमियम लिया गया है, फलस्वरूप अनावेदक क्र.2 जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित, दुर्ग के विरूद्ध यह परिवाद स्वीकार करने के समुचित आधार नहीं पाते हैं, अतः निरस्त किया जाता है।
(12) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक क्र.1, परिवादीगण को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक क्र.1, परिवादीगण को बीमा राशि 5,00,000रू. (पांच लाख रूपये) अदा करे।
(ब) अनावेदक क्र.1 द्वारा निर्धारित समयावधि के भीतर उपरोक्त राशि का भुगतान परिवादी को नहीं किये जाने पर अनावेदक क्र.1, परिवादीगण को आदेश दिनांक से भुगतान दिनांक तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करने के लिए उत्तरदायी होगा।
(स) अनावेदक क्र.1, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) अदा करेे।
(द) अनावेदक क्र.1, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) भी अदा करे।
(इ) उपरोक्त आदेशित राशि अनावेदक क्र.1 बीमा कंपनी द्वारा अदा किये जाने पर परिवादी क्र.1, मृतक की पत्नी श्रीमती ललिता चन्द्राकर को 1,00,000रू. (एक लाख रूपये) नगद एवं परिवादी क्र.2 केवल चन्द्राकर के नाम पर 2,00,000रू. (दो लाख रूपये) किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में 03 वर्ष के लिए सावधि जमा किया जावे तथा शेष आदेशित राशि परिवादी क्र.1 श्रीमती ललिता चन्द्राकर की पसंद अनुसार किसी राष्ट्रीकृत बैंक में 3 वर्ष के लिए सावधि खाते में जमा की जावे, जिसमें इस बात का निर्देश हो कि बिना फोरम की अनुमति के समय पूर्व भुगतान न किया जाये।