प्रकरण क्र.सी.सी./14/158
प्रस्तुती दिनाँक 19.05.2014
1. संतोष कुमार वर्मा आ. श्री विष्णुराम वर्मा, आयु 53 वर्ष,
2. श्रीमती शीला वर्मा ध.प. संतोष कुमार वर्मा, आयु 47 वर्ष,
दोनो निवासी-ग्राम रानीतराई, तह. पाटन, जिला-दुर्ग(छ.ग.)
वर्तमान पता-23/32 मैत्रीकुंज, पंचकुटी के पास, रिसाली, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादीगण
विरूद्ध
दुर्ग राजनांदगांव ग्रामीण बैंक/छ.ग.राज्य ग्रामीण बैंक, द्वारा-शाखा प्रबंधक, दुर्ग राजनांदगांव ग्रामीण बैंक/छ.ग.राज्य ग्रामीण बैंक, शाखा चंदखुरी, तह. व जिला-दुर्ग(छ.ग.) - - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 11 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादीगण द्वारा अनावेदक से लक्ष्मी वर्षा योजना अंतर्गत निवेशित राशि परिपक्वता तिथि पश्चात 1,00,003रू. वसूली दिनांक तक मय ब्याज, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा- 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण में स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी के द्वारा अनावेदक की अभिकथित योजना में राशि जमा की गई थी।
परिवाद-
(3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादीगण के द्वारा अनावेदक बैंक में लक्षमी वर्षा योजना के अंतर्गत दि.01.03.1993 को 8,350रू. 21 वर्षों के लिए 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर पर परिपक्वता तिथि पर 1,00,0003रू प्राप्त करने हेतु जमा किए थे, किंतु परिवादीगण द्वारा जब दिनांक 04.03.14 को अनावेदक से संपर्क किया गया तब अनावेदक के द्वारा उक्त योजना पूर्व में बंद हो गई है कहकर परिवादीगण को योजना अंतर्गत देय परिपक्वता राशि देने से इंकार कर दिया गया। परिवादीगण के द्वारा दिनांक 15.04.14 को अनावेदक को अधिवक्ता मार्फत नोटिस प्रेषित कराए जाने के उपरांत भी अनावेदक के द्वारा उक्त राशि प्रदान न कर सेवा में कमी की गई, जिसके लिए परिवादीगण को अनावेदक से योजना अंतर्गत देय परिपक्वता राशि 1,00,003रू. वसूली दिनांक तक 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित, वाद व्यय व अन्य उचित अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावा:-
(4) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि अनावेदक के समक्ष जब परिवादी क्र.1 वर्ष 2002 में आया था, तब अनावेदक के द्वारा लक्ष्मी वर्षा योजना 21.12.2001 में बंद हो गई है की सूचना दी गई थी एवं आवेदक क्र.1 को यह समझाइश दी गई थी कि अच्छे ब्याज के लिए उक्त निवेशित राशि को एस.डी.आर/एफ.डी.आर में कंवर्ट कर देते है जिस पर परिवादी क्र.1 सहमत हो गया था एवं आज उसके द्वारा जमा किए गए एस.डी.आर.की राशि 34,305रू. हो गई है जिसे यदि वह चाहे तो प्राप्त कर सकता है। यदि वास्तव में परिवादी व्यथित होता तो उक्त समस्या के निराकरण हेतु यह परिवाद 12 वर्ष पश्चात क्यों प्रस्तुत किया गया। परिवादी अनावेदक बैंक में लगातार आकर अपनें खाते का संचालन करता रहा है। परिवादी के द्वारा प्री-मेच्योर शिकायत प्रस्तुत की गई है। अनावेदक, परिवादी को परिपक्वता राशि देने हेतु उत्तरदायी नहीं है, अतः प्रस्तुत परिवाद सव्यय निरस्त किया जावे।
(5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादीगण, अनावेदक से लक्ष्मी वर्षा योजनांतर्गत जमा राशि परिपक्वता तिथि पश्चात देय 1,00,003रू. मय ब्याज प्राप्त करने के अधिकारी है? हाँ
2. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(7) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि परिवादी ने एनेक्चर-1 अनुसार अनावेदक के पास अभिकथित रकम जमा की थी, जिसे अनावेदक ने भी स्वीकार किया है कि अभिकथित योजना के तहत परिवादी ने दि.01.03.1993 को उक्त रकम जमा की थी, यह योजना 21 वर्षों के लिए थी, जिसपर पूर्णावधि दि.01.03.2014 को अनावेदक द्वारा 1,00,003रू. अदा की जानी थी। अनावेदक का तर्क है कि एनेक्चर डी.2 अनुसार बंद कर दी गई थी। इस संबंध में अनावेदक ने बचाव लिया है कि परिवादी को पूछा गया था और उसके पश्चात् ही 2001 में योजना बंद होने के कारण परिवादी को देय रकम एफ.डी. कर दी गई थी। इस प्रकार अनावेदक ने किसी भी प्रकार से सेवा में कमी नहीं की है।
(8) परिवादी का तर्क है कि परिवादी को किसी भी प्रकार से अनावेदक ने सूचित नहीं किया और न ही एफ.डी. का विकल्प मांगा, परिपक्वता के पश्चात् जब परिवादी दि.04.03.2014 और दि.10.03.2014 को गया, तो अनावेदक ने रकम अदा करने की बात कही, परंतु जब रकम अदा नहीं हुई तो दि.20.03.2014 को जब परिवादी ने सम्पर्क किया, तब उसे बताया गया कि स्कीम बंद हो गई है।
(9) प्रकरण के अवलोकन से हम यह पाते हैं कि एनेक्चर डी.2 अनुसार 2011 में जब उक्त योजना समाप्त करने का निर्णय लिया गया तो उक्त आदेश में यह उल्लेखित है कि मौजूदा खाते में उनकी परिपक्वता होने तक जारी रहने की अनुमति रहेगी, दि.01.06.2002 से इस योजना के तहत ना तो नये खोले जाने चाहिए और ना ही वर्तमान खाते का नवीनीकरण किया जाना चाहिए, वर्तमान खातेधारकों को योजना का विकल्प दिया जाना चाहिए, अर्थात् एनेक्चर डी.2 से स्पष्ट है कि अनावेदक का यह कर्तव्य था कि वह परिवादी को योजना समाप्ति की नोटिस देता या इस प्रकार का प्रबंध करता कि परिवादी को जानकारी प्राप्त हो जाती और फिर परिवादी से लिखित में अनावेदक विकल्प लेता, अनावेदक ने ऐसा कोई भी कारण सिद्ध नहीं किया है कि उसने इस प्रकार की नोटिस और विकल्प परिवादी को प्रदान क्यों नहीं की और तत्संबंध में परिवादी से उक्त जानकारी प्राप्त होने की पावती क्यों नहीं ली और लिखित में विकल्प क्यों प्राप्त नहीं किया? इस प्रकार यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि अनावेदक ने एनेक्चर-2 के आदेश का परिवादी के संबंध पालन ही नहीं किया, अन्यथा निश्चित रूप से परिवादी उक्त संबंध में अपना विकल्प चुनता, अनावेदक का यह कृत्य घोर सेवा में निम्नता की श्रेणी में आता है।
(10) वर्ष 1993 में परिवादी ने रकम जमा की, इस निश्चिंतता के साथ कि उसने जो रकम 21 वर्षों के लिए योजना के तहत अदा की है तो उसे परिपक्वता राशि दि.01.03.2014 को 1,00,003रू. प्राप्त होंगे और इसी कारण परिवादी ने परिपक्वता तिथि के बाद ही अनावेदक से सम्पर्क किया, परंतु अनावेदक ने उसे उचित सेवाएं नहीं दी और इस प्रकार निश्चित रूप से परिवादी को योजना समाप्ति की सूचना नहीं देकर सेवा में घोर निम्नता की गई है।
(11) अनावेदक का बचाव है कि सूचना शाखा के नोटिस बोर्ड पर चस्पा की गई है, से अनावेदक को कोई लाभ नहीं मिलता है, क्योंकि एनेक्चर डी.2 का आशय यह है कि अनावेदक अपने ग्राहकों को ऐसा सूचित करे कि उन्हें योजना समाप्त की जानकारी निश्चित रूप से प्राप्त हो, अनावेदक का यह बचाव कि परिवादी 2002 जनवरी में जब बैंक आया था तो उसे योजना समापन की जानकारी दी गई थी और समझाईश दी गई थी कि परिवादी उक्त राशि को एफ.डी.आर. में ट्रांसफर करा सकता है, जिसके लिए परिवादी सहमत हुआ था और इसी कारण परिवादी की राशि एफ.डीआर. कर दी गई थी। इस प्रकार दावा समयावधि से भी बाधित है, पंरतु हम अनावेदक के उक्त बचाव को आधारहीन पाते हैं, क्योंकि स्वयं अनावेदक के बचाव से ही अनावेदक के विरूद्ध सेवा में निम्नता सिद्ध होती है। किसी भी ग्राहक की इतनी मोटी रकम बैंक में जमा हो और ऐसी योजना का समापन किया जाये तो बैंक की एक बड़ी जिम्मेदारी होती है कि प्रत्येक ग्राहक को सही तरीके से वस्तुस्थिति स्पष्ट कर जानकारी दे और विकल्प प्राप्त करने की पावती प्राप्त करंे, मात्र यह कह देने से कि परिवादी बैंक आता था तो उसे बता दिया गया, पर्याप्त नहीं है और अनावेदक ऐसे बचाव का लाभ भी प्राप्त नहीं कर सकता। इतनी बड़ी राशि का विकल्प लेने की कार्यवाही लिखित में होनी चाहिए थी, जिसे अनावेदक सिद्ध नहीं कर सका है और इस प्रकार अनावेदक ने निश्चित रूप से सेवा में घोर निम्नता की है।
(12) फलस्वरूप हम परिवादीगण का परिवाद स्वीकार करने का समुचित आधार पाते हैं।
(13) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक, परिवादीगण को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक, परिवादीगण को 1,00,003रू. (एक लाख तीन रूपये) अदा करे।
(ब) अनावेदक द्वारा निर्धारित समयावधि के भीतर उपरोक्त राशि का भुगतान परिवादीगण को नहीं किये जाने पर अनावेदक, परिवादीगण को आदेश दिनांक 11.03.2015 से भुगतान दिनांक तक 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करने के लिए उत्तरदायी होगा।
(स) अनावेदक, परिवादीगण को वाद व्यय के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) भी अदा करे।