प्रकरण क्र.सी.सी./14/132
प्रस्तुती दिनाँक 17.04.2014
नारायण दास गोयल आ.स्व.रामचंद्र अग्रवाल, गाँधी निवास-हमालपारा, तह. व जिला-राजनांदगांव (छ.ग.) - - - - परिवादी
विरूद्ध
शाखा प्रबंधक, सेंट्रल बैंक आफ इंडिया, दुर्ग शाखा, नूरजहां काम्पलेक्स, पालीटेक्निक कालेज के सामनें, जी.ई.रोड, दुर्ग, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 17 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से दीर्घावधि जमा रसीदों को नवीनीकरण करने और उनकी भुगतान राशि प्रदान करने, मानसिक कष्ट हेतु 50,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी के द्वारा अपना एवं अपनी फर्म मेसर्स घनश्याम दास अग्रवाल का पंजीयन जल संसाधन विभाग, रायपुर में कराने हेतु अनावेदक बैंक में दिनांक 02.08.1989 को 17,000रू एफ.डी.आर. धरोहर राशि हेतु बनवाई गई, जिसका भुगतान अनावेदक के द्वारा दिनांक 02.08.1994 को करना था तथा इसी प्रकार परिवादी के द्वारा 17,000रू. नगद जमा कर दीर्घावधि में जमा दि.20.09.1989 को कराई गई, जिसका भुगतान दि.20.09.1994 को अनावेदक को मय ब्याज करना था। परिवादी के द्वारा उक्त दोनों जमा रसीदों को दि.06.12.2013 को चीफ इंजीनियर कार्यालय से रिलीज किया तथा परिवादी के द्वारा दिनंाक 30.12.13 को अलग-अलग पत्र लिखकर अनावेदक से उक्त दोनों जमा रसीदों का नवीनीकरण मार्च 2014 तक करने का निवेदन किया एवं पत्रों के साथ मूल जमा रसीदों को प्रस्तुत किया, जिससे परिवादी मार्च 2014 में उक्त दोनों जमा रसीदों का भुगतान मय ब्याज प्राप्त कर सके, किंतु अनावेदक के द्वारा उक्त दोनों जमा रसीदों का नवीनीकरण करके वापस नहीं लौटाया जाकर सेवा में कमी की गई, जिसके लिए परिवादी के द्वारा दिनांक 24.02.14 को पत्र लिखकर रिनिवल पश्चात वापसी की मांग की गई, किंतु अनावेदक के द्वारा वापस नहीं किया गया। अतः परिवादी को अनावेदक से दीर्घावधि जमा रसीदों को नवीनीकरण करने और उनकी भुगतान राशि प्रदान करने, मानसिक कष्ट हेतु 50,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(3) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी को अनावेदक बैंक में कराई गई दीर्घावधि जमा रसीदों का नवीनीकरण दिनांक 20.09.1994 को करवाना था, किंतु परिवादी के द्वारा लापरवाही बरतते हुए दिनांक 20.09.1994 को अपने दीर्घावधि जमा रसीदों का नवीनीकरण नहीं कराया गया एवं उसके पश्चात 2014 तक कुल 20 वर्षों के भीतर कभी भी परिवादी द्वारा उक्त दीर्घावधि जमा रसीदों का नवीनीकरण अथावा उसकी स्थिती जानने कभी भी प्रयास नहीं किया गया, जिसके परिणाम स्वरूप उक्त रसीदे दिनांक 20.09.1994 से बगैर नवीनीकरण के जमा थी, जिसके लिए परिवादी स्वयं जिम्मेदार है। वर्ष 2006-07 में बैक के सभी कार्यों को कोर-बैंकिंग के माध्यम से संचालित किया गया एवं बैंक की सभी शाखाओं को कम्प्यूटरीकृत किया गया, उसी समय बैंक में रखे समस्त डाटा को कम्प्यूटर में फीड कर दिया गया। इसी प्रक्रिया के दौरान परिवादी के द्वारा जमा की गई दीर्घावधि की जमा रसीदो में उल्लेखित नंबर की गलत एन्ट्री हुई है। परिणाम स्वरूप परिवादी के 20 वर्षों के पश्चात अचानक उपस्थित होने से अपनी जमा की गई रकम को मांगे जाने के कारण और बैंक के कम्प्यूटर में उक्त दीर्घावधि जमा रसीद के नंबर को टेªस नहीं कर पाने के कारण उन्हें उसका भुगतान नहीं किया जा पा रहा है, इसके लिए परिवादी से निवेदन किया गया था कि वे इस हेतु कुछ समय अनावेदक को प्रदान करें किंतु परिवादी के द्वारा अनावेदक बैंक को अतिरिक्त समय प्रदान न करते हुए फोरम के समक्ष यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है। अनावेदक, परिवादी को जमा राशि अदा करने हेतु तत्पर है, जिसके लिए परिवादी को थोड़ा धीरज रखना होगा, क्योंकि यदि परिवादी के द्वारा अपने द्वारा जमा करवाऐ दीर्घावधि जमा रसीदों का नवीनीकरण समय-समय पर किया गया होता तो आज उन्हें इस प्रकार की स्थिति का समना नहीं करना पड़ता। अनावेदक को जब तक सही स्थिति का विवरण प्राप्त नहीं हो जाता, अनावेदक, परिवादी को उक्त भुगतान करने में सक्षम नहीं है, अनावेदक के द्वारा परिवादी के प्रति सेवा मे कमी नहीं की गई है, फलस्वरूप परिवादी के द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद सव्यय निरस्त किया जावे।
(4) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से दीर्घावधि जमा रसीदों को नवीनीकरण करने और उनकी भुगतान राशि प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
2. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में 50,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(6) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अनावेदक बैंक ने अपने जवाबदावा में यह स्वीकार किया है कि 2006-2007 में जब कम्प्यूटीकरण हुआ तो इस प्रक्रिया के दौरान परिवादी के द्वारा जमा की गई दीर्घावधि जमा रसीद में उल्लेखित नम्बर की गलत एन्ट्री हो गई, निश्चित रूप से यह अनावेदक बैंक की घोर लापरवाही के कारण ही होना सिद्ध होता है, जब परिवादी ने 1989 में अभिकथित राशि नगद जमा कर सावधि रसीद प्राप्त की थी, तब अनावेदक बैंक का कर्तव्य था कि उक्त राशियों के संबंध में अपने ग्राहक के प्रति उच्च शिष्टाचार की नीति अपनाते और यदि वह नवीनीकरण के लिए 1994 में नहीं आया तो उससे पत्राचार करते और अन्यथा स्थिति में उसे पुनः नवीनीकरण भी कर सकते थे। परिवादी की इतनी बड़ी राशि कम्प्यूटराईज की जाने वाली कार्यवाही के दौरान गलत एन्ट्री होने के फलस्वरूप ट्रेज नहीं हो पा रही है, जिससे निश्चित रूप से परिवादी को ही आर्थिक क्षति हो रही है, जोकि अनावेदक बैंक की सेवा में निम्नता के कारण ही हो रहा है, जिसके कारण परिवादी को मानसिक क्षति होना स्वाभाविक है, जिसके एवज में यदि परिवादी ने 50,000रू. की मांग की है तो उसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि कोई व्यक्ति बैंक में अपने मेहनत की कमाई हुई राशि लगाकर इस मुद्दे से निश्चिंत रहता है कि उसकी राशि बैंक के पास सुरक्षित है और यदि वह सालो साल ट्रेस न हो पाये तो निश्चित रूप से ग्राहक को मानसिक वेदना होगी।
(7) फलस्वरूप हम अनावेदक बैंक को सेवा में निम्नता का दोषी पाते हैं और हम परिवादी का परिवाद स्वीकार करने का समुचित आधार पाते हैं। तर्क के दौरान अनावेदक द्वारा व्यक्त किया गया कि अभिकथित संबंधित रकम परिवादी को अदा कर दी गई, परंतु परिवादी द्वारा पावती संबंधी दस्तावेज संलग्न नहीं है।
(8) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक, परिवादी को अभिकथित दोनों जमा रसीदों के संबंध में नवीनीकरण कर, परिवादी को रसीद प्रदान कर और भुगतान योग्य रकम यदि अदा नहीं की गई है तो परिवादी को अदा करे।
(ब) अनावेदक, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 50,000रू. (पचास हजार रूपये) अदा करेे।
(स) अनावेदक, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) भी अदा करे।