Dr. Bhaskar kumar drivedi filed a consumer case on 21 Jan 2016 against Manager, Bhartiya Jeevan Beema Nigam in the Kota Consumer Court. The case no is CC/72/2010 and the judgment uploaded on 25 Jan 2016.
डा. भास्कर कुमार त्रिवेदी
बनाम
शाखा प्रबंधक,भारतीय जीवन बीमा निगम, कोटा आदि।
परिवादी संख्या 72/2010
21.01.2016 दोनों पक्षों को सुना जा चुका है। पत्रावली का अवलोकन किया गया।
परिवादी ने विपक्षी बीमा निगम का संक्षेप में यह सेवा-दोष बताया है कि उसके पुत्र पियुष कुमार को मनी प्लान योजना सं0 188-20 की जीवन बीमा पोलिसी स0 185634012 प्रपोजल पत्र स0 5580, जिसमें जोखिम सुरक्षा का विकल्प भी उसने दिया था, के आधार पर बीमा धन 250000/-रूपये के लिये 08.12.2007 को जारी की गई थी, जिसका नियमित प्रीमियम उसने अदा किया था। उसके पुत्र की 29.09.08 को दुर्घटना मंे आई चोंटों के कारण मृत्यु हो गई। उपरोक्त पोलिसी के अन्तर्गत क्लेम प्रस्तुत करने पर बार-बार निवेदन करने व पत्र भेजने के बावजूूद विपक्षी-निगम ने दुर्घटना हित-लाभ की राशि 250000/-रूपये की अदायगी नहीं की , जिससे परिवादी को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप हुआ है।
विपक्षी-बीमा निगम के जवाब का सार है कि परिवादी के पुत्र को ‘‘जोखिम सुरक्षा’’ के अन्तर्गत पोलिसी जारी नहीं की गई, पोलिसी में दुर्घटना हित-लाभ दिये जाने का उल्लेख नहीं है। इस लाभ के लिये परिवादी के पुत्र को पोलिसी प्राप्त होने पर नियमानुसार 15 दिवस में एनैक्सचर ‘‘बी’’ पोलिसी सहित उसमें कमी को सही कराने के लिये लोटाना आवश्यक था लेकिन परिवादी के पुत्र ने यह कार्यवाही नहीं की। पोलिसी में ‘‘जोखिम सुरक्षा’’ का उल्लेख नहीं होने की आपत्ति भी नहीं की इसलिये पोलिसी के अन्तर्गत दुर्घटना हित-लाभ देय नहीं होने के कारण नियमानुसार नहीं दिया गया इस हेतु अतिरिक्त प्रीमियम भी जमा नहीं कराई। पोलिसी के अन्तर्गत मूल बीमा धन की अदायगी की जा चुकी है। सेवा में कोई कमी नहीं की गई है।
परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा विपक्षी निगम को समय-समय पर प्रोषित-पत्र, उनसे प्राप्त जवाब, प्रथम सूचना रिपोर्ट व पुत्र पीयुष की मृत्यु से संबंधित दस्तावेज, विपक्षी निगम को पुत्र द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव-पत्र, आदि की प्रतियां प्रस्तुत की है। विपक्षी-निगम ने साक्ष्य में टी. जी. विजय कुमार-उच्च श्रेणी सहायक के शपथ-पत्र के अलावा पोलिसी बोन्ड, स्टेटस रिपोर्ट, एनैक्सचर ‘‘बी’’ प्रोफार्मा, निगम के केन्द्रीय कार्यालय मुम्बई का पत्र दिनांक 23.08.2002 आदि की प्रतियां प्रस्तुत की गई है।
हमने विचार किया।
इस बारे में विवाद की स्थिति नहीं है कि परिवादी के पुत्र की मृत्यु पर विपक्षी निगम ने परिवादी को पोलिसी के अन्तर्गत मूल बीमा धन की अदायगी कर दी परन्तु दुर्घटना हित-लाभ की अदायगी नहीं की।
विपक्षी निगम ने निम्न आधारों पर दुर्घटना हित-लाभ देय नहीं होना बताया हैः-
1. पोलिसी में दुर्घटना हित-लाभ का उल्लेख नहीं है।
2. परिवादी के पुत्र ने पोलिसी मिलने पर उसमेें किसी गलती को सुधारने हेतु
पोलिसी नहीं लोटाई व आवेदन-पत्र भी नहीं दिया तथा दुर्घटना हित-लाभ
के लिये अतिरिक्त प्रीमियम भी नहीं दिया।
3. परिवादी के पुत्र ने नियमानुसार एनैक्सचर ‘‘बी’’ भरकर पोलिसी के साथ
नहीं लोटाया।
विचार हेतु प्रश्न हेै कि क्या विपक्षी-निगम ने पोलिसी के अन्तर्गत दुर्घटना हित-लाभ की राशि अदा नहीं करके सेवा-दोष किया है?
इस बारे में भी विवाद की स्थिति नहीं है कि परिवादी के पुत्र ने पोलिसी हेतु विपक्षी निगम को प्रस्ताव स0 5580 दिनांक 08.12.07 को प्रस्तुत किया था, जिसके खण्ड स0 2 में ‘‘जोखिम-सुरक्षा’’ का विकल्प भी दिया था। इसी प्रस्ताव के आधार पर विपक्षी निगम ने परिवादी के पुत्र को पोलिसी जारी की थी। पोलिसी की प्रति विपक्षी-निगम ने प्रस्तुत की है। इस पोलिसी के प्रारम्भ में निम्न प्रकार उल्लेख हैः-
‘‘ इस पोलिसी में निवेश पोर्टफोलियो में निवेश जोखिम पोलिसी धारक द्वारा वहन किया जाता है। भारतीय जीवन बीमा निगम को यहाॅं नीचे सन्दर्भित अनुसूची में उल्लेखित प्रस्तावक तथा बीमित व्यक्ति से प्रस्ताव एवं घोषणा पत्र और पहले प्रीमियम की प्राप्ति हुई है और उक्त प्रस्ताव तथा घोषणा-पत्र पर उसमें निहित तथा उल्लिखित वक्तव्यों सहित, उक्त प्रस्तावक तथा निगम के बीच इस बीमे के आधार के रूप में सहमति हो गई है, अतः निगम इस पोलिसी द्वारा करार करता है कि अनुसूची में निर्धारित परवर्ती प्रीमियमों की विधिवत प्राप्ति होने पर और उसके प्रतिफलस्वरूप हित-लाभों का भुगतान, बिना किसी ब्याज के, निगम के उस शाखा कार्यालय में जहां इस पोलिसी को सेवा उपलब्ध कराई जाती है, उस व्यक्ति या उन व्यक्तियों को जिन्हें वे उक्त अनुसूची की शर्तों के अनुसार देय हों, निगम को इस बात का संतोषजनक प्रमाण मिलने पर करेगा कि अनुसूची में लिखे अनुसार हित-लाभ देय हो चुके हैं।’’
पोलिसी में आगे यह भी उल्लेख है कि -‘‘और एतद् द्वारा यह घोषित किया जाता है कि यह बीमा पोलिसी इसके पृष्ठ भाग पर मुद्रित शर्तों एवं सुविधाओं के अधीन होगी और निम्नलिखित अनुसूची और निगम द्वारा पोलिसी पर किये गये हर पृष्ठांकन को पोलिसी का अंग माना जायेगा।
उपरोक्त से स्पष्ट हेै कि पोलिसी हेतु परिवादी के पुत्र ने प्रस्ताव-पत्र में जो विवरण/विकल्प दिये उन पर विपक्षी-निगम ने सहमति प्रस्तुत की व उसी आधार पर पोलिसी जारी करते हुये करार किया। पोलिसी में ऐसा स्पष्ट अंकन नहीं है कि दुर्घटना हित-लाभ देय नहीं है। पोलिसी के मुखपृष्ठ पर विशेष प्रावधान अंकित है, जिसका प्रथम-खण्ड ‘‘दुर्घटना हित-लाभ राइडर विकल्प’’ का है। जिसमें उल्लेख है कि-यदि दुर्घटना हित-लाभ का विकल्प दिया गया हो और वह प्रभावी हो तो दुर्घटना हित-लाभ बीमा राशि के बराबर राशि के लिये ‘‘शर्तों एवं सुविधाओं’’ की शर्त 17 लागू होगी। शर्त स0 17 दुर्घटना हित-लाभ राइडर से संबंधित है, जिसमंे निम्न उल्लेख है-
‘‘यदि दुर्घटना हित-लाभ का विकल्प दिया गया हो तो किसी भी समय, जब तक यह सुरक्षा प्रभावी हो, निगम इस पोलिसी के अन्तर्गत दुर्घटना हित-लाभ, बीमा-राशि के बराबर अतिरिक्त राशि का भुगतान करने के लिये सहमत है।’’
पोलिसी की शर्तों में शर्त सं0 4(3) मेें दुर्घटना हित-लाभ प्रभार का उल्लेख है जो निम्न प्रकार है -‘‘यह प्रभार दुर्घटना हित-लाभ की लागत के लिये है। ( यदि विकल्प दिया गया हो) और पोलिसी जारी करने के समय प्रचलित दर से पोलिसी धारक के निधि मूल्य से यूनिटों की उपयुक्त संख्या रद्द करके हर महीने लगाया जाता है।
इस प्रकार हम पाते है कि परिवादी के पुत्र द्वारा प्रस्तु प्रस्ताव पत्र व उसके आधार पर जारी की गई पोलिसी एवं उसकी शर्तों से यही निष्कर्ष आता है कि विपक्षी-निगम द्वारा परिवादी के पुत्र के प्रस्ताव के आधार पर उसे जो पोलिसी जारी की गई उसमें उसके द्वारा प्रस्ताव में प्रस्तुत जोखिम-सुरक्षा के विकल्प को भी स्वीकार किया गया है। इस हेतु प्रभार उसके निधि मूल्य से यूनिटों की उपयुक्त संख्या रद्द करके हर महीने लगाने का करार है अर्थात दुर्घटना हित-लाभ का प्रभार पोलिसी धारक को अलग से स्वयं अदा नहीं करना था अपितु उसकी यूनिटों में से निगम द्वारा लेना तय किया गया था। दुर्घटना हित-लाभ का विकल्प होने की स्थिति में विपक्षी-निगम द्वारा दुर्घटना हित-लाभ अदा करने की भी सहमति देते हुये करार किया गया था।
विपक्षी-निगम ने हमारे समक्ष ऐसा कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया है कि परिवादी के पुत्र को एनैक्सचर ‘‘बी’’ भेजा गया था तथा उसके अनुसार पालना चांही गई थी। एनैक्सचर ‘‘बी’’ का जो प्रोफार्मा प्रस्तुत किया गया है, वह केवल इस आशय का है कि यदि पोलिसी की शर्तों से सहमति नहीं है तो 15 दिवस में कारण सहित सूचित किया जावे। उल्लेखनीय है कि परिवादी को उक्त एनैक्सचर भेजने का प्रमाण ही प्रस्तुत नहीं किया गया है। इसके अलावा पोलिसी में स्पष्ट रूप से यह अंकित ही नहीं किया गया है कि जोखिम सुरक्षा का जो विकल्प दिया गया है वह स्वीकार नहीं किया गया है अर्थात दुर्घटना हित-लाभ देय नहीं होगा अपितु पूरे प्रस्ताव पर विपक्षी-निगम ने सहमति देकर करार किया व पोलिसी जारी की।
इस प्रकार हम पाते हैं कि पोलिसी के अन्तर्गत परिवादी दुर्घटना हित-लाभ की राशि पाने का अधिकारी है तथा विपक्षी-निगम ने यह राशि अदा नहीं करके सेवा में कमी की हैं।
अतः विपक्षी-निगम को निर्देश दिये जाते हैं कि परिवादी को पोलिसी के अन्तर्गत दुर्घटना हित-लाभ की राशि 250000/-रूपये एवं इस राशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि 05.03.10 से अदायगी करने तक 9 प्रतिशत सााधारण ब्याज सहित दो माह में कुल राशि की अदायगी की जावे। इसके अलावा मानसिक संताप की भरपाई हेतु 10000/-रूपये एवं परिवाद व्यय के पेटे 2500/-रूपये भी अदा किये जावें।
आदेश खुले मंच में सुनाया गया। पत्रावली फैसल शुमार होकर रिकार्ड में जमा हो।
(हेमलता भार्गव) (महावीर तॅंवर) (भगवान दास)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
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