Uttar Pradesh

Lucknow-I

CC/115/2006

Shyamlal Yadav - Complainant(s)

Versus

Mamta Mishra - Opp.Party(s)

27 Jul 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/115/2006
 
1. Shyamlal Yadav
Lucknow
...........Complainant(s)
Versus
1. Mamta Mishra
Lucknow
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Vijai Varma PRESIDENT
 HON'BLE MRS. Anju Awasthy MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-प्रथम, लखनऊ।
वाद संख्या 115/2006

श्री श्याम लाल यादव, उम्र 65 वर्ष,
पुत्र स्व0 श्री विन्देश्वरी प्रसाद,
निवासी-म.नं. के 47/289ए,
मोहल्ला कतुआपुरा, सन्निकट विशेश्वारगंज,
थाना कोतवाली, वाराणसी।
                        ......... परिवादी
बनाम

1. श्रीमती ममता मिश्रा,
  पत्नी जगत नारायन मिश्रा,
  प्राधिकृत अभिकर्ता आर0डी0 पोस्ट,
  स्थित प्रधान डाकघर, विशेश्वरगंज,
  वाराणसी।
  निवासी- सी 21/92-93,
  महामंडल नगर, लहुराबीर,
  वाराणसी।

2. श्री अभय कुमार सिंह,
   पुत्र सूरज प्रसाद सिंह,
   अभिकर्ता प्रधान डाकघर,
   विशेश्वरगंज, वाराणसी,
   निवासी-एस29/412-414,
   शिवपुर थाना, शिवपुर,
   वाराणसी।

3. पूर्व सहायक पोस्ट मास्टर
   श्री शिव लोचन,
   कार्यरत प्रधान डाकघर,
   विशेश्वरगंज, वाराणसी।

-2-
4. प्रधान डाकघर, विशेश्वरगंज,
  पूर्वी मंडल, वाराणसी।
  द्वारा पोस्ट मास्टर।

5. उ0प्र0 सरकार द्वारा अपर जिला बचत अधिकारी,
  (राष्ट्रीय बचत), विकास भवन, 5वां तल,
  कचेहरी, वाराणसी।
                                 ..........विपक्षीगण
उपस्थितिः-
श्री विजय वर्मा, अध्यक्ष।
श्रीमती अंजु अवस्थी, सदस्या।

निर्णय
 परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षीगण से रू.69,939.00 मय ब्याज, क्षतिपूर्ति हेतु रू.1,50,000.00, क्षतिपूर्ति के रूप में रू.5,00,000.00 तथा वाद व्यय हेतु रू.70,000.00 कुल रू.6,39,939.00 दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया गया है।
 संक्षेप में परिवादी का कथन है कि वह अपनी पत्नी व एक पड़ोसी महिला के साथ विशेश्वरगंज प्रधान डाकघर वाराणसी में दिनांक     06.04.2004 को गये थे जहां पर एक शख्स श्री अभय कुमार सिंह विपक्षी सं0 2 मिला जिसने संयुक्त खाता आर0डी0 खोलने के लिए बताया जिस पर परिवादी ने कहा कि वे यदि उक्त खाता एक साल के बाद या जब कभी भी आवश्यकता हो रूपया जमा मय लाभांश वापस नियमानुसार करा सकते है तो परिवादी के नाम से खाता खोल दे। दिनांक 06.04.2004 को विपक्षी सं0 2 उसे विपक्षी सं0 1 के साथ विपक्षी सं0 3 के पास पहुंचा और सभी ने उपरोक्त वर्णित समयावधि में भुगतान वापस कराने की वचनबद्धता व नियमानुसार एजेन्ट होना स्वीकार किया जिस पर परिवादी ने आर0डी0 पोस्ट सं.29417       रू.3,000.00 लेकर खोला और उसकी पत्नी से हस्ताक्षर करवाये जिसकी पासबुक विपक्षी ने अपने पास रख ली और कहा कि हर माह रू.3,000.00 लेकर वह जमा कर देगा तथा एक वर्ष के बाद वह जब

-3-
चाहे धनराशि मय ब्याज वापस दिला देगा। परिवादी व उसकी पत्नी से हर माह विपक्षी सं0 2 बराबर धनराशि जमा करने को कहकर लेता रहा तथा पासबुक अपने पास रखता रहा। विपक्षीगण ने खाता खोलने के पूर्व आर0डी0 की नियमावली को दिखाया और समझाया था कि एक वर्ष के बाद या उससे पहले 6 माह बाद जमा धन खाता धारक वापस पा सकता है और इस संबंध में विपक्षीगण ने आर0डी0 खाता पोस्ट राष्ट्रीय बचत योजना अंतर्गत नियम व शर्तों के घोषणा पत्र को दिखाया व समझाया था। चूंकि परिवादी की पुत्री की शादी दिनांक 10.04.2005 को होनी थी जिसकी सूचना पूर्व में में ही विपक्षीगण को दे दी गई थी और दिनांक 06.04.2005 को एक वर्ष शादी की तिथि से पहले पूरा होकर वापसी हर हाल में हो जानी थी। विपक्षी परिवादी से बराबर हर माह रू.3,000.00 उपरोक्त खाते में जमा करने को कहकर लेता रहा, परंतु अप्रैल में जब परिवादी ने पैसे वापसी की बात कही तो विपक्षी ने कहा कि एक वर्ष एक माह का और रू.3,000.00 जमा करने पर ही पैसा वापस होगा। परिवादी ने आर0डी0 खाता 5 साल की अवधि के लिये खुलवाया था और एजेन्ट द्वारा आश्वासन दिया गया था कि एक साल बाद पैसा निकलवाया जा सकता है। परिवादी द्वारा एजेन्ट के माध्यम से 3 साल तक नियमित रूप से रू.3,000.00 प्रतिमाह जमा किया गया और इस प्रकार कुल रू.1,08,000.00 जमा किये गये, परंतु उक्त एजेन्ट द्वारा रसीदें नहीं दी गयी और न ही पासबुक दी गयी। दिनांक 06.04.2005 को परिवादी विपक्षी सं0 2 से मिला तो पता चला कि वह रूपया उसी दिन दो किश्तों में जमा किया है तथा एक और किश्त का रूपया जमा नहीं किया है। विपक्षीगण भुगतान वापसी करने से आना-कानी करने लगे तब पूछताछ पर परिवादी को पता चला कि विपक्षी सं0 1 ही विधि संगत अभिकर्ता महिला है और राष्ट्रीय बचत योजना आर0डी0 होती है और वही अभिकर्ता है जिसे छिपाकर गलत समझाकर सहायक पोस्ट मास्टर विपक्षी सं0 3 के समक्ष विपक्षी सं0 2 ने खाता खुलवाया और परिवादी से धन लेता रहा और पासबुक अपने पास रखता रहा। बचत खाता एवं योजनाओं को संचालित व संपादित करने के लिए विपक्षी अभिकर्ता जायज नहीं था, किंतु अपने को जायज बताते हुए विपक्षी सं0 1 के हस्ताक्षर से खाता खुलवाया और चलाया गया। विपक्षीगण द्वारा पूर्व में बताने के बावजूद दिनांक 06.04.2005 को

-4-
धन वापस नहीं किया गया और उसके द्वारा दिये गये रू.3,000.00 को भी जमा नहीं किया गया जो विधि विरूद्ध है। इस संबंध में परिवादी ने कार्यालय के अनेक चक्कर लगाये और व्यक्तिगत संपर्क किया और नोटिस भी दिये, परंतु भुगतान नहीं हुआ जिससे परिवादी की पुत्री की शादी नहीं हुई और उसे सामाजिक व मानसिक कष्ट हुआ। परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षीगण से रू.69,939.00 मय ब्याज, क्षतिपूर्ति हेतु रू.1,50,000.00, क्षतिपूर्ति के रूप में रू.5,00,000.00 तथा वाद व्यय हेतु रू.70,000.00 कुल रू.6,39,939.00 दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया गया है।
 विपक्षी सं0 1 व 2 को नोटिस भेजी गयी, परंतु कोई उपस्थित नहीं हुआ, अतः उनके विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही जिला फोरम, वाराणसी के आदेश द्वारा की जा चुकी है। विपक्षी सं0 4 को नोटिस भेजी गयी, परंतु समय लेने के उपरांत भी उनके द्वारा लिखित कथन नहीं दाखिल किया गया, अतः आदेश दिनांक 28.10.2013 द्वारा विपक्षी सं0 4 के विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही चली।
 विपक्षी सं0 3 की ओर से अपना जवाब दाखिल किया गया है जिसमंे मुख्यतः यह कथन किया गया है कि परिवादी द्वारा दिनांक   06.04.2004 को महिला प्रधान एजेंट श्रीमती ममता मिश्रा के द्वारा परिवादी व उसकी पत्नी के नाम से संयुक्त आवर्ती खाता सं.29417 रू.3,000.00 से खोला गया। उक्त खाता महिला प्रधान एजेंट श्रीमती ममता मिश्रा ने परिवादी के नाम से खुलवाया था और खाता खोलते समय और न ही उससे पूर्व विपक्षी सं0 3 ने परिवादी से संपर्क किया। राष्ट्रीय बचत योजना आर0डी0 की अधिकृत एजेंट महिलायें होती हैं जिन्हें महिला प्रधान एजेन्ट कहा जाता है। प्रस्तुत प्रकरण में उपरोक्त खाता की अधिकृत महिला प्रधान एजेंट श्रीमती ममता मिश्रा है। उक्त खाता महिला एजेंट के माध्यम से खोला गया, तदोपरान्त संबंधित पासबुक को महिला प्रधान एजेंट श्रीमती ममता मिश्रा को हस्तगत करा दिया गया। परिवादी व उसकी पत्नी कभी भी प्रधान डाकघर वाराणसी में संबंधित खाते में किश्त जमा करने हेतु नहीं आये और मासिक किश्त प्रधान एजेंट के माध्यम से डाकघर में जमा होती रही। ऐसे में किश्तों के जमा के हिसाब के बावत सारी जिम्मेदारी सिर्फ परिवादी व विपक्षी सं0 1 महिला प्रधान एजेंट की है और विपक्षी सं0 3 का उससे कोई संबंध नहीं है। परिवादी विपक्षी सं0 3 से न तो कार्यालय में न ही घर

-5-
पर मिला और न ही विभाग में परिवादी द्वारा भेजी गयी कोई नोटिस ही प्राप्त हुई। परिवादी द्वारा गलत तरीके से विपक्षी सं0 3 को पक्षकार बनाया गया है जो पोषणीय नहीं है जिसे निरस्त किया जाना चाहिए। विपक्षी सं0 3 ने परिवादी को विभागीय नियम के संबंध में न तो नियमावली दी और न ही उसके भुगतान के संबंध में कोई वार्तालाप हुई क्योंकि परिवादी को डाकघर में आर0डी0 खाता खोलने की तिथि या उससे पूर्व संपर्क नहीं किया। परिवादी को जो भी जानकारी दी गई होगी वह महिला एजेंट द्वारा ही दी गई होगी। विपक्षी सं0 3 दिनांक 06.04.2005 को प्रधान डाकघर, वाराणसी के बचत अनुभाग में कार्यरत नहीं था। ऐसी स्थिति में दिनांक 06.04.2005 को परिवादी का विपक्षी सं0 3 से संपर्क होने का प्रश्न ही नहीं उठता। विभागीय नियमानुसार आवर्ती खाता को तीन साल के पूर्व बंद नहीं किया जा सकता। यदि परिवादी चाहे तो दिनांक 06.04.2005 तक जमा की गई धनराशि में से आधी रकम को बतौर कर्ज के रूप में निकाल सकता था। परिवादी का परिवाद पूर्णतया विधि विरूद्ध है जिसके कारण परिवादी कोई भी अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। परिवादी का परिवाद सव्यय निरस्त किये जाने योग्य है।
 विपक्षी सं0 5 द्वारा अपना लिखित कथन दाखिल किया गया जिसमंे मुख्यतः यह कथन किया गया है कि कार्यालय द्वारा केवल महिला प्रधान अभिकर्ता की नियुक्ति एवं नवीनीकरण किया जाता है। नियुक्त होने वाले महिला प्रधान अभिकर्ता को उसकी स्वेच्छा से संबंधित डाकघर से कार्य किये जाने हेतु सम्बद्ध कर दिया जाता है। महिला प्रधान अभिकर्ता जिस डाकघर से संबद्ध होती है उसी डाकघर से अपना खाता खोलती है तथा उसी डाकघर से जमा की गयी राशि पर कमीशन प्राप्त करती है। महिला प्रधान अभिकर्ता द्वारा खोले गये खाते एवं उस पर समय-समय पर निवेशक को भुगतान करने की प्रक्रिया डाकघर द्वारा ही की जाती है। श्रीमती ममता मिश्रा विपक्षी सं0 1 महिला प्रधान अभिकर्ता की एजेंसी कार्यालय के पत्र दिनांक      23.09.2010 द्वारा निरस्त कर दी गयी है।
 परिवादी द्वारा विपक्षी सं0 3 के लिखित कथन के विरूद्ध आपत्ति दाखिल की गयी।
 परिवादी की ओर से अपना शपथ पत्र मय संलग्नक 5 और 20

-6-
प्रपत्र दाखिल किये गये। विपक्षी सं0 3 की ओर से श्री शिव लोचन राम, सहायक डाकपाल, प्रधान डाकघर, वाराणसी का शपथ पत्र दाखिल किया गया। विपक्षी सं0 5 द्वारा अपने लिखित कथन के साथ 1 संलग्नक दाखिल किया गया। परिवादी की ओर से लिखित बहस भी दाखिल की गयी।
 परिवादी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी गयी, जबकि विपक्षीगण की ओर से बहस हेतु कोई उपस्थित नहीं था। पत्रावली का अवलोकन किया गया।
 इस प्रकरण में विपक्षी सं0 4 के यहां विपक्षी सं0 1 द्वारा परिवादी का अपनी पत्नी के साथ संयुक्त आर0डी0 खाता दिनांक 06.04.2004 को खोला गया जिसमें उसे प्रति माह रू.3,000.00 जमा करना था और एक वर्ष के उपरांत उसे संपूर्ण धनराशि ब्याज सहित वापस की जा सकती थी। उक्त खाता 5 साल की अवधि के लिए खुलवाया गया था, किंतु 1 साल बाद ही धन की आवश्यकता पड़ने पर जब परिवादी द्वारा धन की मांग की गयी तो उसे विपक्षीगण द्वारा भुगतान नहीं किया गया और उसे ज्ञात हुआ कि उसकी एक किश्त जमा नहीं है, जबकि परिवादी द्वारा अभिकर्ता विपक्षी सं0 1 को हर माह रू.3,000.00 दिया जाता रहा और जब उसके द्वारा जमा किये गये धन की मांग की गयी तो उसे रू.18,000.00 का ऋण दिलाकर गलत तरीके से धन का पूर्ण भुगतान नहीं किया गया जिसके कारण धनाभाव के कारण उसकी पुत्री की शादी नहीं हो पायी।
 अब देखना यह है कि क्या परिवादी द्वारा रू.3,000.00 प्रति माह के हिसाब से विपक्षी सं0 3 व 4 के यहां विपक्षी सं.1 व 2 के माध्यम से आवर्ती खाता खोला गया या नहीं और क्या परिवादी को आर0डी0 अकाउंट की धनराशि का पूर्ण भुगतान दिया गया या नहीं तथा क्या विपक्षीगण द्वारा कोई सेवा में कमी की गयी या नहीं।
 परिवादी द्वारा रू.3,000.00 प्रति माह की दर से आर0डी0 खाता विपक्षी सं0 4 के यहां खोला गया था। इस तथ्य को विपक्षी सं0 3 पूर्व सहायक पोस्ट मास्टर ने अपने प्रतिवाद पत्र में स्वीकार किया है कि परिवादी द्वारा दिनांक 06.04.2004 को महिला प्रधान एजेंट श्रीमती ममता मिश्रा द्वारा एक संयुक्त आवर्ती खाता सं.24917 रू.3,000.00 प्रति माह का खोला गया था। उसका यह भी कथन है कि खाता खोलने के

-7-
बाद पासबुक प्रधान एजेंट श्रीमती ममता मिश्रा को हस्तगत करा दी गयी थी। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र की धारा 4 (अ) में यह कहा है कि उसने आवर्ती खाता 5 साल की अवधि का खुलवाया था जिसमें रू.3,000.00 प्रति माह के हिसाब से धनराशि जमा की जाती रही। परिवादी ने अपने शपथ पत्र में जो कि उसने दिनांक 27.05.2011 को दाखिल किया है यह कथन किया गया है कि जब वह अप्रैल 2005 में अपनी जमा धनराशि को मय ब्याज वापस प्राप्त करने के लिए विपक्षीगण से मिला तो उसे जमा की गयी धनराशि पर रू.18,000.00 का ऋण प्रदान किया गया, किंतु पूर्ण जमा धनराशि का भुगतान नहीं किया गया जिससे धन की कमी के कारण उसकी पुत्री की शादी नहीं हो पायी। इस कथन से यह स्पष्ट है कि परिवादी आवर्ती खोलने के 1 वर्ष के बाद धनराशि लेेने के लिए विपक्षीगण के पास गया था और उसके द्वारा आवर्ती जमा खाते में संपूर्ण धनराशि के भुगतान की बात करने पर उसे पूर्ण धनराशि का भुगतान न करके रू.18,000.00 का ऋण दे दिया गया। इसी शपथ पत्र में परिवादी की ओर से आगे यह भी कहा गया है कि उसने अपने खाते में जमा करने के लिए रू.36,000.00 दिये थे, जबकि उसे मात्र रू.18,000.00 का ऋण प्रदान किया गया। इस उपरोक्त कथन को परिवादी द्वारा शपथ पत्र में कहने से स्पष्ट है कि आवर्ती खाते में दिनांक 06.05.2004 तक उसके आवर्ती खाते में रू.36,000.00 जमा होते। उल्लेखनीय है कि यह परिवाद मई 2006 में दाखिल किया गया है। अतः जो खाता दिनांक 06.04.2004 को खोला गया वह अगर 5 वर्ष के लिए खोला गया था तो उसके द्वारा 5 वर्ष तक रू.3,000.00 प्रति माह के हिसाब से धनराशि को जमा किये जाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता जैसा कि परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र की धारा (4) (अ) में कथन किया गया है क्योंकि परिवाद ही वर्ष 2006 में दाखिल कर दिया गया है। अतः स्पष्टतया परिवादी द्वारा यह कथन सत्य नहीं किया जा रहा है कि उसके द्वारा 5 वर्ष तक रू.3,000.00 प्रति माह के हिसाब से रू.1,80,000.00 जमा किये गये। परिवादी की ओर से एक शपथ पत्र दिनांक 29.11.2012 को दाखिल किया गया है जिसके पैरा 3 में उसने यह स्वीकार किया है कि उसने अपनी भतीजी मोनिका की शादी के लिए रू.18,000.00 दिनांक      26.04.2005 ऋण के रूप में लिये थे व शेष रू.20,061.00 वाउचर भरने

-8-
के उपरांत डाकघर के नियम के अनुसार दिनांक 07.05.2007 को लिये थे। इस प्रकार परिवादी द्वारा कुल धनराशि रू.38,061.00 विपक्षी सं0 3 से प्राप्त किये गये। परिवादी की ओर से डाक विभाग के लेजर कार्ड की फोटोप्रति दाखिल की गयी है उसमें यह तथ्य स्पष्ट होता है कि रू.20,061.00 दिनांक 07.05.2007 को दिये गये है, जबकि रू.18,000.00 उसे पूर्व में दिये गये है और दिनांक 07.05.2007 को ही यह खाता बंद होना दृष्टिगत होता है। परिवादी की ओर से यह तो कहा गया कि उसके द्वारा 5 साल तक धनराशि जमा की गयी, किंतु जैसा कि पूर्व में विवेचित किया जा चुका है यह कथन गलत किया गया है। वस्तुतः उसके द्वारा मात्र 1 वर्ष तक ही रू.3,000.00 प्रति माह के हिसाब से जमा किया जाना दृष्टिगत होता है और वह मात्र 1 वर्ष बाद जब संपूर्ण धनराशि लेने गया तो उसे मात्र रू.18,000.00 का भुगतान किया गया और पूर्ण धनराशि का भुगतान नहीं किया गया। स्पष्टतया रू.3,000.00 दिनांक 06.04.2005 के बाद से प्रति माह के हिसाब से जमा करने का कथन न तो सत्य प्रतीत होता है और न ही इस संबंध में कोई साक्ष्य उपलब्ध है। इन परिस्थितियों में यह नहीं कहा जा सकता कि जो धनराशि रू.3,000.00 प्रति माह के हिसाब से 1 वर्ष तक आवर्ती खाते में जमा की जाती रही उसका उसे पूर्ण भुगतान प्राप्त नहीं हुआ है, किंतु यह तथ्य अवश्य स्पष्ट होता है कि परिवादी को संपूर्ण धनराशि का भुगतान आवर्ती खाता खोलने के 1 वर्ष के उपरांत नहीं किया गया था और तब उसके द्वारा इस धनराशि के भुगतान हेतु यह परिवाद दायर किया गया और तब परिवाद दायर करने के उपरांत लगभग 1 वर्ष बाद उसको दिनांक 07.05.2007 को संपूर्ण शेष धनराशि का भुगतान किया गया। यहां पर यह उल्लेखनीय है कि परिवादी के अनुसार उसके द्वारा खाता इस आधार पर खुलवाया गया था कि 1 साल बाद जब भी आवश्यकता होगी उसे धनराशि मय लाभांश वापस कर दी जाएगी और चूंकि उसकी पुत्री की शादी दिनांक 10.05.2004 को होनी थी, अतः विपक्षी सं0 1 व 2 के आश्वस्त करने पर ही वह विपक्षी सं0 3 के पास खाता खुलवाने के लिए गया था। इस तथ्य को स्वयं विपक्षी सं0 3 ने स्वीकार किया है कि विपक्षी सं0 1 ममता मिश्रा के माध्यम से खाता खोला गया था और पासबुक महिला एजेंट ममता मिश्रा को ही हस्तगत करा दी गयी थी। इस प्रकार परिवादी के इस कथन से यह सिद्ध होता

-9-
है कि ममता मिश्रा के माध्यम से खाता खोला गया था। अब यह ममता मिश्रा को फोरम में उपस्थित होकर परिवादी के इस कथन का खंडन करना चाहिए था कि उसके द्वारा परिवादी को ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया गया था कि परिवादी को खाता खोलने के 1 साल बाद आवश्यकता पड़ने पर संपूर्ण धनराशि मय लाभांश दी जाएगी। अतः परिवादी के इस कथन पर विश्वास न करने का कोई कारण नहीं है कि उसका खाता इस आधार पर खुलवाया गया था कि 1 वर्ष के उपरंात जब उसे पुत्री की शादी के लिए धन की आवश्यकता होगी तो उसे संपूर्ण धनराशि मय लाभांश दे दी जाएगी, किंतु जब वह 1 साल बाद अपने आवर्ती जमा खाते की धनराशि प्राप्त करने गया तो उसे संपूर्ण धनराशि न देकर ऋण दिया गया जिसके कारण उसे आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ा और अंततः परिवाद दायर करने के उपरांत ही संपूर्ण धनराशि में से शेष धनराशि दिनांक 07.05.2007 को दी गयी। स्पष्टतया विपक्षी सं0 1 व 2 द्वारा गलत आश्वासन के आधार पर ही परिवादी का खाता खुलवाया गया था जिसके कारण परिवादी को आश्वासन के आधार पर सुविधा प्राप्त न होने पर परेशानी एवं आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ा जो विपक्षी सं0 1 व 2 की सेवा में कमी का द्योतक है। परिणामस्वरूप, विपक्षी सं0 1 व 2 परिवादी को क्षतिपूर्ति देने के लिए उत्तरदायी है। यहां पर यह उल्लेखनीय है कि विपक्षी सं0 1 की नियुक्ति अपर जिला बचत अधिकारी वाराणसी विपक्षी सं0 5 द्वारा की जाती है, अतः विपक्षी सं0 5 भी परोक्ष रूप से ममता मिश्रा द्वारा किये गये गलत आचरण के लिए दोषी है, किंतु चूंकि उनके द्वारा ममता मिश्रा की नियुक्ति निरस्त की जा चुकी है जैसा कि उनके द्वारा दाखिल किये गये लिखित कथन से स्पष्ट होता है, अतः विपक्षी सं0 5 के विरूद्ध इस संबंध में कोई आदेश पारित किया जाना समीचीन नहीं पाया जाता है। विपक्षी सं0 3 व 4 के विरूद्ध पूर्ण साक्ष्य न होने के कारण कोई आदेश पारित नहीं किया जाता है। विपक्षी सं0 1 व 2 परिवादी को क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय देने के लिए उत्तरदायी है।
आदेश
 परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी सं0 1 व 2 को यह आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को क्षतिपूर्ति के रूप में रू.5,000.00-रू.5.000.00 (रूपये पांच-पांच हजार मात्र) एवं वाद

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व्यय के रूप में रू.3,000.00-रू.3,000.00 (रूपये तीन हजार मात्र) अदा करें।
 विपक्षी सं0 1 व 2 उपरोक्त आदेश का अनुपालन एक माह में करें, अन्यथा उपरोक्त संपूर्ण धनराशि पर 9 प्रतिशत ब्याज देय होगा।

      (अंजु अवस्थी)             (विजय वर्मा)
             सदस्या                    अध्यक्ष

दिनांकः   27 जुलाई, 2015
  

  

 
 
[HON'BLE MR. Vijai Varma]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. Anju Awasthy]
MEMBER

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