(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-322/2011
दि ओरियण्टल इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम श्रीमती मालती देवी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
दिनांक: 04.12.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद सं0-02/2009, श्रीमती मालती देवी बनाम मण्डल प्रबंधक, दि ओरियण्टल इं0कं0लि0 में विद्वान जिला आयोग, मऊ द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 18.1.2011 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री ए.के. श्रीवास्तव को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रत्यर्थी को सूचना प्रेषित की गई थी, परन्तु उनकी ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ, सूचना उसी पते पर प्रेषित की गई, जो पता परिवाद पत्र में वर्णित है। अत: प्रत्यर्थी पर नोटिस की तामील की उपधारणा की जाती है।
विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी को आदेशित किया है कि एक माह के अंदर अंकन 57,801/-रू0 की धनराशि, उस पर 12 प्रतिशत ब्याज के साथ तथा अंकन 22,000/-रू0 अतिरिक्त क्षतिपूर्ति के रूप में अदा करें, ऐसा न करने पर सम्पूर्ण राशि पर 9 प्रतिशत ब्याज देय होगा।
बीमा कंपनी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि बीमा क्लेम प्राप्त होने के पश्चात सर्वेयर की नियुक्ति की गई। सर्वेयर द्वारा क्षति का आंकलन अंकन 45,211/-रू0 के लिए किया गया, परन्तु बीमा कंपनी द्वारा आवश्यक कटौती के पश्चात अंकन 38,186/-रू0 का भुगतान स्वेच्छा
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के साथ किया गया, जिसे उपभोक्ता द्वारा स्वीकार कर लिया गया, इसलिए अंतिम रूप से भुगतान हो चुका है। उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं था। डिसचार्ज बाऊचर पत्रावली पर दस्तावेज सं0-25 पर मौजूद है, जिस पर परिवादिनी के हस्ताक्षर हैं तथा राशि प्राप्ति का उल्लेख है। अत: चूंकि अंतिम रूप से स्वेच्छा के साथ भुगतान प्राप्त किया जा चुका है, इसके बाद उपभोक्ता परिवाद दायर करने का उसे कोई अवसर प्राप्त नहीं है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने और प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2