राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-339/2019
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता आयोग, इटावा द्वारा परिवाद संख्या 50/2013 में पारित आदेश दिनांक 17.11.2018 के विरूद्ध)
दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0, द्वारा एक्जीक्यूटिव इंजीनियर, इलैक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन डिवीजन II, जिला: इटावा
दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0 भरथना, द्वारा प्रभारी अधिकारी
........................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
मलखान सिंह यादव पुत्र श्री गंगाराम यादव निवासी- मोहल्ला, राजागंज, थाना, भरथना, जिला: इटावा, यू0पी0
...................प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री इसार हुसैन,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 17.12.2021
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख अपीलार्थी दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0 द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग, इटावा द्वारा परिवाद संख्या-50/2013 मलखान सिंह यादव बनाम दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0 व एक अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 17.11.2018 के विरूद्ध योजित की गयी।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख परिवाद में निम्न अनुतोष प्रदान किये जाने की प्रार्थना की:-
''अत: प्रार्थना है, कि विपक्षी द्वारा परिवादी से माह जनवरी 2013 में विद्युत मूल्य के रूप में 3196.00/-रू0 के स्थान पर मु0-9942.00/-रू0 वसूल किये जाने के कारण विपक्षी को तलब किया जावे, तथा उससे प्रार्थी की अधिक वसूल की गयी धनराशि मु0-6746/- मय 24% प्रतिवर्ष
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के ब्याज के वापस दिलायी जावे, तथा परिवादी के विरूद्ध विपक्षी द्वारा किये गये मानसिक उत्पीडन व मुकदमा दायर करने व कानूनी कार्यवाही में हुए आर्थिक एवं शारीरिक नुकसान के रूप में क्रमश: 10,000-10,000/-रू0 दिलाए जावे, तथा अन्य प्रतिकर जो हितकर वादी हो। विपक्षी से दिलाये जाने की कृपा करें।''
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी का घरेलू विद्युत कनेक्शन संख्या-9228 है, जिसका वह नियमित रूप से बिल की धनराशि जमा करता रहा है, किन्तु विगत कुछ दिनों से विपत्र की धनराशि में गड़बड़ी होने लगी, उसमें रीडिंग अंकित नहीं की जाती थी या गलत अंकित की जाती थी तथा प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा संज्ञान लेने पर पाया गया कि माह अक्टूबर, 2012 में मीटर रीडिंग 2847-2891 अंकित कर 676/-रू0 का बिल भेजा गया, जिसे प्रत्यर्थी/परिवादी ने जमा कर दिया। इसी प्रकार माह दिसम्बर, 2012 का जो बिल प्रत्यर्थी/परिवादी को भेजा गया, उसमें पिछली रीडिंग 1891 और अंतिम रीडिंग 1941 दिखायी गयी तथा 870/-रू0 का बिल भेजा गया, जिसे प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जमा कर दिया गया। तदोपरान्त माह जनवरी, 2013 में जो बिल प्रत्यर्थी/परिवादी को भेजा गया उसमें पूर्व की रीडिंग 100 दर्शायी गयी तथा अंतिम रीडिंग 4100 दर्शायी गयी, जो पूर्णत: गलत और मनगढंत है तथा बकाया 1116 दिखलायी गयी तथा कुल देय धनराशि 4306/-रू0 दिखलायी गयी, जो निराधार थी क्योंकि प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिसम्बर 2012 तक की कुल धनराशि जमा कर दी थी।
प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत विभाग से उक्त के संबंध में शिकायत की गयी तो विद्युत विभाग के कर्मचारी श्याम सिंह ने मनमाने तरीके से दिनांक 30.01.2013 को मु0 9942/-रू0 की रसीद काट कर कथित विद्युत बिल धनराशि जमा करायी, जो नाजायज गलत और अवैधानिक थी, जिसका प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा विरोध किया गया, किन्तु फिर भी अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत विभाग के सम्बन्धित कर्मचारी श्री श्याम सिंह ने अभद्र व्यवहार किया और प्रत्यर्थी/परिवादी को मानसिक एवं शारीरिक पीड़ा पहुँचायी। इस
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सम्बन्ध में प्रत्यर्थी/परिवादी ने एक आवेदन दिनांक 19.02.2013 को तहसील दिवस में दिया, किन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई और पुन: माह फरवरी में 7555/-रू0 का बिल भेज दिया गया और पूर्व बकाया 4203/-रू0 दर्शाया गया तथा पुन: इस बिल के विरूद्ध प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रश्न उठाया तथा यह कि प्रत्यर्थी/परिवादी को माह जनवरी 2013 से विद्युत बिल के मूल्य के रूप में 3196/-रू0 के स्थान पर 9942/-रू0 की वसूली की गयी, जिससे प्रत्यर्थी/परिवादी को घोर मानसिक एवं शारीरिक पीड़ा पहुँची। इस प्रकार विवश होकर प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध परिवाद योजित किया गया।
प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 17.11.2018 के द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया:-
''अत: प्रस्तुत परिवाद यथा-विरचित, उपरोक्त विपक्षीगण के विरूद्ध ससंघर्ष, सवाद व्यय, आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है और तद्नुसार विपक्षी दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0 द्वारा अधिशासी अभियन्ता, विद्युत वितरण खण्ड-द्वितीय, फ्रेंण्डस कालौनी, इटावा को यह निर्देशित किया जाता है कि वह परिवादी के विद्युत कनेक्शन संख्या-9228 पर स्थापित मीटर संख्या-एम0 22302300ई0एल0-646-00000000001 में मीटर रीडिंग के आधार पर परिवादी के स्वीकृत विद्युत भार एल0एम0वी0-1, एक किलोवाट पर न्यूनतम विद्युत चार्ज के अनुसार, उस समय प्रचलित विद्युत दर के हिसाब से, माह जनवरी, 2013 से अद्यतन विद्युत विपत्र तैयार कर (समय समय पर हुए परिवर्तित विद्युत दर के अनुसार) बिना किसी अतिरिक्त सरचार्ज के उसे दो माह के अन्दर सर्व करे और उसमें समय समय पर परिवादी के द्वारा अदा की गयी विभिन्न धनराशि जिसकी कि रसीद परिवादी ने दाखिल की है, जैसे दिनांक 23.02.2013 रू0 145/-, दिनांक 30.01.2013 रू0 9942/- और अन्य जो भी चुकता मूल्य जिसको परिवादी ने जमा किया है, उस समय के बिजली बिल में समायोजित कर उसे निश्चित रूप से सर्व करे और अद्यतन सर्व किए गए बिजली बिल की धनराशि को परिवादी आगामी छ:
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माह के अन्दर तीन बराबर किश्तों में अदा करे और इस बीच, विपक्षी बिजली विभाग परिवादी के उक्त विद्युत कनेक्शन के सम्बन्ध में कोई उत्पीड़न या डिसटर्व न करे और उक्त विपक्षी बिजली विभाग, परिवादी को अनावश्यक रूप से तंग तबाह करने के लिए शारीरिक एवं मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 10,000/- (दस हजार रू0) और वाद व्यय के रूप में रू0 5,000/- (पॉंच हजार रू0) एक मुश्त क्षतिपूर्ति भी अदा करे, अन्यथा उपरोक्त क्षतिपूर्ति की धनराशि रू0 15,000/- (पन्द्रह हजार रू0) पर वाद योजन की दिनांक यानी दिनांक 23.05.2013 से भुगतान की दिनांक तक 08 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी अदा करना होगा और इस प्रकार, विपक्षी बिजली विभाग के द्वारा माह जनवरी, 2013 और उसके बाद की उक्त कनेक्शन के विरूद्ध निर्गत विद्युत विपत्र और उसकी धनराशि विवादित और निरस्त समझी जावे।
निर्णय की एक-एक प्रति पक्षकारों को नि:शुल्क उपलब्ध करायी जावे।''
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि वास्तव में जो तथ्य पक्षकारों के मध्य विवादित थे उनका निस्तारण पूर्ण रूप से अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा समुचित जांच कराकर किया गया तथा यह पाया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा विद्युत देय से सम्बन्धित व्यय पूर्व में जमा किया गया है तथा उसके विरूद्ध कोई देय धनराशि विद्युत बिल के सम्बन्ध में बाकी नहीं है। फिर भी प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा बिना किसी उचित कारण के परिवाद प्रस्तुत किया गया, जिसमें जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा शारीरिक एवं मानसिक क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय हेतु अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध आदेश पारित किया।
हमारे द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन को सुना गया तथा प्रस्तुत अपील में उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का परिशीलन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
जिला उपभोक्ता आयोग के निर्णय एवं आदेश का परिशीलन एवं परीक्षण करने के उपरान्त हम पाते हैं कि अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जमा की गयी धनराशि का समुचित आंकलन करने
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के उपरान्त यह निर्धारित किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी पर विद्युत बिल से सम्बन्धित कोई धनराशि शेष नहीं है। तब उस स्थिति में अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध शारीरिक एवं मानसिक क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय हेतु हर्जाना योजित किया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है।
अतएव प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और प्रश्नगत आदेश संशोधित करते हुए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा आदेशित शारीरिक एवं मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 10,000/-रू0 एवं वाद व्यय के रूप में 5,000/-रू0 तथा उपरोक्त क्षतिपूर्ति की धनराशि रू0 15,000/-रू0 पर वाद योजन की दिनांक 23.05.2013 से भुगतान की दिनांक तक 08 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज की देयता को समाप्त किया जाता है तथा जिला उपभोक्ता आयोग का शेष आदेश यथावत् रहेगा।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला उपभोक्ता आयोग को विधि के अनुसार निस्तारण हेतु 01 माह में प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1