(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-465/2011
डा0 सुजाउद्दीन खान बनाम माजिद अली
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री विकास अग्रवाल की
सहायक सुश्री पलक सहाय गुप्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 04.10.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-101/2010, माजिद अली बनाम डा0 एस. खान में विद्वान जिला आयोग, द्वितीय मुरादाबाद द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 9.2.2011 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री विकास अग्रवाल की सहायक अधिवक्ता सुश्री पलक सहाय गुप्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से पर्याप्त सूचना के बावजूद कोई उपस्थित नहीं हुआ।
2. विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए मरीज शाहनवाज के इलाज में हुए खर्च की राशि अंकन 22,500/-रू0 तथा क्षतिपूर्ति की मद में अंकन 5,000/-रू0 एवं परिवाद व्यय के रूप में अंकन 2,000/-रू0 अदा करने का आदेश पारित किया है।
3. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि दिनांक 6.5.2010 को परिवादी के नाबालिग पुत्र शाहनवाज को घर में खेलते हुए चोट आ गई थी। दिनांक 7.5.2010 को सुबह 10.00 बजे विपक्षी को
-2-
दिखाया, जिनके द्वारा एक्स-रे कराकर प्लास्टर करने की सलाह दी गई। परिवादी की सहमति पर परिवादी के पुत्र के दाहिने पैर की एड़ी सहित पक्का प्लास्टर कर दिया और पांच दिन की दवाई लिखकर दे दी, परन्तु घर पर पहुँचकर प्लास्टर किए गए स्थान पर परेशानी शीघ्रता से बढ़ने लगी। दिनांक 11.5.2010 को परिवादी ने पुन: पुत्र को विपक्षी को दिखाया तब उन्होंने दवाई बदलने के लिए कहा, परन्तु कोई आराम नहीं हुआ और परेशानी बढ़ती गई। दिनांक 14.5.2010 को फोन पर भी वार्ता की गई, इसके बाद दिनांक 15.5.2010 को पुन: विपक्षी को दिखाया, उस समय परिवादी का पुत्र पैर की पीड़ा से चीख रहा था, परन्तु विपक्षी ने केवल यह कहा कि आप बिना वजह परेशान हो रहे हो तब परिवादी ने अपने पुत्र को डा0 अनुराग अग्रवाल को दिखाया। डा0 अग्रवाल द्वारा बताया गया कि जो प्लास्टर चड़ा हुआ है, उसके अन्दर का मास सड़ गया और फूल गया है। किसी भी समय फट सकता है, इसलिए तुरन्त आपरेशन करना पड़ेगा। परिवादी ने कर्ज लेकर आपरेशन का प्रबंधक किया, परन्तु इस बीच प्लास्टर से खून टपकने लगा, इसके 5,000/-रू0 जमा किए गए और आपरेशन कराया गया। यद्यपि अब मरीज स्वस्थ है, परन्तु इलाज लगातार चल रहा है। दवाई और पट्टी बंध रही है। परिवादी का कुल 22,500/-रू0 खर्च हुआ है।
4. विपक्षी को पंजीकृत डाक से नोटिस प्रेषित की गई, परन्तु विपक्षी विद्वान जिला आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुए, इसलिए तामील पर्याप्त मानते हुए एकतरफा सुनवाई की गई और एकतरफा सुनवाई के दौरान उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया।
-3-
5. अपील के ज्ञापन तथा मौखिक तर्कों का सार यह है कि अपीलार्थी द्वारा इलाज के दौरान कोई लापरवाही नहीं बरती गई। डा0 अनुराग अग्रवाल द्वारा Cellulitis नामक बीमारी का इलाज किया गया है, जो बैक्ट्रीया से उत्पन्न होने वाली बीमारी है, इस बीमारी का कोई संबंध अपीलार्थी द्वारा किए गए इलाज से नहीं है। अत: उनके द्वारा कोई लापरवाही नहीं बरती गई। दस्तावेज सं0-24 पर डा0 अनुराग अग्रवाल के पर्चें का उल्लेख है, जिसमें Cellulitis नामक शब्द अंकित है, परन्तु यह पर्चा पूर्णत: कटा हुआ है, इसलिए जो पर्चे में क्रास रेखाए खीचीं हुई हों, उस पर्चे को किसी अपील के निस्तारण में विचार में लेना विधिसम्मत नहीं है। अत: यह तथ्य स्थापित नहीं है कि यथार्थ में बैक्ट्रीया से उत्पन्न होने वाली बीमारी का इलाज डा0 अग्रवाल द्वारा किया गया है।
6. विद्वान जिला आयोग ने अपने निर्णय में यह निष्कर्ष दिया है, जिसमें परिवादी का पुत्र पीड़ा से चीख रहा था (दिनांक 15.5.2010 को) तब विपक्षी डा0 ने कथन किया कि बिना वजह परेशान हो रहे हो और चीखते हुए मरीज का परीक्षण नहीं किया, इसलिए परिवादी डा0 अनुराग अग्रवाल, हड्डी रोग विशेषज्ञ के पास लेकर गया, जिनके द्वारा अन्दर से मास सड़ने का कथन किया गया, यह स्थिति स्वंय घटना प्रमाण है, के सिद्धान्त को साबित कर रही है। पीड़ा से कराहते हुए एक अबोध बालक के पैर पर किए गए प्लास्टर को चेक करने के बजाय केवल शान्तव्ना के शब्द वर्णित करना विपक्षी डा0 की लापरवाही का द्योतक है, इसी अवसर पर यह उल्लेखनीय है कि विद्वान जिला आयोग के समक्ष प्रस्तुत किए गए परिवाद तथा उसके समर्थन में प्रस्तुत की गई साक्ष्य का कोई खण्डन विपक्षी द्वारा
-4-
विद्वान जिला आयोग के समक्ष नहीं किया गया, इसलिए परिवादी द्वारा जो शब्द अंकित किए गए, उनके समर्थन में जो शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया, वह अखण्डनीय हैं, इसलिए अखण्डनीय साक्ष्य पर आधारित निर्णय/आदेश को परिवर्तित करने का कोई आधार प्रतीत नहीं होता, क्योंकि विद्वान जिला आयोग ने पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य की समुचित व्याख्या करते हुए अपना निष्कर्ष पारित किया है, जिसमें कोई हस्तक्षेप अपेक्षित नहीं है। तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
7. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2