राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-1569/2015
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, सहारनपुर द्वारा परिवाद संख्या-170/2011 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 08-07-2015 के विरूद्ध)
मेसर्स किरन कोल्ड स्टोरेज प्रा0 लि0, चिलकाना रोड, शहर-सहारनपुर द्वारा डायरेक्टर मनोहर लाल आहूजा।
अपीलार्थी
बनाम्
महीन्द्रपाल पुत्र मेहर चन्द्र, निवासी-ग्राम मनका, डाकखाना-मनकी, तहसील-बराड़ा, जिला अम्बाला, हरियाणा। प्रत्यर्थी
समक्ष :-
1- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2- मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
1- अपीलार्थी की ओर से उपस्थित - श्री आर0 के0 गुप्ता।
2- प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित - श्री राम गोपाल व
श्री नवीन कुमार तिवारी।
दिनांक : 19/06/2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय :
परिवाद संख्या-170/2011 महीन्द्रपाल बनाम् मेसर्स किरन कोल्ड स्टोरेज प्रा0लि0 में जिला उपभोक्ता फोरम, सहारनपुर द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश दिनांक 08-07-2015 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षी मेसर्स किरन कोल्ड स्टोरेज प्रा0 लि0 की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद विपक्षी मै0 किरन कोल्ड स्टोरेज प्रा0लि0 के विरूद्ध स्वीकार करते हुए विपक्षी को आदेशित किया है कि वह इस निर्णय की तिथि से एक माह के अंदर
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परिवादी को हुए नुकसान हेतु कुल धनराशि अंकन 13,40,334/-रू0 व इस पर परिवाद दायर की तिथि से इस निर्णय की तिथि तक 9 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज सहित अदा करें। इसके अतिरिक्त विपक्षी उपरोक्त अवधि में ही परिवादी को मानसिक, शारीरिक कष्ट एवं सेवा में कमी के लिए अंकन 1,00,000/-रू0 एवं वाद व्यय हेतु अंकन 5,000/-रू0 भी अदा करें। उपरोक्त अवधि में अदायगी ना करने पर इस निर्णय की तिथि से अंतिम अदायगी की तिथि तक विपक्षी द्वारा परिवादी को अंकन 14,40,334/-रू0 की राशि पर 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से साधारण ब्याज भी देय होगा।
अपीलार्थी की ओर से उसके विद्धान अधिवक्ता आर0 के0 गुप्ता तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री राम गोपाल एवं श्री नवीन कुमार तिवारी उपस्थित आए।
हमने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है तथा आक्षेपित निर्णय और आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम सहारनपुर के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में 3330 कट्टे आलू, जिसमें प्रत्येक कट्टा 50 किलो ग्राम का था, 01 फरवरी, 2011 से दिनांक 31 अक्टूबर, 2011 तक की अवधि के लिए 60 रूपये प्रति कट्टे की दर से किराये पर रखा था। आलू बढि़या क्वालिटी का था और आलू अच्छी हालत में अच्छी तरह सिलकर रखा था। यह आलू प्रत्यर्थी/परिवादी ने अलग-अलग जगहों से खरीदा था। मई 2011 में प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षी के पास गया और कहा कि आलू का रेट
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इस वक्त बाजार में सही है, आलू की निकासी करा दो। परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी ने बरामदें में किराने का सामान पड़ा होने के कारण आलू निकालने से मना कर दिया और उससे कहा कि सीधे ट्रक में भरवा लो। इस पर प्रत्यर्थी/परिवादी ने कहा कि आलू को पहले बरामदें में ही खुला रखना पड़ता है। उसके बाद सीलन ठीक होने पर ही आलू जाता है, फिर भी अपीलार्थी/विपक्षी ने बरामदा खाली नहीं किया, जिससे परिवादी के आलू की निकासी उस समय नहीं हो सकी और आलू अपीलार्थी/विपक्षी की लापरवाही से सड गया। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी को 14,50,000/-रू0 का नुकसान अपीलार्थी/विपक्षी की वजह से हुआ है। अत: उसने जिला फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत कर नुकसान की क्षतिपूर्ति हेतु 14,50,000/-रू0 एवं मानसिक कष्ट की क्षतिपूर्ति हेतु 2,00,000/-रू0 मांगा है। साथ ही वाद व्यय की भी मांग की है।
अपीलार्थी/विपक्षी ने जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत किया है जिसमें उसने यह तथ्य स्वीकार किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उसके कोल्ड स्टोरेज में 3328 कट्टे आलू रखे थे जिसमें से प्रत्येक कट्टा 50 किलो ग्राम का था। इसके साथ ही उसका कथन है कि कोल्ड स्टोरेज का सीजन 01 मार्च से शुरू होकर 31 अक्टूबर तक होता है और किराया वजन के हिसाब से माल रखने वाले को देना होता है। जब किसी बीमारी या लासे के कारण माल खराब होता है तो उस दशा में कोल्ड स्टोरेज की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी ने यह भी कहा है कि किराया 60 रूपये प्रति कट्टा नहीं, 70 रूपये प्रति कट्टा था । इसके साथ ही अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी को अग्रिम रूप से 4,00,000/-
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रू0 की धनराशि दी थी जिस पर 24 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज देय था। कुल मिलाकर 701517/-रू0 दिनांक 31-10-2011 को प्रत्यर्थी/परिवादी के जिम्मा देय था।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी ने कहा है कि वर्ष, 2011 में आलू की भरपूर फसल हुई और आलू के फसल अक्सर जो 15 नवम्बर के आस-पास आती थी वह इस वर्ष माह अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में 16-17 दिन पहले आ गयी जिससे पुराने आलू की उठान एकदम बंद हो गयी इस कारण प्रत्यर्थी/परिवादी ने आलू न उठाकर चालाकी करके पेशबंदी में दिनांक 25-10-2011 को एक शिकायती पत्र जिला उद्यान अधिकारी कम्पनी बाग, सहारनपुर को लिखा कि उसके 3328 कट्टे आलू अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में रखे है जो खराब हो गये है और उनकी बाजार में कोई कीमत नहीं है। उसके बाद उसने पुन: एक स्मृति पत्र दिनांक 28-10-2011 को जिला उद्यान अधिकारी कम्पनी बाग, सहारनपुर को लिखा तब जिला उद्यान अधिकारी ने प्रत्यर्थी/परिवादी से स्पष्टीकरण मांगा जिस पर उसने दिनांक 31-10-2011 को विस्तृत विवरण देते हुए उन्हें पत्र लिखा और स्थिति स्पष्ट की। तत्पश्चात् दिनांक 01-11-2011 को जिला उद्यान अधिकारी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी के प्रांगण का निरीक्षण किया गया और प्रत्यर्थी/परिवादी के 3328 कट्टे आलू जहॉं रखे थे उनका भी निरीक्षण किया गया। निरीक्षण के समय आवेदक के आलू को सही अवस्था में पाया गया तब जिला उद्यान अधिकारी ने विस्तृत रिपोर्ट दिनांक 08-11-2011 को प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रेषित की और उसकी प्रति अपीलार्थी/विपक्षी को भी दी।
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लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी ने यह भी कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने न तो उसकी वाजिबशुदा धनराशि अदा की और न ही आलू के अपने कट्टे उठाये। जबकि उसके आलू की कीमत दिन-प्रतिदिन कम हो रही थी इस कारण उसने कानूनी राय से सूचना अखबार में निकालते हुए और प्रत्यर्थी/परिवादी को सूचित करते हुए आलू की बिक्री कर दी। प्रत्यर्थी/परिवादी को सूचना टेलीग्राम से दिनांक 16-11-2011 से भेजा फिर भी प्रत्यर्थी/परिवादी ने कोई जवाब नहीं दिया। तब एक सूचना दिनांक 20-11-2011 को हिन्दुस्तान समाचार पत्र में प्रकाशित करायी कि उसके यहॉं 3328 व 700 कट्टे आलू के बैंग रखे है और जो अच्छी हालत में है जो भी खरीदने का इच्छुक हो सम्पर्क करें, परन्तु आलू खरीदने के लिए किसी व्यापारी ने सम्पर्क नहीं किया। तो अपीलार्थी/विपक्षी ने आलू के कट्टों की छंटाई करायी जिसमें 3328 कट्टों में 1168 कट्टे बीज के निकले जिनकी मण्डी में उठान नहीं थी क्योंकि माह अक्टूबर में जो आलू की पछेती फसल लगायी जानी थी वह भी लगायी जा चुकी थी। 260 कट्टे वेस्टेज के निकले। शेष 1900 कट्टे आलू अपीलार्थी/विपक्षी ने कृषि उत्पादन मण्डी समिति सहारनपुर में बिक्री के लिए भिजवाये। और कृषि उत्पादन मण्डी समिति के माध्यम से 1900 कट्टे आलू कुल 98,000/-रू0 में बिके जिसमें मण्डी शुल्क 2450/-रू0, कट्टो की छंटाई कराने की मजदूरी 2545/-रू0, मण्डी तक ले जाने का किराया 12/-रू0 प्रति कट्टे के हिसाब से कुल 30450/-रू0 काटे गये गये। इस प्रकार कुल आलू को विक्रय करने के उपरान्त 65,010/-रू0 आलू की बिक्री में बचे। जबकि प्रत्यर्थी/परिवादी के जिम्मा अपीलार्थी/विपक्षी का 7,10,517/-रू0 उस समय बनता था और अत: आलू की बिक्री से प्राप्त
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उपरोक्त धनराशि 65010/-रू0 का समायोजन करने पर अवशेष धनराशि 6,45,507/-रू0 परिवादी/प्रत्यर्थी की देनदारी शेष बची जिस पर 24 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज देने हेतु प्रत्यर्थी/परिवादी उत्तरदायी है और इसकी वसूली हेतु अपीलार्थी/विपक्षी ने दीवानी वाद संख्या-19/2002 किरण कोल्ड स्टोरेज प्रा0लि0 बनाम महेन्द्र पाल, न्यायालय सिविल जज सीनियर डिविजन, सहारनपुर में दिनांक 21-12-2011 को दायर किया है।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी ने यह भी कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी मई, 2011 में उसके यहॉं आलू लेने नहीं आया था और न ही आलू निकासी की कोई बात की थी।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि परिवाद मेसर्स किरन कोल्ड स्टोरेज प्रा0लि0 चिलकाना रोड नजदीक सब्जी मण्डी सहारनपुर डाक व जिला सहारनपुर के विरूद्ध प्रस्तुत किया गया है और कथन किया गया कि मेसर्स किरन कोल्ड स्टोरेज प्रा0लि0 चिलकाना कोई व्यक्ति नहीं है अत: परिवाद इस आधार पर दोषपूर्ण है। इसके साथ ही लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी आलू का भण्डारन कोल्ड स्टोरेज में करके आलू की कीमत को अधिक होने पर उसकी बिक्री करता है।
उभयपक्ष की ओर से जिला फोरम के समक्ष अपने कथन के समर्थन में शपथ पत्र और अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किये गये है।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं साक्ष्य पर विचार करने के उपरान्त यह निष्कर्ष यह निकाला है कि अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का 3328 कट्टा आलू उचित एवं सही तापमान में नहीं रखा, जिससे उसका
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आलू व बीज गलकर खराब हो गया। जिला फोरम ने यह भी निष्कर्ष निकाला है कि अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी की सहमति के बिना उसका आलू बेच दिया। जिला फोरम ने सम्पूर्ण तथ्यों और साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रत्यर्थी/परिवादी यह सिद्ध करने में पूर्ण रूप से सफल रहा है कि अपीलार्थी/विपक्षी का कृत्य अनुचित व्यापार पद्धति एवं सेवा में कमी की श्रेणी अन्तर्गत आता है।
इसके साथ ही जिला फोरम ने यह निष्कर्ष भी निकाला है कि प्रत्यर्थी/परिवादी याचित उपशम पाने का अधिकारी है। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए आक्षेपित निर्णय और आदेश उपरोक्त प्रकार से पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के वि'द्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विपरीत है। अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी की सेवा में कोई कमी नहीं की है। स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादी ने आलू का बाजारू मूल्य कम होने के कारण आलू की डिलीवरी प्राप्त नहीं की है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा आलू की डिलीवरी प्राप्त न किये जाने के कारण अपीलार्थी/विपक्षी को आलू की बिक्री करनी पड़ी है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के आलू की बिक्री उत्तर प्रदेश कोल्ड स्टोरेज विनियम अधिनियम-1976 के अनुसार जिला उद्यान अधिकारी को सूचना देकर और समाचार पत्र में विज्ञापन प्रकाशित करने के उपरान्त मण्डी समिति के माध्यम से की गयी
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है अत: आलू की बिक्री में भी अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से कोई चूक नहीं की गयी है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी से 4,00,000/-रू0 अग्रिम लिया है। यह अग्रिम धनराशि व उस पर देय ब्याज और कोल्ड स्टोरेज का भाड़ा अपीलार्थी/विपक्षी को प्रत्यर्थी/परिवादी अदा नहीं करना चाहता है और उससे बचने के लिए उसने झूठे कथन के साथ परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश निरस्त करते हुए परिवाद अपास्त किया जाए।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी आलू की बिक्री का व्यापार करता है और उसने व्यापारिक उद्देश्य से आलू अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में रखा था अत: धारा-2 (1)(d) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है और उसके द्वारा प्रस्तुत परिवाद ग्राह्य नहीं है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने मेसर्स किरन कोल्ड स्टोरेज प्राइवेट लिमिटेड के विरूद्ध परिवाद प्रस्तुत किया है और उसके प्रोपराइटर अथवा स्वामी को पक्षकार नहीं बनाया है इस कारण भी परिवाद दोषपूर्ण है। प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्कहै कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय व आदेश विधि व साक्ष्य के अनुकुल है। अपीलार्थी/विपक्षी ने आलू के कोल्ड स्टोरेज में उचित रख-रखाव में चूक की है जिससे आलू क्षतिग्रस्त हुआ है। इतना ही नहीं
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उसने आलू विधि विरूद्ध ढंग से प्रत्यर्थी/परिवादी को सूचित किये बिना व नियम का पालन किये बिना बेचकर उसकी धनराशि स्वयं प्राप्त की है।
प्रत्यर्थी/परिवादी का यह भी तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी से कोई ऋण या अग्रिम धनराशि प्राप्त नहीं किया है और कोल्ड स्टोरेज का भाड़ा भी उसके जिम्मे अवशेष नहीं है। इस संदर्भ में अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा किया गया कथन गलत और निराधार है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी को जो प्रतिकर व क्षतिपूर्ति की धनराशि अदा करने हेतु अपीलार्थी/विपक्षी को आदेशित किया है वह उचित और विधिसम्मत है। जिला फोरम के निर्णय में हस्तक्षेप हेतु कोई उचित आधार नहीं है। अपील बल रहित है और निरस्त किये जाने योग्य है।
हमने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
उभयपक्ष के अभिकथन एवं उनके विद्धान अधिवक्तागण के तर्क के आधार पर प्रथम विचारणीय बिन्दु यह है कि क्या प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2(1) (d) के अन्तर्गत उपभोक्ता है और उसकी ओर से प्रस्तुत यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादी कोल्ड स्टोरेज में आलू का भण्डारन कर उसकी बिक्री कर व्यापार करता है। उसने आलू व्यापारित उद्देश्य से कोल्ड स्टोरेज में रखे थे।
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अत: वह धारा-2(1) (d) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता नहीं है। अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा Laxmi Engineering Works Vs. P.S.G. Industrial Institute II(1995)CPJ 1 (SC) में दिये गये निर्णय की नजीर प्रस्तुत की है जिसमें मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने निम्न मत व्यक्त किया है।
(ii) Whether the purpose for which a person has bought goods is a "commercial purpose" within the meaning of the definition of expression "consumer" in Section 2 (d) of the Act is always a question of fact to be decided in the facts and circumstances of each case.
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का कथन है कि उसने आलू को सुरक्षित रखने हेतु आलू का भण्डारन अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में किया है और अपीलार्थी/विपक्षी को वही लू उसे वापस करना है। अत: प्रत्यर्थी परिवादी धारा-2(1) (d) के अन्तर्गत उपभोक्ता है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा Sarju Cold Storage Vs. Rameshwar Dayal Goyal II (2017)CPJ 355 (NC) के वाद में दिये गये निर्णय को संदर्भित किया है जिसके प्रस्तर-7 में मा0 राष्ट्रीय आयोग ने निम्न मत व्यक्ति किया है ''
7.Learned Counsel for OP submitted that complainant was carrying on business of purchase and sale of Kalimirch so
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he does not fall within purview of consumer. It is not disputed that complainant was carrying on business and in pursuance to his business; he deposited Kattas of Kalimirch with OP on payment of charges. Learned Counsel for the respondent has placed reliance on judgment of this Commission in R.P. No. 4246 of 2008 M/s. Sarju Cold Storage v. M/s. Mohan and Brothers & Anr., in which it was observed that in the light of judgement of this Commission in Harsolia Motors v. National Insurance Co. Ltd., complainant by keeping the perishable goods in a cold storage cannot be termed as utilizing services of cold storage for commercial purposes to earn profit. I agree with the aforesaid view because complainant deposited goods with OP for preservation of goods which were required to be kept safely by OP and was required to retrun those goods as and when demanded. So there was no question of availing services of OP for commercial purpose.
वर्तमान वाद के तथ्य पर मा0 राष्ट्रीय आयोग उपरोक्त निर्णय में प्रतिपादित सिद्धांत पूर्णतया लागू होता है। अत: यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज की सेवा वाणिज्यिक उद्देश्य से प्राप्त की गयी है।
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अब विचारणीय बिन्दु यह है कि क्या अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी के आलू के कोल्ड स्टोरेज में अनुरक्षण व उसके रख-रखाव की व्यवस्था में चूक की है जिससे आलू खराब हुआ है।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र की धारा-8 में कथन किया है कि ''आज भी परिवादी का आलू विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में पड़ा हुआ है जो विपक्षी की लापरवाही से सड़ रहा है।''
परिवाद दिनांक 25-10-2011 को परिवादी द्वारा प्रस्तुत किया गया है।
अपीलार्थी/विपक्षी ने अपने लिखित कथन की धारा-19 में कथन किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी बहुत चालाक है और पेशबंदी के तहत उसने दिनांक 25-10-2011 को एक शिकायती पत्र जिला उद्यान अधिकारी, कम्पनी बाग, सहारनपुर को लिखा कि उसके 3328 कट्टे आलू मेसर्स किरन कोल्ड स्टोरेज, चिलकाना रोड, सहारनपुर में रखे है जो खराब हो गये है और बाजार में उसकी कीमत नहीं है। उसके बाद पुन: दिनांक 28-10-2011 को उसने जिला उद्यान अधिकारी को स्मृति पत्र भेजा तब जिला उद्यान अधिकारी ने विपक्षी से स्पष्टीकरण दिनांक 29-10-2011 को मांगा और अपीलार्थी/विपक्षी ने अपना स्पष्टीकरण दिनांक 31-10-2011 को प्रस्तुत किया। तदोपरान्त जिला उद्यान अधिकारी ने दिनांक 01-11-2011 को विपक्षी/अपीलार्थी के प्रांगण में आकर जॉंच की और जहॉं प्रत्यर्थी/परिवादी के 3328 कट्टे आलू रखे थे उनका निरीक्षण किया। जॉंच पर आलू को सही अवस्था में पाया।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से आयोग के समक्ष प्रस्तुत लिखित तर्क की धारा-8 में यह कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने जिला उद्यान अधिकारी,
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सहारनपुर को दिनांक 25-10-2011 को एक पत्र लिखा जिसमें प्रत्यर्थी/परिवादी ने 3328 कट्टे आलू जिनमें प्रत्येक का वजन 50 कि0ग्रा0 है कोल्ड स्टोरेज में रखे होने की बात लिखी और यह भी लिखा कि कोल्ड स्टोरेज के संचालक की लापरवाही के कारण व सही तापमान में आलू न रखे जाने के कारण उसका आलू खराब हो गया। उसके बाद जॉंच रिपोर्ट तैयार करने की बावत दिनांक 28-10-2012 को एक रजिस्टर्ड पत्र जिला उद्यान अधिकारी, सहारनपुर को लिखा।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से प्रस्तुत लिखित कथन की धारा-8 में उपरोक्त कथन के साथ यह भी कथन किया गया है कि जिला उद्यान अधिकारी ने प्रत्यर्थी/परिवादी को मौके पर, सांठ-गाठ कर कोल्ड स्टोरेज के संचालक से साजिश करके नहीं बुलाया और प्रत्यर्थी को जानबूझकर नजरअंदाज करके झूठी और अधूरी रिपोर्ट अपने दफ्तर में बनाकर मनमाने ढंग से जारी कर दी जो कानूनन गलत है। प्रत्यर्थी के लिखित कथन के उपरोक्त प्रस्तर-8 से यह स्पष्ट है कि जिला उद्यान अधिकारी ने प्रत्यर्थी/परिवादी की शिकायत को उचित न मानते हुए उसके विरूद्ध तथ्य अंकित किये है।
बहस के दौरान जिला उद्यान अधिकारी की रिपोर्ट दिनांक 08-11-2011 अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता ने दर्शित की है जिसमें अंकित है कि उन्होंने दिनांक 01-11-2011 को अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में प्रत्यर्थी/परिवादी के भण्डारित 3328 कट्टे आलू का निरीक्षण किया और आलू बिल्कुल सही अवस्था में पाया।
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अत: उभयपक्ष के अभिकथन एवं उनके तर्क के आधार पर यह मानने हेतु उचित आधार है कि जो 3328 कट्टे आलू अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में भण्डारित थे उनका निरीक्षण जिला उद्यान अधिकारी ने दिनांक 01-11-2011 को करके जो रिपोर्ट तैयार की है उसमें आलू सही अवस्था में होना अंकित किया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि जिला उद्यान अधिकारी ने रिपोर्ट गलत दी है। जिला उद्यान अधिकारी एक जनसेवक है अत: उनके द्वारा तैयार की गयी गयी रिपोर्ट को तबतक गलत नहीं माना जा सकता है जबतक कि उसे गलत साबित न कर दिया जाए, परन्तु जिला उद्यान अधिकारी की रिपोर्ट गलत मानने हेतु कोई उचित और युक्तिसंगत आधार नहीं दिखता है।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद प्रस्तुत करने के पश्चात जिला फोरम के समक्ष अपने आलू की समुचित प्रयोगशाला से या अन्य सुसंगत श्रोत से विश्लेषण या परीक्षण की रिपोर्ट प्राप्त करने हेतु आवेदन नहीं दिया है और आलू खराब होने के संबंध में किसी विशेषज्ञ की कोई आख्या जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत नहीं की है।
अत: सम्पूर्ण तथ्यों और साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी यह दर्शित करने में असफल रहा है कि जिला उद्यान अधिकारी ने गलत रिपोर्ट तैयार की है।
अत: सम्पूर्ण तथ्यों, साक्ष्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि जिला उद्यान अधिकारी की आख्या पर
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विश्वास न करने का कोई उचित कारण नहीं है और जिला फोरम ने जिला उद्यान अधिकारी की आख्या पर विश्वास न करके गलती की है।
सम्पूर्ण तथ्यों, साक्ष्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी यह साबित करने में असफल रहा है कि अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा आलू के भण्डारन व अनुरक्षण में लापरवाही अथवा चूक करने के कारण उसका 3328 कट्टा आलू खराब हुआ है। परन्तु यह निर्विवादित तथ्य है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को आलू की डिलीवरी नहीं मिली है और अपीलार्थी/विपक्षी ने उसके आलू की स्वयं बिक्री की है यह अपीलार्थी/विपक्षी को भी स्वीकार है। अत: प्रश्न यह उठता है कि क्या अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी के आलू की बिक्री समस्त औपचारिकताऍं पूरी करते हुए उत्तर प्रदेश कोल्ड स्टोरेज विनियमन अधिनियम-1976 के प्राविधान के अनुसार की है, इस संदर्भ में उत्तर प्रदेश कोल्ड स्टोरेज विनियमन अधिनियम-1976 की धारा-17 महत्वपूर्ण है जिसका संगत अंश निम्न है।
''17(1) जब कभी किसी कोल्ड स्टोरेज में स्टोर किया गया माल ऐसे कोरण से जो लाइसेन्सधारी के नियंत्रण से परे हो, खराब होने लगे या उसके खराब हो जाने की सम्भावना हो, या किरायादाता कोल्ड स्टोरेज में स्टोर किये गये माल की रसीद में उसके लिए विनिदिष्ट दिनांक से, पन्द्रह दिन की अवधि के भीतर उभये तो लाइसेन्सधारी किरायादाता को तुरन्त उसका नोटिस देगा जिसमें उससे सम्यक रूप से उन्मोचित रसीद अभ्यर्पित करने और लाइसेंसधारी को देय समस्त प्रभार का भुगतान करने के पश्चात माल
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को तुरन्त उठाने की अपेक्षा की जायेगी, और ऐसे नोटिस की एक प्रति लाइसेंस अधिकारी को भेजेगा।
(2) जहॉं किरायादाता उपधारा (1) में निर्दिष्ट नोटिस का पालन उसे तामील किये जाने के दिनांक से सात दिन की अवधि केभीतर न करें वहॉं लाइसेंसधारी माल को कोल्ड स्टोरेज से कटवा सकता है और उसे किरायादाता के खर्च और जोखिम पर सार्वजनिक नीलाम द्वारा बिकवा सकता है :
परन्तु लाइसेंसधारी लाइसेंस अधिकारी को ऐसी बिक्री की सूचना बिक्री के कम से कम अड़तालिस घंटे पूर्व देगा, और लाइसेंस अधिकारी ऐसी बिक्री का पयवेक्षण या तो स्वयं या अपने द्वारा उस निमित्त प्राधिकृत अधिकारी के माध्यम से करेगा।''
अपीलार्थी/विपक्षी ने अपने लिखित कथन की धारा-11 में कहा है कि दिनांक 16-11-2011 को उसने टेलीग्राम प्रत्यर्थी/परिवादी को भेजा परन्तु टेलीग्राम के बाद भी प्रत्यर्थी ने कोई जवाब नहीं दिया तब दिनांक 20-11-2011 को उसने हिन्दुस्तार समाचार पत्र में सूचना प्रकाशित करायी परन्तु किसी व्यापारी ने आलू खरीदने हेतु सम्पर्क नहीं किया तब उसने आलू की बिक्री कर दी। अपीलार्थी की ओर से आयोग के समक्ष प्रस्तुत लिखित तर्क की धारा-2 H में आलू की बिक्री दिनांक 19-11-11, 21-11-11 एवं 22-11-2011 को किये जाने का उल्लेख है। अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से न तो अपने लिखित कथन में जिला फोरम के समक्ष और न ही आयोग के समक्ष प्रस्तुत लिखित तर्क में आलू की बिक्री की सूचना लाईसेसिंग अधिकारी अर्थात जिला उद्यान अधिकारी को दिये जाने का उल्लेख है। अत:
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अपीलार्थी/विपक्षी के द्वारा जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत लिखित कथन एंव अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत लिखित तर्क के कथन से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को दिनांक 16-11-2011 को टेलीग्राम भेजे जाने के बाद 07 दिन की अवधि पूरी हुए बिना अपीलार्थी/विपक्षी ने आलू की बिक्री कर दी है और इस बिक्री की कोई सूचना जिला उद्यान अधिकारी को नहीं दी है। अपीलार्थी/विपक्षी ने आलू बिक्री के संबंध में सूचना समाचार पत्र में दिनांक 20-11-2011 को प्रकाशित कराना बताया है, जबकि उसने दिनांक 19-11-2011 को ही आलू की पहली बिक्री की है तथा उसके बाद दिनांक 21-11-2011 और दिनांक 22-11-2011 को आलू की बिक्री की है इस प्रकार उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा आलू की डिलीवरी न प्राप्त किये जाने पर उसके आलू की बिक्री उत्तर प्रदेश कोल्ड स्टोरेज विनियमन अधिनियम-1976 की धारा-17 में दी गयी औपचारिकताऍं पूरी किये बिना किया है।
धारा-17 में यह स्पष्ट प्राविधान है कि बिक्री सार्वजनिक नीलामी के द्वारा की जायेगी और उसकी सूचना लाईसेसिंग अधिकारी को दी जायेगी, जो कि बिक्री का परिवेक्षण स्वयं अथवा नामित अधिकारी के माध्यम से करेंगे, परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी ने लाईसेसिंग अधिकारी अर्थात जिला उद्यान अधिकारी को सूचना दिये बिना आलू की बिक्री किया है और सार्वजनिक नीलामी की प्रक्रिया अपनाये बिना किया है।
अत: सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए हम इस मत के हैं कि अपीलार्थी/विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी के आलू की बिक्री में उत्तर प्रदेश कोल्ड स्टोरेज विनियमन अधिनियम-1976 के प्राविधान का पालन न करके सेवा में त्रुटि की है और जिला उद्यान अधिकारी की
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उपरोक्त आख्या से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के 3328 कट्टा आलू उनके निरीक्षण की तिथि दिनांक 01-11-2011 के समय सही अवस्था में पाये गये थे। अत: अपीलार्थी/विपक्षी आलू का मूल्य प्रत्यर्थी/परिवादी को अदा करने हेतु उत्तरदायी है।
जिला फोरम ने आलू के मूल्य व उसे कोल्ड स्टोरेज में लाने में हुए व्यय सहित कुल धनराशि 5,00334/-रू0 निर्धारित किया है, जिसमें आलू का मूल्य रू0 4,40,187/-रू0 है जिला फोरम द्वारा निर्धारित इस धनराशि के आधार पर आलू का मूल्य करीब 250/-रू0 प्रति कुन्तल निकलता है जो उचित एवं युक्तिसंगत प्रतीत होता है। जिला फोरम ने आलू के मूल्य में जो भाड़ा एवं अन्य खर्च क्षतिपूर्ति हेतु जोड़ा है वह उचित नहीं है क्योंकि प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्वयं बिना किसी उचित कारण के आलू नहीं लिया है अत: उसे आलू का मूल्य रूपया 4,40,187/- दिया जाना ही उचित है। जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय और आदेश के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि जिला फोरम ने कथित रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी का आलू खराब होने के कारण उसके खेतों की बुआई न होने के आधार वित्तीय क्षति 5,00,000/-रू0 एवं उसके द्वारा किसानों को अदा किये गये हर्जाना की 3,40,000/-रू0 अर्थात कुल 8,40,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति आलू मूल्य के अलावा प्रदान की है। इसके साथ ही 1,00,000/-रू0 मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति व 5,000/-रू0 वाद व्यय प्रदान किया है।
उपरोक्त निष्कर्ष से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का यह तर्क मानने हेतु उचित एवं तर्कसंगत आधार नहीं है कि उसका आलू खराब हो गया था। उसके द्वारा आलू की डिलीवरी अपीलार्थी/विपक्षी से प्राप्त न करने का
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बताया गया कारण मान्यता प्रदान किये जाने योग्य नहीं है। ऐसी स्थिति में यह मानने हेतु उचित आधार है कि स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज से निश्चित समय के अंदर आलू प्राप्त करने में चूक की गयी है।
ऐसी स्थिति में हम इस मत के हैं कि जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी को जो वित्तीय क्षति के मद में 5,00,000/-रू0 और किसानों को दिये गये हर्जें के रूप में 20,000/-रू0 प्रति एकड की दर से 3,40,000/-रू0 तथा मानसिक कष्ट की क्षतिपूर्ति हेतु 1,00,000/-रू0 दिलाया है वह उचित और युक्तिसंगत नहीं है।
जिला फोरम ने परिवाद दायर किये जाने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 09 प्रतिशत का जो ब्याज दिया है वह उचित है और इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, परन्तु उपरोक्त निष्कर्ष से यह स्पष्ट है कि जिला फोरम द्वारा प्रदान की गयी क्षतिपूर्ति की धनराशि को संशोधित कर कम किया जाना उचित है।
अंत में यह उल्लेख करना आवश्यक है कि अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से जो 4,00,000/-रू0 अग्रिम प्रत्यर्थी/परिवादी को दिये जाने का कथन किया गया है उक्त अग्रिम की धनराशि व उस पर कथित रूप से देय ब्याज की धनराशि एवं कोल्ड स्टोरेज के किराया की धनराशि के संबंध में अपीलार्थी/विपक्षी ने जिला दीवानी न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया है और जिला न्यायालय के समक्ष वह वाद विचाराधीन है। अत: अग्रिम की उपरोक्त धनराशि 4,00,000/-रू0 व उस पर देय ब्याज एवं कोल्ड स्टोरेज के भाड़े के संबंध में इस स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत प्रस्तुत
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वर्तमान परिवाद अथवा अपील में कोई निर्णय दिया जाना विधि सम्मत नहीं है। इस बिन्दु पर निर्णय देने हेतु जिला दीवानी न्यायालय ही सक्षम है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस मत के हैं कि अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए और
जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश को संशोधित करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी को यह आदेशित किया जाना उचित है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को 4,40,187/-/-रू0 परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज सहित अदा करें। इसके साथ ही जिला फोरम द्वारा वाद व्यय के रूप में आदेशित धनराशि 5,000/-रू0 भी अपीलार्थी/विपक्षी प्रत्यर्थी/परिवादी को अदा करेगा।
आदेश
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश को संशोधित करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को रू0 4,40,187/-/-रू0 परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज सहित अदा करेगा। अपीलार्थी/विपक्षी प्रत्यर्थी/परिवादी को जिला फोरम द्वारा आदेशित 5,000/-रू0 वाद व्यय भी अदा करेगा।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि ब्याज सहित जिला फोरम को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
(न्यायमूर्ति अख्यतर हुसैन खान) (बाल कुमारी)
अध्यक्ष सदस्य
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा