Final Order / Judgement | (मौखिक) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। अपील सं0 :- 2211/2015 (जिला उपभोक्ता आयोग, भदोही द्वारा परिवाद सं0- 66/2012 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 10/09/2015 के विरूद्ध) Anirudh Prasad Tiwari aged about 71 years, S/O Late Ram Nath Tripathi R/O Village Dahirpur/Shikarpur, Police Station-Patralaya Kanza, Distt-Jaunpur. - Appellant
Versus - Mahindra & Mahindra Finance Co. Ltd, Mahindra Towers, 2nd floor, In Front of HAL, Lucknow- Faizabad Road, Indira Nagar, Lucknow, through Zonal manager.
- Present Branch Manager, Mahindra & Mahindra Finance Co. Ltd. Naiganj Branch, Police Station-Kotwali Distt-Jaunpur
- Contemporary Branch Manager, Shailesh Srivastava, Naiganj, Mahindra & Mahindra Finance Co. Ltd. Jaunpur.
समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
उपस्थिति: अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री आर0के0 मिश्रा प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री ए0के0 श्रीवास्तव दिनांक:-07.09.2022 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - परिवाद सं0 66/2012 अनिरूद्ध प्रसाद तिवारी बनाम महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा, फाइनेंस कम्पनी लिमिटेड में पारित निर्णय व आदेश दिनांक 10.09.2015 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गयी है। इस आदेश द्वारा परिवाद इस आधार पर खारिज किया गया है कि परिवाद सं0 54/2003 में दिनांक 02.01.2004 को जिला उपभोक्ता मंच, जौनपुर द्वारा निर्देशित किया गया था कि फाइनेंस कम्पनी को सम्पूर्ण कर्ज की किस्तें अदा कर दें और उसके बाद फाइनेंस कम्पनी परिवादी को जीप उसके अभिरक्षा में दे दे। यह आदेश अंतिम चुका है। परिवादी द्वारा किस्ते अदा नहीं की गयी। परिवादी को जीप न मिलने के लिए फाइनेंस कम्पनी उत्तरदायी नहीं है इसलिए फाइनेंस कम्पनी द्वारा अन्य व्यक्ति को विक्रय कर दिया गया है, तदनुसार परिवाद खारिज कर दिया गया है।
- इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय विधि विरूद्ध है। साक्ष्य की सही व्याख्या नहीं की गयी है। जौनपुर से भदोही में परिवाद सं0 54/2003 राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा अंतरित किया गया था इसलिए दूसरे परिवाद को रेस ज्यूडिकेटा से बाधित नहीं कहा जा सकता। वाहन को जबरदस्ती खींचा गया था। आपराधिक वाद लम्बित रहते हुए वाहन अवमुक्त किया गया था। अपीलार्थी द्वारा 3,00,000/- रूपये की सेक्योरिटी दी गयी थी। अंतरित केस पर नया नम्बर 66 सन 2012 दर्ज किया गया था, परंतु जिला उपभोक्ता मंच ने इस तथ्य को विचार में नहीं लिया, इसलिए परिवाद सं0 66 सन 2012 में पारित आदेश अपास्त होने योग्य है और परिवाद स्वीकार होने योग्य है।
- दोनों पक्षों के विद्धान अधिवक्ताओं को सुना। पत्रावली का अवलोकन किया। परिवाद सं0 22/2010 अपीलार्थी/परिवादी द्वारा इस अनुतोष के लिए प्रस्तुत किया कि 06 वर्ष तक फाइनेंस कम्पनी द्वारा जीप अपने कब्जे में रखी गयी। अपीलार्थी/परिवादी इसका उपभोग नहीं कर सका इसलिए जीप की कीमत 1,00,000/- रूपये घटाई गयी, इसलिए परिवादी को निर्धारित मार्शल डीलक्स जीप के मूल्य के अनुसार कीमत अथवा जीप दिलाने का आदेश दिया जाये। मानसिक प्रताड़ना के मद में 20,000/- रूपये के अनुरोध की मांग की गयी। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय के अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवाद सं0 54/2003 में दिनांक 02.01.2004 को जिला उपभोक्ता आयोग, जौनपुर द्वारा यह निर्देश दिया गया था कि फाइनेंस कम्पनी को सम्पूर्ण कर्ज की किस्तें अदा कर दे और उसके बाद फाइनेसं कम्पनी परिवादी की जीप को उसके अभिरक्षा में दे दे, परंतु स्वयं अपीलार्थी/परिवादी द्वारा किस्ते अदा नहीं की गयी इसलिए बीमा कम्पनी को लापरवाही के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
- प्रस्तुत परिवाद में अपीलार्थी/परिवादी का यह कथन है कि बीमा कम्पनी द्वारा 06 साल तक जीप अवैध रूप से अपने पास रखी गयी। परिवाद पत्र के पैरा 6 में स्पष्ट उल्लेख है कि अपीलार्थी/परिवादी कुछ किस्तें जमा नहीं कर सका था। परिवाद पत्र में यह उल्लेख है कि पूर्व में जो परिवाद प्रस्तुत किया गया वह परिवाद जीप वापस दिलाने के लिए था और इस परिवाद की स्थिति भिन्न है क्योंकि यह परिवाद फाइनेंस कम्पनी ने अपना हिसाब-किताब करने तथा उत्पीड़न हुई यातना का नुकसान लेने हेतु प्रस्तुत किया जा रहा है और लगातार 06 वर्षों तक अपीलार्थी/परिवादी की जीप का उपयोग विपक्षीगण द्वारा अवैध रूप से किया गया है। यथार्थ में पूर्व में प्रस्तुत किये गये परिवाद पर पारित निर्णय के विरूद्ध परिवादी द्वारा कोई अपील नहीं की गयी न ही निर्णय का अनुपालन किया गया। अवशेष किस्त जमा नहीं की गयी। यह परिवाद रेस ज्यूडिकेटा के सिद्धांत से बाधित है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा विधिसम्मत निर्णय पारित किया गया है, इसलिए कोई हस्तक्षेप अपेक्षित नहीं है तदनुसार अपील खारिज होने योग्य है।
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अपील खारिज की जाती है। प्रश्नगत निर्णय व आदेश की पुष्टि की जाती है। अपील में उभय पक्ष अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (विकास सक्सेना) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-2 | |