Shri Abid Hussain filed a consumer case on 12 Feb 2018 against Mahindra & Mahindra Finance in the Muradabad-II Consumer Court. The case no is CC/32/2016 and the judgment uploaded on 19 Feb 2018.
Uttar Pradesh
Muradabad-II
CC/32/2016
Shri Abid Hussain - Complainant(s)
Versus
Mahindra & Mahindra Finance - Opp.Party(s)
Mohd. Varis
12 Feb 2018
ORDER
परिवाद प्रस्तुतिकरण की तिथि: 16-4-2016
निर्णय की तिथि: 12.02.2018
कुल पृष्ठ-7(1ता7)
न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद
उपस्थिति
श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष
श्री सत्यवीर सिंह, सदस्य
परिवाद संख्या-32/2016
आबिद हुसैन पुत्र श्री नसरूद्दीन निवासी ग्राम व डाकखाना डींगरपुर, थाना मैनाठेर, तहसील बिलारी, जिला मुरादाबाद, राज्य उत्तर प्रदेश। ….....परिवादी
बनाम
महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा फाईनेन्शियल सर्विसेज लि. रस्तौगी कॉम्पलेक्स, प्रथम तल, येस बैंक के ऊपर, धर्म कांटे के पास, दिल्ली रोड, मुरादाबाद, राज्य उत्तर प्रदेश द्वारा उसके मैनेजर। …........विपक्षी
(श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित)
निर्णय
इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने यह अनुतोष मांगा है कि विपक्षी को आदेशित किया जाये कि वह परिवादी का ट्रक सं.-यूपी-21एएन-6971 परिवादी को वापस करे अथवा परिवादी को उसका बाजारू मूल्य अंकन-16,00,000/-रूपये अदा करे। परिवादी ने यह भी अनुतोष मांगा है कि विपक्षी को आदेशित किया जाये कि उक्त ट्रक को किसी अन्य व्यक्ति को न बेचे। क्षतिपूर्ति एवं परिवाद व्यय परिवादी ने अतिरिक्त मांगा है।
संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं ट्रक खरीदने हेतु परिवादी ने दिनांक 01-9-2012 को विपक्षी से 15,75,000/-रूपये का ऋण लिया था। अंकन-25,000/-रूपये विपक्षी के पास नकद जमा किये। एग्रीमेंट निष्पादित हुआ, जिसके अनुसार ऋण की धनराशि 46 मासिक किस्तों में परिवादी द्वारा विपक्षी को दिनांक 04-10-2016 तक अदा की जानी थी। ट्रक खरीदने के बाद चेसिस इत्यादि बनवाने में परिवादी के लगभग 6 लाख रूपये खर्च आये। आरटीओ कार्यालय में उसे पंजीयन संख्या-यूपी-21एएन-6971 पर पंजीकृत किया गया। उक्त ट्रक जब माल लेकर पहली बार भेजा गया तो रास्ते में ही खराब हो गया। उसमें डीजल की खपत भी ज्यादा थी। शिकायत करने पर विपक्षी ने अपने इंजीनियर से उसे चैक कराया और डिफाल्ट दूर किया। परिवादी के अनुसार इस ट्रक के संचालन में निरन्तर तकनीकी खराबियां आती रहीं। वह लगभग 11 लाख रूपये का भुगतान विपक्षी को कर चुका था। विपक्षी के एक कर्मचारी के कहने पर उसने सवेश कुमार नाम के एक व्यक्ति के खाते में 10 हजार रूपये अतिरिक्त जमा किये, जिन्हें विपक्षी ने ऋण खाते में समायोजित नहीं किया है। परिवादी का अग्रेत्तर कथन है कि बिना किसी पूर्व सूचना के विपक्षी ने उक्त ट्रक को डरा-धमकाकर अपने गुण्डों के बल पर जिला सिल्चर(आसाम) में दिनांक 16-12-2015 को जब्त कर लिया। परिवादी की ओर विपक्षी के केवल अंकन-4,75,000/-रूपये निकल रहे थे, जबकि तब तक अदा किये जा चुके ऋण को जोड़ते हुए ट्रक की उस समय कीमत अंकन-17,25,000/-रूपये थी। परिवादी के बार-बार अनुरोध के बावजूद विपक्षी ने परिवादी का ट्रक वापस नहीं किया। उसने विपक्षी को कानूनी नोटिस भी भिजवाया किन्तु विपक्षी ने ट्रक उसे नहीं दिया और धमकी दी कि बिना परिवादी को सूचित किये विपक्षी ट्रक को बेच देंगे और परिवादी को कुछ नहीं दिया जायेगा। परिवादी ने यह कहते हुए कि विपक्षी के कृत्य सेवा में कमी हैं, परिवाद में अनुरोधित अनुतोष स्वीकार किये जाने की प्रार्थना की।
परिवाद कथनों के समर्थन में परिवादी ने अपना शपथपत्र कागज सं.-3/4 लगायत 3/5 दाखिल किया। उसने ट्रक की आरसी, बीमा शैडयूल, ट्रक जब्त किये जाने के संबंध में विपक्षी द्वारा बनायी गई इन्वेन्ट्री लिस्ट, समय-समय पर विपक्षी को भुगतान की गई ऋण किस्तों की रसीदात और दिनांक 10-3-2016 को भिजवाये गये कानूनी नोटिस की नकल को दाखिल किया। ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-3/6 लगायत 3/20 हैं। परिवादी ने फोरम की अनुमति लेकर ऋण की किस्तों की अदायगी की शेष रसीदें भी दिनांक 10-5-2016 को पत्रावली में दाखिल की। इन रसीदों की छायाप्रतियां पत्रावली के कागज सं.-5/2 लगायत 5/19 हैं।
विपक्षी की ओर से डिप्टी लीगल मैनेजर के शपथपत्र से समर्थित प्रतिवाद पत्र कागज सं.-9/1 लगायत 9/9 दाखिल हुआ, जिसमें परिवाद कथनों को असत्य, आधारहीन एवं तथ्यों के विपरीत बताते हुए और यह कहते हुए कि परिवादी ‘’उपभोक्ता’’ की श्रेणी में नहीं आता, विपक्षी द्वारा सेवा प्रदान करने में कोई कमी अथवा लापरवाही नहीं की गई, परिवादी को कोई वाद हेतुक उत्पन्न नहीं हुआ और परिवाद कालबाधित है, परिवाद को खारिज किये जाने की प्रार्थना की। अग्रेत्तर कथन किया गया कि परिवादी ने सही तथ्यों को छिपाया है, वह ऋण की अदायगी में डिफाल्टर रहा है। ऋण किस्तों की अदायगी हेतु उसे समय-समय पर नोटिस भेजे गये किन्तु उसने ऋण की अदायगी नहीं की, मजबूर होकर विपक्षी ने एग्रीमेंट की शर्तों के अनुसार आर्बीट्रेटर के समक्ष मामला दायर किया, जिसपर आर्बीट्रेटर ने अपना फैसला परिवादी के विरूद्ध सुनाया। अग्रेत्तर कथन किया गया कि परिवादी का यह कथन असत्य है कि ट्रक को विपक्षी ने अपने गुण्डों के माध्यम से परिवादी से जबरदस्ती छीना हो बल्कि सही बात यह है कि परिवादी ने अपने प्रतिनिधि के माध्यम से दिनांक 16-12-2015 को ट्रक सरेण्डर(समर्पित) किया था। ट्रक को बेचने से पहले विपक्षी ने परिवादी को ऋण अदायगी हेतु एक ओर अवसर देते हुए नोटिस भेजा था, इसके अतिरिक्त संबंधित थाने में भी विपक्षी ने सूचना दर्ज करायी थी किन्तु परिवादी द्वारा ऋण अदायगी नहीं की गई। परिवादी का यह कथन भी असत्य है कि उसने विपक्षी को लगभग 11 लाख रूपये की अदायगी कर दी हो और विपक्षी के किसी कर्मचारी को 10 हजार रूपये दिये हों। विपक्षी ने उक्त कथनों के आधार पर यह कहते हुए कि परिवाद असत्य कथनों पर आधारित है और सही तथ्यों को छिपाया गया है, परिवाद को सव्यय खारिज किये जाने की प्रार्थना की।
प्रतिवाद पत्र के साथ विपक्षी ने लोन एग्रीमेंट, ऋण अदायगी से संबंधित स्टेटमेंट आफ एकाउन्ट, परिवादी और ऋण के गारन्टर को ऋण अदायगी हेतु भेजे गये पत्र, आर्बीट्रेटर द्वारा आर्बीट्रेशन की कार्यवाही के परिवादी तथा गारन्टर को भेजे गये नोटिस दिनांकित 13-8-2014, 16-8-2014, 26-8-2014 तथा 29-9-2014, आर्बीट्रेटर द्वारा दिनांक 29-11-2014 को परिवादी के विरूद्ध पारित आर्बीट्रेशन अवार्ड, ऋण अदायगी हेतु समय दिये जाने के लिए परिवादी द्वारा लिखे गये पत्र, इन्वेन्ट्री लिस्ट, विपक्षी द्वारा ट्रक को कब्जे में लेने से पूर्व संबंधित थाने में दी गई सूचना, ट्रक को कब्जे में लेने के उपरान्त पुलिस को पुन: दी गई सूचना, परिवादी के प्रतिनिधि द्वारा ट्रक सरेण्डर करने हेतु विपक्षी के शाखा प्रबन्धक को दिये गये हस्त लिखित पत्र, ट्रक को बेचने से पूर्व परिवादी को भेजी गई सूचना दिनांकित 01-02-2016 तथा ट्रक के खरीदार और विपक्षी के मध्य निष्पादित अनुबन्ध दिनांकित 25-02-2016 की छायाप्रतियों को दाखिल किया गया है। ये प्रपत्र पत्रावली के कागज सं.-9/11 लगायत 9/46 हैं।
परिवादी ने अपना साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-12/1 लगायत 12/2 दाखिल किया, जिसके साथ उसने पूर्व में दाखिल प्रपत्र बतौर संलग्नक प्रस्तुत किये।
विपक्षी की ओर से उनके डिप्टी मैनेजर लीगल श्री पुनीत सिंह का साक्ष्य शपथपत्र कागज सं.-14/1 लगायत 14/7 दाखिल किया।
दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी लिखित बहस दाखिल की। हमने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि वह नियमित रूप से ट्रक की किस्तें विपक्षी को अदा कर रहा था, इसके बावजूद विपक्षी ने मनमाने एवं अवैध रूप से दिनांक 16-12-2015 को परिवादी का ट्रक अपने गुण्डों के माध्यम से जब्त कर लिया और ट्रक जब्त करने से पूर्व विपक्षी ने परिवादी को कोई सूचना नहीं दी। परिवादी ने नोटिस भी भिजवाया किन्तु उसका कोई उत्तर विपक्षी ने नहीं दिया और ट्रक लौटाने से इंकार कर दिया। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार विपक्षी के कृत्य अवैध, मनमाने और गैरकानूनी है।
प्रतिउत्तर में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने परिवादी की ओर से दिये गये तर्कों का प्रतिवाद किया और कहा कि परिवादी ऋण की किस्ते अदा करने में नियमित डिफाल्टर था, जब वह किस्तें अदा नहीं कर पाया तो उसने स्वेच्छा से ट्रक को विपक्षी के पक्ष में दिनांक 16-12-2015 को सैरेण्डर कर दिया। विपक्षी ने ट्रक को कब्जे में लेने से पूर्व और उसे कब्जे में लेने के बाद पुलिस को सूचित किया। ट्रक को कब्जे में लेने के बाद भी विपक्षी ने परिवादी को नोटिस देकर अनुरोध किया कि वह बाकि ऋण किस्तें अदा कर दे किन्तु परिवादी ने ऋण की किस्तें अदा नहीं की, अन्तत: विपक्षी ने अपने ऋण की वसूली हेतु ट्रक को बेच दिया है। ट्रक बेचने से पूर्व भी विपक्षी ने परिवादी को नोटिस देकर अनुरोध किया था कि वह ऋण की शेष किस्तें या तो अदा कर दे अन्यथा ट्रक को मजबूरन विपक्षी बेच देगा। विपक्षी के अधिवक्ता ने अग्रेत्तर यह भी तर्क दिया कि इस फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है क्योंकि परिवाद योजित करने से पूर्व प्रश्गनत ऋण के संदर्भ में आर्बीट्रेटर द्वारा आर्बीट्रेशन अवार्ड परिवादी के विरूद्ध पारित किया जा चुका है। विपक्षी की ओर से यह कहते हुए कि परिवाद असत्य कथनों पर आधारित है और विपक्षी ने ट्रक को कब्जे में लेने हेतु नियमानुसार प्रक्रिया का अनुसरण किया था, परिवाद को सव्यय खारिज किये जाने की प्रार्थना की।
पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों से विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों में बल दिखायी देता है।
पत्रावली में अवस्थित कागज सं.-9/34 परिवादी द्वारा विपक्षी को प्रेषित पत्र की नकल है, जिसमें परिवादी ने यह स्वीकार किया है कि ऋण के संदर्भ में उसके द्वारा विपक्षी को दिये गये चेक अनादरित हो रहे हैं, परिवादी की यह स्वीकारोक्ति इस बात का प्रमाण है कि परिवादी द्वारा ऋण की किस्तें नियमित अदा नहीं की जा रही थीं। स्वीकृत रूप से परिवादी का ट्रक विपक्षी द्वारा दिनांक 16-12-2015 को कब्जे में लिया जाना बताया गया है। ट्रक कब्जे में लेने से पूर्व दिनांक 15-12-2015 को विपक्षी ने परिवादी को नोटिस देकर अनुरोध किया था कि वह ऋण की धनराशि जमा कर दे अन्यथा वह ट्रक को कब्जे में ले लेंगे, इस नोटिस की नकल पत्रावली का कागज सं.-9/39 है, जो परिवादी की ओर से उसके पुत्र मौहम्मद कासिब ने प्राप्त किया था। इस नोटिस के बावजूद परिवादी ने ऋण की शेष धनराशि विपक्षी को अदा नहीं की। परिवादी के पुत्र मौहम्मद कासिब ने पत्र लिखकर विपक्षी से अनुरोध किया था कि अपने पिता(परिवादी) के निर्देशानुसार वह ट्रक को सैरेण्डर कर रहा है, यह पत्र पत्रावली का कागज सं.-9/38 है। दिनांक 16-12-2015 को ट्रक को सैरेण्डर करने के बाद परिवादी के पुत्र ने आरटीओ मुरादाबाद को ट्रक सैरेण्डर कर दिये जाने की लिखित सूचना भेजी, जैसा कि पत्रावली में अवस्थित पत्र कागज सं.-9/40 से स्पष्ट है। दिनांक 16-12-2015 को ट्रक सैरेण्डर करते समय इनवेन्ट्री लिस्ट बनायी गई थी, जो कागज सं.-9/35 है। ट्रक सैरेण्डर करने से पूर्व और ट्रक सैरेण्डर हो जाने के बाद दोनों ही मौकों पर विपक्षी द्वारा तत्संबंधी सूचना पुलिस स्टेशन पर दी गई थी, जैसा कि नकल पत्र कागज सं.-9/36 एवं 9/37 से प्रमाणित है। यहां तक कि विपक्षी ने ऋण वसूली हेतु ट्रक को बेचने से पूर्व दिनांक 01-02-2016 को पुन: परिवादी को इस आशय का नोटिस दिया था कि या तो वह ऋण चुकता कर दे अन्यथा ट्रक को बेचकर वे ऋण की वसूली कर लेंगे, यह पत्र पत्रावली का कागज सं.-9/41 है। उपरोक्त प्रपत्रों से यह भली-भॉति प्रमाणित है कि ट्रक को परिवादी ने स्वेच्छा से सैरेण्डर किया था और ट्रक सैरेण्डर से पूर्व और बाद में दोनों ही मौकों पर विपक्षी ने पुलिस को उसकी सूचना दी थी। ट्रक को बेचने से पूर्व भी परिवादी को विपक्षी ने ऋण चुकता करने हेतु नोटिस दिया था किन्तु परिवादी ने तब भी ऋण की अदायगी नहीं की। स्पष्ट है कि ट्रक को कब्जे में लेने में विपक्षी ने कोई गैर कानूनी काम नहीं किया और इसमें निर्धारित प्रक्रिया का अनुसरण किया।
परिवादी का यह कथन कि दिनांक 16-12-2015 को विपक्षी ने अवैध तरीके से परिवादी के स्टाफ को डरा-धमकाकर ट्रक को कब्जे में लिया था, प्रमाणित नहीं होता। परिवादी का ट्रक यदि विपक्षी ने जबरदस्ती कब्जे में लिया होता तो ऐसा कोई कारण नहीं था कि परिवादी उसकी सूचना पुलिस अथवा किसी सक्षम अधिकारी को न देता। पत्रावली में ऐसा कोई अभिलेख परिवादी ने दाखिल नहीं किया जिससे प्रकट हो कि उसके ट्रक को कथित रूप से जबरदस्ती छीन लिये जाने विषयक कोई सूचना पुलिस अथवा किसी उच्चाधिकारी को दी थी। ऐसी परिस्थितियों में यह स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है कि परिवादी का ट्रक विपक्षी ने जबरदस्ती गैर कानूनी तरीके से कब्जे में लिया था।
यह परिवाद वर्ष 2016 में योजित हुआ था। पत्रावली में अवस्थित अभिलेखों से प्रकट है कि प्रश्गनत ऋण की वसूली के सिलसिले में दिनांक 24-11-2014 को आर्बीट्रेटर द्वारा आर्बीट्रेशन अवार्ड परिवादी के विरूद्ध पारित किया जा चुका है। इस अवार्ड की नकल पत्रावली का कागज सं.-9/25 लगायत 9/33 है।
जगदीश कैथला बनाम बजाज एलायंज कम्पनी व एक अन्य, IV(2016) सी0पी0जे0 पृष्ठ-35 (एन0सी0) की निर्णयज विधि में मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्ली द्वारा यह व्यवस्था दी गई है कि यदि प्रतिपक्षी /फाइनेंसर की पहल पर ऋणी के विरूद्ध परिवाद योजित किऐ जाने से पूर्व आरबीट्रेटर द्वारा अवार्ड पारित कर दिया गया हो तब तत्सम्बन्धी विवाद की सुनवाई हेतु फोरम के समक्ष परिवाद पोषणीय नहीं है। इस निर्णयज विधि का पैरा सं.-10 निम्नवत् है:-
“ So far as the respondent No. 2 is concerned, he has already procured an award of arbitration dated 3.12.2912 and the state Commission has rightly observed that “ the dispute stands adjudicated by the Arbitrator and Consumer Forum cannot re-determine the issue, because consumr fora do not have jurisdiction to sit in judgment over the awards of Arbitrators. The remedy, open to the appellant is by way of challenging the award, as per provisions of Arbitration and Conciliation Act. “
16.उपरोक्त विवेचन के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि प्रत्येक दृष्टिकोण से परिवाद खारिज होने योग्य है।
परिवाद खारिज किया जाता है। मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए उभयपक्ष अपना परिवाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(सत्यवीर सिंह) (पवन कुमार जैन)
सदस्य अध्यक्ष
आज यह निर्णय एवं आदेश हमारे द्वारा हस्ताक्षरित तथा दिनांकित होकर खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।
(सत्यवीर सिंह) (पवन कुमार जैन)
सदस्य अध्यक्ष
दिनांक: 12-02-2018
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