राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2205/2008
(जिला उपभोक्ता फोरम, जौनपुर द्वारा परिवाद संख्या 299/2004 में पारित निर्णय दिनांक 08.01.2008 के विरूद्ध)
चेयरमैन, रेलवे रिक्रूटमेन्ट बोर्ड गोरखपुर द्वारा चेयरमैन श्री शैलेन्द्र कुमार।
.......अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
1.महेन्द्र कुमार दूबे पुत्र श्री नंद लाल दूबे निवासी श्री शंकर जी कंपनी
कलेक्टरगंज कस्बा शाहगंज, परगना अंगुली जिला जौनपुर।
2. हेड पोस्ट मास्टर, हेड पोस्ट आफिस, गोरखपुर।
3. डाक निरीक्षक, यूपी डाकघर, शाहगंज, जिला जौनपुर।
......प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
समक्ष:-
1. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री पी0पी0 श्रीवास्तव एवं श्री
एम0एच0 खान, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी 2 व 3 की ओर से उपस्थित: श्री उदयवीर सिंह के सहयेागी श्री
श्रीकृष्ण पाठक, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 07.11.2019
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम जौनपुर द्वारा परिवाद संख्या 299/2004 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दि. 08.01.2008 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी के कथनानुसार अपीलकर्ता ने समाचार पत्र में प्रकाशन द्वारा कुछ पदों पर भर्ती हेतु परीक्षा के लिए वांछित अर्हता पर अभ्यर्थियों द्वारा आवेदन पत्र प्रस्तुत करने हेतु दि. 29.04.2003 को समाचार प्रकाशित किया था। इस प्रकाशन के आलोक में परिवादी ने वांछित औपचारिकताएं पूर्ण करते हुए आवेदन प्रस्तुत किया। पूर्व सूचना के अनुसार यह परीक्षा दि. 18.01.2004 का संपन्न होनी थी, अत:
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परिवादी ने अपना विधि व्यवसाय जुलाई 2003 से छोड़ दिया तथा उक्त परीक्षा की तैयारी करने लगा। परिवादी के कथनानुसार उक्त परीक्षा में सम्मिलित होने हेतु अपीलकर्ता द्वारा भेजा गया प्रवेश पत्र परिवादी को परीक्षा की तिथि से 10 दिन बाद दि. 28.01.2004 को प्राप्त हुआ, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी ने अपीलकर्ता तथा डाक विभाग गोरखपुर एवं डाक विभाग शाहगंज, जौनपुर के विरूद्ध परिवाद क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु योजित किया।
अपीलकर्ता तथा अन्य विपक्षीगण द्वारा प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया। जिला मंच ने परिवादी द्वारा प्रस्तुत की गई साक्ष्य के परिशीलन के उपरांत प्रश्नगत निर्णय द्वारा परिवादी का परिवाद स्वीकार करते हुए अपीलकर्ता पर रू. 8000/- तथा अन्य विपक्षीगण पर रू. 1000/- की क्षतिपूर्ति अदा करने का दायित्व निर्धारित करते हुए अपीलकर्ता तथा अन्य विपक्षीगण द्वारा उपरोक्त धनराशि परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि 18.06.2004 से देयता की तिथि तक 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से निर्णय पारित होने की तिथि से 2 माह के अंदर परिवादी को भुगतान करने हेतु निर्देशित किया। इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गई है।
हमने अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री पी0पी0 श्रीवास्तव एवं श्री एम0एच0 खान के तर्क तथा प्रत्यर्थी संख्या 2 व 3 के विद्वान अधिवक्ता श्री उदयवीर सिंह के सहयोगी श्री श्रीकृष्ण पाठक के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
अपीलार्थी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि जिला मंच के समक्ष योजित परिवाद के संदर्भ में कोई नोटिस की तामीला अपीलकर्ता पर
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नहीं कराई गई। अपीलकर्ता की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी परिवादी अपीलकर्ता का उपभोक्ता नहीं है, क्योंकि प्रत्यर्थी परिवादी द्वारा अपीलकर्ता को किसी प्रतिफल का भुगतान नहीं किया गया है और न ही परिवादी द्वारा अपीलकर्ता से कोई सेवा किसी प्रतिफल के एवज में प्राप्त की गई है। वास्तव में अपीलकर्ता ने अपने संविधीय दायित्वों के निर्वहन हेत अर्हता प्राप्त अभ्यर्थियों द्वारा कुछ पदों पर भर्ती हेतु परीक्षा के लिए आवेदन पत्र बिना किसी शुल्क के प्राप्त किए थे। परिवाद के अभिकथनों में भी अपीलकर्ता को किसी प्रतिफल की अदायगी किया जाना अभिकथित नहीं किया गया है।
अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता के तर्क में बल प्रतीत होता है। प्रत्यर्थी परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(डी) के अंतर्गत परिभाषित उपभोक्ता की श्रेणी में अपीलकर्ता के सापेक्ष नहीं माना जा सकता, अत: अपीलकर्ता के विरूद्ध पारित प्रश्नगत आदेश त्रुटिपूर्ण होने के कारण अपास्त किए जाने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच द्वारा अपीलकर्ता के विरूद्ध पारित आदेश अपास्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध कराई जाए।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्धन यादव) पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-2