राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-608/2022
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या 105/2012 में पारित आदेश दिनांक 18.05.2022 के विरूद्ध)
ज्ञान सिंह पुत्र श्री जगदीश सिंह, निवासी म0नं0 749 नई बस्ती – अर्रा कानपुर नगर।
........................अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
1. महिन्द्रा एंड महिन्द्रा लिमिटेड द्वारा प्रबन्धक सैलस एण्ड मैन्युफैक्चर स्थित कार्यालय महिन्द्रा टावर वार्ली रोड नं0 13 मुम्बई पिन – 400018
2. जैन मोटर द्वारा प्रबन्धक स्थित-64 इण्डस्ट्रियल स्टेट फजलगंज कालपी रोड निकट चार खंम्भा कुंआ व डी0आई0सी0 कार्यालय कानपुर नगर।
3. महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा फाइनेन्स सर्विसेज लिमिटेड द्वारा प्रबंधक स्थित कमरा नंबर 203/205 द्वितीय तल गोपाला चैम्बर्स निकट परेड कानपुर नगर – 208001
...................प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री त्रिभुवन नरायन सिंह,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 11.07.2022
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील अपीलार्थी ज्ञान सिंह द्वारा इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या-105/2012 ज्ञान सिंह बनाम महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा लिमिटेड व दो अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 18.05.2022 के विरूद्ध योजित की गयी।
प्रश्नगत निर्णय और आदेश के द्वारा जिला उपभोक्ता
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आयोग द्वारा उपरोक्त परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया गया:-
''तद्नुसार परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध संयुक्त: एवं पृथकत: स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि परिवादी द्वारा वाहन महिन्द्रा बुलेरो डी.आई. को विपक्षी सं0-2 के वर्कशाप में प्रस्तुत करने के बाद यथासम्भव अन्दर 30 दिन, वाहन की क्रेक बॉडी, चेचिस तथा सेल्फ व बैटरी बदलकर, वाहन को कार्यशील दशा में परिवादी को प्रदत्त करे। विपक्षीगण परिवादी को रू0 50,000/- (रू0 पचास हजार) क्षतिपूर्ति एवं रू0 5000/-(रू0 पॉंच हजार) परिवाद व्यय के रूप में अदा करें।''
मेरे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-02 जैन मोटर्स के यहॉं से प्रश्नगत वाहन महिन्द्रा बुलेरो डी0आई0 नान ए0सी0 दिनांक 18.04.2009 को 5,35,798/-रू0 में क्रय किया गया था, जिस हेतु अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-3 फाइनेन्स कम्पनी से ऋण लिया गया था। प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-1 निर्माता कम्पनी है। उक्त वाहन कुछ दिन चलने के बाद बॉडी से अनेकों आवाज आने लगी तथा उसका सेल्फ भी ठीक से काम नहीं कर रहा था तथा यह कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा जब उक्त वाहन को प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-2 के वर्कशाप में दिखाया गया तो ज्ञात हुआ कि उक्त वाहन की चेचिस व बॉडी जगह-जगह से क्रेक हो गयी है व वाहन की बैटरी व सेल्फ खराब है।
अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-2 द्वारा वाहन की कमियों का फोटोग्राफ खींचकर शिकायत दर्ज करायी गयी तथा सेल्फ ठीक करके 2788/-रू0 रिपेयरिंग चार्ज
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वसूल किया गया, जबकि उक्त वाहन वारण्टी अवधि में था। प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-2 द्वारा यह भी आश्वासन दिया गया कि शिकायत पर कम्पनी द्वारा बहुत जल्द चेचिस व बॉडी बदल दी जाएगी।
अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि विपक्षी संख्या-1 व 2 द्वारा शिकायत दूर न करने पर अपीलार्थी/परिवादी द्वारा दिनांक 14.03.2011 को एक लिखित शिकायत प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-2 के कार्यालय में दी गयी, परन्तु कोई कार्यवाही नहीं की गयी। तब अपीलार्थी/परिवादी द्वारा अपने अधिवक्ता के माध्यम से दिनांक 20.04.2011 को विपक्षी संख्या-1 व 2 को नोटिस दिया, जिसका जवाब विपक्षी संख्या-1 द्वारा दिनांक 02.05.2011 को दिया गया तथा कहा गया कि सभी सूचनायें एकत्रित करके अपीलार्थी/परिवादी की शिकायत को क्षेत्रीय कार्यालय कार्यवाही हेतु भेज दिया जायेगा जिस हेतु समय की मांग की, परन्तु 06 माह बीतने के बाद भी जब चेचिस व बॉडी बदलने की कोई कार्यवाही नहीं की गयी तब अपीलार्थी/परिवादी द्वारा पुन: दिनांक 11.11.2011 को विपक्षी संख्या-1 व 2 को अपने अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस प्रेषित किया गया, जिसका कोई जवाब विपक्षीगण की ओर से नहीं दिया गया, जबकि वाहन वारण्टी अवधि में खराब हुआ था, जिससे क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण के विरूद्ध जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख परिवाद योजित करते हुए निम्न अनुतोष की मांग की गयी:-
(अ) यह कि परिवादी की बोलेरो जीप सं0 यू0पी077-ई0-6750 की क्रेक चेचिस व बाडी के क्रेक हो जाने व सेल्फ, बैटरी के खराब हो जाने को बदलने के लिए विपक्षी सं0 1 व 2 को आदेशित करने की कृपा करे।
(ब) यह कि परिवादी द्वारा बोलेरो जीप सं0 यू0पी077-ई0-6750 जो कि विपक्षी सं0 3 के यहॉं से ऋण लेकर खरीदी गयी है पर विक्रय दिनांक से अब तक लगने वाला ब्याज भी विपक्षी सं0 1 व 2 से दिलवाये जाने की कृपा करे।
(स) यह कि परिवादी की बोलेरो जीप में कमियो को विपक्षी सं0 1 व 2 द्वारा
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ठीक न करने से किये गये मानसिक उत्पीड़न हेतु रू0 2,00,000/- विपक्षी सं0 1 व 2 से दिलवाये जाने की कृपा करे।
जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख विपक्षी संख्या-1 व 2 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया, जिसमें मुख्य रूप से यह कथन किया गया कि परिवादी द्वारा गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद योजित किया गया तथा यह कि प्रश्नगत वाहन में आयी त्रुटि की क्षतिपूर्ति के लिए बीमा कम्पनी उत्तरदायी है, जिसे परिवाद में पक्षकार न बनाये जाने के कारण परिवाद में पक्षों का असंयोजन है। विपक्षीगण द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है।
जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख विपक्षी संख्या-3 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत करते हुए मुख्य रूप से यह कथन किया गया कि विपक्षी संख्या-3 फाइनेन्सर है, जिसकी प्रस्तुत मामले में न कोई भूमिका है तथा न ही सेवा में कमी है। विपक्षी संख्या-3 को अनावश्यक पक्षकार बनाया गया है।
जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों/प्रपत्रों पर विचार करने के उपरान्त अपने निर्णय में बिन्दुवार सभी तथ्यों की विस्तृत रूप से विवेचना करते हुए यह निष्कर्ष दिया गया कि वाहन की बॉडी व चेचिस का दो वर्ष की अवधि में ही क्रेक हो जाना, निश्चित रूप से साबित करता है कि वाहन निर्माण में जो सामग्री प्रयोग की गयी थी, वह गुणवत्ता विहीन रही तथा स्वयं परिवादी द्वारा ऐसा नहीं है कि उसने वाहन को बदलने की मांग की हो, बल्कि उसके द्वारा वाहन में जो त्रुटिपूर्ण पार्ट्स थे, उसको बदलने के लिए कहा था तथा विपक्षी की ओर से ऐसा कोई कथन नहीं किया गया कि वाहन में आयी उक्त त्रुटि किसी दुर्घटना का परिणाम थी।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने निर्णय में यह निष्कर्ष दिया गया कि यदि वाहन में निर्माण से सम्बन्धित त्रुटि है तो बीमा कम्पनी निर्माणीं त्रुटि को दूर करने या उसकी क्षतिपूर्ति
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देने के लिए बाध्य नहीं है तथा यह कि विपक्षीगण की ओर से ऐसा कोई प्राविधान नहीं दिखाया जा सका कि निर्माणीं त्रुटि बीमा पालिसी से आच्छादित है, बल्कि निर्माणीं त्रुटि हमेशा वारण्टी से आच्छादित होती है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने निर्णय में यह निष्कर्ष दिया गया कि परिवादी द्वारा वाद कारण वाहन खरीदने से लेकर त्रुटि के सम्बन्ध में की गयी शिकायत के आधार पर उत्पन्न होना बताया गया है तथा नोटिस देने पर भी विपक्षीगण द्वारा निर्माणीं त्रुटि ठीक न करने पर परिवाद दायर किया गया। ऐसी स्थिति में परिवाद का वाद कारण पैदा हुआ है। अत: परिवादी का परिवाद स्वीकार होने योग्य है तथा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने निर्णय में उल्लेख किया गया कि जहॉं तक परिवादी को मिलने वाले अनुतोष का प्रश्न है, तो परिवादी ने वाहन की क्रेक चेचिस व बॉडी को बदलने तथा सेल्फ व बैटरी को बदलने के लिये आदेश चाहा है तथा वाहन क्रय करने हेतु लिये गये ऋण पर ब्याज की भी मांग की है एवं क्षतिपूर्ति भी चाही है। यह स्पष्ट है कि परिवादी द्वारा वाहन को क्रय करने के करीब दो वर्ष तक वाहन चलाया गया था उसके बाद वाहन खराब हुआ है। ऐसी स्थिति में ऋण पर ब्याज दिलाये जाने का कोई औचित्य नहीं है। परिवादी वाहन की त्रुटियों को दूर करा पाने व वाहन न रहने के कारण क्षतिपूर्ति का हकदार है। तद्नुसार परिवाद स्वीकार होने योग्य है।
तद्नुसार विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रश्नगत आदेश दिनांक 18.05.2022 पारित किया गया।
सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करते हुए तथा पत्रावली पर उपलब्ध प्रपत्रों व अपीलार्थी/परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में मांगे गये अनुतोष एवं जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा समस्त तथ्यों का सम्यक अवलोकन/परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्त
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बिन्दुवार सभी तथ्यों की विस्तृत रूप से विवेचना करते हुए विधि अनुसार निर्णय पारित किया गया है तथा उचित अनुतोष अपीलार्थी/परिवादी को दिलाया गया है, जिसमें इस स्तर पर कोर्इ हस्तक्षेप करने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है।
अतएव, प्रस्तुत अपील अंगीकरण के स्तर पर निरस्त की जाती है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1