सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 458 /2017
(जिला उपभोक्ता फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्या-018/2015 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 03-02-2017 के विरूद्ध)
सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया, मैनपुरी द्वारा शाखा प्रबन्धक।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
1- महेश सिंह उर्फ वेटू पुत्र अजय पाल सिंह, निवासी मण्डी मोतीगंज, आगरा रोड, मैनपुरी।
2- बैंक आफ इण्डिया, अग्रणी बैंक, शाखा कलेक्ट्री मैनपुरी द्वारा शाखा प्रबन्धक।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता, श्री जफर अजीज
प्रत्यर्थी सं०1 की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता, श्री अखिलेश त्रिवेदी
प्रत्यर्थी सं० 2 की ओर से उपस्थित: कोई उपस्थित नहीं।
दिनांक: 15-05-2018
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या 018 सन् 2015 महेश सिंह बनाम सेन्द्रल बैंक आफ इण्डिया मैनपुरी द्वारा शाखा प्रबन्धक व 2 अन्य में उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मैनपुरी द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 03-02-2017 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुये निम्न आदेश पारित किया है:-
"परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद आंशिक रूप से विपक्षी संख्या- 1 व 2 के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण संख्या- 1 व 2 को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को नो-ड्यूज प्रमाण पत्र जारी करें तथा परिवादी को मानसिक व शारीरिक कष्ट के मद में दो लाख सत्तर हजार रू0 अदा करें। विपक्षी संख्या- 1 व 2 द्वारा परिवादी को वाद व्यय के मद में रू0 तीन हजार भी उपरोक्त एक माह के अवधि के अन्दर अदा किये जाएं।
जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री जफर अजीज और प्रत्यर्थी संख्या-1 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अखिलेश त्रिवेदी उपस्थित आए हैं। प्रत्यर्थी संख्या 2 की ओर से नोटिस तामीला के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने विपक्षी संख्या- 1 सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया, मैनपुरी से अक्टूबर 2003 में 3,00,000/- रू० का ऋण लिया जिसमें उसे मात्र 2,65,720/- रू० का चेक द्वारा भुगतान किया गया। शेष धनराशि 34,280/- रू० बतौर ब्याज एडवांस में विपक्षी संख्या- 3 द्वारा काट ली गयी उसके बाद वह विपक्षी संख्या- 3 बैंक आफ इण्डिया, अग्रणी
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बैंक को ऋण की धनराशि का बराबर भुगतान करता रहा है परन्तु विपक्षी संख्या-3 द्वारा उसे लोन एकाउन्ट की कोई पासबुक नहीं दी गयी और न ही लोन एकाउंट का कभी स्टेटमेंट दिया गया और न ही उसे एकाउंट नम्बर बताया गया।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि पैर में चोट आने के कारण कुछ समय तक वह अपने ऋण की अदायगी नहीं कर सका। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 08-12-2010 तक ऋण की धनराशि विपक्षी संख्या-3 के बैंक में जमा किया है। वह बैंक के कर्मचारियों से रूपये जमा कराने के लिए स्लिप भरवाता था क्योंकि उसके पास एकाउंट नम्बर नहीं था।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि दिनांक 31-01-2012 को प्रत्यर्थी/परिवादी व उसकी पत्नी श्रीमती विनीता को विपक्षी संख्या 3 का नोटिस सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत मिला जिसमें 5088,46/- रू० का विपक्षीगण ने गलत बकाया दर्शित किया था। अत: नोटिस का जवाब प्रत्यर्थी/परिवादी व उसकी पत्नी ने भेजा तथा लोन एकाउंट का सभी विवरण व स्टेटमेंट आफ एकाउंट की प्रतियां विपक्षी संख्या- 3 से चाही। परन्तु विपक्षी संख्या-3 ने जरिये अधिवक्ता असली तथ्यों को छिपाते हुए बिना किसी अभिलेख की प्रति संलग्न किये अस्पष्ट और भ्रामक जवाब उन्हें भेजा तथा प्रत्यर्थी/परिवादी को बैंक में बुलाया फिर भी वांछित अभिलेख उसे नहीं दिये गये। उसके बाद प्रत्यर्थी/परिवादी कई बार विपक्षी संख्या 3 के बैंक व विपक्षी संख्या 1 के अधीनस्थ कर्मचारियों से मिला परन्तु कोई सुनवाई नहीं की गयी।
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परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि दिनांक 11-10-2003 से उसके लोन एकाउंट का स्टेटमेंट कभी उपलब्ध नहीं कराया गया है और उसे गुमराह कर 2,50,000/- रू० में समझौता किया गया है तथा 2,05,000/- रू० दिनांक 25-08-2012 को एकमुश्त उससे जमा कराया गया है और अवशेष धनराशि की 10-10 हजार रू० प्रतिमाह की किश्त बनायी गयी है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि 2,50,000/- रू० में समझौता करने और 10-10 हजार रू० की धनराशि प्रति माह जमा करने के बावजूद विपक्षी द्वारा उसके विरूद्ध 5,00,000/- रू० की रिकवरी अवैधानिक रूप से जारी की गयी है और उसे स्टेटमेंट आफ एकाउंट की प्रति नोटिस देने के बावजूद भी उपलब्ध नहीं करायी गयी है।
परिवाद पत्र के अनुसार विपक्षी संख्या-1 और 2 अर्थात सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया, मैनपुरी द्वारा शाखा प्रबन्धक मैनपुरी और सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया, द्वारा मण्डलीय प्रबन्धक, सिविल लाइन इटावा द्वारा भी उसकी शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। अत: विवश होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
विपक्षी संख्या 1 और 2 की ओर से संयुक्त लिखित कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया गया है 3,00,000/- रू० का ऋण प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रदान किया जाना स्वीकार किया गया है। लिखित कथन में उनकी ओर से यह भी कहा गया है कि परिवाद प्रस्तुत करने का कोई वाद हेतुक उत्पन्न नहीं हुआ है। विपक्षी संख्या 1 और 2 की ओर से लिखित कथन में यह भी कहा है गया है कि स्टेटमेंट आफ एकाउंट प्रत्यर्थी/परिवादी को उपलब्ध कराया गया था।
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विपक्षी संख्या 3 की ओर से भी लिखित कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया गया है जिसमें कहा गया है कि परिवाद पत्र में कथित प्रकरण से उसका कोई लेना-देना नहीं है। उसके द्वारा न तो कोई ऋण दिया गया है और न ही कोई वसूली की कार्यवाही की गयी है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह उल्लिखित किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता की ओर से तर्क प्रस्तुत किया गया है कि उनकी ओर से ऋण की धनराशि अदा करने के उपरान्त भी नो ड्यूज प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया है। परिवादी की ओर से प्रार्थना पत्र के माध्यम से भी ऋण की धनराशि का विवरण तलब किये जाने हेतु दिया गया जिस पर भी विपक्षीगण की ओर से विवरण दाखिल नहीं किया गया है। अत: ऐसी स्थिति में विपक्षी की सेवा में कमी पायी जाती है। अत: ऐसी स्थिति में जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी बैंक के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश तथ्य और विधि विरूद्ध है। परिवादी द्वारा अपने ऋण के सम्बन्ध में याचिका संख्या 9174/13 दाखिल की गयी है जिसमें माननीय उच्च न्यायालय ने निर्धारित तिथियों पर ऋण जमा करने हेतु उसे आदेशित किया है परन्तु उसने माननीय उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित तिथियों पर ऋण की धनराशि जमा नहीं किया है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने माननीय उच्च न्यायालय के आदेश पर ध्यान दिये बिना और संगत तथ्यों पर विचार किये बिना गलत निर्णय और आदेश पारित किया है।
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प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है। प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने रिट याचिका संख्या 9174/2013 महेश सिंह बनाम स्टेट आफ यू0पी0 माननीय उच्च न्यायालय में दाखिल की थी जिसमें माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक 20-02-2013 के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने 6 किस्तों में 2,82,000/- रू० की धनराशि का भुगतान किया है और उसके द्वारा सम्पूर्ण धनराशि अदा की जा चुकी है।
मैंने उभय पक्षके तर्क पर विचार किया है।
निर्विवाद रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी महेश सिंह ने प्रश्नगत ऋण के सम्बन्ध में रिट याचिका संख्या 9174/2013 माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के समक्ष प्रस्तुत किया है जिसका निस्तारण माननीय उच्च न्यायालय ने आदेश दिनांक 20-02-2013 के द्वारा करते हुये प्रत्यर्थी/परिवादी को 45,000/- रू० संबंधित बैंक में आदेश की तिथि से एक माह के अन्दर जमा करने हेतु आदेशित किया है तथा उक्त धनराशि जमा करने पर अवशेष धनराशि बराबर किस्तों में अदा करने हेतु प्रत्यर्थी/परिवादी को निर्देशित किया है। माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार ऋण के भुगतान हेतु प्रथम किस्त 31 मई 2013 को और अंतिम किस्त 31 अगस्त 2014 को जमा किया जाना था। अपीलार्थी बैंक के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में अवशेष धनराशि का भुगतान नहीं किया है और माननीय उच्च न्यायालय के आदेश का पालन न कर गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया है।
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जिला फोरम ने आक्षेपित आदेश में माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ऋण की धनराशि की किस्तों के भुगतान के सम्बन्ध में कोई निष्कर्ष अंकित नहीं किया है। जिला फोरम ने मात्र प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत तर्क के आधार पर परिवाद स्वीकार कर लिया है और बिना किसी प्रमाण के यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने ऋण की सम्पूर्ण धनराशि अदा कर दी है। जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह उल्लेख किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से प्रार्थना पत्र ऋण की धनराशि का विवरण तलब किये जाने हेतु दिया गया फिर भी विपक्षीगण की ओर से विवरण दाखिल नहीं किया गया है। जिला फोरम ने अपीलार्थी बैंक को प्रत्यर्थी/परिवादी के प्रार्थना पत्र पर उसके ऋण का स्टेटमेंट आफ एकाउंट एवं विवरण व अभिलेख प्रस्तुत करने हेतु धारा 13(4) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत कोई आदेश पारित नहीं किया है। अत: ऐसी स्थिति में प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से मात्र प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किये जाने के आधार पर अपीलार्थी बैंक के विरूद्ध जिला फोरम ने जो प्रतिकूल अवधारणा व्यक्त की है वह उचित नहीं है।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना एवं सम्पूर्ण तथ्यों और साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विरूद्ध है और जिला फोरम ने माननीय उच्च न्यायालय द्वारा रिट याचिका में पारित आदेश की अनदेखी की है, जो उचित नहीं है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश अपास्त कर पत्रावली जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित की जाती है कि वह उभय पक्ष को साक्ष्य और सुनवाई का अवसर देकर पुन: स्पष्ट रूप से इस बिन्दु पर निष्कर्ष अंकित करें
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कि क्या प्रत्यर्थी/परिवादी ने माननीय उच्च न्यायालय द्वारा रिट याचिका संख्या 9174/2013 महेश सिंह बनाम स्टेट आफ यू0पी0 आदि में पारित आदेश दिनांक 20-02-2013 के अनुसार सम्पूर्ण ऋण की धनराशि की अदायगी की है और तदनुसार विधि के अनुसार पुन: आदेश पारित करें।
जिला फोरम धारा 13 (4) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत विपक्षीगण के बैंक को प्रत्यर्थी/परिवादी के ऋण से संबंधित स्टेटमेंट आफ एकाउंट व अभिलेख प्रस्तुत करने हेतु आदेश देने हेतु स्वतंत्र है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी के ऋण का स्टेटमेंट आफ एकाउंट व अन्य अभिलेख जिला फोरम विधि के अनुसार विपक्षी बैंक से तलब कर सकता है।
उभय पक्ष जिला फोरम के समक्ष दिनांक 20-06-2018 को उपस्थित हों।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी बैंक को वापस की जाएगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कृष्णा, आशु0
कोर्ट नं01