Uttar Pradesh

StateCommission

CC/94/2016

Dr. Prem Prakash - Complainant(s)

Versus

Mahesh Property Dealer - Opp.Party(s)

B. K. Upadhayay

19 Mar 2018

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Complaint Case No. CC/94/2016
( Date of Filing : 07 Apr 2016 )
 
1. Dr. Prem Prakash
Deoria
...........Complainant(s)
Versus
1. Mahesh Property Dealer
Hridwar
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 19 Mar 2018
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

 परिवाद सं0- 94/2016

                                   (सुरक्षित)

डा0 प्रेम प्रकाश पुत्र गणेश प्रसाद, निवासी छ:मुखी चौराह, तिलक रोड, देवरिया, पोस्‍ट एवं जनपद- देवरिया।

                                                 ........ परिवादी।

                        बनाम

  1. महेश प्रापर्टी डीलर, प्रधान कार्यालय, निकट देशरक्षक औषाधलय, कनखल हरिद्वार द्वारा प्रोपराईटर महेश गर्ग।
  2. शाखा प्रबंधक, महेश प्रापर्टी डीलर, शाखा कार्यालय- मेडिकल कॉलेज रोड, निकट असुरन चौराहा, गोरखपुर, मो0नं0- 9411774997

                                                ........... विपक्षी।                                                                                                                  

समक्ष:-                       

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष। 

परिवादी की ओर से उपस्थित         : श्री बी0के0 उपाध्‍याय,       ,

                                 विद्वान अधिवक्‍ता।

विपक्षीगण की ओर से उपस्थित        : कोई नहीं।                                       

दिनांक:- 04.05.2018

 

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष  द्वारा उद्घोषित                                                 

 

निर्णय

  धारा 17(1)ए उपभोक्‍ता संरक्ष्‍ाण अधिनियम 1986 के अंतर्गत यह परिवाद परिवादी प्रेम प्रकाश ने विपक्षीगण महेश प्रापर्टी डीलर और शाखा प्रबंधक, महेश प्रापर्टी डीलर के विरुद्ध आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत किया है और निम्‍न अनुतोष चाहा है :-

  1. यह कि विपक्षीगण को आदेश दिया जाये कि वे परिवादी द्वारा दि0 09.12.2006 को जमा धनराशि मु0 3,00,000/-रू0, दि0 23.12.2006 को 3,00,000/-रू0, 10.01.2007 को मु0 49,900/-रू0 एवं पुन: दि0 10.01.2007 को ही मु0 49,900/-रू0 दि0 11.01.2007 को मु0 49,900/-रू0 पुन: 11.01.2007 को ही मु0 50,000/-रू0, दि0 19.01.2007 को 85,000/-रू0, दि0 20.01.2007 को मु0 51,000/-रू0, दि0 13.02.2007 को मु0 15,000/-रू0, दि0 24.02.2007 को मु0 1,30,000/-रू0, दि0 26.02.2007 को मु0 50,000/-रू0, पुन: दि0 26.02.2007 को ही मु0 5500/-रू0, दि0 23.03.2007 को मु0 15,000/-रू0, दि0 24.03.2007 को 25,000/-रू0, दि0 26.03.2007 को मु0 8,000/-रू0 एवं दि0 24.04.2007 को मु0 16,000/-रू0 यानी कुल 12,00,200/-रू0 एवं आज तक का ब्‍याज 20,52,000/-रू0 कुल योग मु0 32,52,200/-रू0 तथा दौरान परिवाद उक्‍त सम्‍पूर्ण धनराशि पर परिवाद दाखिल तिथि से वास्‍तविक भुगतान तिथि तक 18 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज सहित विपक्षीगण से परिवादी को दिलाया जाय।
  2. यह कि विपक्षीगण से वाद व्‍यय अधिवक्‍ता फीस के मद में 50,000/-रू0 तथा मानसिक, शारीरिक कष्‍ट के मद में 5,00,000/-रू0 मुझे दिलवाया जाये।
  3. यह कि विपक्षीगण की वजह से प्‍लाट की सुविधा से वंचित रहने तथा मूल्‍य बढ़ोत्‍तरी से हुई क्षति मु0 10,00,000/-रू0 प्‍यूनिटिव डैमेजेज विपक्षीगण से परिवादी को दिलाया जाय।
  4. यह कि माननीय आयोग की नजर में कोई अन्‍य अनुतोष जो मुझे दिलवाया जाना आवश्‍यक है तो उसे भी विपक्षीगण से मुझे दिलवाया जाये।

  परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि विपक्षीगण के प्रचार-प्रसार से अ‍ाकर्षित होकर उसने उनकी कनखल योजना में प्‍लाट नं0- 28 जिसका क्षेत्रफल 1500 वर्ग फिट है की बुकिंग 1500/-रू0 प्रति वर्ग फिट की दर से कराया और इस मद में विपक्षी सं0- 1 के यहां 3,00,000/-रू0 दि0 09.12.2006 को और 3,00,000/-रू0 दि0 23.12.2006 को जमा किया जिसकी रसीद परिवाद पत्र का संलग्‍नक 1 और 2 है। परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि उक्‍त धनराशि जमा करने के बाद विपक्षी द्वारा एक वर्ष के अन्‍दर प्‍लाट पर कब्‍जा दिया जाना था, परन्‍तु उसने प्‍लाट पर कब्‍जा नहीं दिया और जब उसने विपक्षी सं0- 1 से सम्‍पर्क किया तथा दोनों जमा रसीदें दिखायी तो विपक्षी सं0- 1 द्वारा यह कहा गया कि वह शेष धनराशि जमा कर दें तब प्‍लाट पर कब्‍जा देकर विक्रय विलेख सम्‍पादित कर दिया जायेगा। जब कि कब्‍जा देने के बाद ही किश्‍त का भुगतान देना था, फिर भी परिवादी ने दि0 10.01.2007 को दो बार 49,900/- 49,900/-रू0 और दि0 11.01.2007 को 49,900/-रू0 व 50,000/-रू0 तथा दि0 19.01.2007 को 85,000/-रू0, दि0 20.01.2007 को 51,000/-रू0, दि0 13.02.2007 को 15,000/-रू0 और दि0 24.02.2007 को 1,30,000/-रू0 विपक्षी सं0- 1 के खाते में पंजाब नेशनल बैंक शाखा देवरिया से जमा किया जिसकी रसीद परिवाद पत्र का संलग्‍नक 3 लगायत 10 है।

  परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी ने दि0 26.02.2007 को 50,000/-रू0 व 5500/-रू0, दि0 23.03.2007 को 15,000/-रू0, दि0 24.03.2007 को 25,000/-रू0, दि0 26.03.2007 को 8,000/-रू0 एवं दि0 24.04.2007 को 16,000/-रू0 विपक्षी के यहां और जमा किया जिसकी रसीद परिवाद पत्र का संलग्‍नक 11 लगायत 16 है। परिवाद-पत्र के अनुसार परिवादी ने कुल 6,00,000/-रू0 विपक्षी सं0- 2 के यहां और 6,00,200/-रू0 विपक्षी सं0- 1 के खाते में जमा किया है। इस प्रकार उसने 12,00,200/-रू0 की धनराशि विपक्षी के यहां जमा किया है, परन्‍तु उसे स्‍कीम के तहत प्‍लाट नं0- 28 कनखल योजना हरिद्वार पर कब्‍जा नहीं दिया गया और न विक्रय पत्र निष्‍पादित किया गया और उसके द्वारा विपक्षी से सम्‍पर्क करने पर विपक्षी प्‍लाट यथाशीघ्र उपलब्‍ध कराने का आश्‍वासन देता रहा। अत: परिवादी उसके आश्‍वासन पर विश्‍वास कर इंतजार करता रहा, परन्‍तु उसे पता चला कि विपक्षी अन्‍य कई उपभोक्‍ताओं से धनराशि जमा कराया है और सब को परेशान कर रहा है तब परिवादी दि0 01.03.2016 को विपक्षी के यहां गया और प्‍लाट नं0- 28 कनखल योजना हरिद्वार पर कब्‍जा देने व विक्रय विलेख निष्‍पादित करने की मांग किया तब विपक्षी सं0- 1 द्वारा बताया गया कि अभी उक्‍त भूखण्‍ड पर विवाद है जैसे ही मामला हल होगा प्‍लाट उपलब्‍ध करा दिया जायेगा। परिवादी, विपक्षी की यह बात सुनकर सन्‍न रह गया और क्षुब्‍ध होकर उसने परिवाद आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत कर उपरोक्‍त अनुतोष चाहा है।

  विपक्षी की ओर से नोटिस तामीला के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है और न लिखित कथन प्रस्‍तुत किया गया है। अत: विपक्षी के विरुद्ध परिवाद की कार्यवाही एकपक्षीय रूप से की गई है।

  परिवादी डॉ0 प्रेम प्रकाश ने परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में अपना शपथ पत्र प्रस्‍तुत किया है।

  मैंने परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री बी0के0 उपाध्‍याय के तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है।

  परिवादी ने अपने परिवाद पत्र एवं शपथ पत्र के साथ विपक्षीगण को अदा की गई धनराशि की रसीद प्रस्‍तुत की है और सशपथ परिवाद पत्र के कथन का समर्थन किया है।

  विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्‍तुत कर परिवाद के कथन का खण्‍डन नहीं किया गया है। अत: परिवादी के अखण्डित शपथ पत्र पर विश्‍वास न करने का कोई कारण नहीं है। अत: यह मानने हेतु उचित और युक्‍तसंगत आधार है कि विपक्षीगण ने परिवादी से 12,00,200/-रू0 प्राप्‍त किया है और करीब 12 वर्ष का समय बीतने के बाद भी उसने प्‍लाट का कब्‍जा परिवादी को नहीं दिया है जो अनुचित व्‍यापार पद्धति है और सेवा में त्रुटि है। 

  परिवाद पत्र एवं परिवादी के शपथ पत्र से स्‍पष्‍ट होता है कि जिस भूमि में परिवादी को प्‍लाट आवंटित किया गया है उस भूमि का विवाद है और उसके सम्‍बन्‍ध में वाद लम्बित है। ऐसी स्थिति में यह उचित प्रतीत होता है कि परिवादी द्वारा विपक्षीगण के यहां जमा धनराशि परिवादी को जमा की तिथि से अदायगी की तिथि तक 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्‍याज सहित वापस दिलायी जाए।

  परिवादी को उसकी जमा धनराशि पर ब्‍याज दिया जा रहा है। अत: परिवादी द्वारा याचित अन्‍य अनुतोष प्रदान किया जाना उचित नहीं है।

  उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर परिवाद एकपक्षीय रूप से विपक्षीगण के विरुद्ध स्‍वीकार किया जाता है और विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे परिवादी की जमा धनराशि 12,00,200/-रू0 उसे धनराशि जमा करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 18 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज के साथ वापस करें।

  विपक्षीगण परिवादी को 10,000/-रू0 वाद व्‍यय भी अदा करेंगे।        

 

                   (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)                                           

                                       अध्‍यक्ष                         

शेर सिंह आशु0,

कोर्ट नं0-1

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
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