राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-3020/2006
कानपुर डेवलपमेन्ट अथारिटी ...........अपीलार्थी@विपक्षी
बनाम्
श्री महेश प्रसाद निवासी ई-4/281, दीनदयाल पुरम कानपुर।
.......प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. मा0 श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री एन0सी0 उपाध्याय, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :कोई नहीं।
दिनांक 12.06.2015
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या-240/2002 में पारित निर्णय@आदेश दिनांक दि. 22.02.2006 के विरूद्ध योजित की गयी है। जिला मंच द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है:-
'' परिवाद स्वीकार किया जाता है। परिवादी विपक्षी द्वारा पूर्व में जारी किए गए आवंटन पत्र दिनांक 22.07.98 के अनुसार प्रश्नगत भवन संख्या ई-4/281 दीनदयालपुरम कानपुर का पूर्व निर्धारित मूल्य विपक्षी को भुगतान करे। पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करें।''
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने अपीलार्थी कानपुर विकास प्राधिकरण से आवासीय आश्रय योजना के अंतर्गत दीनदयालपुरम योजना में भवन आवंटन हेतु दि. 13.07.98 को आवेदन किया, जिसके अंतर्गत विकास प्राधिकरण द्वारा परिवादी को भवन संख्या ई 4/281 आवंटित किया गया। यह योजना विस्थापित एवं गरीब रेखा के नीचे वाले गरीब व्यक्तियों के लिए थी जिसमें 15 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से 20 वर्षों तक धनराशि जमा की जानी थी और रजिस्ट्रेशन फीस रू. 1000/- थी। परिवादी का कथन है कि विकास प्राधिकरण द्वारा उनसे रू. 2000/- अतिरिक्त पंजीकरण शुल्क मांगा गया एवं उन्हें पुन: भवन आवंटन पत्र भेजा गया, जिसमें मकान का मूल्य रू. 80617/- निर्धारित किया था और रू. 2716/- की 80 तिमाही किश्तों में भुगतान
-2-
करना था। जिला मंच के समक्ष विकास प्राधिकरण द्वारा कहा गया कि परिवादी को भवन संख्या ई 4/281 उसके आवेदन पत्र पर आवंटित किया गया था। योजना विस्थापित एवं गरीब रेखा की सीमा के बीच वाले व्यक्तियों के लिए थी। परिवादी द्वारा ऐसा कोई प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं किया गया, जिससे साबित होता हो कि परिवादी गरीबी की रेखा की सीमा के अंतर्गत आता हो। परिवादी ने धोखा देकर अपने नाम आवंटन पत्र जारी कराया।
जिला मंच ने परिवाद स्वीकार किया और उपरोक्तानुसार आदेश पारित किया।
पीठ ने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना व पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का भलीभांति परिशीलन किया।
जिला मंच का प्रश्नगत आदेश दि. 22.02.2006 का है और यह अपील दि. 27.11.2006 को प्रस्तुत की गई है। इस प्रकार अपील विलम्ब से प्रस्तुत की गई है। इस विलम्ब को क्षमा करने के लिए अपीलार्थी ने एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया है जो शपथपत्र से समर्थित है, जिसमें विलम्ब से अपील योजित किए जाने के संबंध में स्पष्टीकरण दिया गया है। अपीलार्थी द्वारा अपने प्रार्थनापत्र में दिए गए स्पष्टीकरण के आलोक में पीठ यह पाती है कि विलम्ब को क्षमा किए जाने के पर्याप्त कारण दर्शाए गए हैं, अत: अपील प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब को क्षमा करने हेतु दिए गए प्रार्थनापत्र को स्वीकार किया जाता है।
अपीलार्थी का कथन है कि दीनदयालपुरम योजना के अंतर्गत ई.डब्ल्यू.एस. मकानों को आश्रयहीन व विस्थापित व्यक्तियों को आवंटित किए जाने थे और उसी क्रम में परिवादी/प्रत्यर्थी को ई 4/281 भवन उसके आवेदन पत्र पर आवंटित किया गया था। परिवादी/प्रत्यर्थी को जारी किए गए आवंटन पत्र में यह स्पष्ट रूप से अंकित किया गया था कि किसी भी समय प्राधिकरण को यह ज्ञात होता है कि आवंटी गरीबी रेखा के सीमा के अंतर्गत नहीं आता है तो प्राधिकरण द्वारा आवंटन निरस्त करते हुए जमा धनराशि जब्त कर ली जाएगी। विकास प्राधिकरण के संज्ञान में यह आया कि परिवादी/प्रत्यर्थी गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में नहीं आता है और न ही वह विस्थापित व्यक्ति है, अत: परिवादी को यह पत्र दिया गया कि वे रू. 2761.80 पैसे की त्रैमासिक किश्तों को जमा
-3-
करें और रजिस्ट्रेशन फीस रू. 3000/- जमा करें। परिवादी को भवन की कीमत रू. 80617.10 पैसे भी संसूचित की गई।
पत्रावली पर उपलब्ध प्रथम आवंटन पत्र को देखने से यह स्पष्ट है कि आवंटन पत्र के प्रस्तर-6 में यह अंकित है कि यदि प्राधिकरण को यह ज्ञात होता है कि आबंटी गरीबी की रेखा के सीमा के अंतर्गत नहीं आता है तो प्राधिकरण द्वारा आवंटन निरस्त करते हुए जमा धनराशि जब्त कर ली जाएगी। पत्रावली पर ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है जिससे यह सिद्ध होता हो कि परिवादी/प्रत्यर्थी गरीब रेखा से नीचे की श्रेणी में आता है और वह आवासीय आश्रय दीनदयालपुरम योजना के अंतर्गत पात्र व्यक्ति था। नियमानुसार विकास प्राधिकरण को इस आवंटन को निरस्त किया जाना चाहिए था, परन्तु निरस्त न करके प्रत्यर्थी को सामान्य श्रेणी में मानते हुए उसको भवन प्राप्त करने का अवसर दिया गया, जिसमें उसकी कीमत रू. 80617/- निर्धारित थी। चूंकि परिवादी/प्रत्यर्थी आवासीय आश्रय योजना के पात्र व्यक्तियों की श्रेणी में नहीं आता है, अत: उस श्रेणी के आवंटियों के लिए जो ' सब्सिडाइज ' किश्तें व भवन का मूल्य रखा गया था उसका पात्र नहीं है। परिवादी/प्रत्यर्थी ने गलत तरीके से ई.डबल्यू.एस. भवन का आवंटन प्राप्त किया। इस प्रकार उसका कथन झूठ पर आधारित है। अपीलार्थी ने जो पुन: आवंटन पत्र जारी किया गया है उसमें कोई अनियमितता नहीं है। परिवादी यदि इस भवन को चाहता है तो उसे द्वितीय आवंटन पत्र के अनुसार ही धनराशि को जमा करना होगा। जिला मंच का आदेश सही तथ्यों एवं साक्ष्यों पर आधारित नहीं है एवं त्रुटिपूर्ण है, जो निरस्त किए जाने योग्य है। तदनुसार प्रस्तुत अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है तथा जिला मंच द्वारा पारित आदेश दि. 22.02.2006 निरस्त किया जाता है।
(राम चरन चौधरी) (राज कमल गुप्ता)
पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, आशुलिपिक
कोर्ट-5