Uttar Pradesh

Barabanki

163/2013

Ramesh Yadav - Complainant(s)

Versus

Mahesh Finance Co. Ltd. etc. - Opp.Party(s)

Vivek Kumar Srivastav

28 Feb 2023

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बाराबंकी।
परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि       20.08.2013
अंतिम सुनवाई की तिथि            20.02.2023
निर्णय उद्घोषित किये जाने के तिथि  28.02.2023
परिवाद संख्याः 163/2013
रमेश यादव पुत्र शम्भूलाल निवासी ग्राम जगनहेटा परगना व तहसील नवाबगंज जिला-बाराबंकी।
द्वारा-श्री विवेक कुमार श्रीवास्तव, अधिवक्ता
 
बनाम
1. शाखा प्रबंधक, महेश फाइनेन्स कम्पनी लि0 बाराबंकी परगना व तहसील नवाबगंज जिला-बाराबंकी।
2. कराधान अधिकारी कार्यालय सम्भागीय परिवहन अधिकारी प्रशासन, बाराबंकी।
द्वारा-श्री आर0 के0 टण्डन, अधिवक्ता
 
समक्षः-
माननीय श्री संजय खरे, अध्यक्ष
माननीय डाॅ0 एस0 के0 त्रिपाठी, सदस्य
उपस्थितः परिवादी की ओर से -श्री विवेक कुमार श्रीवास्वत, अधिवक्ता
         विपक्षी सं0-01 की ओर से-श्री आर0 के0 टण्डन, अधिवक्ता
द्वारा- डाॅ0 एस0 के0 त्रिपाठी, सदस्य
निर्णय
परिवादी ने यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्व धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 प्रस्तुत कर परिवादी के वाहन का विपक्षीगण नो ड्यूज प्रमाण पत्र उपलब्ध कराने तथा आर्थिक क्षतिपूर्तिरू0 2,00,000/-तथा मानसिक क्षतिपूर्ति रू0 2,00,000/-तथा वाद व्यय व अधिवक्ता फीस रू0 5,000/- दिलाये जाने का अनुतोष चाहा है।
परिवाद के तथ्य यह है कि परिवादी ने विपक्षी संख्या-01 से वाहन् इलेक्ट्रिक रजिस्ट्रेशन संख्या यू0पी0 42 बी-5857 को क्रय करने हेतु मु0 1,10,000.00 का ऋण बमाह सितम्बर सन् 2005 में प्राप्त किया था जिसके निर्धारित ग्राहक सेवा के बावत् परिवादी विपक्षीजन का उपभोक्ता है। विपक्षी संख्या-01 द्वारा मन माने व विधि विपरीत तरीके से बिना किसी प्रकार की नोटिस दिये परिवादी का वित्त पोषित वाहन रजिस्ट्रेशन संख्या यू0पी0 42 बी-5857 दिनांक 16.02.2006 को परिवादी के कब्जे से ले लिया। उस समय ट्रक में करीब 350 लीटर डीजल, रस्सा करीब 8 किलो, तिरपाल 36 बाई 36 का रखा हुआ था और ले जाने के बाद परिवादी के ट्रक की बिक्री भी कर दी। परिवादी के कई बार पूछने के बावजूद आज तक विपक्षी संख्या-02 द्वारा परिवादी को उसके ट्रक की बिक्री की कीमत व उसके प्रमाण का कोई भी कागज नहीं दिया। विपक्षी संख्या-02 द्वारा परिवादी के ट्रक के बकाया कर के बावत नोटिस भेजी जाती और जब परिवादी विपक्षी संख्या-01 व 02 के यहाॅ जाता है और पूरी बात बताता है कि ट्रक विपक्षी संख्या-01 के कब्जे में है, और उसी की जिम्मेदारी है तो विपक्षी संख्या-02 द्वारा कहा जाता है कि विपक्षी संख्या-01 के यहाॅ से प्रमाण ले के आओ परन्तु विपक्षी संख्या-02 द्वारा परिवादी के ट्रक को खींचने के उपरान्त आज तक किसी भी प्रकार की कार्यवाही की बावत कागजात न दिया जाना विपक्षीजन की स्तरहीन ग्राहक सेवा में कमी का प्रमाण है। विपक्षीजन के उक्त कृत्य से परिवादी को रू0 2,00,000.00 की आर्थिक क्षति व रू0 1,00,000.00 की सामाजिक क्षति कारित होना कहा है। परिवादी  दिनांक 18 जुलाई 2013 को विपक्षी संख्या-01 के यहाॅ गया और अपने द्वारा लिये गये ऋण और बिक्री किये गये उसके वित्त पोषित ट्रक रजिस्ट्रेशन संख्या यू0पी0 42 बी-5857 की कीमत जाननी चाही और कागजात माॅगे तो विपक्षी संख्या-01 बिगड़ गया और कहा ज्यादा कानून न बताओं। इस प्रकार विपक्षीजन द्वारा सेवा में कमी की गई है। अतः परिवादी का परिवाद स्वीकार कर नो ड्यूज प्रमाण पत्र तथा रू0 2,00,000.00 आर्थिक क्षति तथा रू0 2,00.000.00 मानसिक क्षतिपूर्ति दिलाया जाय। 
दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में परिवादी की तरफ से नोटिस दिनांक 22.08.2007, अतिरिक्त कर भुगतान प्रमाण पत्र, सहायक सम्भागीय परिवहन अधिकारी का पत्र संख्या 869, वसूली पत्र दिनांक 17.08.2006, बीमा कवर नोट, कन्सोरिटम फाइनेन्स लि0 का पत्र, रूपये पाॅच-पाॅच हजार के तीन बैंकर्स चेक, बीमा ओरियन्टल इंश्योरेन्स कम्पनी, नेशनल इंश्योरेन्स कम्पनी एवं मार्ग कर रू0 5,000.00 जमा रसीद की फोटोकापी दाखिल की गई है।
विपक्षी संख्या-01 के तरफ से वादोत्तर दिनांक 17.11.2014 दाखिल किया गया जिसमे जबाब में मुख्य रूप से कहा गया है कि वाहन् संख्या यू0पी0 42 बी-5857 हायर परचेज एग्रीमेन्ट के अंतर्गत दिनांक 15.04.2004 को रू0 1,10,000.00 में फाइनेन्स किया था। उक्त फाइनेन्स की किश्तों की अदायगी 12 माह में की जानी थी। परिवादी ने वाहन् की अंतिम किश्त दिनांक 14.08.2005 को अदा कर दी थी। हायर परचेज एग्रीमेन्ट के अंतर्गत समस्त किश्तों की अदायगी होने के पश्चात् विपक्षी ने दिनांक 14.08.2005 को ही फर्म द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र तथा प्रपत्र संख्या-35 संभागीय परिवहन अधिकारी कार्यालय में वाहन् के पंजीयन प्रमाण पत्र से हायरर का नाम कटवाने हेतु परिवादी के पक्ष में जारी किया। उक्त तिथि के बाद वाहन् परिवादी के कब्जें में ही है। परिवाद पत्र की धारा-3 में माॅगा गया अनुतोष गलत है। परिवादी द्वारा कालबाधित परिवाद पत्र को समय सीमा में लाये जाने के लिए उक्त झूठी तिथि व घटना बनायी गयी है। परिवादी द्वारा उक्त वाहन का रोड टैक्स कार्यालय सहायक सम्भागीय परिवहन अधिकारी (प्रशासन) बाराबंकी में पिछले कई वर्षो से जमा नहीं किया गया है जिससे बचने के लिए उसने झूठे व मनगढ़न्त तथ्यों के आधार पर कूटरचना कर कालबाधित परिवाद पत्र न्यायालय में योजित किया है जिसे निरस्त किये जाने की याचना की गई है।  
विपक्षी की तरफ से वादोत्तर के समर्थन में शपथपत्र बतौर साक्ष्य दाखिल किया गया है। दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में विपक्षी की तरफ से फोटोकापी महेश फाइनेन्स को भेजी गई नोटिस दिनांक 12.02.2008, महेश फाइनेन्स द्वारा सहायक सम्भागीय अधिकारी (प्रशासन) को लिखे गये पत्र की फोटो प्रतिलिपि दाखिल की गई है। विपक्षी संख्या-01 द्वारा सूची से पत्र दिनांक 12.02.2008, 24.06.2004, प्रारूप-34, 35, संभागीय परिवहन अधिकारी, प्रशासन बाराबंकी का पत्र, पत्र दिनांक 12.02.2008 की छाया प्रति दाखिल किया है।  
परिवादी तथा विपक्षी संख्या-01 के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी। विपक्षी संख्या-02 के अनुपस्थित रहने के कारण उनके विरूद्व एकपक्षीय कार्यवाही अग्रसारित की गई। पत्रावली का अवलोकन किया। 
विपक्षी संख्या-01 के तरफ से वादोत्तर में यह तर्क दिया गया है कि परिवादी द्वारा कालबाधित परिवाद योजित किया गया है। विपक्षी संख्या-01 की ओर से उनके अधिवक्ता द्वारा एक नजीर अमर पाल सिंह बनाम यू0पी0 फाइनेन्शियल कारपारेशन ।।। (1997) सीपीजे 65 (एन सी) दाखिल किया है जिसका अवलोकन किया। धारा-24 (ए) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 पर विचार करते हुये नजीर के मामले में यह मत व्यक्त किया गया है कि परिवाद का वर्ष-1989-90 में वाद हेतुक उत्पन्न हुआ लेकिन परिवाद वर्ष 1995 में दायर किया गया जिसमे पाया गया कि परिवाद कालबाधित दायर किया गया, इस नाते कोई सेवा में कमी नहीं हुई है। प्रस्तुत मामले में भी परिवाद अत्यधिक विलम्ब से दाखिल किया गया है। वाद हेतुक वर्ष-2007 में उत्पन्न हुआ था क्योंकि, परिवादी द्वारा नोटिस दिनांक 22.08.2007 को विपक्षीगण के विरूद्व भेजी गई थी। परिवाद क्यों विलम्ब से दाखिल किया गया, इसका कोई कारण/स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। मात्र परिवाद की धारा-4 में वर्णित तथ्य केवल परिवाद योजित करने के उद्देश्य व नया वाद कारण दर्शित करने हेतु अंकित किए गये है जबकि वाद कारण उत्पन्न होने से नियत परिसीमा में परिवाद दाखिल नहीं किया गया है। इस संबंध में पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि वाद का कारण दिनांक 16.02.2006 को उत्पन्न हुआ है जबकि परिवाद दिनांक 20.08.2013 को योजित किया गया है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में यह प्राविधान है कि विवाद उत्पन्न होने के दो वर्ष के अन्दर परिवाद दाखिल करना चाहिये। जबकि परिवादी ने ऐसा नहीं किया है। अतः परिवाद काल बाधित है।
प्रश्नगत प्रकरण में परिवादी का यह कथन है कि उसने वर्ष 2005 सितम्बर में रू0 1,10,000.00 ऋण विपक्षी संख्या-01 से लेकर वाहन् क्रय किया था, जिसको विपक्षी द्वारा बिना किसी प्रकार के नोटिस के दिनांक 16.02.2006 को अपने कब्जे में ले लिया गया। परिवादी ने वाहन् को विपक्षी संख्या-01 द्वारा कब्जे में लेने का कोई प्रमाण अभिलेख पर दाखिल नहीं किया है और न ही इसके समर्थन में शपथपत्र साक्ष्य ही दिया है जिससे यह प्रमाणित हो सके कि उसके वाहन् को विपक्षी संख्या-01 द्वारा कब्जे में लिया गया है। अतः परिवादी का यह कथन अभिलेख व साक्ष्य के अभाव में साबित नहीं होता है। इसके विपरीत विपक्षी संख्या-01 का यह अभिकथन है कि परिवादी ने वाहन् की अंतिम किश्त दिनांक 14.08.2005 को अदा कर दिया था। किश्त अदा करने पर उक्त तिथि को ही पंजीयन प्रमाण पत्र से हायरर का नाम काटने तथा परिवादी का नाम दर्ज करने हेतु विपक्षी संख्या-01 द्वारा आर.टी.ओ. को पत्र प्रेषित करते हुये प्रपत्र संख्या-35 के अनुसार पंजीयन बुक में परिवादी का नाम दर्ज करने हेतु नो आब्जेक्शन दाखिल किया गया। इसकी पुष्टि अभिलेख पर दाखिल प्रपत्र संख्या-06 से भी होती है। अतः परिवादी के इस कथन में भी बल नहीं है कि विपक्षी संख्या-01 द्वारा वाहन् के सम्बन्ध में कोई नो ड्यूज प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया। अभिलेख पर परिवादी द्वारा दाखिल सहायक सम्भागीय परिवहन अधिकारी, बाराबंकी (प्रशासन) का पत्र दिनांक 17.08.2006 जो कर जमा करने के सम्बन्ध में व जमा रसीद दिनांक 23.09.2006 वसूली के सम्बन्ध में जारी किया गया है इससे यह प्रमाणित होता है कि वाहन् दिनांक 23.09.2006 को परिवादी के कब्जे में था। अतः परिवादी का यह कथन कि उसके वाहन् को विपक्षी संख्या-01 द्वारा जबरन दिनांक 16.02.2006 को अपने कब्जे में ले लिया, सिद्व नहीं होता है। साथ ही विपक्षी संख्या-01 के इस कथन में बल है कि परिवादी ने इस मामले की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं करायी है तथा मात्र कई वर्षो से लम्बित रोड टैक्स से बचने के लिये परिवादी द्वारा झूठे व मनगढ़न्त, बेबुनियाद, असत्य तथ्यों के आधार पर परिवाद योजित किया है। 
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि विपक्षीगण द्वारा प्रश्नगत प्रकरण में किसी प्रकार की सेवा में कमी नहीं की गई है।
पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों से परिवादी यह प्रमाणित करने में असफल रहा है कि उसके वाहन् को विपक्षी संख्या-01 ने दिनांक 16.02.2006 को अपने कब्जे में लिया। इसके अलावा परिवादी द्वारा दाखिल परिवाद कालबाधित है। परिवादी ने परिवाद के कथनों के समर्थन में न तो कोई प्रमाणित साक्ष्य दाखिल किया है न ही वाहन चोरी के संबंध में प्रथम सूचना रिपोर्ट अथवा उससे सम्बन्धित अन्य कोई कार्यवाही का विवरण ही प्रस्तुत किया जिससे उसके कथनों की पुष्टि हो सके जबकि विपक्षी संख्या-01 ने शपथपत्र दाखिल कर परिवादी के कथनों को खंडित किया है। 
परिवादी अपना परिवाद सिद्व करने में असफल रहे है। अतः वर्तमान परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है। 
 
आदेश
परिवाद संख्या-163/2013 निरस्त किया जाता है। 
 
 
  (डाॅ0 एस0 के0 त्रिपाठी)                      (संजय खरे)
          सदस्य                                      अध्यक्ष
यह निर्णय आज दिनांक को  आयोग  के  अध्यक्ष  एंव  सदस्य द्वारा  खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।
 
     
 (डाॅ0 एस0 के0 त्रिपाठी)                      (संजय खरे)
           सदस्य                                      अध्यक्ष
 
दिनांक 28.02.2023
 
 

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