राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
पुनरीक्षण सं0- 46/2017
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, शाहजहांपुर द्वारा परिवाद सं0- 122/2015 में पारित आदेश दि0 28.02.2017 के विरूद्ध)
Invertis University, Invertis village, Bareilly- Lucknow national highway-24, District- Bareilly- 243123, U.P. through Registar.
……………Revisionist/O.P.
Versus
Mahesh Chandra S/o- Sri Kanaujilal, R/o- Village- Udna, Tehsil and P.S.- Powayan- District- Shahjahanpur U.P.
……………… Respondent/complainant
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 गुप्ता, विद्वान
अधिवक्ता।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 मिश्रा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 21.09.2017
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 122/2015 महेश चन्द्र बनाम इनवर्टीज यूनिवर्सिटी में पारित आदेश दि0 28.02.2017 के द्वारा जिला फोरम, शाहजहांपुर ने परिवाद के विपक्षी द्वारा जिला फोरम की स्थानीय अधिकारिता के सम्बन्ध में उठायी गई आपत्ति को अस्वीकार करते हुए यह माना है कि जिला फोरम को परिवाद ग्रहण करने का अधिकार है। अत: जिला फोरम के आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी ने यह पुनरीक्षण याचिका धारा 17(1)(b) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की है।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उसके विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 गुप्ता और विपक्षी की ओर से उसके विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 मिश्रा उपस्थित आये हैं।
मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि विपक्षी का कार्यालय जनपद बरेली स्थित है और परिवादी के पुत्र सुमित कुमार को विपक्षी इनवर्टीज यूनिवर्सिटी में जनपद बरेली में प्रवेश दिया गया है और प्रवेश शुल्क व अन्य धनराशि वहीं जमा की गई है। इसके साथ ही परिवादी के मृतक पुत्र का बीमार होना बरेली में ही बताया गया है और वहीं पर उसका इलाज हुआ है तथा मृत्यु भी वहीं हुई है। पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि वर्तमान परिवाद में मुख्य अनुतोष मृतक की पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी के संस्थान में जमा फीस आदि की वापसी है। अत: जिला फोरम, शाहजहांपुर को परिवाद ग्रहण करने का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है।
विपक्षी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी के पुत्र की मृत्यु जनपद बरेली से जनपद शाहजहांपुर लाते समय जनपद शाहजहांपुर में हुई है और उसका इलाज भी शाहजहांपुर में हुआ है जैसा कि परिवाद पत्र की धारा 4 में अभिकथित है। अत: वर्तमान परिवाद हेतु वाद हेतुक आंशिक रूप से जनपद शाहजहांपुर में उत्पन्न हुआ है और जिला फोरम शाहजहांपुर को परिवाद ग्रहण करने का क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
धारा 11(C) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उस जिला फोरम को परिवाद ग्रहण करने का अधिकार प्राप्त है जिसके अधिकारिता में वाद हेतुक पूर्ण रूप से अथवा आंशिक रूप से उत्पन्न हुआ है।
परिवाद पत्र की धारा 4 के अनुसार विपक्षी/परिवादी के मृतक पुत्र का इलाज शाहजहांपुर में विभिन्न डॉक्टरों द्वारा किया जाना बताया गया है।
अत: परिवाद पत्र के कथन के आधार पर वाद हेतुक आंशिक रूप से जिला फोरम, शाहजहांपुर की अधिकारिता में उत्पन्न होना जाहिर होता है। इस स्तर पर पुनरीक्षण्ाकर्ता के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क किया कि शाहजहांपुर के डॉक्टरों द्वारा परिवादी के पुत्र का इलाज होने का कोई अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया गया है। अत: शाहजहांपुर में परिवादी के पुत्र का इलाज होना प्रमाणित नहीं है।
मैंने पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क पर विचार किया है। विधि का यह सर्वमान्य सिद्धांत है कि न्यायालय अथवा फोरम की अधिकारिता परिवाद पत्र के अभिकथ्ान के आधार पर निर्धारित की जायेगी। अत: इस स्तर पर परिवाद पत्र के कथन को दृष्टिगत रखते हुए यह मानने हेतु उचित आधार है कि वाद हेतुक आंशिक रूप से जिला फोरम, शाहजहांपुर की स्थानीय क्षेत्राधिकार में उत्पन्न हुआ है। यदि वाद का यह कथन साक्ष्यों पर प्रमाणित नहीं होता है तो अधिकारिता के सम्बन्ध में पुनरीक्षणकर्ता द्वारा अन्तिम सुनवाई के समय अपनी आपत्ति उठायी जा सकती है और तदनुसार साक्ष्यों के आधार पर जिला फोरम निर्णय और आदेश पारित करने हेतु स्वतंत्र है।
जिला फोरम के आक्षेपित आदेश से स्पष्ट है कि जिला फोरम ने अधिकारिता के बिन्दु को अन्तिम रूप से निर्णीत नहीं किया है। जिला फोरम ने पुनरीक्षणकर्ता को यह छूट दी है कि वह अन्तिम सुनवाई के समय इस बिन्दु को उठाने हेतु स्वतंत्र है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि इस स्तर पर जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश में पुनरीक्षण न्यायालय के हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है। अत: पुनरीक्षण याचिका निरस्त की जाती है।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0-1