(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-150/2008
डा0 मुनेश्वर गुप्ता, मैनेजिंग डायरेक्टर, कामायनी हॉस्पिटल, 672, गीता मंदिर, गुरू का ताल, सिकन्दरा (आगरा) तथा दो अन्य
बनाम
महेन्द्र सिंह पुत्र लाल सिंह, निवासी पिलानी राम नगर, डा0 मंकेडा, थाना कामा गेल, जिला आगरा तथा एक अन्य
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री विजय कुमार यादव।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री अरूण टण्डन।
दिनांक : 06.02.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-98/2005, महेन्द्र सिंह तथा एक अन्य बनाम डा0 मुनेश्वर गुप्ता तथा दो अन्य में विद्वान जिला आयोग, द्वितीय आगरा द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 23.11.2007 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री विजय कुमार यादव की ओर से बहस करने से इंकार किया गया, जबकि प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री अरूण टण्डन की बहस सुनी गयी तथा तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. परिवाद के तथ्यों के अनुसार दिनांक 2.1.2004 को सड़क दुर्घटना में कुल्हे पर चोट के कारण परिवादी सं0-2 को विपक्षी सं0-1 के हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया तथा परिवादी सं0-2 का
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आपरेशन किया गया। आपरेशन के दौरान मरीज की हालत खराब हो गयी। मरीज के आपरेशन के टांके पक गए, जिसकी शिकायत पर भी डा0 द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया गया और दिनांक 9.1.2004 को डिसचार्ज कर दिया गया, जिसके कारण पुन: आपरेशन करने के लिए बाध्य होना पड़ा और डा0 रोशन लाल नर्सिंग होम, दिल्ली गेट, आगरा में आपरेशन कराया गया।
3. विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत लिखित कथन में यह उल्लेख किया गया है कि विपक्षी सं0-1 एवं 2 का कोई उत्तरदायित्व नहीं है, क्योंकि विपक्षी सं0-3, डा0 पी.के. अग्रवाल द्वारा डिसचार्ज किया गया है। विपक्षी सं0-3 का कथन है कि बुजुर्ग औरत होने के कारण घाव भरने में समय लगता है। यह बात परिवादी सं0-2 को समझा दी गयी थी और एक हफ्ते के बाद आने के लिए कहा था।
4. परिवादीगण की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि सम्पूर्ण इलाज किये बिना डा0 पी.के. अग्रवाल द्वारा मरीज को हॉस्पिटल से डिसचार्ज कर दिया गया। इस प्रकार इस प्रकृति की कार्यवाही स्वंय में इलाज के दौरान लापरवाही स्थापित करती है, इसलिए विपक्षीगण के विरूद्ध अंकन 47,200/-रू0 की क्षतिपूर्ति एवं मानसिक प्रताड़ना की मद में अंकन 50,000/-रू0 9 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया गया है।
5. चूंकि अपीलार्थीगण की ओर से कोई बहस नहीं की गयी है। अत: उनके तर्कों के उल्लेख का कोई औचित्य नहीं है।
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6. स्वंय विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत किये गये लिखित कथन के विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि आपरेशन करने के पश्चात आपरेशन के दौरान लगाए गए टांको में घाव मौजूद था, इस घाव को ठीक किये बिना मरीज को डिसचार्ज कर दिया गया, इसलिए विद्वान जिला आयोग का यह निष्कर्ष विधिसम्मत है कि सम्पूर्ण इलाज किये बिना और पूर्ण रूप से स्वस्थ किये बिना मरीज को डिसचार्ज करना लापरवाही का द्योतक है। इस निर्णय/आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
7. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3