राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-१६२३/२००५
(जिला मंच, इलाहाबाद द्वारा परिवाद सं0-२४८/१९९८ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १६-०३-१९९९ के विरूद्ध)
प्रबन्धक बाबा कोल्ड स्टोरेज एवं आइस फैक्ट्री हरीपुर वीदा बाजार, पो0-सैदाबाद, इलाहाबाद।
................. अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
१. महेन्द्र प्रताप सिंह पुत्र स्व0 राम कैलाश सिंह निवासी ग्राम व पोस्ट रमईपुर, तहसील फूलपुर, इलाहाबाद।
................. प्रत्यर्थी/परिवादी।
२. पुरूषोत्तम तिवारी पुत्र रामदेव तिवारी निवासी ग्राम बरईपुर पो0-हनुमानगंज (कोटवा) तहसील फूलपुर, इलाहाबाद।
................. प्रत्यर्थी।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री विजय कुमार विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित :- श्री अजय प्रताप सिंह विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : ०३-०६-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, इलाहाबाद द्वारा परिवाद सं0-२४८/१९९८ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १६-०३-१९९९ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी के कथनानुसार अपीलार्थी कोल्ड स्टोरेज में उसने पुरूषोत्तम तिवारी के माध्यम से दिनांक २०-०४-१९९७ को ५० बोरा आलू (जी-४) भण्डारण हेतु जमा किया, जिसका लॉट नं0-२०३/५० है। इस आलू के भण्डारण हेतु उसे आलू के अतिरित १७५०/- रू० ट्रैक्टर भाड़ा, पल्लेदारी व बोरे के दाम के रूप में व्यय करना पड़ा। जब परिवादी आलू लेने गया तब अपीलार्थी द्वारा हीलाहवाली की जाने लगी तथा उसे आलू नहीं दिया। अन्तत: उसे ३.०० रू० प्रति किलो के हिसाब से आलू क्रय करना पड़ा, जिससे उसे १६,७५०/- रू० का नुकसान हुआ। प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी ने कुल १७,२५०/- रू० १० प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित दिलाए जाने हेतु परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया।
विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी के परिवाद को स्वीकार करते हुए अपीलार्थी को निर्देशित किया कि वह आलू का मूल्य १५,०००/- रू०, बोरे की
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कीमत ५००/- रू० ट्रैक्टर भाड़ा ५००/- रू०, बाबत् पल्लेदारी ५००/- रू०, वाद व्यय स्वरूप ५००/- रू० कुल १७,२५०/- रू० १० प्रतिशत ब्याज सहित एक माह के अन्दर परिवादी को भुगतान करे।
इस निर्णय से क्षुब्ध हो कर यह अपील योजित की गयी।
प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता दिनांक २६-०५-२०१६ को उपस्थित हुए। उक्त तिथि को अपीलार्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं था। अत: दिनांक २६-०५-२०१६ को विद्वान अधिवक्ता प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी श्री अजय प्रताप सिंह के तर्क सुने गये। तदोपरान्त दिनांक ३१-०५-२०१६ को अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री विजय कुमार के तर्क सुने गये। प्रत्यर्थी सं0-२ की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। पत्रावली का अवलोकन किया गया।
अपीलार्थी की ओर से तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी, अपीलार्थी का उपभोक्ता नहीं है, क्योंकि अपीलार्थी द्वारा जारी रसीद लॉट नं0-२०३/५० में उपभोक्ता का नाम पुरूषोत्तम तिवारी पुत्र राम देव तिवारी अंकित है। प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी महेन्द्र प्रताप सिंह का नाम अभिकर्ता के रूप में दर्ज है। प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी ने अपना कोई आलू अपीलार्थी के यहॉं भण्डारण हेतु नहीं रखा और न ही उसने कोई रसीद अपीलार्थी के यहॉं जमा की। प्रत्यर्थी सं0-२ ने जरिए अपीलार्थी दिनांक २२-०६-२००५ एक रसीद जिला मंच इलाहाबाद में इजराय सं0-१०५/१९९९ में दाखिल की और यह कहा कि अपीलार्थी के यहॉं रखा गया आलू दिनांक २०-०४-१९९७ को उसनेप्राप्त कर लिया है। उक्त रसीद में यह भी लिखा है कि महेन्द्र प्रताप सिंह ने उसे रसीद नहीं दी और झूठ बोला कि रसीद खो गयी है। इस पर विद्वान जिला मंच ने दोनों प्रत्यर्थीगण को दिनांक २७-०९-२००५ को हाजिर होने हेतु आदेश दिनांक ०१-०९-२००५ को पारित किया लेकिन दिनांक २७-०९-२००५ को मात्र प्रत्यर्थी सं0-२ ही स्वयं उपस्थित हुआ। यदि प्रत्यर्थी सं0-१ की बात में सत्यता होती तो वह दिनांक २७-०९-२००५ को उपस्थित होता। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच द्वारा पारित आदेश दिनांकित २७-०९-२००५ के अनुसार जारी वसूली प्रमाण पत्र निरस्त होने योग्य है, क्योंकि विद्वान जिला मंच द्वारा आदेश दिनांक १६-०३-१९९९ के अनुसार कुल धनराशि १६,७५०/- रू० ही होती है, जबकि कुल धनराशि १७,२५०/- रू० बतायी गयी है, जिस पर गणना करके वसूली प्रमाण पत्र जारी किया गया है। अपीलार्थी की आरे से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच द्वारा पारित आदेश दिनांक १६-०३-१९९९ एवं २७-०९-२००५ एक पक्षीय हैं। अपीलार्थी को
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सुनवाई का अवसर प्रदान नहीं किया गया।
प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी सं0-२ पुरूषोत्तम तिवारी पुत्र रामदेव अपीलार्थी बाबा कोल्ड स्टोरेज एण्ड आइस फैक्ट्री में कर्मचारी है। वह किसानों का आलू, बाबा कोल्ड स्टोरेज में अपने माध्यम से रखवाते रहे हैं। प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी ने वर्ष १९९७ में ५० बोरा आलू (जी-४) भण्डारण हेतु प्रत्यर्थी सं0-२ पुरूषोत्तम तिवारी के माध्यम से अपीलार्थी बाबा कोल्ड स्टोरेज में दिनांक २०-०४-१९९७ को जमा कराया तथा रसीद प्राप्त की। अपीलार्थी द्वारा आलू निकासी का सीजन आने पर प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी को आलू वापस न किए जाने पर प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी ने परिवाद जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया था। इस परिवाद की कार्यवाही में भाग लेने हेतु दिनांक १३-०८-१९९८ को अपीलार्थी अपने अधिवक्ता श्री शैलेन्द्र पाण्डेय एडवोकेट के माध्यम से उपस्थित हुआ तथा इस आशय का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया कि परिवाद में १०-०९-१९९८ की तिथि नियत की जाय। विद्वान जिला ने अपीलार्थी की प्रार्थना स्वीकार करते हुए सुनवाई की तिथि स्थगित कर दी। इसके बाद की तिथियों पर अपीलार्थी जिला मंच के समक्ष न तो उपस्थित हुए और न ही अपनी कोई आपत्ति प्रस्तुत की। अन्तत: विद्वान जिला मंच ने दिनांक १६-११-१९९८ को अपीलार्थी की अनुपस्थिति में एक पक्षीय सुनवाई करते हुए दिनांक १६-०३-१९९९ को परिवाद में निर्णय पारित किया। इस निर्णय के निष्पादन हेतु प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी ने निष्पादन सं0-१०५/१९९९ योजित किया, जिसमें नोटिस प्राप्त होने के पश्चात् दिनांक १०-०२-२००५ को अपीलार्थी अपने अधिवक्ता श्री रणधीरसिंह के साथ उपस्थित हुआ और वकालतनामा दाखिल किया। दिनांक ०१-०९-२००५ को पुन: अन्य अधिवक्तागण सर्वश्री शशी प्रकाश तिवारी, बृजेश मणि तिवारी एवं टी0के0 द्विवेदी का वकालतनामा अपीलार्थी की ओर से दाखिल किया गया। तदोपरान्त दिनांक ३०-०९-२००५ को श्री विजय कुमार अधिवक्ता, जो इस अपील में अधिवक्ता हैं, का वकालतनामा दाखिल करवाया गया।
प्रत्यर्थी सं0-२ मूल परिवाद में पक्षकार नहीं हैं। इस सन्दर्भ में प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी ने अपना शपथ पत्र प्रस्तुत किया है तथा अपने कथन के समर्थन में शपथ पत्र के साथ संलग्नक-१ के रूप में अपीलार्थी की ओर से श्री शैलेन्द्र पाण्डेय एडवोकेट द्वारा दाखिल वकालतनामा की प्रमाणित प्रतिलिपि की छायाप्रति एवं श्री शैलेन्द्र पाण्डेय द्वारा दिनांक १३-०८-१९९८ को प्रस्तुत
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किए गये प्रार्थना पत्र की प्रमाणित प्रतिलिपि की छायाप्रति संलग्नक-२ के रूप में दाखिल की हैं।
प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रनगत निर्णय दिनांक १६-०३-१९९९ के विरूद्ध यह अपील ०६ वर्ष ०६ माह पश्चात् काफी विलम्ब से प्रस्तुत की है तथा विलम्ब को क्षमा किए जाने हेतु कोई प्रार्थना पत्र प्रस्तुत नहीं किया है। अपीलार्थी दिनांक १०-०२-२००५ को निष्पादन वाद की सुनवाई के सन्दर्भ में उपस्थित हुआ। दिनांक १०-०२-२००५ के बाद भी लगभग ०७ माह बाद यह अपील योजित की गयी है तथा अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब को क्षमा करने हेतु कोई प्रार्थना पत्र भी अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया है।
प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी सं0-२ द्वारा दाखिल की गयी रसीद दिनांक २२-०६-२००५ कूट रचित व फर्जी है। प्रत्यर्थी सं0-२, जो अपीलार्थी का कर्मचारी है, को साजिश में लेकर यह रसीद दाखिल की गयी है। प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि उसके पास आलू भण्डारण की तिथि से पूर्व या उसके बाद कोई ट्रैक्टर था और न है। जिस ट्रैक्टर से प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी ने अपना आलू ले जाकर अपीलार्थी कोल्ड स्टोरेज में जमा किया था, उसकी रसीद की छायाप्रति साक्ष्य के रूप में उसे अपने शपथ पत्र के साथ संलग्नक-५ के रूप में दाखिल की है।
उल्लेखनीय है कि प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी ने अपने शपथ पत्र के साथ संलग्नक-१ के रूप में श्री शैलेन्द्र पाण्डेय एडवोकेट द्वारा जिला मंच इलाहाबाद में प्रश्नगत परिवाद सं0-२४८/१९९८ में अपीलार्थी की ओर से प्रस्तुत किए गये वकालतनामा की प्रमाणित प्रतिलिपि की छायाप्रति तथा श्री पाण्डेय द्वारा दिनांक १३-०८-१९९८ को प्रस्तुत किए गये प्रार्थना पत्र की प्रमाणित प्रतिलिपि की छायाप्रति दाखिल की हैं। अपीलार्थी द्वारा परिवाद की सुनवाई के दौरान् इस वकालतनामे तथा प्रार्थना पत्र को अस्वीकार नहीं किया गया और न ही प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी द्वारा प्रस्तुत अपील में दाखिल किए गए शपथ के इस सन्दर्भ में प्रस्तुत अभिकथनों को अस्वीकार किया गया है। ऐसी परिस्थिति में अपीलार्थी का यह कथन स्वीकार किए जाने योग् नहीं है कि अपीलार्थी को सुनवाई का अवसर प्रदान न करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया गया है। प्रश्नगत निर्णय दिनांक १६-०३-१९९९ को पारित किया गया। अपीलार्थी जिला मंच के समक्ष प्रश्नगत परिवाद की सुनवाई के मध्य अपना पक्ष रख सकता था, किन्तु अपीलार्थी ने जिला मंच के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करना नहीं चाहा। यह भी उल्लेखनीय है कि जो आलू
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अपीलार्थी के कोल्ड स्टोरेज में प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी द्वारा जमा किया जाना बताया गया है, उसके सन्दर्भ में अपीलार्थी ने जो रसीद की फोटोप्रति दाखिल की है उसमें प्रत्यर्थी सं0-१ के हस्ताक्षर बतौर मालधनी है, अभिकर्ता के रूप में नहीं हैं। यदि अपीलार्थी द्वारा लॉट सं0-२०३/५० द्वारा जमा किया गया आलू वास्तव में पुरूषोत्तम तिवारी नाम के व्यक्ति को वापस किया गया होता तो इस सन्दर्भ में अपलार्थी के यहॉं रखी गयी सम्बन्धित पंजजिकाओं में भी इस तथ्य का इन्द्राज होता। ऐसा कोई अभिलेख जिला मंच के समक्ष अपीलार्थी की ओर से दाखिल नहीं किया गया और न ही इस अपील की सुनवाई के मध्य ऐसा कोई अभिलेख दाखिल किया गया, बल्कि प्रश्नगत निर्णय पारित होने के लगभग ०६ वर्ष बाद प्रश्नगत निर्णय से सम्बन्धित निष्पादन वाद की सुनवाई के मध्य श्री पुरूषोत्तम तिवारी द्वारा प्रस्तुत की गयी रसीद जिला मंच के समक्ष दाखिल की गयी। यह नितान्त अस्वाभाविक है कि कोई अभिकर्ता, मालिक द्वारा माल प्राप्त करने के बाबजूद कोल्ड स्टोरेज से माल प्राप्त करने का प्रयास करे, न केवल प्रयास करे बल्कि माल प्राप्त करने हेतु मुकदमा भी करे तथा कोल्ड स्टोरेज द्वारा माल वापस देने के बाबजूद इस तथ्य से परिवादी को प्रारम्भ में ही अवगत न कराए और न ही जिला मंच में सुनवाई के मध्य अपना पक्ष रखे।
उल्लेखनीय है कि प्रश्नगत निर्णय दिनांक १६-०३-१९९९ को पारित किया गया, जिसके विरूद्ध यह अपील दिनांक ०३-१०-२००५ को लगभग ०६ वर्ष ०६ माह बाद योजित की गयी है। पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी की ओर से प्रश्नगत परिवाद की सुनवाई के दौरान् अधिवक्ता उपस्थित होते रहे तथा प्रश्नगत परिवाद से सम्बन्धित निष्पादन वाद की सुनवाई के दौरान् भी दिनांक १०-०२-२००५ को अपीलार्थी की ओर से अधिवक्ता उपस्थित हुए, किन्तु प्रश्नगत निर्णय के विरूद्ध समयावधि के अन्दर अपील योजित नहीं की गयी ओर न ही अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब को क्षमा किए जाने हेतु कोई प्रार्थना पत्र अपीलार्थी की ओर से प्रस्तुत किया गया। ऐसी परिस्थिति में प्रस्तुत अपील कालबाधित होने के कारण निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। जिला मंच, इलाहाबाद द्वारा परिवाद सं0-२४८/१९९८ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १६-०३-१९९९ की पुष्टि की जाती है। जिला मंच को निर्देशित
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किया जाता है कि मूल परिवाद में पारित निर्णय के अनुसार ही निष्पादन कार्यवाही सुनिश्चित करे। इस अपील में पारित आदेश दिनांक १७-१०-२००५ के अनुपालन में जमा धनराशि मय ब्याज डिक्री की धनराशि में समायोजित की जाएगी।
इस अपील का व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(महेश चन्द)
सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-५.