राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2244/2015
( सुरक्षित )
( जिला फोरम, झॉसी द्वारा परिवाद संख्या-207/2010 में पारित आदेश दिनांकित 15-07-2015 के विरूद्ध )
1- मण्डल रेल प्रबन्धक, झॉसी।
2- मण्डल रेल प्रबन्धक (कार्मिक) झॉसी।
3- वरिष्ठ मण्डल वित्त प्रबन्धक, उत्तर मध्य रेल, झॉसी।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
महेन्द्र कुमार ओझा पुत्र स्व0 मदन मोहन ओझा निवासी 1360/1ए, खातीबाबा झॉसी जिला झॉसी।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
- माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
- माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री पी0 पी0 श्रीवास्तव।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री एस0 पी0 पाण्डेय।
दिनांक : 16-08-2016
माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-207/2010 महेन्द्र कुमार ओझा बनाम् मण्डल रेल प्रबन्धक, झॉसी व अन्य में जिला फोरम, झॉसी द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 15-07-2015 क विरूद्ध यह अपील अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रस्तुत की गयी है। विवादित निर्णय इस प्रकार है :-
''परिवादी का परिवाद स्वीकार किया जाता है और विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि 2.5 प्रतिशत की जो ब्याज की धनराशि जो वसूल की गयी है, वह दो माह के अंदर 12 प्रतिशत ब्याज सहित परिवादी को वापिस करे, और यह ब्याज वाद दाखिल करने के दिनांक से अदायगी की तिथि तक देय होगा।''
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संक्षेप में इस केस के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी उ0म0 रेल, झॉसी में मेल गार्ड की हैसियत से मुख्यालय में कार्यरत था। शारीरिक अस्वस्थता की वजह से परिवादी ने दिनांक 03-11-2007 को बी0आर0एस0 ले लिया था। परिवादी ने आई0आर0ई0एम0 की शर्तों के अनुसार प्राप्त की गयी ऋण की रकम पर 11 प्रतिशत ब्याज पर सन् 2000 में लिया था इसमें यह भी नियम है कि सक्षम प्राधिकारी की संतुष्टि के अनुरूप पूर्णत: पालन किया जाता है तो ढाई प्रतिशत की छूट दी जाती है। परिवादी को जुलाई, 2000 में 1,75,000/-रू0 और अगस्त, 2001 में 1,78,750/-रू0 परिवादी को प्राप्त हुए। परिवादी को 2830/-रू0 की प्रतिमाह 198 किश्ते देनी थी और 50,940/-रू0 की डीसीआरसी से कटौती होना सुनिश्चित हुआ था। परिवादी ने नवम्बर, 2007 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। परिवादी के फण्ड से विपक्षी संख्या-3 द्वारा भवन निर्माण अग्रिम पर 1,93,444/-रू0 निर्धारित ब्याज की कटौती एवं रू0 43,964/-रू0 अतिरिक्त ब्याज की कटौती ढाई प्रतिशत की गयी जिसकी जानकारी परिवादी को सेटिलमेंट के समय हुई। परिवादी ने दिनांक 12-02-2008 को एक प्रार्थना पत्र विपक्षी संख्या-2 को इस आशय का दिया कि ढाई प्रतिशत जो ब्याज की कटौती परिवादी के फण्ड से की गयी है उसे वापस किया जाए। लेकिन विपक्षी ने कोई सुनवाई नहीं की, तब परिवादी ने दिनांक 08-10-2009 को सूचना के अधिकार के तहत विपक्षी संख्या-2 से ढाई प्रतिशत ब्याज की कटौती किस नियम के अनुसार की गयी है के संबंध में जानकारी चाही, जिस पर भी अस्पष्ट जवाब दिया गया। दिनांक 26-11-2009 को परिवादी द्वारा की गयी अपील के संबंध में अपर मण्डल रेल प्रबन्धक, झॉसी अपीलीय अधिकारी दिनांक 22-12-2009 में हवाला दिया गया कि भवन निर्माण
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अग्रिम पर 1,93,444/-रू0 निर्धारित ब्याज की कटौती एवं 43,964/-रू0 अतिरिक्त ब्याज की कटौती की गयी है। अतिरिक्त ब्याज ढाई प्रतिशत की कटौती आईआरईएम के पैरा 1132 (10) ।। के अनुसार की गयी है। विपक्षी संख्या-2 द्वारा उपलब्ध करायी गयी अनुबंध की प्रति में ढाई प्रतिशत अतिरिक्त ब्याज का कोई अनुबंध परिवादीने नहीं किया गया था। विपक्षीगण द्वारापरिवादीकी अतिरिक्त ली गयी कटौती को वापस न करके सेवा में कमी की गयी है इसलिए यह परिवाद योजित किया गया है।
विपक्षीगण ने अपना जवाब प्रस्तुत करते हुए कथन किया कि परिवादी द्वारा उक्त परिवाद असत्य कथनों तथा तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया गया है। इसलिए परिवाद चलनसार नहीं है। रेलवे अपने कर्मचारियों को उनकी पात्रता तथा शर्तों एवं आईआईईएम की शर्तो के अनुसार उनके प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कियेजाने पर ऋण दिया जाता है और परिवादी ने भवन अग्रिम लोन लेते समय समस्त शर्तों/नियमों का पालन करने की घोषणा की थी। आईआरईएम की सभी शर्तें पूर्ण करता है तो उसे 2.5 प्रतिशत ब्याज की छूट प्रदान की जाती है। भवन लोन अग्रिम लेने पर आईआरईएम के नियम 16 में यह शर्त शामिल है कि कर्मचारी पूरी तरह अनुमोदित नक्शे और इन विशिष्टियों के अनुसार किया जायेगा, जिसके आधार पर अग्रिम की राशि की संगणना की गयी हो, कि निर्माण कार्य पूरी तरह उनके द्वारा भारत सरकार को प्रस्तुत नक्शे और विशिष्टियों के अनुसार किया जा रहा है। जिस तारीख को संबंधित रेलवे कर्मचारी को अग्रिम की पहली किश्त दी गयी हो, उस तारीख से 18 महीने के अंदर पूरा कर लिया जायेगा। विपक्षी का कथन है कि परिवादी द्वारा जवाबदावा के पैरा-26 में वर्णित शर्तों के अनुसार कार्यवाही नहीं की और न ही कोई बीमा संबंधी प्रमाण पत्र प्रस्तुत
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किया और न ही नियमानुसार छूट दिये जाने योग्य है। परिवादी का परिवाद खारिज होने योग्य है।
पीठ के समक्ष अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री पी0 पी0 श्रीवास्तव तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री एस0 पी0 पाण्डेय उपस्थित आए।
उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों तथा जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश का परिशीलन किया गया।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने विधि विरूद्ध आदेश पारित किया है तथा परिवादी का परिवाद कर्मचारी एवं नियोक्ता संबंधी सेवा शर्तों का मामला है। परिवादी भूतपूर्व रेलकर्मी है और रेलवे का उपभोक्ता नहीं है। इस परिवाद पर सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार मा0 फोरम को प्राप्त नहीं है एवं रेलकर्मियों को दी जाने वाली सुविधा भाड़े पर नहीं दी जाती है न ही उस पर कोई कन्सीडरेशन व्यय लिया जाता है उक्त सुविधा केवल रेलकर्मियों के लिए है। किसी प्राइवेट व्यक्ति के लिए नहीं है। परिवादी ने केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण अधिनिम 1985 के नियमों का पालन नहीं किया है इसलिए ढाई प्रतिशत ब्याज की छूट नहीं दी जा सकती है। परिवादी/प्रत्यर्थी का परिवाद जिला फोरम में कालबाधित भी था अत: अपील स्वीकार कर जिला फोरम के आदेश को निरस्त किया जाये।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्कहै कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने बिना किसी सूचना के विभाग द्वारा दिये गये ऋण में ढाई प्रतिशत ब्याज की छूट न देकर ढाई प्रतिशत अतिरिक्त ब्याज की कटौती में परिवादी का 43,964/-रू0 काट लिये और बार-बार मांगने पर भी वापस नहीं किये। अपीलार्थी व प्रत्यर्थी के बीच एक अनुबंध हुआ था जिसके
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अनुसार ऋण 11 प्रतिशत ब्याज के साथ 198 मासिक किश्तों में वापस करना था मगर अपीलार्थी द्वारा 2 ½ प्रतिशत की अतिरिक्त ब्याज जोडकर 43,964/-रू0 अधिक कटौती की है। जिला फोरम ने विधि के अनुरूप आदेश पारित किया है अत: अपील खारिज कर जिला फोरम के आदेश के पुष्टि की जाए।
पत्रावली का परिशीलन यह दर्शाता है कि परिवादी/प्रत्यर्थी ने अपीलार्थी रेल विभाग से मकान बनाने हेतु ऋण लिया जिसे 11 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस करना था। परिवादी/प्रत्यर्थी का कथन है कि अपीलार्थी/विपक्षी ने अनुबंधित ब्याज की दर से बढ़ाकर 13.5 प्रतिशत कर दिया और इसी आधार पर ब्याज परिवादी से वसूल लिया और बार-बार मांगने पर भी वापस नहीं किया तथा अपीलार्थी द्वारा यह कहना कि उक्त परिवाद में कर्मचारी एवं नियोक्ता संबंधित सेवा शर्तों का मामला है गलत है क्योंकि प्रत्यर्थी द्वारा लिये गये ऋण के एवज् में अपीलार्थी द्वारा 11 प्रतिशत ब्याज के साथ ऋण की वसूली की गयी है जो एक बैंकिंग सेवा के तहत आता है। अपीलार्थी एवं प्रत्यर्थी के बीच ऋण के संबंध में अनुबंध की शर्तों के विरूद्ध अपीलार्थी द्वारा 2 ½ प्रतिशत की अतिरिक्त ब्याज जोड़कर 43,964/-रू0 अधिक कटौती की गयी है जो सेवा में कमी को प्रदर्शित करता है।
अत: हम इस मत के हैं कि जिला मंच ने सभी बिन्दुओं पर विस्तृत विचार करने के बाद आदेश पारित किया है और उसमें हस्क्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है तथा अधिक वसूल की गयी धनराशि पर जो 2 ½ प्रतिशत ब्याज लगाया है वह न्यायोचित नहीं है। किन्तु जिला फोरमद्वारा जो 12 प्रतिशत ब्याज परिवादी/प्रत्यर्थी को दिया गया है वह अत्यधिक है
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जिसे संशोधित करते हुए 09 प्रतिशत किया जाना न्यायसंगत है। तद्नुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला फोरम, झॉसी द्वारा परिवाद संख्या-207/2010 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 15-07-2015 में ब्याज 12 प्रतिशत के स्थान पर 09 प्रतिशत संशोधित किया जाता है। निर्णय के शेष भाग की पुष्टि की जाती है।
( न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान ) ( बाल कुमारी )
अध्यक्ष सदस्य
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा