जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम, कानपुर नगर।
अध्यासीनः डा0 आर0एन0 सिंह..........................................अध्यक्ष
श्रीमती सुनीताबाला अवस्थी............................सदस्या
उपभोक्ता वाद संख्या-428/2012
राजेष कुमार रावत पुत्र श्री उमा षंकर रावत निवासी 62/85 हरबन्ष मोहाल कानपुर नगर, कानपुर नगर।
................परिवादी
बनाम
महाबीर फाइनेन्स कंपनी द्वारा डायरेक्टर 65 बी0 123/287 महाबीर मार्केट गडरियन पुरवा कानपुर नगर।
...........विपक्षी
डा0 आर0एन0 सिंह अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःःनिर्णयःःः
1. परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद विपक्षी के विरूद्ध वाहन सं0-न्च्.78 ।ज्.3776 के ऋण की एन.ओ.सी./नोड्यूज एवं परिवादी की 8 चेके विपक्षी से दिलाने, आर्थिक क्षति के रूप में रू0 10,000.00 एवं नोड्यूज न दिये जाने के कारण उक्त वाहन का परिचालन दिनांक 15.03.09 से बन्द रहने के कारण हुई आर्थिक क्षति रू0 80,000.00 तथा वाद व्यय, मानसिक प्रताड़ना के रूप में रू0 10,000.00 प्राप्त करने के सम्बन्ध में प्रस्तुत किया है।
2. परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का संक्षेप में कथन यह है कि परिवादी ने अपने कामर्षियल वाहन सं0-न्च्.78 ।ज्.3776 की मरम्मत हेतु विपक्षी से रू0 30,000.00 फाइनेन्स कराया था, जिसकी अदायगी परिवादी द्वारा मय ब्याज के रू0 3164.00 प्रतिमाह की किस्तों में 11 माह में अदा किया जाना था। उक्त अदायगी हेतु परिवादी ने विपक्षी को 11 चेके भारतीय स्टेट बैंक कैनाल रोड षाखा कानपुर नगर के बचत खाता सं0- 10491737914 की दी थी। विपक्षी द्वारा समय के अंदर 4 चेकों का भुगतान परिवादी के खाते से कर लिया और षेश चेके बैंक में भुगतान हेतु प्रस्तुत नहीं की गयी एवं ब्याज व अर्थदण्ड बढ़ाने की नियत से बगैर किसी सूचना
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के दिनांक 05.02.09 को परिवादी का वाहन विपक्षी ने अपने कब्जे में ले लिया तथा दिनांक 07.02.09 को रू0 12,700.00 नकद अदा करने पर परिवादी का वाहन विपक्षी द्वारा निर्मुक्त किया गया। दिनांक 10.02.09 को पुनः बिना किसी सूचना के परिवादी का वाहन विपक्षी ने अपने कब्जे में ले लिया और उसी समय रू0 6,328.00 नकद जमा करने पर विपक्षी ने उपरोक्त वाहन को निर्मुक्त किया। परिवादी ने विपक्षी से पुनः बकाया किस्त का भुगतान चेक के माध्यम से लेने का अनुरोध किया, परन्तु विपक्षी द्वारा कोई भी चेक परिवादी के खाते में नहीं ली गई तब दिनांक 15.03.09 को परिवादी द्वारा पुनः नकद भुगतान किया गया। परिवादी द्वारा विपक्षी को दिनांक 15.03.09 तक रू0 34,804.00 का भुगतान किया जा चुका है। अब विपक्षी का कोई भी पैसा परिवादी के ऊपर बकाया नहीं है। परिवादी द्वारा दिनांक 15.03.09 को फाइनल भुगतान कर देने के बाद परिवादी विपक्षी के कार्यालय में वास्ते नोड्यूज व विपक्षी को दी गयी 7 चेके जो विपक्षी ने बैंक में नहीं लगाई थी और उनका नकद भुगतान प्राप्त कर चुका है। उक्त चेके विपक्षी ने परिवादी को आज तक वापस नहीं की हैं। विपक्षी द्वारा समय पर चेकों से भुगतान न लेने एवं अनावष्यक रूप से परेषान करने की नियत से वाहन को अपने कब्जे में लेने से परिवादी को अत्यधिक क्षति कारित हुई है। विपक्षी द्वारा वाहन का नोड्यूज न देने के कारण परिवादी को अत्यधिक आर्थिक क्षति कारित हुई है। परिवादी द्वारा अपने अधिवक्ता के माध्यम से दिनांक 28.06.12 को रजिस्टर्ड नोटिस प्रेशित किया जो कि विपक्षी पर तामील हुई, परन्तु विपक्षी द्वारा कोई भी जवाब व कार्यवाही न किये जाने के कारण परिवादी को यह परिवाद प्रस्तुत करना पड़ा।
3. परिवाद योजित होने के पष्चात विपक्षी को पंजीकृत डाक से नोटिस भेजी गयी, लेकिन पर्याप्त अवसर दिये जाने के बावजूद भी विपक्षी फोरम के समक्ष उपस्थित नहीं आया। अतः विपक्षी पर पर्याप्त तामीला मानते हुए दिनांक 11.09.13 को उसके विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही किये जाने का आदेष पारित किया गया।
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परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
4. परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 28.11.13 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में मतदाता पहचान पत्र की प्रति, बैंक स्टेटमेंट की प्रति, जमा रसीदों की प्रतियां, पासबुक की प्रति को दाखिल किया है।
निष्कर्श
5. फोरम द्वारा परिवादी के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों का गंभीरतापूर्वक परिषीलन किया गया।
6. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता को एकपक्षीय रूप से सुनने तथा पत्रावाली पर उपलब्ध अभिलेख एवं साक्ष्यों के परिषीलन से विदित होता है कि परिवादी द्वारा विपक्षी से अपना वाहन जिसका विवण परिवाद पत्र के प्रस्तर-1 में दिया गया है-के सम्बन्ध में रू0 30,000.00 कर्ज के रूप में लिया गया, जिसे 11 माह की किस्तों में अदा किया जाना था, जिसकी प्रतिमाह किस्त रू0 3,164.00 बनती थी। इसके लिए परिवादी द्वारा विपक्षी को 11 चेके खाता सं0-10491737914 एस.बी.आई. की दी गईं। परिवादी का कहना है कि विपक्षी द्वारा चार चेकों का भुगतान लिया गया और षेश चेकें भुगतान हेतु प्रस्तुत नहीं की गयी। विपक्षी द्वारा उसके वाहन को बगैर किसी पूर्व नोटिस के दिनांक 05.02.09 व 10.02.09 को अपने कब्जे में ले लिया गया, जो परिवादी द्वारा क्रमषः दिनांक 07.02.09 को रू0 12,700.00 दिनांक 10.02.09 को रू0 6,328.00 नकद जमा करने पर विपक्षी ने उसका वाहन वापस किया। विपक्षी से परिवादी द्वारा बकाया किस्त चेक के माध्यम से लेने का अनुरोध किया गया, परन्तु विपक्षी ने परिवादी का उक्त अनुरोध स्वीकार नहीं किया। अतः परिवादी को दिनांक 15.03.09 को संपूर्ण बकाया धनराषि नकद रूप में अदा करनी पड़ी। विपक्षी द्वारा, परिवादी के मांगने पर भी उसे नोड्यूज नहीं दी गयी। परिवादी को परेषान किया गया। अतः परिवादी का परिवाद पत्र के अंत में याचित उपषम जिसका विवरण परिवाद
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पत्र के प्रथम प्रस्तर में दिया जा चुका है, विपक्षी से दिलाया जाये। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त साक्ष्यों से विदित होता है कि परिवाद पत्र के प्रस्तर-5 में परिवादी द्वारा यह कथन किया गया है कि परिवादी को विपक्षी से नोड्यूज व विपक्षी को दी गयी 7 चेके जो विपक्षी ने बैंक में नहीं लगायी थीं और उनका नकद भुगतान प्राप्त कर चुका है। उपरोक्त चेकें विपक्षी ने परिवादी को आज तक वापस नहीं की है। जबकि परिवाद पत्र के प्रस्तर-9 उपषम में परिवादी द्वारा विपक्षी से 8 चेके दिलाने की बात कही गयी है, जो स्वयं में एक विरोधाभाशी है। परिवादी द्वारा उक्त चेकों की छायाप्रतियां या अन्य कोई ऐसा साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिससे परिवादी का यह कथन प्रमाणित होता हो कि परिवादी द्वारा विपक्षी को कोई अभिकथित चेके उपलब्ध करायी गयी हैं। परिवादी के पास यह भी अधिकार है कि वह उक्त चेकों के भुगतान को रोकने हेतु अपनी बैंक षाखा को पत्र लिख सकता है। चूॅकि विपक्षी बावजूद तामीला नोटिस अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए फोरम के समक्ष नहीं आया है और परिवादी द्वारा इस आषय का षपथपत्र प्रस्तुत किया गया है कि उसके द्वारा दिनांक 15.03.09 को संपूर्ण धनराषि अदा की गयी है। अतः ऐसी दषा में यद्यपि परिवादी द्वारा उक्त कथन का भी कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया है। किन्तु उसके षपथपत्र पर किये गये कथन को एकपक्षीय रूप से निर्णय पारित करने के लिए स्वीकार किया जाता है। परिवादी द्वारा याचित उपषम के लिए कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। इसलिए मात्र षपथपत्र पर किये गये कथन के आधार पर, याचित अन्य उपषम के लिए परिवाद स्वीकार किया जाना न्यायसंगत नहीं होगा। ’’विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत है कि जिन तथ्यों को प्रत्यक्ष अभिलेखीय साक्ष्य के द्वारा साबित किया जा सकता है, उन तथ्यों को उक्त प्रकार के अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत करके ही साबित करना होगा।’’
अतः उपरोक्त तथ्यों परिस्थितियों के आलोक में फोरम का यह मत है कि उपरोक्तानुसार दिये गये निश्कर्श के आधार पर परिवादी का प्रस्तुत परिवाद आंषिक व एकपक्षीय रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
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ःःःआदेषःःः
7. परिवादी का प्रस्तुत परिवाद आंषिक व एकपक्षीय रूप से इस आषय से स्वीकार किया जाता है कि प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर विपक्षी, परिवादी को उसके द्वारा विपक्षी कंपनी से लिये गये रू0 30,000.00 ऋण के सम्बन्ध में नोड्यूज सर्टीफिकेट उपलब्ध कराये। विपक्षी द्वारा परिवादी को रू0 5000.00 वाद व्यय भी अदा करना होगा। अन्यथा स्थिति में परिवादी को यह अधिकार होगा कि वह डिक्री की धनराषि राजस्व वसूली की भाँति जरिये, फोरम प्राप्त कर सकेगा।
(श्रीमती सुनीताबाला अवस्थी) (डा0 आर0एन0 सिंह )
सदस्या अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश
फोरम कानपुर नगर। फोरम कानपुर नगर।
आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।
(श्रीमती सुनीताबाला अवस्थी) (डा0 आर0एन0 सिंह )
सदस्या अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश
फोरम कानपुर नगर। फोरम कानपुर नगर।
दिनाँकः 02.02.2015