राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
परिवाद संख्या :75/2012
Mr. Harsh Setia S/o Late Shri Devinder Nath Setia Resident of F-166, 2nd Floor, Omaxe Excutive Floors, Sushant Lok-II, Sector-57, Gurgaon.
.................Complainant
Versus
1 Mahagun Real Estate Pvt. Ltd. Through its Chairman-com-Managing Director, Registered Office-B66 (1st Floor), Vivek Vihar, Delhi-110095.
2 Mahagun Real Estate Pvt. Ltd. Through its Chairman-com-Managing Director, Registered Office-A-19, Sector 63, Noida-201301
3 Mr. Rajender Kumar Arora, General Manager- Customer Care Mahagun Real Estate Pvt. Ltd. A-19, Sector 63, Noida-(U.P.)
.......... Respondents
समक्ष :-
मा0 श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य
मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य
परिवादी के अधिवक्ता : श्री प्रतुल श्रीवास्तव
विपक्षी के अधिवक्ता : श्री राजेश चडढा
दिनांक :06/11/2015
मा0 श्री जे0एन0 सिन्हा, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
वर्तमान परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध इस अनुतोष के संदर्भ में प्रस्तुत किया गया कि विपक्षीगण की ओर से प्रश्नगत फ्लेट के संदर्भ में आवंटन निरस्तीकरण आदेश को अपास्त किये जाने हेतु निर्देश देते हुए इस आशय का आदेश दिया जाय कि विपक्षीगण परिवादी से बकाया धनराशि ब्याज सहित प्राप्त कर ले एवं विपक्षीगण को इस आशय का भी निर्देश दिया जाय कि वह प्रश्नगत फ्लेट पर वास्तविक कब्जा परिवादी को उपलब्ध करा दे और क्षतिपूर्ति तथा वाद व्यय भी परिवादी को दिलाया जाय।
परिवाद पत्र का अभिवचन संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी द्वारा विपक्षीगण की प्रश्नगत योजना के संदर्भ में फ्लेट प्राप्त किये जाने हेतु आवेदन किया गया, जिसके फलस्वरूप परिवादी द्वारा प्रारम्भिक किस्त के रूप में रू0 7,65,180.00 विपक्षीगण को अदा किये, जिसके फलस्वरूप विपक्षीगण की ओर से प्रश्नगत फ्लेट की कीमत 76,51,800.00 के संदर्भ में आवंटन पत्र दिनांक 23.5.2010 को निर्गत किया गया एवं शेष धनराशि
-2-
के भुगतान के संदर्भ में उभय पक्ष के बीच Flexi Payment Plan के रूप में संविदा हुई।
परिवादी द्वारा दिनांक 29.8.2011 के पश्चात निर्धारित किस्त का भुगतान आर्थिक संकट के कारण नहीं किया जा सका एवं परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में स्पष्ट रूप से यह भी अभिवचित किया गया है कि परिवादी द्वारा रू0 30,000,00.00 कर्ज के रूप में प्राप्त किये जाने हेतु एल0आई0सी0 हाउसिंग और आईसीआईसीआई बैंक से सम्पर्क किया गया एवं कर्ज की बावत स्वीकृति आदेश पारित कर दिया गया एवं यह भी अभिवचित किया गया कि विपक्षीगण का प्रोजेक्ट एक वर्ष से पिछडा है, जो विपक्षीगण की ओर से जारी पत्रों से भी स्पष्ट होता है एवं विपक्षीगण की नियत शुरू से ही परिवादी के प्रति अच्छी नहीं थी एवं मेहनत से कमाई गई धनराशि परिवादी से प्राप्त की गई और फिर प्रश्नगत फ्लेट के संदर्भ में आवंटन के निरस्तीकरण की बावत सूचित किया गया और परिवादी पर दबाव डाला गया कि वह अपने द्वारा जमा धनराशि को वापस प्राप्त कर ले। परिवादी द्वारा जमा धनराशि को प्राप्त नहीं किया गया और दिनांक 30.4.2012 को अंतिम रूप से प्रश्नगत धनराशि को वापस प्राप्त करने से अस्वीकार कर दिया गया।
परिवादपत्र में स्पष्ट रूप से यह भी अभिवचित है कि विपक्षीगण द्वारा दिनांक 23.12.2011 को परिवादी के पत्र जो परिवादी को 20.01.2012 को प्राप्त हुआ और उस पत्र में स्पष्ट रूप से निम्नलिखित तथ्य का उल्लेख किया गया है:-
“That by means of this final Default notice, we hereby request you to make the due amount Rs.20,97,370/- along with delay interest (not Mentioned) on or before 31st December 2012, failing which we shall be left with no other alternative, but ot cancel the bookingof the said flat along with forfeiture of earnest mony and annulment of the documents executed, if any, entirely at your cost and consequences, which please note.”
परिवादी द्वारा उक्त पत्र प्राप्त होने के पश्चात दिनांक 31.12.2011 तक अभिवचित धनराशि की अदायगी परिवादी द्वारा विपक्षीगण को नहीं की गई क्योंकि समय सीमा जो दी गई थी, वह पत्र के प्राप्त होने के पूर्व ही समाप्त हो चुकी थी। परिवाद पत्र में दिनांक 31.12.2011 के स्थान पर
-3-
दिनांक 31.12.2012 का उल्लेख कर दिया गया है, जो प्रश्नगत पत्र की प्रतिलिपि को देखने से स्पष्ट है एवं वास्तव में यह तिथि 31.12.2011 है।
तत्पश्चात परिवादी द्वारा व्यक्तिगत रूप से विपक्षी से सम्पर्क किया एवं दिनांक 30.3.2012 को विपक्षी सं0-3 मि0 राजेन्द्र कुमार अरोरा को ई-मेल के माध्यम से यह अनुरोध किया गया कि वह दिनांक 20.4.2012 तक अभिवचित धनराशि को जमा करने का समय प्रदान कर दे, तत्पश्चात दिनांक 03.4.2012 को परिवादी विपक्षी सं0-3 उपरोक्त से व्यक्तिगत रूप से मिला और दिनांक 04.4.2012 को इस आशय का लिखित अनुरोध परिवादी द्वारा किया गया कि विपक्षीगण अभिवचित आवंटन निरस्तीकरण को समाप्त कर दे और परिवादी बकाया धनराशि समुचित ब्याज सहित देने को तैयार है एवं दिनांक 09.4.2012 को विपक्षीगण सं0-3 द्वारा ई-मेल के माध्यम से परिवादी को सूचित किया गया कि वह 10 दिन के अन्दर बकाया धनराशि की अदायगी कर दे, अन्यथा आवंटन निरस्तीकरण के आदेश को समाप्त करने का अवसर समाप्त हो जायेगा। दिनांक 11.4.2012 को विपक्षी सं0-3 द्वारा परिवादी को ई-मेल के माध्यम से निम्नलिखित सूचना निर्गत की गई है:-
“Please note, no further extension would be considered after 30.4.2012, under any circumstances and your flat would be cancelled without any further notice. We are sure, you would not allow souch a situation to come up. Hence, please act fast and avail his special offer, to fully benefit. In the eantime, we assure you of our full assistance, always.”
दिनांक 27.4.2012 को परिवादी के पक्ष में आईसीआईसीआई बैंक द्वारा रू0 30,00,000.00 का होम लोन स्वीकृत किया गया, जिसके फलस्वरूप परिवादी द्वारा विपक्षीगण से PTM/ Tri-Party Agreement बैंक लोन के संदर्भ में निष्पादित किये जाने हेतु अनुरोध किया गया, परन्तु विपक्षीगण द्वारा उस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया, तत्पश्चात दिनांक 30.4.2012 को परिवादी विपक्षीगण के आफिस में पहुंचा और बैंक द्वारा निर्गत रू0 30,00,000.00 का लोन का स्वीकृति पत्र दिखाया गया और विपक्षीगण से अनुरोध किया गया कि वह बैंक लोन के संदर्भ में आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कर दें और इस संदर्भ में परिवादी ने विपक्षीगण के समक्ष एक लिखित प्रार्थनापत्र भी प्रस्तुत किया और अपने
-4-
सभी तथ्यों का स्पष्ट उल्लेख किया गया और दिनांक 30.4.2012 को ही विपक्षी सं0-3 द्वारा परिवादी को सूचित किया कि प्रश्नगत फ्लेट जो परिवादी को आवंटित था वह निरस्त किया जा चुका है और ऐसी स्थिति में बकाया धनराशि प्राप्त करने का कोई औचित्य शेष नहीं है। परिवाद पत्र में स्पष्ट रूप से यह अभिवचित किया गया है कि दिनांक 30.4.2012 को परिवादी ने विपक्षीगण के कार्यालय में उपस्थित लोगों के समक्ष स्पष्ट रूप से यह बतायाकि परिवादी द्वारा दिनांक 20.01.2012 के पश्चात कोई भी पत्र किस्त की अदायगी की चूक के संदर्भ में परिवादी को प्राप्त नहीं हुआ और गलत पते पर पत्र भेजा जाना भी अभिवचित है एवं दिनांक 30.4.2012 को परिवादी को मॉग पत्र एवं आवंटन निरस्ती के पत्र फाइल पर जो उपलब्ध थे, दिखाये गये, जिससे मालूम हुआ कि वह पत्र नोएडा के पते पर भेजा गया था, जबकि परिवादी गुडगांव में रहता है और इस प्रकार परिवादी के साथ धोखा किया गया है।
परिवाद पत्र में स्पष्ट रूप से यह भी अभिवचित किया गया कि परिवादी द्वारा विपक्षीगण को दिनांक 10.5.2012 को नोटिस भेजा गया, जिसका जवाब विपक्षीगण की आरे से भेजा गया और यह अभिवचित किया गया कि रू0 11,47,770.00 जब्त करते हुए रू0 44,63,182.00 देने के लिए तैयार है, परन्तु विपक्षीगण का यह कृत्य विधि अनुकूल नहीं है एवं पूरी कीमत का 73.33 प्रतिशत की धनराशि परिवादी द्वारा विपक्षीगण को अर्थात रू0 56,10,952.00 अदा किया जा चुका है एवं विपक्षीगण बकाया धनराशि प्राप्त करने से मना कर रहे हैं। विपक्षीगण का कृत्य दुर्भावनापूर्ण एवं प्रश्नगत फ्लेट के संदर्भ में आवंटन आदेश को निरस्त करना भी विधि अनुकूल नहीं है। परिवादी बकाया धनराशि मय ब्याज के अदा करने को तैयार है। ऐसी स्थिति में परिवाद के माध्यम से परिवादी द्वारा इस आशय का अनुतोष मॉगा गया कि कथित आवंटन आदेश को अपास्त करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया जाय कि वह बीमा धनराशि मय ब्याज के प्राप्त कर प्रश्नगत फ्लेट का विधिक कब्जा परिवादी को उपलब्ध करा दे और साथ में क्षतिपूर्ति और वाद व्यय प्राप्त किये जाने हेतु भी अनुतोष की मॉग की गई है।
विपक्षीगण की ओर से प्रारम्भिक रूप से आपत्ति प्रस्तुत करते हुए यह अभिवचित किया गया कि प्रश्नगत फ्लेट को प्राप्त करने हेतु परिवादी
-5-
और श्रीमती तनु सेटिया द्वारा संयुक्त रूप से आवेदन किया गया था एवं प्रश्नगत परिवाद केवल परिवादी द्वारा ही प्रस्तुत किया गया है, अत: परिवाद Non Joinder of Parties के कारण निरस्त किये जाने योग्य है एवं अविवादित रूप से परिवादी द्वारा प्रश्नगत फ्लेट के संदर्भ में किस्तों का भुगतान करने में चूक की गई है ओर परिवाद प्रस्तुत करने के पश्चात विपक्षीगण द्वारा परिवादी के संदर्भ में प्रश्नगत फ्लेट के संदर्भ में आवंटन को निरस्त कर दिया गया है एवं दिनांक 30.6.2012 के चेक के माध्यम से परिवादी को रू0 44,63,182.00 अदा करने का प्रयास भी किया गया, परन्तु परिवादी द्वारा उसे अस्वीकार कर दिया गया। यह भी अभिवचित किया गया कि परिवादी के संदर्भ में फ्लेट के आवंटन को निरस्त करने के पश्चात प्रश्नगत फ्लेट श्री विनोद कुमार गुप्ता को आवंटित कर दिया गया है, अत: परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
तत्पश्चात परिवादी द्वारा प्रारम्भिक आपत्ति को अभिवचित करते हुए गुण-दोष के आधार पर भी परिवाद का विरोध किया गया और यह भी अभिवचित किया गया है कि परिवादी कभी भी संविदा के अनुसार अभिवचित धनराशि अदा करने के लिए तैयार नहीं था, जिसके फलस्वरूप दिनांक 23.12.2011 को परिवादी के पक्ष में आवंटन निरस्त किया गया एवं गुण-दोष के आधार पर भी परिवाद खण्डित किये जाने योग्य है। यह भी अभिवचित किया गया कि प्रश्नगत परिवाद के लम्बन के दौरान दिनांक 30.12.2014 को परिवादी द्वारा विपक्षीगण के पत्र के माध्यम से यह अनुरोध किया गया था कि विपक्षीगण परिवादी द्वारा जमा धनराशि को ब्याज सहित वापस कर दे, तब वह वर्तमान परिवाद वापस ले लेगा एवं विपक्षीगण द्वारा संविदा के अनुसार रू0 44,63,182.00 वापसी के रूप में चेक द्वारा परिवादी को देने का प्रयास आयोग के समक्ष किया गया, परन्तु परिवादी द्वारा चेक स्वीकार नहीं किया गया एवं परिवादी अपने व अपने अन्य लोगों के नाम अन्य फ्लेट के संदर्भ में भी आवेदन किये हुए है और वह वास्तव में इन्वेस्टर है और वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है और गलत तथ्यों को दर्शाते हुए स्वयं को उपभोक्ता अभिवचित किया गया है। यह भी अभिवचित किया गया कि विपक्षी सं0-3 मि0 राजेन्द्र कुमार अरोरा विपक्षीगण की कम्पनी में अब कार्यरत नहीं है, अत: उनके संदर्भ में परिवाद अब अपोषणीय है एवं स्पष्ट रूप से यह अभिवचित किया गया
-6-
किया गया कि प्रश्नगत फ्लेट का आवंटन परिवादी एवं श्रीमती तनु सेटिया के पक्ष में किया गया था एवं परिवादी द्वारा किस्त के भुगतान में चूक की गई एवं पर्याप्त अवसर दिये जाने के बावजूद भी किस्त की अदायगी नहीं की गई, जिसके फलस्वरूप प्रश्नगत आवंटन दिनांक 23.11.2012 को निरस्त कर दिया गया।
परिवादी द्वारा अपने अभिवचन के संदर्भ में शपथपत्र प्रस्तुत किया गया एवं निम्नलिखित अभिलेख प्रस्तुत किये गये:-
1 Dated 31.5.2010 Allotment Letter,
2 Dated 31.5.2010 Flexi Chart,
3 Dated 29.9.2010 Notice for delayed payment,
4 Dated 12.10.2010 Final Notice for delayed payment,
5 Dated 06.12.2010 Reminder,
6 Dtaed 03.5.2011 Default Notice,
7 Dated 30.12.2011 Letter regarding Transfer of dues in ICICI Bank Account,
8 Dated 23.12.2011 Final defauld notice for not paying installments,
9 Dated 30.3.2012 The Complainant Uploaded request through Email to the Respondents,
10 Dated 29.3.2012 Complainant requested to time for full & final payments,
11 Dated 09.4.2012 The respondent no.3 sent offer letter for time of extension for making payment,
12 Dated 30.4.2012 The Complainant send request letter to the Respondents,
13 Dated 27.4.2012 The ICICI Bank sanctioned letter to the complainant,
14 Dated 10.5.2012 The Complainant sent legal notice to the respondents,
15 Dated 01.6.2012 The respondents refused to accept installments & interest and informed cancellation of allotment through reply of legal notice of the complainant,
16 Dated 01.6.2012 Datail of payments made by the complainant,
17 Date 23.9.2011 Confirmation of payment.
-7-
विपक्षीगण की ओर से अपने अभिवचन के समर्थन में शपथपत्र भी प्रस्तुत किया गया एवं निम्न लिखित अभिलेख है:-
Copy of application for booking by Harsh Setia and Tanu setia jointly of apartment dt. 23.5.2010 and Legible Copy of Allotment letter agreement with terms between allottee and builder
1 Written statement supported with an affidavit,
2 Application for booking dt. 23.5.2010,
3 Allotment Letter,
4 Letter dt. 24.9.2010,
5 Letter dt. 29.9.2010 issued by Mahagun,
6 Letter dt. 12.10.2010 issued by Mahagun,
7 Letter dt. 06.12.2010 issued by Mahagun,
8 Letter dt. 03.5.2011 issued by Mahagun,
9 Letter dt. 23.5.2011 issued by Mahagun,
10 Letter dt. 29.6.2011 issued by Mahagun,
11 Letter dt. 21.7.2011 issued by Mahagun,
12 Letter dt. 23.12.2011 issued by Mahagun,
पक्षकारान की ओर से अपनी लिखित बहस भी योजित की गई है। परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री प्रतुल श्रीवास्तव तथा विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा उपस्थित आये। पीठ द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को विस्तार पूर्वक सुना गया तथा उपलब्ध अभिलेखों का गम्भीरता से परिशीलन किया गया।
परिवादी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया परिवादी एंव उसकी पत्नी के पक्ष में विपक्षी द्वारा प्रश्नगत फ्लेट के संदर्भ में आवंटन किया गया। उपरोक्त वर्णित आवंटन अनुबन्ध पत्र के आधार पर परिवादी पक्ष ने रू0 56,10,952.00 अर्थात फ्लेट के कुल मूल्य का 73.33 प्रतिशत भुगतान कर दिया है एवं शेष भुगतान करने के लिए तैयार है एवं दिनांक 03.5.2011 को विपक्षी सं0-2 ने परिवादी को एक नोटिस भुगतान में देरी होने के संदर्भ में दिया था, जिसमें इस आशय का उल्लेख किया गया था कि दिनांक 10.5.2011 को या उससे पूर्व रू0 7,84,884.00 किस्त का भुगतान और रू0 7,232.00 ब्याज का भुगतान कर दिया जाय और निम्नलिखित वाक्य की भी उल्लेख किया गया:-
-8-
“Failing which we shall be left with on other alternative but to cancel the booking of the above flat along with forfeiture of the earnest mony as per agreed terms, and annulment of documents, if any executed. If any, entirely at your costs and consequences, which please note.”
जिसके फलस्वरूप परिवादी पक्ष द्वारा दिनांक 01.6.2011 को रू0 2,00,000.00 तथा 29.8.2011 को रू0 5,00,000.00 का भुगतान विपक्षीगण को कर दिया गया एवं विपक्षी सं0-2 ने दिनांक 23.12.2011 को अंतिम नोटिस भुगतान न देने के संदर्भ में प्रस्तुत किया, जिसमें यह उल्लेख दिनांक 31.12.2011 तक या उसके पूर्व रू0 20,97,370.00 का भुगतान कर दिया जाय और उसमें निम्नलिखि वाक्य का भी उल्लेख किया गया:-
“Failing which we shall be left with on other alternative but to cancel the booking of the above flat along with forfeiture of the earnest mony as per agreed terms, and annulment of documents, if any executed. If any, entirely at your costs and consequences, which please note.”
परन्तु किसी भी नोटिस में इस आशय का उल्लेख नहीं किया गया कि विवादित फ्लेट के कार्य की प्रगति कितनी है एवं फ्लेट का भुगतान Flexi Payment Plan पर आधारित था, अत: निर्माण कार्य की प्रगति पर किस्त का भुगतान आधारित था। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अपने तर्क को आगे बढाते हुए यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि विपक्षी सं0-3 ने दिनांक 09.4.2012 को परिवादी को एक ईमेल भेजा, जिसमें इस आशय का उल्लेख किया गया कि ईमेल प्राप्ति के 10 दिन के अन्दर परिवादी भुगतान कर दे, अन्यथा आवंटन के रद्दकरण का निरस्तीकरण करने का यह स्पेशल ऑफर निरस्त हो जायेगा एवं विपक्षी सं0-3 द्वारा दिनांक 10.4.2012 को परिवादी को अपने ईमेल के माध्यम से पत्र लिखा गया और इस आशय का उल्लेख किया कि शेष धनराशि 20 दिन के भीतर भुगतान परिवादी पक्ष द्वारा कर दे एवं दिनांक 30.4.2012 के पश्चात अतिरिक्त समय नहीं दिया जायेगा, अन्यथा आपका फ्लेट बिना किसी अतिरिक्त नोटिस के रद्द कर दिया जायेगा। अपने तर्क को आगे बढाते हुए परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि परिवादी द्वारा आईसीआईसीआई बैंक से मकान ऋण लेने का प्रयास किया गया और बैंक के पत्र दिनांकित 27.4.2012 के माध्यम से
-9-
परिवादी को अवगत कराया कि 30,00,000.00 का गृह ऋण स्वीकृत किया जा चुका है और इस संदर्भ में विपक्षी को अवगत कराया गया और ऋण के संदर्भ में औपचारिकताएं पूरी किये जाने के संदर्भ में अनुरोध किया गया, परन्तु विपक्षीगण द्वारा कार्यवाही में दिनांक 09.5.2012 को परिवादी को मौखिक सूचना दी गई कि परिवादी के प्रश्नगत फ्लेट का आवंटन रद्द हो चुका है। दिनांक 10.5.2012 को परिवादी की ओर से विपक्षी को एक नोटिस भेजा गया और फिर पुन: यह निवेदन किया गया कि फ्लेट के आवंटन रद्दकरण को निरसत किया जाय और परिवादी का भुगतान स्वीकार कर लिया जाय। जिस पर विपक्षी की ओर से जवाब दिया गया और संविदा का उल्लेख करते हुए यह कहा गया कि संविदा के अनुसार रू0 11,47,770.00 जब्त करते हुए शेष धनराशि 44,63,182.00 रू0 परिवादी प्राप्त करने का अधिकारी है और इस संदर्भ में उन्होंने चेक निर्गत किये जाने का भी उल्लेख किया। परिवादी की ओर से यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि विपक्षी ने यह अभिवचित किया है कि प्रश्नगत फ्लेट श्री विनोद कुमार गुप्ता नामक व्यक्ति को दिनांक 02.7.2012 को विक्रय कर दिया है, जबकि विक्रय किया जाना नहीं पाया जाता है। अत: परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया जाये कि वह प्रश्नगत फ्लेट के संदर्भ में बकाया धनराशि प्राप्त कर नियमानुसार विधिक कब्जा परिवादी को उपलब्ध करा दे और क्षतिपूर्ति प्राप्त किये जाने हेतु भी अनुतोष की मॉग की गई है।
विपक्षीगण की ओर से मुख्य रूप से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि पक्षकारान के बीच संविदा के दृष्टिगत परिवादी पक्ष किस्त के भुगतान में चूक किया जाना अविवादित है और परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में इस तथ्य को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है एवं संविदा की शर्त पक्षकारान के संदर्भ में बाध्यकारी प्रभाव रखते है, इसलिए परिवादी द्वारा किस्त की अदायगी में चूक होना स्पष्ट है, अत: आवंटन निरस्तीकरण का जो आदेश विपक्षीगण द्वारा पारित किया गया है, वह संविदा के अनुसार विधि अनुकूल है एवं संविदा के दृष्टिगत परिवादी जमा की गई धनराशि पर केवल रू0 44,63,182.00 पाने का अधिकारी है और ऐसी स्थिति में चेक को पीठ के समक्ष भी परिवादी को दिये जाने का प्रयास किया गया, परन्तु परिवादी द्वारा चेक प्राप्त नहीं किया गया और इस प्रकार वर्तमान
-10-
प्रकरण में विपक्षीगण की ओर से सेवा में किसी प्रकार की कमी होना स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। विपक्षीगण की ओर से यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि वर्तमान प्रकरण में अविवादित रूप से आवंटन परिवादी एवं उनकी पत्नी श्रीमती तनु सेटिया के पक्ष में है, ऐसी स्थिति में परिवाद जो अविवादित रूप से केवल परिवादी की ओर से प्रस्तुत है एवं परिवाद दूसरे आवंटी की ओर से प्रस्तुत नहीं है, अत: परिवाद अपोषणीय है और इस आधार पर भी परिवाद खण्डित किये जाने योग्य है। अपने तर्क को आगे बढाते हुए विपक्षी की ओर से यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि परिवादी द्वारा संविदा का पालन नहीं किया गया एवं परिवादी के पास पर्याप्त धनराशि उपलब्ध नहीं थी और उसके द्वारा किस्त की अदायगी में अविवादित रूप से चूक की गई एवं आवंटन रद्द करने के पश्चात भी विपक्षीगण द्वारा परिवादी को बकाया धनराशि अदा करने का अवसर दिया गया कि यदि परिवादी द्वारा बकाया धनराशि निर्धारित तिथि के अन्दर अदा कर दी जाती है, तो आवंटन रद्दकरण का आदेश विपक्षीगण द्वारा निरस्त कर दिया जाता और परिवादी को प्रश्नगत फ्लेट पर विधिक कब्जा उपलब्ध करा देते, परन्तु परिवादी द्वारा नियत तिथि को भी धनराशि की अदायगी नहीं की जा सकी और इस संदर्भ में गलत अभिवचन किया गया और बैंक ऋण की स्वीकृति मात्र से यह कहना की शेष धनराशि को अदा करने के लिए परिवादी तैयार था, स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है, इसके अतिरिक्त विपक्षी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत फ्लेट का परिवादी के संदर्भ में आवंटन निरस्त किये जाने के पश्चात प्रश्नगत फ्लेट को दिनांक 02.7.2012 को श्री विनोद कुमार गुप्ता नामक व्यक्ति को बचे दिया गया और इस प्रकार प्रश्नगत परिवाद खण्डित किये जाने योग्य है।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा मुख्य रूप से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि अविवादित रूप से परिवादी द्वारा फ्लेट की कुल कीमत 76,51,800.00 के संदर्भ में रू0 56,10,952.00 विपक्षी को अदा किये जा चुके है एवं परिवादी द्वारा किस्तों के भुगतान में चूक आवश्यक की गई थी, परन्तु परिवादी के अनुरोध के दृष्टिगत विपक्षी द्वारा बकाया धनराशि अदा करने हेतु दिनांक 30.4.2012 की तिथि प्रदान की गई थी एवं दिनांक 30.4.2012 को परिवादी द्वारा भुगतान किये जाने के संदर्भ में विपक्षी के
-11-
यहॉ उपस्थित हुए और बैंक द्वारा स्वीकृत लोन की बावत सूचना दी और विपक्षीगण से औपचारिकताएं पूरी किये जाने हेतु अनुरोध किया गया और शेष धनराशि भी अदा करने हेतु इच्छा व्यक्त की, परन्तु विपक्षी द्वारा प्रश्नगत धनराशि प्राप्त करने में रूचि नहीं ली गई और परिवादी को यह कहकर वापस कर दिया गया कि परिवादी के प्रश्नगत फ्लेट के संदर्भ में आवंटन निरस्त किया जा चुका है, अत: परिवादी के पक्ष में प्रश्नगत फ्लेट उपलब्ध नहीं कराया जा सकता है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत फ्लेट के संदर्भ में अविवादित रूप से एक निश्चित तिथि तक बकाया धनराशि भुगतान किये जाने हेतु विपक्षी द्वारा परिवादी को समय प्रदान किया गया, ऐसी स्थिति में पूर्व में किस्तों की अदायगी में चूक के आधार पर आवंटन निरस्तीकरण विधि अनुकूल नहीं है और विपक्षी का कृत्य सेवा की कमी की श्रेणी में आता है।
उक्त तर्क के खण्डन में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा मुख्य रूप से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि परिवाद पत्र के अभिवचन से ही यह स्पष्ट है कि परिवादी द्वारा संविदा के अनुसार किस्तों की अदायगी में चूक की गई, अत: संविदा के अनुसार आवंटन निरस्त किये जाने का विधिक अधिकार विपक्षी को प्राप्त था और पक्षकारान के बीच हुई संविदा के अनुसार ही विपक्षी द्वारा आवंटन निरस्त किया गया एवं विपक्षी द्वारा परिवादी के अनुरोध के दृष्टिगत परिवादी को एक तिथि के पूर्व बकाया धनराशि यदि अदा कर देते है, तो आवंटन रद्दकरण का आदेश विपक्षी निरस्त कर देगा और परिवादी को प्रश्नगत फ्लेट उपलब्ध करा देगा एवं उक्त नियत तिथि को भी परिवादी द्वारा बकाया धनराशि की अदायगी नहीं की गई और बैंक के होम लोन के रू0 30,00,000.00 स्वीकृति की बात बतायी गई एवं संविदा के अनुसार बकाया धनराशि रू0 30,00,000.00 से कही अधिक रही एवं इस संदर्भ में यह विपक्षी द्वारा बताया गया कि बकाया धनराशि रू0 68,86,620.00 थी, अत: परिवादी का यह कहना कि वह नियत तिथि (दिनांक 30.4.2012) को प्रश्नगत धनराशि की अदायगी के लिए तैयार था, स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। अपने तर्क के समर्थन विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा पीठ का ध्यान Bharathi Knitting Company Vs. DHL Worldwide Express Courier Division of Airfreight Ltd. JT 1996 (6) S.C. 254 की ओर आकृषित कराते हुए यह
-12-
कहा गया कि अविवादित रूप से प्रश्नगत फ्लेट के आवंटन के समय लिखित संविदा निष्पादित की गई थी और संविदा की शर्तों का अनुपालन पक्षकारान के संदर्भ में बाध्यकारी है और संविदा की शर्तों के अनुसार ही परिवादी द्वारा किस्तों की अदायगी में चूकी की गई, अत: आवंटन निरस्तीकरण का आदेश संविदा के अनुसार है। उक्त तर्क के संदर्भ में परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि वर्तमान प्रकरण में विपक्षी द्वारा स्वंय अविवादित रूप से परिवादी की किस्तों की अदायगी में चूकी होने के पश्चात बकाया धनराशि अदा करने हेतु समय प्रदान किया गया और एक तिथि नियत की गई और स्पष्ट रूप से यह कहा गया कि यदि परिवादी द्वारा उक्त तिथि तक बकाया धनराशि का भुगतान कर दिया जाता है, तो परिवादी को प्रश्नगत फ्लेट संविदा के अनुसार उपलब्ध कराया दिया जायेगा। ऐसी स्थिति में विपक्षी द्वारा स्वयं संविदा की शर्तों में शिथिलता की गई। कानून की स्थिति इस संदर्भ में स्पष्ट है कि पक्षकारान संविदा के संदर्भ में शर्तों को शिथिलत करने का अधिकार रखते हैं और वर्तमान प्रकरण में विपक्षी द्वारा स्वयं भुगतान की बावत परिवादी को अंतिम अवसर अदायगी हेतु स्वयं प्रदान किया गया, अत: उक्त तिथि के पूर्व आवंटन निरस्त करना विधि अनुकूल स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि यदि परिवादी द्वारा बकाया धनराशि का भुगतान कर दिया जाता, तो विपक्षी आवंटन निरस्तीकरण का आदेश निरस्त कर देता और इसी आशय से उसने परिवादी को बकाया धनराशि की अदायगी का समय दिया था। ऐसी स्थिति में उभय पक्ष के बीच संविदा में भुगतान की बावत विपक्षी द्वारा भुगतान हेतु जो अंतिम समय प्रदान किया गया वह भुगतान के संदर्भ में एक शर्त के रूप में स्वीकार किये जाने योगय है और ऐसी स्थिति में प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा उठाये गये उक्त तर्क में बल नहीं पाया जाता है और पूर्व में परिवादी द्वारा भुगतान में जो चूक की गई है उसके आधार पर आवंटन निरस्तीकरण का आदेश विधि अनुकूल नहीं है। विपक्षी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि परिवादी के संदर्भ में आवंटन आदेश निरस्त करने के पश्चात दिनांक 02.7.2012 को प्रश्नगत फ्लेट श्री विनोद कुमार गुप्ता नामक व्यक्ति को विक्रय कर दिया गया और इस संदर्भ में विपक्षी द्वारा दिनांक 31.5.2013
-13-
को पीठ के समक्ष एक प्रार्थनापत्र भी प्रस्तुत किया गया है और अपने तर्क को आगे बढाते हुए यह कहा गया कि वर्तमान परिवाद दिनांक 04.7.2012 को योजित किया गया है, अत: परिवाद योजित करने के पूर्व ही दिनांक 02.7.2012 को प्रश्नगत फ्लेट को श्री विनोद कुमार गुप्ता को विक्रय कर दिया गया था। ऐसी स्थिति में परिवाद पोषणीय भी नहीं है। उक्त तर्क के खण्डन में परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि विपक्षी द्वारा अपने लिखित कथन दिनांक 23.5.2015 की धारा-4 में स्पष्ट रूप से यह अभिवचित हिकया गया है कि प्रश्नगत फ्लेट को दिनांक 02.7.2012 को विक्रय कर दिया गया है एवं पत्रावली पर विपक्षी की आरे से दिनांक 31.5.2013 की धारा-3 में प्रश्नगत फ्लेट को श्री विनोद कुमार गुप्ता के पक्ष में दिनांक 02.7.2012 को आवंटन और विक्रय दोनों बातों का उल्लेख किया गया और विपक्षी द्वारा श्री विनोद कुमार गुप्ता के संदर्भ में जो अभिलेख की फोटो प्रति प्रस्तुत की गई और यह दिखाया गया कि प्रश्नगत फ्लेट को श्री विनोद कुमार गुप्ता के पक्ष में केवल आवंटित किया गया है और इस प्रकार प्रश्नगत फ्लेट विक्रय किये जाने के संदर्भ में जो अभिवचन किया गया है, वह निराधार है। अपने तर्क को आगे बढाते हुए परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह कहा गया कि वास्तव में श्री विनोद कुमार गुप्ता विपक्षी के ही कर्मचारी अथवा हितैशी है, क्योंकि आवंटन आदेश में जो उनका पता अंकित है, वह निम्न प्रकार है:- “Flat No.301, Block Osimo, Mahagun Mension-II, Plot No.-1/4 Vaibhav Khand, Indira Puram (GZB)” उक्त पते की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए यह कहा कि जो पता विपक्षी का है, वही पता श्री विनोद कुमार गुप्ता का है। ऐसी स्थिति में श्री विनोद कुमार गुप्ता के पक्ष में कथित आवंटन नुमाइशी है और केवल परिवादी को फ्लेट उपलब्ध न कराया जा सके इसी कारण उक्त आवंटन का किया जाना कहा जाता है। प्रश्नगत फ्लेट को श्री विनोद कुमार गुप्ता के पक्ष में विक्रय करने का साक्ष्य प्रस्तुत नहीं है, अत: वर्तमान प्रकरण में यह पाया जाता है कि प्रश्नगत फ्लेट अभी श्री विनोद कुमार गुप्ता को विक्रय नहीं किया गया है, इसलिए विपक्षी का यह तर्क कि प्रश्नगत फ्लेट श्री विनोद कुमार गुप्ता को विक्रय कर दिया गया, स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। श्री विनोद कुमार गुप्ता के पक्ष में कथित आवंटन का नुमाइशी होना परिवादी द्वारा
-14-
प्रमाणित नहीं किया जा सका है एवं केवल सम्भावना के आधार पर नुमाइश प्रमाणित होना नहीं कहा जा सकता है, परन्तु प्रश्नगत फ्लेट के संदर्भ में परिवादी के पक्ष में प्रश्नगत आवंटन के आदेश को विपक्षी द्वारा भुगतान में चूक के कारण निरस्त करना विधि अनुकूल नहीं पाया जाता है, क्योंकि विपक्षी ने स्वयं भुगतान के संदर्भ में परिवादी को एक अंतिम अवसर भुगतान किये जाने हेतु प्रदान किया था, अत: प्रश्नगत आवंटन का विपक्षी द्वारा निरस्तीकरण विधि अनुकूल नहीं पाया जाता है। अत: श्री वी0के0 गुप्ता के पक्ष में किया गया आवंटन विधि अनुकूल नहीं है और इस संदर्भ में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क में बल नहीं पाया जाता है।
विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि अविवादित रूप से प्रश्नगत आवंटन परिवादी एवं उनके साथ तनु सेटिया के पक्ष है एवं अविवादित रूप से वर्तमान परिवाद तनु सेटिया की ओर से प्रस्तुत नहीं है एवं केवल हर्ष सेटिया की ओर से प्रस्तुत किया गया है, अत: परिवाद इसी आधार पर निरस्त किये जाने योग्य है। इस संदर्भ में परिवादी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि तनु सेटिया परिवादी की पत्नी है एवं वर्तमान परिवाद इस अभिवचन के साथ प्रस्तुत किया गया है कि विपक्षी द्वारा प्रश्नगत आवंटन के संदर्भ में निरस्तीकरण का जो आदेश विपक्षीगण द्वारा पारित किया गया है, उसे अपास्त किया जाय और प्रश्नगत फ्लेट पर वास्तविक और विधिक कब्जा परिवादी पक्ष को उपलब्ध कराया जाय एवं विधिक नोटिस परिवादी की पत्नी तनु सेटिया की ओर से ही विपक्षी को भेजा गया था एवं ऐसा नहीं है कि परिवाद में जो आदेश पारित किया जायेगा वह केवल परिवादी के ही पक्ष में होगा, बल्कि आवंटन आदेश के अनुसार परिवादी और उसकी पत्नी के पक्ष में ही होगा। अपने तर्क को आगे बढाते हुए यह भी कहा गया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की कार्यवाही में दीवानी प्रक्रिया संहिता के प्रविधान पूर्णत: लागू नहीं होते है। वर्तमान प्रकरण में परिवादी द्वारा मुख्य रूप से यह अनुतोष मॉगा गया है कि प्रश्नगत आवंटन जिसे विपक्षी ने निरस्त कर दिया, उस निरस्तीकरण को अपास्त किया जाय और आवंटन के अनुसार प्रश्नगत फ्लेट पर विधिक कब्जा दिलाया जाय। अविवादित रूप से प्रश्नगत आवंटन परिवादी व उसकी पत्नी के पक्ष में है और ऐसा कोई अनुतोष नहीं मॉगा
-15-
गया है, जो दूसरे आवंटी के हित के विरूद्ध हो। अविवादित रूप से परिवादी के पक्ष में भी प्रश्नगत आवंटन है एवं विपक्षी द्वारा आवंटन के संदर्भ में सूचना केवल परिवादी को ही पत्र दिनांक 31.5.2010 के माध्यम से भेजी गई, इसके अतिरिक्त अन्य जो पत्राचार किया गया वह भी परिवादी से ही किया गया, इतना ही नहीं विपक्षी द्वारा आयोग के समक्ष भी परिवादी के ही पक्ष में रू0 44,63,182.00 का चेक प्रदान करने का प्रयास किया गया और यह कहा गया कि प्रश्नगत आवंटन के संदर्भ में परिवादी इतनी ही धनराशि पाने का अधिकारी है। पत्रावली पर चेक की फोटो प्रति भी उपलब्ध है और इस प्रकार मुकदमें की सम्पूर्ण परिस्थितियों को देखते हुए दूसरे आवंटी अर्थात परिवादी की पत्नी द्वारा परिवादी के साथ परिवाद प्रस्तुत न करने के कारण परिवादी को निरस्त करना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के उद्देश्यों को देखते हुए भी विधि अनुकूल नहीं है और ऐसी स्थिति में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा उठाये गये तर्क में बल नहीं पाया जाता है।
विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि परिवादी वास्तव में इनवेस्टर है और उसके द्वारा अन्य फ्लेट और भूमि भी क्रय की गई है और उसका उद्देश्य क्रय की गई सम्पत्ति को बेच कर धन उपार्जन करना है, अत: वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है और इस संदर्भ में विपक्षी की ओर से ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि परिवादी इनवेस्टर है और वह अन्य सम्पत्ति को खरीद कर बेचने का कार्य करता है, अत: इस संदर्भ में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क में बल नहीं पाया जाता है।
विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि वास्तव में दिनांक 30.4.2012 को अंतिम तिथि भुगतान के लिए विपक्षी द्वारा निर्धारित की गई थी, उस तिथि को भी वास्तव में परिवादी पक्ष भुगतान करने में असफल रहा और ऐसी स्थिति में परिवादी का अभिवचन स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। उक्त तर्क के संदर्भ में परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह कहा गया कि परिवादी को बैंक से रू0 30,00,000.00 के ऋण की स्वीकृति का आदेश हो गया था और वास्तविक धनराशि प्राप्त करने में विपक्षी द्वारा भी कार्यवाही किया जाना आवश्यक था एवं विपक्षी से इस संदर्भ में अनुरोध के बावजूद भी कार्यवाही नहीं की
-16-
गई और विपक्षी द्वारा नियत तिथि को स्पष्ट रूप से यह कहा गया कि परिवादी के पक्ष में आवंटन निरस्त किया जा चुका है, अत: किसी भी स्थिति में वह परिवादी को प्रश्नगत फ्लेट उपलब्ध नहीं करा सकते है। अविवादित रूप से परिवादी द्वारा प्रश्नगत फ्लेट की कीमत के एवज में रू0 56,10,952.00 धनराशि अदा की जा चुकी है और शेष धनराशि अदा करने के लिए वह तैयार है। निश्चित ही बकाया धनराशि उभय पक्ष के बीच जो संविदा हुई है, उसके अनुसार देय होगी।
सम्पूर्ण विवेचना के आधार पर पीठ इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि पक्षकारान प्रश्नगत आवंटन के संदर्भ में जिन शर्तों का उल्लेख अनुबन्ध में किया गया है, वह पक्षकारान के संदर्भ में बाध्यकारी प्रभाव रखता है। वर्तमान प्रकरण मं विपक्षी द्वारा स्वयं परिवादी को भुगतान के संदर्भ में एक अंतिम अवसर प्रदान किया गया, अत: प्रश्नगत आवंटन के संदर्भ में पक्षकारान के बीच जो संविदा है, उसमें भुगतान के बावत शर्त में जो अंतिम अवसर भुगतान का प्रदान किया गया वह संविदा का प्रभाव रखता है और अंतिम अवसर दिये जाने के बावजूद भी उस अंतिम अवसर की तिथि के पूर्व परिवादी द्वारा पूर्व में किस्तों की अदायगी में चूक के आधार पर आवंटन का निरस्तीकरण विधि अनुकूल नहीं है, अत: प्रश्नगत आवंटन निरस्तीकरण के संदर्भ में विपक्षी का आदेश अपास्त किये जाने योग्य है एवं परिवादी प्रश्नगत आवंटन संविदा के अनुसार बकाया धनराशि का भुगतान किये जाने की स्थिति में प्रश्नगत फ्लेट पर विधिक कब्जा पाने का अधिकारी है।
पीठ इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि विपक्षी द्वारा परिवादी को एक अंतिम अवसर बकाया धनराशि की अदायगी का दिया गया था, परन्तु विपक्षी द्वारा प्रश्नगत धनराशि को प्राप्त करने में रूचि नहीं दिखायी गई और यह तथ्य परिवादी की ओर से लिखित पत्र जो विपक्षी को प्रश्नगत नियत तिथि दिनांककित 30.4.2012 को विपक्षी के कार्यलय में परिवादी द्वारा प्राप्त कराया गया था, से स्पष्ट है और इस प्रकार न्याय संगत यह प्रतीत होता है कि परिवादी को बकाया धनराशि अदा करने का एक अवसर प्रदान किया जाय और विपक्षी को आदेशित किया जाय कि वह प्रश्नगत आवंटन संविदा के अनुसार बकाया धनराशि प्राप्त कर प्रश्नगत फ्लेट का संविदा के अनुसार विधिक कब्जा आवंटी को उपलब्ध करा दे। वर्तमान
-17-
प्रकरण में परिवादी को विधिक कब्जा प्रदान किये जाने हेतु अनुतोष का दिया जाना उचित पाया गया। ऐसी स्थिति में क्षतिपूर्ति हेतु अनुतोष प्रदान करना उचित नहीं है। अविवादित रूप से प्रश्नगत सम्पत्ति के मूल्य में बढोत्तरी होना स्वीकार किये जाने योग्य है एवं अविवादित रूप से परिवादी द्वारा विपक्षी के पक्ष में जो धनराशि अदा की गई, उसके ब्याज का लाभ भी विपक्षी को प्राप्त हुआ, अत: मुकदमें की सम्पूर्ण परिस्थितियों को देखते हुए जैसा ऊपर बताया गया, क्षतिपूर्ति का अनुतोष प्रदान करना विधि सम्मत नहीं है एवं मुकदमें की सम्पूर्ण परिस्थितियों को देखते हुए वाद व्यय के संदर्भ में भी यह उचित होगा कि पक्षकारान अपना अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे। तदनुसार प्रस्तुत परिवाद अंशत: स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत परिवाद विपक्षी सं0-1 व 2 के विरूद्ध अंशत: स्वीकार करते हुए प्रश्नगत आवंटन आदेश के निरस्तीकरण का आदेश अपास्त किया जाता है एवं विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह निर्णय की तिथि से 30 दिन के अन्दर परिवादी को लिखित रूप से यह सूचित करें कि प्रश्नगत आवंटन संविदा के अनुसार कितनी धनराशि की अदायगी परिवादी के जिम्मे शेष है। तत्पश्चात सूचना की तिथि से 30 दिन के अन्दर परिवादी द्वारा उक्त देय धनराशि की अदायगी कर दी जाए एवं विपक्षीगण उपरोक्त द्वारा उपरोक्त धनराशि को प्राप्त करते हुए प्रश्नगत आवंटन संविदा के अनुसार प्रश्नगत फ्लेट पर विधिक कब्जा परिवादी को उपलब्ध करा दिया जाय।
प्रस्तुत परिवाद विपक्षी सं0-3 के संदर्भ में अपास्त किया जाता है।
वाद व्यय पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
(जे0एन0 सिन्हा) (संजय कुमार)
पीठासीन सदस्य सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-3