राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-488/2014
(जिला मंच सीतापुर द्वारा परिवाद सं0-११६/२००९ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २२/०१/२०१४ के विरूद्ध)
नाजिया परवीन पत्नी फजलुद्दीन निवासी ग्राम गढि़या हसनपुर तहसील सिद्धौली जिला सीतापुर।
.............. अपीलार्थी।
बनाम्
- मैग्मा फाइनेंस कारपोरेशन लि0 सिकन्द्राबाग चौराहा निकट दैनिक जागरण प्रेस सिटी लखनऊ जिला लखनऊ।
- मैग्मा फाइनेंस कारपोरेशन लि0 द्वारा मैनेजर आफीसर सेट्ठी हास्पिटल स्टेशन रोड सिटी पोलिस स्टेशन एवं जिला सीतापुर यूपी।
............... प्रत्यर्थीगण।
समक्ष:-
१. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित:- श्री एस0के0 शुक्ला विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित:- श्री आर0के0 गुप्ता विद्वान अधिवक्ता ।
दिनांक : 10/07/2017
मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील जिला उपभोक्ता फोरम सीतापुर द्वारा परिवाद सं0-११६/२००९ नाजिया परवीन बनाम मैग्मा फाइनेंस कारपोरेशन लि0 तथा अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २२/०१/२०१४ के विरूद्ध योजित की गयी है ।
संक्षेप में विवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलकर्ता/परिवादी नाजिया परवीन ने एक मार्शल चौपहिया वाहन यूपी ३४-सी-८७३९ क्रय करने हेतु रू0 ३७५०००/- का वित्तपोषण विपक्षी/प्रत्यर्थी से कराया था। उसमें से वह लगभग रू0 २ लाख ३४ हजार की धनराशि का भुगतान भी कर चुकी है। परिवादी के उक्त वाहन का दिनांक १७/०७/२००८ व दिनांक ३०/०६/२००९ को चालान हो गया था जिसके कारण ऋण की किस्तों का भुगतान करने में विलंब हुआ। परिवादिनी के अनुसार दिनांक ०७/०७/२००९ को उसके उक्त वाहन को ड्राईवर फजलुद्दीन चला रहा था और उस दिन विपक्षीगण उससे उक्त गाडी छीनकर ले गए। अपीलकर्ता/परिवादिनी ने प्रत्यर्थीगण से वाहन छोड़ने के लिए संपर्क स्थापित किया किन्तु वाहन को नहीं छो़डा जिससे परिवादिनी को लगभग प्रतिदिन रू0 १०००/- की क्षति हो रही है। परिवादिनी को जब यह आभास हुआ कि विपक्षी उसके वाहन को नीलाम करके बेंच देंगे जिससे परिवादिनी को अपूर्णनीय क्षति उठानी पड़ेगी तो उसने प्रत्यर्थीगण के विरूद्ध एक परिवाद जिला मंच सीतापुर के समक्ष दायर किया। परिवादिनी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी से वाहन वापस दिलाने और क्षतिपूर्ति का भुगतान कराने की प्रार्थना की।
परिवादिनी के परिवाद का विपक्षीगण द्वारा प्रतिवाद किया गया। पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों का अवलोकन करने तथा उनके विद्वान अधिवक्ता को सुनने के उपरांत विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत आदेश दिनांक २२/०१/२०१४ द्वारा परिवादिनी का परिवाद निरस्त कर दिया।
इस आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलकर्ता द्वारा यह अपील दायर की गयी है।
अपीलकर्ता ने अपनी अपील के आधारों में कहा है कि उसने प्रत्यर्थीगण से लगभग ३ लाख ७५ हजार रूपये का ऋण लिया था और ऋण की उक्त धनराशि उसे ४७ किस्तों में रू0 ११४५७/- प्रति किस्त की दर से वापस भुगतान करनी थी। अपीलकर्ता ने प्रत्यर्थी को रू0 ३४३५८९/- का भुगतान भी कर दिया था। परिवादिनी ने यह भी कहा है कि अंतिम बार उसने दिनांक २८/०५/२००९ को रू0 १००००/-, दिनांक २९/०५/२००९ को रू0 १३०००/-, दिनांक ३०/०६/२००९ को रू0 ११४००/- विपक्षी को भुगतान किए थे, किन्तु इसके बावजूद प्रत्यर्थीगण ने दिनांक ०७/०७/२००९ को उक्त वाहन परिवादिनी के ड्राईवर से छीन लिया। विद्वान जिला मंच ने इन सभी तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए प्रश्नगत आदेश पारित किया जोकि विधिक रूप से त्रुटिपूर्ण है। प्रत्यर्थीगण ने परिवाद के लंबित रहने के दौरान से उक्त प्रश्नगत वाहन को दिनांक ०४/०८/२००९ को बेच दिया। अपील में यह भी कहा है कि विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत आदेश पारित कर त्रुटि की है।
यह अपील ०३ दिन के विलंब से दायर की गयी है और विलंब के दोष को क्षमा करने के लिए अपीलकर्ता की ओर से एक विलंब माफी प्रार्थना पत्र मय शपथ पत्र दाखिल किया गया है जिसमें अपील में हुए विलंब के संबंध में कारण अभिलिखित किए गए हैं। विलंब के संबंध में प्रत्यर्थी द्वारा कोई विरोध भी नहीं किया गया है। अत: न्यायहित में विलंब को क्षमा किया जाता है।
सुनवाई के समय अपीलकर्ता की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एस0के0 शुक्ला तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 गुप्ता उपस्थित हुए। उनके तर्कों को सुना गया। पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि परिवादिनी ने अपने जीवनयापन के लिए उक्त वाहन को विपक्षीगण से वित्तपोषित कराकर क्रय किया था और वह लिए गए ऋण की किस्तों का निरंतर भुगतान कर रही थी । गाडी का दो बार चालान हो जाने के कारण उसे काफी धनराशि खर्च करनी पड़ी जिससे उसकी किस्तें समय पर जमा नहीं हो सकी। प्रत्यर्थीगण ने उसके वाहन को छीनकर एक आपराधिक कृत्य किया है और वाहन को बेचनेसे पहले उसे सूचित भी नहीं किया । विद्वान जिला मंच ने इन सभी तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए परिवादिनी के परिवाद को खण्डित करके विधिक रूप से त्रुटि की है। परिवादिनी को यह भी नहीं अवगत कराया गया कि उक्त वाहन को कितनी धनराशि में बेंचा गया एवं उसमें उसके विक्रय के बाद कोई धनराशि अवशेष बची अथवा नहीं। प्रत्यर्थी का यह कृत्य अनुचित व्यापार प्रथा की श्रेणी में आता है।
उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं के तर्कों से स्पष्ट है कि वाहन को बेचकर प्रत्यर्थी ने अपनी धनराशि वसूल कर ली किन्तु वाहन को वास्तव में कितनी धनराशि का बेचा गया उसकी कोई जानकारी परिवादी को नहीं दी गयी। वाहन का कोई वास्तविक मूल्यांकन भी नहीं कराया गया। वाहन वापस लेने की तिथि के बाद की अवधि के लिए अवशेष धनराशि पर किसी भी प्रकार के ब्याज का अधिरोपण परिवादी पर नहीं किया जा सकता क्योंकि वह अपनी किस्तें अथवा ब्याज की धनराशि का भुगतान उक्त वाहन से किराए की आमदनी से ही कर सकता था जिससे उसे वंचित कर दिया गया। देय धनराशि पर ब्याज का कोई विस्तृत विवरण प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया। इन परिस्थितियों में उपरोक्त प्रकरण अनुचित व्यापार प्रथा की श्रेणी में आता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ उपभोक्ता के हितों का संरक्षण करने हेतु इस अधिनियम के उद्देश्य एवं इसे लागू करने के लिये जिन कारणों का संज्ञान लिया गया था, उसका उल्लेख अधिनियम की प्रस्तावना में किया गया है।
'' अधिनियम की प्रकृति-उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६, उपभोक्ताओं के हितों को अधिक संरक्षण प्रदान करने के लिये विधायन है एवं उस प्रयोजन के लिये यह अन्य बातों में से उन व्यक्तियों के यथा विरूद्ध जो उक्त् विधायन के अधीन उत्तरदायी है, उपभोक्ता के विवादों के निस्तारण के लिये प्रावधान करता है। ‘’
अधिनियम के उद्देश्यों का अवलोकन करने से यह स्पष्ट है कि विधायिका ने इस अधिनियम को पारितकरते समय यह अवश्य ध्यान में रखा कि उपभोक्ता का अनुचित व्यापार प्रथा द्वारा शोषण न हो, उसका अवांछनीय/विवेकहीन/अनावश्यक शोषण न हो। उसकी मजबूरी का कोई अनावश्यक लाभ न उठाये। इसीलिए अधिनियम की धारा २ (द) में उल्लेख किया गया है-
धारा २(द) ‘’ अनुचित व्यापार प्रथा’’ से अभिप्रेत है, किसी माल की बिक्री, प्रयोग या आपूति की वृद्धि के लिए अथवा सेवाओं को प्रदान करने के लिए निम्न को शामिल करते हुए अपनाया गया कोई अनुचित तरीका या अनुचित धोखाधड़ी, नामत:-
- मौखिक रूप से या लिखित रूप से या प्रकट अभिवेदन की प्रथा द्वारा जो-
- VIII) जन-साधारण के समक्ष ऐसे प्रारूप में निरूपण प्रस्तुत करता है जिसका तत्पर्य है-
- किसी उत्पाद या वस्तु या सेवा की वारण्टी या गारण्टी, या
- वस्तु या उसके उपांग को बदलने, अनुरक्षण करने या मरम्मत करने या जब तक कि कोई विशेष परिणाम प्राप्त न हो सेवा की पुनरावृत्ति या जारी रखना
प्रस्तुत प्रकरण में अधिनियम की धारा २(द) (i) (viii) (ii) के प्राविधान की स्पष्ट रूप से अनदेखी की गयी है। इस प्रकरण में अंतिम बार दिनांक ३०/०६/२००९ को रू0 ११४००/- जमा करने के मात्र ०७ दिन की अवधि के बाद ही सेवा की निरन्तरता को अवरूद्ध किया गया है। परिवादी ने उक्त वाहन का वित्त-पोषण अपने परिवार के जीवन-यापन हेतु कराया था। कदाचित किन्ही कठिनाईयों के कारण वह समय से किस्तों का भुगतान न कर सका तो ऋण वापसी का एकमात्र साधन वाहन ही वापिस ले लिया गया। उक्त वाहन के परिचालन से किराये के रूप में आय का सृजन करता और जीवन यापन करने के साथ-साथ विपक्षी का ऋण वापिस करता। अपीलार्थी/विपक्षी ने नियम विरूद्ध बल का उपयोग कर वाहन को छीन लिया और उसे विक्रय भी कर दिया । यह कृत्य अनुचित व्यापार पृथा से अभिप्रेत है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा २(द)(i) (viii) (ii) के प्राविधान का अधिनियम में निम्नानुसार उल्लेख किया गया है-
‘’ २(द)(i) (viii) (ii) वस्तु या उसके उपांग को बदलने, अनुरक्षण करने या मरम्मत करने या जब तक कि कोई विशेष परिणाम प्राप्त न हो सेवा की पुनरावृत्ति या जारी रखना। ‘’ इस प्रकरण में भी विशेष परिणाम प्राप्त होने से पूर्व ही प्रश्नगत सेवा की समाप्ति कर दी गई है। अत: यह प्रकरण अनुचित व्यापर प्रथा से आच्छादित है। बिना नोटिस दिये वाहन को बलपूर्वक छीनना तथा उसे बिना नोटिस के विक्रय करना तथा अपीलार्थी को यह भी नहीं बताना कि उक्त वाहन कितनी धनराशि में विक्रय किया गया, सरासर अन्याय पूर्ण तथा अवैधानिक है।
उपरोक्त विवेचना से यह पीठ इस मत की है कि विद्वान जिला फोरम ने उपरोक्त तथ्यों तथा प्रतिपादित विधिक सिद्धातों को नजरअंदाज कर प्रश्नगत निर्णय/आदेश पारित किया है। अपीलार्थी की अपील में बल है तथा प्रश्नगत आदेश खण्डित होने योग्य है। प्रश्नगत वाहन चूंकि प्रत्यर्थी द्वारा विक्रय कर दिया गया है और विक्रय किये काफी समय बीत चुका है। अत: उसका उसी स्थिति में वापिस प्राप्त होना संभव भी नहीं होगा। अत: अपीलार्थी को प्रत्यर्थी से समुचित क्षतिपूर्ति दिलाना ही न्यायोचित होगा। अपीलार्थी के द्वारा लिखित तर्कों के साथ प्रस्तुत गणना चार्ट के अनुसार प्रश्नगत वाहन की वर्ष २००६ में क्रय कीमत रू0 ४,६४,६६६/- थी तथा वर्ष २००९ में उसकी अवक्रमित कीमत रू0 २,८५,३६३/- रह गई। वर्ष २००९ में उस पर ऋण की बकाया धनराशि रू0 १,३१,४११/- शेष थी। इस प्रकार वाहन की अवक्रमित कीमत रू0 २,८५,३६३/- में से ऋण की बकाया धनराशि रू0 १,३१,४११/- घटाकर अपीलार्थी की कुल धनराशि रू0 १,५३,९५२/- प्रत्यर्थी पर अवशेष रही जो उसे ब्याज सहित वापिस प्राप्त होनी चाहिए।
आदेश
अपीलार्थी की अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। प्रश्नगत आदेश दिनांक २२/०१/२०१४ खण्डित किया जाता है। प्रत्यर्थी को निर्देश दिया जाता है कि वह अपीलार्थी को रू0 १,५३,९५२/-की धनराशि का एक माह की अवधि में भुगतान करे तथा उक्त धनराशि पर परिवाद दायर करने की तिथि से भुगतान होने की तिथि तक ०९ प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी भुगतान करे।
(राज कमल गुप्ता) (महेश चन्द)
पीठासीन सदस्य सदस्य
सत्येन्द्र, कोर्ट-5