Nanad Lal filed a consumer case on 25 Mar 2015 against Magalm Ges Sardarshahar in the Churu Consumer Court. The case no is 45/2013 and the judgment uploaded on 18 May 2015.
प्रार्थी की ओर से श्री धन्नाराम सैनी अधिवक्ता उपस्थित। अप्रार्थीगण की ओर से श्री सुशील शर्मा अधिवक्ता उपस्थित। पक्षकारान की बहस सुनी गई। प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में मुख्य तर्क यह दिया कि अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी को गैस कनेक्सन दे दिया गया है परन्तु गैस कनेक्सन 17 माह बाद दिया है इसलिए प्रार्थी अधिवक्ता ने गेस कनेक्सन देरी से देने पर परिवाद व्यय व मानसिक क्षतिपूर्ति दिलाने की मांग की । अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने प्रार्थी अधिवक्ता के तर्को का विरोध करते हुए यह तर्क दिया कि प्रार्थी अप्रार्थीगण का उपभोक्ता नही है और ना ही प्रार्थी ने अपने परिवाद में यह कही अंकित किया कि वह अप्रार्थीगण का उपभोक्ता है। अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि जब प्रार्थी के द्वारा गैस कनेक्सन हेतु आवेदन किया गया था उस समय प्रार्थी अप्रार्थीगण के नियम व शर्तो की पालना नही कर रहा था जब प्रार्थी द्वारा अप्रार्थीगण के नियम व शर्तो की पालना कर दी गई तो उसे गैस कनेक्सन जारी कर दिया गया अप्रार्थीगण का कोई सेवादोष नही है परिवाद खारिज करने का तर्क दिया ।
उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। मंच का निष्कर्ष निम्न प्रकार है।
अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस मे मुख्य तर्क यही दिया कि प्रार्थी ने जब परिवाद प्रस्तुत किया था उस समय प्रार्थी अप्रार्थीगण का उपभोक्ता नही था इसलिए प्रार्थी कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नही है अपनी बहस के समर्थन मे अप्रार्थीगण के अधिवक्ता ने इस मंच का ध्यान 1992(2) सी.पी.आर. पेज 732 राज्य आयोग राजस्थान न्यायिक दृष्टान्त की ओर ध्यान दिलाया जिसका ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया । उक्त न्यायिक दृष्टान्त मे माननीय राष्ट्रीय आयोग ने विनायक ऐजेन्सी एण्ड अदर्स बनाम डी.एन.श्रीधर यह भी अभिनिर्धारित किया कि Complainant had merely got himself registered and connection No. was alloted to him- He had not yet paid any consideration- He cannot be said to have hired any services of opp. party- Complainant cannot be said to be a Consumer- उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्त के तथ्य वर्तमान प्रकरण पर पूर्णतया चस्पा होते है क्योकि प्रार्थी द्वारा परिवाद के समय ऐसा कोई दस्तावेज प्रस्तुत नही किया जिससे यह साबित हो कि वह अप्रार्थीगण का उपभौक्ता हो। ना ही प्रार्थी ने अपने परिवाद मे यह तथ्य अंकित किया कि वह अप्रार्थी का उपभोक्ता है । इसलिए मंच की राय में प्रार्थी का परिवाद उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्त की रोशनी में खारिज किये जाने योग्य है
अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध प्रार्थी अप्रार्थी का उपभोक्ता नही होने के आधार पर अस्वीकार कर खारिज किया जाता है। पक्षकारान प्रकरण व्यय स्वंय अपना-अपना वहन करेंगे। पत्रावली फैसला शुमार होकर दाखिल दफ्तर हो।
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