RAJ KUMAR MODI filed a consumer case on 26 Dec 2013 against MADHYA PRADESH GARHA NIRMAD MANDAL in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/66/2013 and the judgment uploaded on 20 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक- 66-2013 प्रस्तुति दिनांक-05.07.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
राजकुमार मोदी, आत्मज श्री विश्णु
प्रसाद मोदी, निवासी-केवलारी, तहसील
केवलारी, जिला सिवनी (म0प्र0)।.........................आवेदकपरिवादी।
:-विरूद्ध-:
(1) श्रीमान सहायक यंत्री, म0प्र0 गृह निर्माण
मण्डल, उपसंभाग सिवनी, बैनगंगा काम्प्लेक्स
प्रायवेट बस स्टेण्ड सिवनी (म0प्र0)।
(2) श्रीमान सम्पतित अधिकारी, म0प्र0 गृह निर्माण
मण्डल, संभाग बालाघाट, जिला बालाघाट
(म0प्र0)।.................................................अनावेदकगणविपक्षीगण।
:-आदेश-:
(आज दिनांक- 26.12.2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, मंगलीपेठ, सिवनी में अनावेदकों द्वारा, परिवादी को आबंटित निर्मित किये गये एम0आर्इ0जी0 डीलक्स भवन के विज्ञापित मूल्य से अधिक मूल्य लिये जाने को अनुचित बताते हुये, मूल्य में की गर्इ बढ़ोत्तरी को निरस्त किये जाने, अन्यथा नियमानुसार जमा राषियों पर 8 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से ब्याज दिलाये जाने, अनाधिकृत चार्ज षुल्क निरस्त किये जाने व परिवादी को आबंटित परिवादयुक्त भवन का कब्जा, मय नुकसानी दिलाये जाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) यह स्वीकृत तथ्य है कि-अनावेदकगण मध्यप्रदेष गृह निर्माण मण्डल के प्राधिकारी हैं, जो कि-वर्श-2009 में मंगलीपेठ कालोनी, सिवनी में विभिन्न श्रेणी के रहवासी भवन के विक्रय बाबद विज्ञापन में दिये विवरण अनुसार, परिवादी ने श्रेणी-35 एम.आर्इ.जी. डीलक्स भवन, जिसका अनुमानित प्रांकिलत मूल्य 8,95,000-रूपये बताया गया था, उसकी 10 प्रतिषत राषि पंजीयन राषि के रूप में दिनांक-30.111.2009 को परिवादी ने जमा किया था, षेश राषि 2,68,500-रूपये की तीन किष्तों में वर्श- 2010 में जमा करार्इ गर्इ, परिवादी को एम.आर्इ.जी. डीलक्स क्रमांक-18 आबंटित किया गया, फिर आबंटन आदेष और संषोधित आबंटन आदेष जारी कर, 1,85,845-रूपये मांग-पत्र दिनांक-31.03.2011 के द्वारा की गर्इ उक्त सब राषियां जमा करने के पष्चात परिवादी के नाम अंतरण विलेख भी पंजीकृत दिनांक-21.03.2012 को परिवादी के खर्चे पर कराया गया और परिवादी को अभी तक वास्तविक भौतिक आधिपत्य नहीं मिला।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि- अनावेदकगण के द्वारा समय पर निर्माण पूर्ण न कर, अनावष्यक विलम्ब किया गया और निर्माण की लागत में तथा भूखंड की लागत में वृद्धि की जाकर, अनुचित रूप से बार-बार दरें बढ़ाकर परिवादी से वसूली गर्इं, जो कि-अनावेदक-पक्ष द्वारा पंजीकृत विक्रय-पत्र रूकवाने की धमकीदवाब दिये जाने के फलस्वरूप, परिवादी ने उक्त अनुचित राषि का भी भुगतान किया, इस तरह कुल-11,29,320-रूपये अनावेदक-पक्ष को वह अदा कर चुका है और विक्रय-पत्र भी निश्पादित करा चुका है, लेकिन अब-तक अनावेदक-पक्ष द्वारा भवन का निर्माण कार्य सम्यक रूप से पूर्ण न कर, परिवादी को आधिपत्य प्रदान नहीं किया गया है और कब्जा देने के लिए 20,000-रूपये की मांग और की गर्इ, जो कि-सर्विस टेक्स, मेन्टीनेंस चार्ज अनुचित रूप से प्राप्त किये गये, जो निरस्त किये जाने योग्य हैं, जो कि-निर्माण किये जा रहे भवन का निरीक्षण भी परिवादी द्वारा किया गया, जिसमें बिजली फिटिंग का कार्य मानक स्तर का नहीं है, मकान के मुख्य हाल की दीवार में एवं अंदर कमरे की दीवार में दरारें हैं, जो गुणवत्ता पूर्ण कार्य होना चाहिये और पंजीकृत विक्रय-पत्र अनुसार, दिनांक-31.03.2012 तक भवन का आधिपत्य दे दिया जाना चाहिये था, परिवादी ने उक्त बाबद वरिश्ठ कार्यालय को निवेदन किया, वहां से अनावेदक क्रमांक-1 को आदेष भी प्राप्त हुआ, पर उक्त आदेष को अनदेखा कर, अनावेदक क्रमांक-1 अपनी जिम्मेदारी में घोर उपेक्षा बरत रहा है, जो कि-संषोधित आबंटन आदेष में मूल वृद्धि की सिथति में परिवादी की जमा राषियों पर 8 प्रतिषत ब्याज की भी पात्रता रही है, जो अनावेदक द्वारा नहीं दिया गया।
(4) अनावेदकों के जवाब का सार यह है कि-प्रस्तावित भवनों के निर्माण कार्य हेतु निविदा आमंत्रित की गर्इ, तत्पष्चात निर्माण कार्य दिनांक-15.04.2010 से षुरू होकर दिनांक-05.05.2011 तक कुल-11 माह में पूर्ण किया गया, निर्माण कार्य में कोर्इ विलम्ब नहीं किया गया है, भूखंड की जिला कलेक्टर की गार्इड लार्इन में मूल्य में वृद्धि कर दिये जाने से और निविदा दर के पष्चात लागत मूल्य में भवन पूर्ण होने तक 8.5 प्रतिषत वृद्धि हुर्इ, इसलिए कुल मूल्य में वृद्धि हुर्इ तथा अन्य व्यय व टेक्स पृथक से देय रहे हैं, इस कारण मूल्य वृद्धि प्रदर्षित हुर्इ है, जो कि- आधिपत्य आदेष, संपतित अधिकारी, संभाग बालाघाट के द्वारा जारी किया जाता है और आधिपत्य आदेष जारी होने की तिथि से 15 दिन के अन्दर हितग्राही को स्वयं उपसिथत होने पर भौतिक रूप से आधिपत्य दिया जाता है, जो कि-15 दिन के अन्दर हितग्राही उपसिथत होता, तो यह मान लिया जाता है कि-उसके द्वारा कब्जा ले-लिया गया है, जो कि-परिवाद में बेबुनियाद लांछन लगाये गये हैं, जो कि-स्वयं परिवादी द्वारा भवन का कब्जा प्राप्त न करने पर, भवन की देखरेख नहीं हुर्इ है और दिनांक-28.05.2012 को संपतित अधिकारी, बालाघाट ने आधिपत्य आदेष जारी कर परिवादी को दिया था और उसके द्वारा भौतिक रूप से कब्जा प्राप्त नहीं किया गया है, जो कि-उसके द्वारा भौतिक रूप से कब्जा लिये जाने में अनावेदकों को कोर्इ आपतित नहीं है, परिवाद निरस्त योग्य है।
(5) मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
(अ) क्या परिवादी विज्ञापन में बताये अनुमानित मूल्य
से अधिक मूल्य जो अनावेदक क्रमांक-2 ने परिवादी
से प्राप्त किया है, वह अंतर की राषि ब्याज सहित
अनावेदक क्रमांक-2 से वापस पाने का अधिकारी है?
(ब) क्या अनावेदकगण ने, परिवादी के पक्ष में विक्रय-पत्र
निश्पादन के पष्चात भी भवन का वास्तविक आधिपत्य
परिवादी को प्रदान नहीं किया और इस तरह परिवादी
के प्रति-सेवा में कमी किया है या अनुचित व्यापार
प्रथा को अपनाया है?
(स) क्या भवन का वास्तविक आधिपत्य पाने में हो रहे विलंब बाबद, परिवादी, अनावेदकों से हर्जाना पाने का अधिकारी है?
(द) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(6) परिवादी की ओर से विज्ञापन के बाद पंजीयन राषि व विज्ञापित मूल्य बाबद किष्तों के भुगतान किये जाने बाबद प्रदर्ष सी-2, सी-6, सी-8, सी-9 व सी-10 की रसीदें जमा परची पेष की गर्इं हैं, दिनांक-31.03.2011 के आबंटन आदेष की प्रति प्रदर्ष सी-7, संषोधित आबंटन आदेष दिनांक-01.01.2012 की प्रति प्रदर्ष सी-4 और अंतर की राषि जमा करने बाबद प्रदर्ष सी-5 व प्रदर्ष सी-3 की रसीदें व तृतीय किष्त की मांग बाबद, मांग-पत्र की प्रति प्रदर्ष सी-11 पेष की जाकर, यह तर्क किया गया है कि-प्रदर्ष सी-7 के आबंटन आदेष में विज्ञापन में दर्षाये अनुमानित मूल्य से अधिक मूल्य की मांग कर, अंतर की राषि प्राप्त की गर्इ और पुन: मूल्य बढ़ाकर संषोधित आबंटन आदेष दिनांक-11.01.2012 जारी कर, पुन: अंतर की राषि प्राप्त की गर्इ। जो कि-मांग किये जा रहे संषोधित मूल्य बाबद परिवादी-पक्ष की ओर से कोर्इ आपतित उस समय की गर्इ हो, ऐसा दर्षित नहीं। और प्रदर्ष सी-1 के विक्रय-पत्र का पंजीयन भी 21 मार्च-2012 को परिवादी द्वारा अपने पक्ष में अनावेदक क्रमांक-2 से निश्पादित करा लिया गया, जिसमें 10,88,346-रूपये विक्रय मूल्य दर्षाया गया है, जिसमें भवन निर्माण की लागत 7,50,846-रूपये और भूमि का प्रीमियम 3,37,500-रूपये समिमलित होना दर्षाया गया है, और षेश चार्जेस पृथक से वसूल किया जाना प्रदर्ष सी-4 के संषोधित आबंटन आदेष में दिये विवरण से स्पश्ट है, तो उक्त विक्रय-पत्र निश्पादित करा लिये जाने के लगभग 1 वर्श व 3 माह पष्चात परिवादी की ओर से पेष परिवाद में परिवादी से वसूल किये गये मूल्य को अनुचित होना कहकर अंतर की राषि की जो मांग की जा रही है, उसके लिए कोर्इ आधार संभव नहीं, जो कि-मध्यप्रदेष गृह निर्माण एवं अधोसंरचना विकास मण्डल के स्वयं वित्तीय योजना में विज्ञापन के समय मात्र एक अनुमानित मूल्य ही दर्षाया जाता है, जो कि-वास्तविक मूल्य का आंकलन, निर्माण कार्य पूर्ण हो जाने पर ही किया जाता है, जो कि-एम0पी0 हाउसिंग बोर्ड की आवासीय संपतित के पंजीयन आबंटन हेतु नियमावली व निर्देषिका में दिये नियमषर्तों से स्पश्ट है। जो कि-निर्माण पष्चात वास्तविक मूल्य जो निर्धारित किया गया, उससे सहमत होते हुये, मूल्य भुगतान कर और अपने पक्ष में विक्रय-पत्र निश्पादित करा लेने के बाद, विज्ञापन में बताये अनुमानित मूल्य में-से अधिक भुगतान की गर्इ अंतर की राषि की मांग नहीं की जा सकती, जैसा कि-न्यायदृश्टांत-2013 (भाग-2) सी0पी0आर0 248 (एन0सी0) दिनेष कुमार नामदेव बनाम म0प्र0 हाउसिंंग बोर्ड के मामले में दी गर्इ प्रतिपादना से स्पश्ट है। और ऐसे में भवन निर्माण के पष्चात वास्तविक निर्धारित मूल्य से सहमत होकर, विक्रय-पत्र निश्पादित करा लेने के बाद, अंतर की राषि वापस प्राप्त करने के संबंध में परिवाद का क्लेम स्वीकार योग्य नहीं। और परिवादी ऐसी अंतर की राषि वापस प्राप्त करने का अधिकारी नहीं पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब) और (स):-
(7) इस संबंध में अनावेदक-पक्ष की ओर से यह आधार लिया गया है कि-स्वयं परिवादी के द्वारा पेष प्रदर्ष सी-15 के आधिपत्य आदेष की प्रति से स्पश्ट है कि-दिनांक-28.05.2012 को परिवादी को विधिवत आधिपत्य देकर भवन के कब्जे के निर्धारित प्रपत्र तीन प्रतियों में अनावेदक क्रमांक-2 के कार्यालय में प्रेशित करने लिखा गया था, उसकी प्रतिलिपि परिवादी को भी भेजी गर्इ थी, जो प्रदर्ष सी-15 के रूप में परिवादी ने भी पेष की है, जिसमें परिवादी को यह निर्देषित किया गया था कि-इस पत्र के जारी होने की तिथि से 15 दिन के अंदर भवन का आधिपत्य प्राप्त करें, अन्यथा भवन का आधिपत्य आप के द्वारा लिया गया माना जाकर, तदानुसार प्रभार वार्शिक किष्तों का जमा करने के लिए देय होगा। प्रभार जमा करने की तारिख 31 मार्च प्रतिवर्श है, जो कि-वार्शिक किष्तों के भुगतान हेतु सूचना देना मण्डल को अनिवार्य नहीं।
(8) तो अभिलेख से यह दर्षित हो रहा है कि-21 मार्च-2012 को विक्रय-पत्र का निश्पादन व पंजीयन हो जाने के बाद भी कब्जा देने की कार्यवाही तत्काल नहीं हुर्इ, तब परिवादी के द्वारा, दिनांक-17.04.2012 को उक्त मकान का आधिपत्य देने के लिए पत्र लिखना पड़ा, जिसकी पावती प्रति प्रदर्ष सी-14 के रूप में परिवादी की ओर से पेष हुर्इ है, तब कहीं जाकर, प्रदर्ष सी-15 का आधिपत्य आदेष दिनांक-28.05.2012 को अनावेदक क्रमांक-2 संपतित अधिकारी द्वारा जारी किया गया। इस तरह उक्त आधिपत्य आदेष विक्रय-पत्र निश्पादन हो जाने के दो माह के पष्चात जारी हुआ और उक्त आधिपत्य आदेष अनावेदक क्रमांक-2 के द्वारा अपने अधिनस्थ अनावेदक क्रमांक-1 को भेजा गया आदेष रहा है, जिसमें परिवादी को भवन का भौतिक आधिपत्य प्रदान कर, भवन का कब्जा दिये जाने के निर्धारित प्रपत्र तीन प्रतियों में संपतित अधिकारी, अनावेदक क्रमांक-2 के कार्यालय में भेजे जाने का निर्देष रहा है।
(9) जो कि-अनावेदकगण द्वारा, परिवादी को कोर्इ कब्जा दिये बिना ही प्रदर्ष सी-5 की प्रति भेज देने मात्र के आधार पर, पत्र जारी होने के 15 दिन बाद कब्जा दे-दिया जाना मान लिया जायेगा, ऐसा कोर्इ अनुबंधषर्त या नियम, कानून रहा हो, यह अनावेदक-पक्ष दर्षा नहीं सका है। और प्रदर्ष सी-15 में परिवादी के नाम पृश्ठांकन में उसका हवाला, मात्र वार्शिक लीजरेन्ट व मेन्टीनेंस चार्ज आदि की वार्शिक प्रभार प्रतिवर्श 31 मार्च तक वसूले जाने के संबंध में ही है कि-आधिपत्य आदेष जारी होने के बाद भी आधिपत्य न लिये जाने की सिथति में आधिपत्य दिया मानकर उक्त प्रभार वसूले जायेंगे।
(10) तो प्रदर्ष सी-15 का अनावेदक क्रमांक-2 के द्वारा, अनावेदक क्रमांक-1 को जारी आधिपत्य आदेष का पत्र प्राप्त होने के बाद, अनावेदक क्रमांक-1 व अनावेदक क्रमांक-2 के द्वारा, परिवादी को आधिपत्य प्रदान करने के संबंध में क्या कार्यवाही की गर्इ, ऐसा अनावेदक-पक्ष दर्षा नहीं सका। और मात्र यह तर्क किया गया है कि-परिवादी को ही अनावेदक क्रमांक-1 के कार्यालय में उपसिथत होकर आधिपत्य प्राप्त करने की कार्यवाही करना था, तो ऐसे तर्क के लिए कोर्इ आधार नहीं। प्रदर्ष सी-15 के पत्र में ऐसा कोर्इ निर्देष, परिवादी को अनावेदक क्रमांक-1 के कार्यालय में उपसिथत होने बाबद नहीं रहा है। प्रदर्ष सी-15 का पत्र प्राप्त होने के बाद, अनावेदक क्रमांक-1 ने परिवादी को कभी कोर्इ लिखित पत्र या अन्यथा सूचना भेजी हो, यह अनावेदक-पक्ष दर्षा नहीं सका। जबकि-इसके उलट यह दर्षित है कि-अनावेदक क्रमांक-1 के कार्यालय में उपसिथत होकर परिवादी ने दिनांक-28.12.2012 को भी पत्र प्रस्तुत किया था, जिसकी पावती प्रति की प्रतिलिपि प्रदर्ष सी-16 परिवादी-पक्ष की ओर से पेष की गर्इ है, जिसमें अनावेदक क्रमांक-1 के कार्यालय की पावती व मुद्रा होना विवादित नहीं। और प्रदर्ष सी-16 में यह लेख किया गया था कि-परिवादी कर्इ बार उक्त अनावेदक के आफिस में जा चुका है व अप्रैल, जून व सितम्बर माह में पत्र व डाकूमेन्ट जमा करा दिया गया था और इसलिए भवन का आधिपत्य प्रदान करने का निवेदन किया गया कि-भवन का आधिपत्य कब तक देंगे सूचित करें। उक्त पत्र के संबंध में भी कोर्इ जवाब या कार्यवाही अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा की गर्इ हो, ऐसा अनावेदक-पक्ष से दर्षाया नहीं गया है।
(11) परिवादी-पक्ष की ओर से तर्क में यह व्यक्त किया गया है कि-नल, टोंटी, होल्डर, बाथबेसिन, दरवाजों का हेनिडल व खिड़कियों के पल्ले आदि जैसे सामान जो खाली भवन में रहने से चोरी हो जाते हैं, वे पहले से लगा के नहीं रखे जाते और आधिपत्य देने के समय ही एक-दो दिन में उक्त सब सामान की फिटिंग कर, वास्तविक आधिपत्य देने की कार्यवाही की जाती है, तो उक्त तर्क बाबद अनावेदक-पक्ष की ओर से कोर्इ टिप्पणी भी नहीं की गर्इ है। और अनावेदक-पक्ष की ओर से परिवादी को भवन का भौतिक आधिपत्य सौपे जाने के लिए क्या तत्परता बरती गर्इ, क्या कार्यवाही की गर्इ, यह अनावेदक-पक्ष दर्षा नहीं सका। तो अभिलेख से यह स्पश्ट है कि-परिवादी-पक्ष बार-बार आवेदन देकर उसे भवन का भौतिक आधिपत्य सौपे जाने का निवेदन करता रहा और अनावेदक-पक्ष की ओर से उक्त बाबद कोर्इ प्रतिक्रिया, तत्परता या कार्यवाही किया जाना दर्षाया नहीं गया है। और आधिपत्य परिवादी को न सौपे जाने का कोर्इ समुचित कारण भी रहा होना अनावेदक-पक्ष दर्षा नहीं सका। जो कि-अनावेदक क्रमांक-2 के द्वारा, अनावेदक क्रमांक-1 को आधिपत्य आदेष जारी कर, कब्जा दे-दिये जाने के निर्देष दे-दिये जाने मात्र से अनावेदक क्रमांक-2, परिवादी को कब्जा प्रदान करने के दायित्व से मुक्त नहीं हो जाता, जो कि-अनावेदक क्रमांक-1, अनावेदक क्रमांक-2 का अधिनस्थ है और अनावेदक क्रमांक-1 की उपेक्षा, चूक या आकृत्य से परिवादी को होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति के लिए परिवादी को मध्यप्रदेष गृह निर्माण मण्डल व अनावेदक क्रमांक-1 व 2 दोनों ही दायित्वाधीन होना पाये जाते हैं।
(12) क्योंकि परिवादी-पक्ष के द्वारा जो विक्रय मूल्य अदा किया गया उसके संबंध में विक्रय-पत्र निश्पादन हो जाने से परिवादी को भवन का स्वत्व प्राप्त हो गया और इसलिए वह विक्रय मूल्य पर कोर्इ ब्याज पाने का अधिकारी नहीं रहा है, लेकिन विक्रय-पत्र जो 21 मार्च-2012 को निश्पादित किया गया, उसके पष्चात भी एक माह तक परिवादी को विक्रित भवन का आधिपत्य सौपा नहीं गया, इसलिए 1 मर्इ-2012 से आधिपत्य प्रदान करने की अवधि तक का 4,000-रूपये मासिक दर से हर्जाना पाने का परिवादी-पक्ष अधिकारी होना पाया जाता है। तो यह प्रमाणित है कि- अनावेदक क्रमांक-1 और 2 ने परिवादी से मूल्य प्राप्त कर, परिवादी के पक्ष में विक्रय-पत्र निश्पादित करने के बावजूद, विक्रित भवन का आधिपत्य परिवादी को न सौपकर अनुचित प्रथा को अपनाया है और परिवादी के प्रति-सेवा में कमी की है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'ब को निश्कर्शित किया जाता है। जबकि-मकान का संभवित मासिक किराया मूल्य लगभग 4,000-रूपये की मासिक दर से नुकसानी परिवादी, अनावेदकगण से संयुक्तत: या पृथकत: पाने का अधिकारी है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'स को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(द):-
(13) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ 'ब और 'स के निश्कर्शों के आधार पर, मामले में निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
(अ) अनावेदकगण, परिवादी को विक्रित भवन का निर्धारित
मानक के अनुरूप आधिपत्य, आदेष दिनांक से दो माह
की अवधि के अंदर प्रदान करे व 1 मर्इ-2012 से
आधिपत्य सौपे जाने की दिनांक तक की अवधि का
4,000-रूपये (चार हजार रूपये) मासिक दर से
हर्जाना परिवादी को अदा करे।
(ब) अनावेदकगण स्वयं का कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे और
परिवादी को संयुक्तत: या पृथकत: कार्यवाही-व्यय के
रूप में 2,000-रूपये (दो हजार रूपये) अनावेदकगण
अदा करें।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी प्रतितोषण फोरम,सिवनी
(म0प्र0) (म0प्र0)
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